Active Trading: एक्टिव ट्रेडिंग (स्टॉक) कितने प्रकार की होती है?
एक्टिव स्टॉक ट्रेडिंग में स्टॉक मार्केट से त्वरित लाभ कमाने के लिए, स्टॉक को बार-बार खरीदा और बेचा जाता है। स्टॉक ट्रेडर्स वोलेटिलिटी के कारण स्टॉक्स के प्राइस में होने वाले उतार-चढ़ाव से प्रॉफिट कमाने के लिए स्टॉक्स को कम प्राइस पर खरीदते हैं। इसके विपरीत ऊँचे प्राइस पर पहले स्टॉक को शार्ट सेल करके बाद में खरीदकर भी ट्रेडिंग की जाती हैं। इसी को Active Trading भी कहा जाता है।
सक्रिय या त्वरित लाभ कमाने के लिए जो स्टॉक ट्रेडिंग की जाती है उसे Active Trading भी कहा जाता है, जिसमे दिन में कई बार स्टॉक्स को खरीदते और बैचते हैं। यह लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट के विपरीत है, जिसमे स्टॉक्स को खरीदकर लम्बी अवधि के लिए होल्ड किया जाता है। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट
इस आर्टिकल में एक्टिव स्टॉक ट्रेडिंग (Share/Stock Trading types) कितने प्रकार की होती है? के बारे में विस्तार से बताया गया है। चलिए जानते हैं- Stock Trading kitne prkar (Types) ki hoti hai? in Hindi.
यदि आप शेयर ट्रेडिंग सीखना चाहते हैं। तो इसके लिए आपको टेक्निकल एनालिसिस के साथ-साथ ऑप्शन ट्रेडिंग भी सीखना चाहिए। क्योंकि ऑप्शन ट्रेडिंग में थोड़े पैसे लगाकर बड़े ट्रेड किये जा सकते हैं जिनसे कम पैसे में ज्यादा प्रॉफिट कमाया जा सकता है। शेयर ट्रेडिंग सीखने के लिए आपको ऑप्शन ट्रेडिंग की पहचान, टेक्निकल एनालिसिस और कैंडलस्टिक की पहचान बुक्स पढ़नी चाहिए।
एक्टिव ट्रेडिंग क्या है?
Active Trading के लिए ट्रेडर्स बहुत सारे टेक्निकल टूल्स और ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी का प्रयोग करते हैं। साथ ही फंडामेंटल, टेक्निकल एनालिसिस और करंट मार्केट न्यूज़ तथा घटनाओं का प्रयोग भी ट्रेडिंग के लिए किया जाता है। एक्टिव ट्रेडर्स बहुत सारे फाइनेंसियल इंस्ट्रूमेंट में ट्रेडिंग करते हैं जैसे स्टॉक्स, बांड्स, करेंसी, और कमोडिटी आदि।
वे अपनी पोजीशन को हेज करने या संभावित रिटर्न बढ़ाने के लिए फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (डेरिवेटिव) का भी उपयोग कर सकते हैं। वैसे तो कई प्रकार से स्टॉक ट्रडिंग होती है लेकिन मुख्य रूप से चार एक्टिव ट्रेडिंग स्ट्रेटजी होती हैं। स्केल्पिंग, इंट्राडे ट्रेडिंग, स्विंग ट्रेडिंग और पोसिशनल ट्रेडिंग।
यूँ तो एक्टिव स्टॉक ट्रेडिंग कई प्रकार की होती है। लेकिन शेयर मार्केट ट्रेडर्स अपने वित्तीय लक्ष्य और शेयर मार्केट के प्रति अपने झुकाव की वजह से। जितने भी समय के लिए अपनी पोजीशन को होल्ड रखते हैं। उसी के आधार पर शेयर ट्रेडिंग को मुख्य दो भागों में बाँटा गया है- शार्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म ट्रेडिंग।
- Active trading स्ट्रेटजी ऐसी स्ट्रेटजी है, जिसमे कम समय में अधिक प्रॉफिट कमाने का प्रयास किया जाता है। इसमें ट्रेडिंग पोजीशन को कम समय के लिए होल्ड किया जाता है।
- स्केल्पिंग ट्रेडिंग में बहुत कम समय में शेयर खरीदकर-बेचकर प्राइस के छोटे से अंतर से भी लाभ कमाया जा सकता है।
- इंट्राडे ट्रेडिंग में स्टॉक्स को जिस दिन खरीदा जाता है। उसी दिन बेचकर ट्रेडिंग पोजीशन को बंद भी कर दिया जाता है।
- स्विंग ट्रेडिंग में ट्रेडिंग पोजीशन को एक दिन से लेकर हफ्तों या महीनों तक होल्ड रख सकते है।
- पोसिशनल ट्रेडिंग एक लॉन्ग-टर्म स्ट्रेटजी होती है। जिसमे ट्रेडिंग पोजीशन को महीनों से लेकर वर्षों तक होल्ड किया जाता है।
लेकिन निवेश स्ट्रेटजी के आधार पर भी ट्रेडिंग को दो भागों में बांटा जा सकता है। टेक्निकल ट्रेडिंग और फण्डामेंटल ट्रेडिंग में बाँटा जा सकता है। समय अवधि के आधार पर स्टॉक्स ट्रेडिंग को कई भागों में बाँटा जा सकता है जैसे-
- इंट्राडे ट्रेडिंग
- पोसिशनल ट्रेडिंग
- स्विंग ट्रेडिंग
- ऑप्शन ट्रेडिंग
- फ्यूचर ट्रेडिंग
- अल्गो ट्रेडिंग
इंट्राडे ट्रेडिंग
Intraday trading को ही डे ट्रेडिंग के नाम से भी जाना जाता है। यदि ट्रेडर जिस दिन शेयर खरीदता है और उसी दिन उन्हें बेच भी देता है। या ट्रेडर पहले शेयरों को बेचता है, उसके बाद उसी दिन शेयरों को खरीदकर अपनी ट्रेडिंग पोजीशन को बंद कर देता है ,इसे शॉर्ट सेलिंग कहते हैं। इसे इंट्राडे ट्रेडिंग कहते हैं।
इसका सीधा सा मतलब यह है कि यदि कोई ट्रेडर जिस दिन स्टॉक्स का सेट खरीदता है और उन्हें उसी दिन Stock market बंद होने से पहले बेच देता है। इसी को इंट्राडे ट्रेडिंग कहा जाता है। इसके लिए स्टॉक ब्रोकर ट्रेडर्स को ट्रेडिंग करने के लिए क्रेडिट में मार्जिन मनी भी देता हैं। वैसे तो इंट्राडे ट्रेडिंग कम जोखिम वाली होती है क्योंकि यह शार्ट-टर्म के लिए होती है।
जब ट्रेडर्स अधिक मार्जिन मनी के साथ इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं। जब यह अधिक जोखिम भरी हो सकती है। इंट्राडे ट्रेडिंग की एक अच्छी बात यह है कि इसमें इन्वेस्टमेंट की अपेक्षा कम पूँजी की आवश्यकता होती है। क्योंकि कम पैसों में अधिक मार्जिन मिल जाता है। इंट्राडे ट्रेडिंग में काफी नुकसान हो सकता कभी-कभी ट्रेडिंग अकाउंट का पूरा पैसा खत्म हो जाता है। Dow Theory
इंट्राडे ट्रेडिंग की कुछ विशेषताएँ और कमियाँ भी हैं जो निम्नलिखित हैं-
इंट्राडे ट्रेडिंग के फायदे
यदि सही से इंट्राडे ट्रेडिंग की जाय तो इससे हाई प्रॉफिट कमाया जा सकता है। इंट्राडे ट्रडर्स इंटरनेट कनेक्शन के साथ कहीं से भी ट्रेडिंग कर सकते हैं। जिससे यह जीविकोपार्जन का एक सुविधजनक तरीका बन सकता है। इसमें कोई ओवरनाईट जोखिम नहीं है क्योंकि मार्केट बंद होने से पहले Active Traders अपनी सभी पोजीशन बंद कर देते हैं।
इंट्राडे ट्रेडिंग की कमियाँ
Intraday trading एक हाई रिस्क ट्रेडिंग स्ट्रेटजी है, यदि ट्रेडर्स को मार्केट ट्रेंड और रिस्क मेनेजमेंट की समझ नहीं है तो उन्हें बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। इंट्राडे ट्रेडिंग की लागत संभावित प्रॉफिट को खत्म कर सकती है। इस ट्रेडिंग में बहुत जल्दी ट्रेडिंग निर्णय लेने पड़ते हैं, जिससे इमोशनली ओवर ट्रेडिंग भी हो सकती है और पोजीशन को होल्ड भी करना पड़ सकता है। जिनसे बड़ा नुकसान हो सकता है।
स्केल्पिंग ट्रेडिंग
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग के द्वारा स्टॉक के प्राइस में बहुत छोटे मूवमेंट यानि उतार-चढ़ाव से प्रॉफिट कमाया जाता है। स्केल्पर्स आमतौर बहुत छोटे समय के लिए अपनी ट्रेडिंग पोजीशन को रखते हैं। कुछ सेकेंड से लेकर कुछ मिनट तक उनका टार्गेट, प्राइस में बहुत छोटे उतार-चढ़ाव से प्रॉफिट कामना होता है।
Scalping ट्रेडर्स ट्रांसेक्शन फीस और बिड-आस्क स्प्रेड का हिसाब लगाकर अपने प्रॉफिट का केलकुलेशन करके स्केल्पिंग करते हैं। क्योंकि स्कैल्पर छोटे प्रॉफिट के लिए लगातार-बारबार ट्रडिंग करते हैं। जिससे ट्रांजेक्शन लागत काफी बढ़ जाती है।
स्केल्पिंग के लिए काफी फोकस और अनुसाशन के साथ ही त्वरित निर्णय लेने की जरूरत होती है। ट्रेडर्स को स्मॉल प्राइस मूवमेंट से प्रॉफिट कमाने के लिए पोजीशन में सही समय पर त्वरित एंट्री और एग्जिट करना भी आना चाहिए।
स्केल्पिंग ट्रेडिंग में कुछ विशेषताएं और कमियाँ भी हैं जो निम्नलिखित हैं-
स्कैल्पिंग के फायदे
स्केल्पिंग से बहुत कम समय में प्रॉफिट कमाया जा सकता है क्योंकि ट्रेडर्स का उद्देश्य बहुत कम समय में शेयर के प्राइस में छोटे से उतार-चढ़ाव से प्रॉफिट कामना होता है। छोटे प्रॉफिट पर बार-बार ट्रेडिंग करने से ट्रेडर्स को प्रॉफिट कमाने के बहुत ज्यादा मौके मिल जाते हैं। एनएसई ने खत्म की डु नॉट एक्सरसाइज की सुविधा
स्केल्पिंग का उद्देश्य प्राइस में बहुत छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव को पकड़कर ट्रेडिंग करना होता है। जिससे मार्केट के बड़े रिएक्शन से बचा जा सके। इसके लिए उच्च स्तर का अनुसाशन और ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है। जिसके कारण स्केल्पिंग ट्रेडर्स से हाई लेवल का अनुसाशन बनाने में मदद मिलती है।
स्कैल्पिंग की कमियाँ
स्केल्पिंग में छोटे प्रॉफिट पर बारम्बार ट्रेडिंग की जाती है जिसके कारण ट्रांजेक्शन कॉस्ट और बिड-आस्क स्प्रेड बढ़ जाती है। स्केल्पिंग की अप्रोच बहुत तनावपूर्ण और भावात्मक रूप से बहुत परेशान करने वाली हो सकती है। स्केल्पिंग के लिए सॉलिड रिस्क मैनेजमेंट की आवश्यकता पड़ती है। ताकि एक साथ कई पोसिशन्स को संभाला जा सके और मार्केट के जोखिम को कम किया जा सके। मूविंग एवरेज
स्विंग ट्रेडिंग
इस अप्रोच में सिक्योरिटीज को कम समय के लिए खरीदा और होल्ड किया जाता है। आमतौर पर कुछ दिन से लेकर कुछ महीनों तक। स्विंग ट्रेडिंग में शार्ट-टर्म में सिक्योरिटीज के प्राइस में होने वाले मूवमेंट से प्रॉफिट कमाया जाता है। कम प्राइस पर स्टॉक्स को खरीदकर और अधिक प्राइस पर बेचकर कम समय में प्रॉफिट कमाया जाता है। इलियट वेव थ्योरी
स्विंग ट्रेडर्स को मार्केट में आने वाले अचानक और अनएस्पेक्टेड मूवमेंट को मैनेज करना पड़ता है। जिनसे नुकसान हो सकता है। Swing Traders को शेयर मार्केट ट्रेंड और जियो पोलिटिकल न्यूज से भी अपडेट रहना चाहिए। साथ ही स्ट्रॉन्ग रिस्क मैनेजमेंट भी होना चाहिए और इमोशनल निर्णयों से बचने के लिए ट्रेडिंग डिसिप्लिन का भी पालन करना चाहिए। टेक्निकल एनालिसिस
स्विंग ट्रेडिंग की कुछ विशेषतायें और कमियाँ भी हैं जो निम्नलिखित है-
स्विंग ट्रेडिंग के फायदे
स्केल्पिंग और इंट्राडे ट्रेडिंग के मुकाबले इसकी ट्रांजेक्शन कॉस्ट कम होती है। Swing traders के पास मार्केट ट्रेंड का विश्लेषण करने के लिए अधिक समय होता है। साथ ही जिससे इमोशनल ट्रेडिंग रिस्क को कम किया जा सकता है। पोज़िशनल ट्रेडिंग के बनिस्पत स्विंग ट्रेडिंग में अधिक लचीलापन होता है क्योंकि स्विंग ट्रेडर मार्केट कंडीशन के अनुसार अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में बदलाव कर सकता है। AMC Stocks
Swing Trading की कमियाँ
स्विंग ट्रेडर्स मार्केट में अचानक आने वाले मूवमेंट में फंस सकते हैं। जिसके कारण प्राइस में विपरीत दिशा में मूवमेंट हो सकता है। इससे बचने के लिए स्विंग ट्रेडर्स को मार्केट पर लगातार नजर रखनी पड़ती है और उसका विश्लेषण करना पड़ता है। जिसके लिए अधिक समय की जरूरत पड़ती है। stocks
Positional Trading पोजीशनल ट्रेडिंग
इस ट्रेडिंग में अपनी पोजीशन को लॉन्ग-टर्म के लिए होल्ड किया जाता है। कुछ महीनों से लेकर सालों तक या इससे भी बढ़कर दशकों तक होल्ड किया जाता है। पोजीशनल ट्रेडिंग का लक्ष्य प्राइस में शार्ट-टर्म के उतार-चढ़ाव के बजाय लॉन्ग-टर्म के प्रमुख ट्रेंड से प्रॉफिट कामना होता है। स्टॉक चार्ट
स्केल्पिंग, इंट्राडे ट्रेडिंग और स्विंग ट्रेडिंग की तुलना में Positional Trading कम Active trading है। बड़े-बड़े इंस्टीट्यूशन अपने वेल्थ का एक हिस्सा पोजीशनल ट्रेडिंग के लिए रखते हैं। आमतौर पर पोजिशनल ट्रेडर्स फंडामेंटल एनालिसिस करके स्टॉक्स की पहचान करते हैं कि स्टॉक्स अंडरवैल्यू है या ओवरवैल्यू।
फिर अंडरवैल्यू स्टॉक्स लॉन्ग-टर्म के लिए उन्हें होल्ड करते हैं। और शेयर मार्केट में खुद को सही साबित करके प्रॉफिट कमाते हैं। डाइवर्जेन्स पोजिशनल ट्रेडर्स भी अपने स्टॉक्स को खरीदने और बचने के लिए टेक्निकल एनालिसिस का उपयोग करते हैं।
पोजिशनल ट्रेडिंग की कुछ विशेषताएँ और कमियाँ भी हैं जो निम्नलिखित हैं-
Positional Trading के फायदे
पोजिशनल ट्रेडिंग से Active Trading Strategies की तुलना में हाई रिटर्न कमाया जा सकता है। क्योंकि इनका लक्ष्य लॉन्ग-टर्म प्राइस मूवमेंट से प्रॉफिट कामना होता है। इसमें बहुत कम ट्रांजेक्शन होते है इसलिए इसकी ट्रांजेक्शन कॉस्ट भी बहुत कम होती है। Positional Trading Strategies बहुत ही फ्लेक्सिबल होती हैं, शेयर मार्केट ट्रेंड के इनके विपरीत दिशा में जाने पर इनको आसानी से एडजस्ट किया जा सकता है।
पोसिशनल ट्रेडिंग में मार्केट ट्रेंड का विश्लेषण करने और भावात्मक जोखिम को कम करने के लिए पर्याप्त समय होता है।
Positional Trading की कमियाँ
पोजिशनल ट्रेडर्स तब एक्सपोज हो जाते हैं जब मार्केट में किसी इवेंट के कारण बड़ा प्राइस मूवमेंट आ जाता है। लेकिन पोजिशनल ट्रेडर्स उसका लाभ नहीं उठा पाते हैं। ये शार्ट-टर्म मार्केट अपॉर्च्युनिटीज़ का लाभ नहीं उठा पाते हैं। लॉन्ग-टर्म के लिए पोजीशन को रखने के कारण इनके पास लिक्विडिटी की कमी रहती है।
Algo Trading (एल्गो ट्रेडिंग)
इसे एल्गोरिथम ट्रेडिंग भी कहा जाता है, यह इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए है। इसमें फॉर्मूले लिखकर एक कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किया जाता है। उस प्रोग्राम के अनुसार इंसान की जगह कम्प्यूटर उसके बिहाफ पर ट्रेडिंग करता है। जो पहले से तय दिशानिर्देशों का पालन करता है।
आजकल बड़े इंस्टीयूशन एल्गो ट्रेडिंग ही करते हैं। एक आम रिटेल ट्रेडर भी एल्गो ट्रेडिंग कर सकता है। इसके लिए उसे खुद या किसी एक्सपर्ट से अपना Algo Trading सिस्टम तैयार करवाना पड़ेगा। उसके बाद उसके लिए उसका कम्प्यूटर एल्गो ट्रेडिंग कर सकता है।
इसमें आप कम्प्यूटर को अपना खास आदेश दे सकते हैं कि किस प्राइस पर सिक्युरिटीज को खरीदना है और किस पर बेचना है। आप अपनी मनचाही संख्या भी अपने कम्प्यूटर प्रोग्राम में सेट कर सकते है। आपको कितनी संख्या में सिक्युरिटीज को खरीदना या बेचना चाहते है।
साथ ही कौन सी स्ट्रेटजी को फॉलो करना है, यह भी आपको अपने कम्प्यूटर प्रोग्राम में सेट करना होगा। जैसे ही मार्केट में आपकी स्ट्रेटजी के हिसाब से परिस्थतियाँ बनेगी। आपका कम्प्यूटर सिस्टम आपके बिहाफ पर आपके द्वारा बताई गई संख्या में आपके लिए सिक्युरिटीज खरीद या बेच देगा। बुलिश फ्लैग पैटर्न
Algo Trading के फायदे
एल्गो ट्रेडिंग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें इमोशनलेस ट्रेडिंग होती है क्योंकि कंप्यूटर को नहीं पता होता है। कि मार्केट कहां जा रहा है? शेयर प्राइस गिर रहे हैं या बढ़ रहे हैं। कंप्यूटर में ग्रीड और फियर नहीं होता है। आप लोग लालच के कारण शेयर खरीद लेते हैं और डर के कारण बेच भी देते हैं, कंप्यूटर के अंदर ऐसा नहीं है।
जब तक उसका सर्टेन लेवल नहीं कटेगा तब तक कंप्यूटर ना ही शेयर बेचेगा और ना ही खरीदेगा। कंप्यूटर में भावना नहीं होती ना ही उस पर किसी ब्रेकिंग न्यूज़ का ही असर होता है। उसके अंदर जो फार्मूला लिखा होता है और जब फार्मूले के हिसाब से प्राइस लेवल आते हैं, तभी कंप्यूटर एक्शन लेता है। Demat Account?
इस तरह इमोशनल ट्रेडिंग की वजह से जो नुकसान हो जाते हैं। उस नुकसान से Algo Trading के द्वारा बचा जा सकता है। कंप्यूटर अपने डिसिप्लिन से आपके द्वारा दिए गए फार्मूले के अनुसार ट्रेडिंग करता है। इनका एक फायदा यह भी है कि इसमें आप भी बहुत ही हाई फ्रीकवेंसी ट्रेडिंग कर सकते हैं।
यानी कि आप प्रत्येक 1, 2, 3, 5, 10 मिनट आदि में, चाहे जितनी ट्रेड डाल सकते हैं और उसको काट भी सकते हैं। लेकिन यदि इंसान इतने कम समय में इतनी जल्दी-जल्दी शेयर खरीदे और बेचे तो यह बहुत मुश्किल है। जो लोग बहुत बड़ी मात्रा में और बहुत ज्यादा सौदा करते हैं उनके लिए अल्गो ट्रेडिंग बहुत अच्छी चीज है।
आज भारत में कुल ट्रेडिंग का करीब 45% एल्गो ट्रेडिंग होती है। चाहे वह स्टॉक मार्केट, कमोडिटी मार्केट या फॉरेक्स मार्केट हो सभी में एल्गो ट्रेडिंग होती है।
अल्गो ट्रेडिंग की कमियाँ
Algo trading आपको ट्रेन्डिंग (आप ट्रेंड या डाउन ट्रेंड) मार्केट में ही पैसा कमा कर दे सकता है। यानी एक रेंज में फंसे हुए शेयर मार्केट में इसे में हमेशा दिक्कत आती है। जैसा कि आप जानते हैं ज्यादातर समय करीब 60-70% मार्केट एक रेंज में ही रहता है।
करीब 30% समय में ही मार्केट में एकतरफा ऊपर या नीचे की ओर चाल आती है। एल्गो ट्रेडिंग ट्रेन्डिंग मार्केट के समय ही अच्छा प्रॉफिट कमा कर दे सकती है। ट्रेंडिंग मार्केट में जब लोग डर की वजह से अपनी पोजीशन को बंद कर देते हैं। तब एल्गो ट्रेडिंग आपको पूरा मूव लेने का मौका देती है। एसजीएक्स निफ़्टी
कंप्यूटर के अंदर डर और लालच नहीं होता है इसलिए यह आपको पूरा मूव लेने का मौका देता है। लेकिन जब मार्केट एक रेंज होता है तब इसके बार-बार स्टॉपलॉस हिट होते हैं। आपने प्रोग्राम में ऐसा फार्मूला लिखा होता है कि इस प्राइस पर शेयर खरीद लीजिए और इस प्राइस पर बेच दीजिए।
जब प्राइस उस रेंज में बार-बार ऊपर-नीचे जाएगा तो एल्गो ट्रेडिंग में बार-बार आपके स्टॉपलॉस हिट होंगे। Algo Trading साइडवे में मार्केट में बिल्कुल भी काम नहीं करता है, बल्कि बार-बार स्टॉपलॉस हिट होने के कारण नुकसान ही ज्यादा करता है। जो लोग एल्गो ट्रेडिंग करते हैं, वे जब वह कंप्यूटर पर जाकर चेक करते हैं कि उन्हें कितना प्रॉफिट हुआ। ट्वीज़र्स बॉटम पैटर्न
तब उन्हें बहुत ज्यादा प्रॉफिट नहीं मिलता क्योंकि ट्रेन्डिंग मार्केट में जो प्रॉफिट आता है। वह पूरा प्रॉफिट साइडवे में मार्केट में चला जाता है। आपने कंप्यूटर को एक फार्मूला लिखकर दिया है। आप यह भी नहीं कह सकते कि आप साइडवे में मार्केट में ट्रेड मत कीजिए। आपके फार्मूले के हिसाब से ट्रेड आएगा तो कंप्यूटर उस ट्रेड को जरूर लेगा।
Active Trading (शार्ट-टर्म ट्रेडिंग) की सीमाएँ शेयर
ट्रेडर्स और इंस्टीयूशन्स को पता होना चाहिए कि Active Trading (शार्ट-टर्म ट्रेडिंग) की भी सीमाएँ हैं इसलिए केवल एक्टिव ट्रेडिंग के भरोसे ना रहें। इसकी सीमाएं निम्नलिखित हैं-
हाई रिस्क: लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट की तुलना में इसमें ज्यादा जोखिम शामिल है, शार्ट-टर्म ट्रेडर्स को प्रभावी तरीके से अपने रिस्क को कंट्रोल करना आना चाहिए। एक्टिव ट्रेडर्स को रिस्क मैनेजमेंट टेक्नीक्स की अच्छी समझ हो तब ही Share Trading करना चाहिए।
समय और प्रयास: शार्ट-टर्म ट्रेडिंग से पैसा कमाने के लिए बहुत अधिक समय और प्रयास करने की आवश्यकता पड़ती है। ट्रेडर्स को शेयर बाजार को मॉनिटर करना पड़ता है और इससे सम्बन्धित ब्रेकिंग न्यूज पर भी नजर रखनी पड़ती है। जो कि समय लेने वाला और तनावपूर्ण हो सकता है।
भावात्मक तनाव: एक्टिव ट्रेडिंग भावात्मक रूप से तनावपूर्ण हो सकती है क्योंकि पूरे दिन कम्प्यूटर के सामने बैठकर ट्रेडिंग करने से तनाव हो सकता है। विशेषकर मार्केट के गलत दिशा में जाने पर, जिससे कभी-कभी ट्रेडिंग के गलत निर्णय भी हो सकते हैं।
ट्रांजेक्शन कॉस्ट: क्योंकि इसमें लगातार सिक्युरिटीज की ट्रेडिंग करनी पड़ती है इसलिए इसकी ब्रोकरेज फीस काफी बढ़ जाती है।
स्टॉक्स ट्रेडिंग के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-
मैं एक्टिव ट्रेडिंग कैसे शुरू करूं?
एक एक्टिव ट्रेडर बनने के लिए फाइनेंसियल मार्केट, ट्रेडिंग स्ट्रेटजी और रिस्क मैनेजमेंट टेक्नीक्स के बारे में सीखना चाहिए। इन बिंदुओं पर पहुँचने के लिए सबसे पहले फाइनेंसियल मार्केट्स और ट्रेडिंग के बेसिक्स सीखने चाहिए। इसके बाद स्केल्पिंग, इंट्राडे ट्रेडिंग, स्विंग ट्रेडिंग और पोसिशनल ट्रेडिंग स्ट्रेटजी सीखनी चाहिए।
उपर्युक्त चीजें सीखने के बाद, एक ट्रेडिंग प्लान विकसित करना चाहिए। उसके बाद एक सही ब्रोकर का चुनाव करना चाहिए। फिर एक डेमो एकाउंट पर प्रक्टिस करना चाहिए। फिर अच्छी तरह सिखने के बाद शेयर बाजार में लाइव ट्रेडिंग शुरू करना किये।
क्या इंट्राडे ट्रेडिंग प्रॉफिटेबल है?
इंट्राडे ट्रेडिंग प्रॉफिटेबल भी हो सकती है लेकिन प्रॉफिट की कोई गारंटी नहीं है। एक सफल ट्रेडर को मार्केट ट्रेंड (trend), टेक्निकल एनालिसिस और रिस्क मैनेजमेंट की अच्छी समझ होती है। सफल ट्रेडर्स समय के साथ अपने ट्रेडिंग प्लान को ट्रेडिंग डिसिप्लिन और फोकस के साथ लागु करते हैं। ट्रेडर्स की सीमाओं और बेनिफिट का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना चाहिए।
स्विंग ट्रेडिंग कैसे शुरू करूं?
सबसे पहले स्विंग ट्रेडिंग की मूल बातें सीखनी चाहिए। इसमें स्विंग हाई और स्विंग लो के कांसेप्ट को समझना चाहिए। साथ ही टेक्निकल इंडिकेटर के द्वारा मार्किट का विश्लेषण करके ट्रेंड को आईडेंटीफाइंड करना आना चाहिए। उसके बाद शेयर, करेंसी और F&O में से किसी एक को ट्रेडिंग के लिए चुनना चाहिए।
फिर ट्रेडिंग प्लान डवलप करना चाहिए। उसके साथ मार्केट का विश्लेषण करना चाहिए। टेक्निकल एनालिसिस का यूज स्विंग हाई और लो, सपोर्ट और रेजिस्टेंस, और ट्रेंडलाइन का स्तर खोजने के लिए किया जाता है।
सारांश एक्टिव ट्रेडिंग स्ट्रेटजी और शार्ट-टर्म ट्रेडिंग स्ट्रेटजी एक ही हैं। जिसमे शार्ट-टर्म प्राइस मूवमेंट (उतार-चढ़ाव) का लाभ उठाने के लिए सिक्युरिटीज को बारम्बार खरीदा और बेचा जाता है। स्केल्पिंग एक्टिव ट्रेडिंग का सबसे अग्रेसिव रूप है, इसमें छोटे-छोटे प्राइस मूवमेंट के लिए मिनट और सेकेण्ड के लिए बेचा जाता है।
इंट्राडे ट्रेडिंग भी active trading का ही एक तरीका है। जिसमे जिस दिन सिक्युरिटीज को खरीदा जाता है उसी दिन बेचा भी जाता है। स्विंग ट्रेडिंग में सिक्युरिटीज को कुछ दिन या कुछ महीनों के लिए होल्ड किया जाता है। जिससे मध्यवर्ती प्राइस ट्रेंड से प्रॉफिट कमाया जाता है। पोसिशनल ट्रेडिंग में सिक्युरिटीज को कुछ महीनों से या उससे अधिक समय के लिए होल्ड किया जाता है। इलियट वेव थ्योरी
सभी एक्टिव ट्रेडिंग स्ट्रेटजी से प्रॉफिट कमाया जा सकता है। लेकिन उनमें साथ कुछ रिस्क भी जुड़े हैं। जैसे कि हाई ट्रांजेक्शन कॉस्ट, वोलेटिलिटी का रिस्क और इमोशनल ट्रेडिंग डिसीजन आदि। शार्ट-टर्म ट्रेडिंग में सफल होने के लिए ट्रेडर्स को टेक्निकल एनालिसिस और रिस्क मैनेजमेंट की बहुत अच्छी समझ होनी चाहिए।
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