स्केल्पिंग स्टॉक ट्रेडिंग (Scalping stock trading) फ्री कोर्स हिंदी में
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग के द्वारा आप कम ही सही लेकिन कम समय में Stock market से पैसे कमा सकते हैं। धीरे-धीरे आप एक अच्छा प्रॉफिट एकत्र कर सकते हैं। इस आर्टिकल में जानेंगे कि Scalping trading क्या है? स्केल्पिंग ट्रेडिंग कैसे करें और स्केल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजीज कौन से हैं?
स्कैल्पिंग, आर्बिट्राज की तरह की स्टॉक, करेंसी और कमोडिटी ट्रेडिंग है। जिसमे ट्रेडर्स बहुत ही छोटे समय के लिए ट्रेडिंग पोजीशन में एंट्री करते हैं और छोटे से प्रॉफिट पर ही एग्जिट होते हैं। ज्यादातर बड़े-बड़े इंस्टीयूशन मार्केट में स्कैल्पिंग ट्रेडिंग करते हैं। चलिए विस्तार से जानते हैं- स्केल्पिंग स्टॉक ट्रेडिंग (Scalping trading) फुल कोर्स हिंदी में। Scalping stock trading full course in Hindi.
यदि आप स्विंग ट्रेडिंग और टेक्निकल एनालिसिस के एक्सपर्ट बनकर शेयर मार्केट से वेल्थ क्रिएट करना चाहते हैं तो आप रवि पटेल द्वारा लिखित बुक्स स्विंग ट्रेडिंग और टेक्निकल एनालिसिस पढ़ सकते हैं।
Scalping Trading क्या है?
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग का एक ऐसा तरीका है, जिसमें प्राइस में छोटे से परिवर्तन से लाभ कमाया जाता है। इंट्राडे ट्रेडिंग में Scalping term का उपयोग ऐसी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी के लिए किया जाता है। जिसमे प्रॉफिट को बढ़ाने के लिए सिक्युरिटी के प्राइस में छोटे से परिवर्तन से पैसे कमाने के लिए बड़ी मात्रा में ट्रेड किया जाता है।
स्कैल्पिंग के लिए एक सख्त एग्जिट प्लान की आवश्यकता होती है क्योंकि एक बड़ा नुकसान कई छोटे लाभों को खत्म कर सकता है। जिनके लिए ट्रेडर ने बहुत सारी स्कैल्पिंग ट्रेडिंग की होगी। Scalping trading में सफल होने के लिए सही टूल्स जैसे कि लाइव फीड और डायरेक्ट- एक्सेस ब्रोकर कई ट्रेड्स को रखने की शक्ति की जरूरत होती है।
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं-
- स्कैल्पिंग एक शेयर ट्रेडिंग का तरीका है, जिसमे शेयर के प्राइस में होने वाले छोटे उतार-चढ़ाव से बड़ी मात्रा में ट्रेडिंग करके कम समय में लाभ कमाया जाता है।
- स्कैल्पिंग के लिए ट्रेडर्स को ट्रेड से सख्त एग्जिट प्लान की आवश्यकता होती है क्योंकि एक बड़ा नुकसान कई छोटे-छोटे ट्रेड को खत्म कर सकता है।
- Scalping trading से पैसे कमाने के लिए सही टूल्स जैसे लाइव फीड, ब्रोकर से डायरेक्ट एक्सेस और कई ट्रेड्स को एक साथ रखने की क्षमता होनी चाहिए। आपको market terms को भी सीखना चाहिए।
- एक सफल स्कैलपर के ट्रेड्स में नुकसान वाले ट्रेड्स की तुलना में प्रॉफिट वाले ट्रेड्स की संख्या बहुत ज्यादा होती है। जबकि प्रॉफिट थोड़ा ही ज्यादा होता है।
- स्कैलपर प्रत्येक दिन कई ट्रेड करते हैं ये सौ से ज्यादा भी हो सकता है।
स्कैपलिंग कैसे काम करता है?
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग इस धारणा पर आधारित है कि ज्यादातर स्टॉक्स अपने मूवमेंट के पहले चरण को पूरा करते हैं। लेकिन यह अनिश्चित है क्योंकि शुरूआती चरण के बाद कुछ शेयर आगे बढ़ना बंद कर देते हैं जबकि कुछ आगे बढ़ जाते हैं।
एक स्कैलपर जितना हो सके उतना छोटा प्रॉफिट कमाने का इरादा रखता है। स्कैल्पर ज्यादा ट्रेड करके अपने प्रॉफिट को बढ़ाने की कोशिश करता है। इस स्ट्रेटजी में ज्यादा ट्रेडिंग करके ट्रेडर्स अपने प्रॉफिट को बढ़ाते हैं क्योंकि प्रत्येक ट्रेड से वह स्मॉल प्रॉफिट ही कमाते हैं। सबसे कड़वा
Scalping trading में बहुत सारे ट्रेड्स से जितना पैसा कमाया जाता है उतना या उससे भी ज्यादा लॉन्ग-टर्म ट्रेडर्स एक ट्रेड से कमा लेते हैं। स्केल्पिंग ट्रेडिंग की मुख्य तीन विशेषताएं निम्नलिखित होती हैं-
- कम एक्सपोजर कम रिस्क स्कैलपर की छोटी पोजीशन होने के कारण मार्केट के विपरीत दिशा में चलने पर नुकसान भी कम होने की संभावना रहती है।
- कम वोलेटिलिटी में भी कमा सकते हैं स्कैलपर का मानना है कि मार्केट में छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव से प्रॉफिट कामना आसान है क्योंकि सिक्युरिटी के प्राइस में बड़े परिवर्तन के लिए डिमांड और सप्लाई में बड़े अंतर की जरूरत होती है। उदाहरण स्वरूप किसी शेयर में एक रूपये की मूवमेंट के मुकाबले दस पैसे की मूवमेंट आसान होती है।
- प्राइस में छोटे मूवमेंट अधिक अधिक होते हैं सिक्युरिटी के प्राइस में बड़े मूवमेंट की तुलना में छोटे मूवमेंट अधिक होते हैं। साइडवे मार्केट में भी छोटे-छोटे मूवमेंट होते रहते हैं। स्केल्पर्स इन्हीं से छोटा-छोटा प्रॉफिट कमाकर बड़ी धन राशि एकत्र कर लेते हैं।
जिस सिक्युरिटी में हाई वॉल्यूम नहीं है उसमें आप स्कैल्पिंग ट्रेडिंग नहीं कर सकते हैं। स्कैल्पिंग ट्रेडिंग के लिए हाई वॉल्यूम और टेक्निकल एनालिसिस टूल्स का यूज किया जाता है। टेक्निकल एनालिसिस में सिक्युरिटी के मौजूदा ट्रेंड का पालन करने के लिए उसके हिस्टोरिकल डाटा का एनलिसिस किया जाता है।
टेक्निकल एनालिसिस में सिक्युरिटी के हिस्टोरिकल प्राइस मूवमेंट और वर्तमान ट्रेंड का एनालिसिस किया जाता है। इसके लिए स्कैलपर्स विभिन्न टूल्स, इंडिगेटर्स और चार्ट्स का यूज करते हैं। स्कैलपर्स ट्रेडिंग प्लान बनाने के लिए पैटर्न को देखते हैं और उसके आधार पर सिक्युरिटी के प्राइस में होने वाले मूवमेंट का अनुमान लगाते हैं।
Scalping trading में उन ट्रेडिंग चार्ट्स और टाइम फ्रेम का यूज किया जाता है। जिनका सभी तरह के ट्रेडिंग स्टाइल में सबसे कम उपयोग होता है। एक इंट्राडे ट्रेडर फाइव मिनट चार्ट का यूज करता है जिसके आधार पर वह एक दिन में करीब पाँच-छः इंट्राडे ट्रेड लेते हैं। लेकिन एक स्कैलपर एक ट्रेडिंग सेशन में करीब 10-100 ट्रेड करने के लिए वन मिनट (एक मिनट) टाइम फ्रेम चार्ट का प्रयोग करते हैं।
इस हाई स्पीड ट्रेडिंग करने के लिए स्कैलपर्स ट्रेडिंग टेक्निक्स का प्रयोग करते हैं। जिनमें Timing and Selling - the Market. इसमें बाइंग, सेलिंग और केंसिल किये गए ट्रेड्स का रिकॉर्ड भी रखा जाता है।
इंट्राडे ट्रेडिंग और स्कैल्पिंग में निम्नलिखित अंतर होता है-
Intra Day Trading | Scalping Trading |
इंट्राडे ट्रेडर्स चार्ट पर 5 से लेकर 30 मिनट टाइम फ्रेम का यूज करते हैं। | एक स्कैपर लोएस्ट टाइम फ्रेम यानि मिनट चार्ट का यूज करते हैं Scalping trading करने के लिए। ज़्यदातर स्कैलपर टिक या एक मिनट टाइम फ्रेम का यूज करते हैं। |
इंट्राडे ट्रेडर्स के पास एक एवरेज साइज का डीमैट एकाउंट होता है। ऑनलाइन ट्रेडिंग | स्कैल्प ट्रेडर्स सिक्युरिटी के प्राइस में होने वाले छोटे मूवमेंट से पैसे कमाते हैं इसलिए वे ज्यादा मनी से स्कैल्पिंग करते हैं। जिसके कारण प्राइस में छोटे मूवमेंट से भी वे ज्यादा पैसे कमा लेते हैं। |
इंट्राडे ट्रेडर्स भी तेज गति से ट्रेडिंग करते हैं लेकिन फिर भी उनकी स्पीड एवरेज ही होती है। | स्कैलपर बहुत तेज परिणाम चाहते हैं इसलिए वे इसलिए वे मार्केट में बहुत तेज गति से Scalping करते हैं। मार्केट में दूसरे ट्रेडर्स के ट्रेडिंग की अपॉर्च्युनिटी देखने से भी पहले स्कैलपर्स अपने सौदे को पूरा भी कर देते हैं। |
इंट्राडे ट्रेडर्स मार्केट ट्रेंड्स को फॉलो करते हैं और टेक्निकल एनालिसिस का यूज करते हैं। | स्कैल्प ट्रेडर्स की स्ट्रेंथ उसका अनुभव होता है। वे अच्छे से जानते हैं कि मार्केट ट्रेंड किधर जा रहा है। वे अपने एकाउंट में प्रॉफिट भेजने के लिए ट्रेड के बंद होने का इंतजार करते हैं। एल्गो ट्रेडिंग |
आप Scalping Trading कैसे कर सकते हैं?
आप ट्रेडिंग के प्राइमरी स्टाइल, सेकेंडरी स्टाइल या कम्प्लेमेन्ट्री स्टाइल के रूप में स्कैल्पिंग को अपना सकते हैं। एक स्कैलपर सबसे कम टाइम फ्रेम टिक या एक मिनट के चार्ट का इस्तेमाल स्कैल्पिंग के लिए करता है। स्कैल्प सौदों को पूरा करने के लिए डेडिकेशन, डिसिप्लिन और स्पीड की जरूरत होती है। रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स
लेकिन यदि आप मार्केट से वेल्थ क्रिएट करना चाहते हैं तो आपको Scalping trading से बचना चाहिए। लेकिन यदि आप तेज स्पीड ट्रेडिंग से जल्दी-जल्दी प्रॉफिट एकत्र करना चाहते हैं तो आप Scalping trading कर सकते हैं। बुलिश एंगल्फिंग पैटर्न
प्राइमरी ट्रेडिंग की तरह Scalping trading
एक प्योर स्कैलपर रोज सैकड़ों ट्रेड लेता है। स्कैल्पिंग बहुत कम समय में की जाती है इसलिए इसमें टिक या एक मिनट चार्ट का प्रयोग किया जाता है। स्कैलपर को ऐसे सेटअप की जरूरत होती है जिसमें रियल टाइम के आसपास डायरेक्ट एक्सेस ट्रेडिंग और लेवल 2 जैसी सहायक प्रणाली जरूरी है।
एक स्कैल्पर के लिए ऑटोमैटिक और तेज Buy-Sell ऑर्डर एक्सेक्यूशन की जरूरत होती है। इसलिए इसके लिए एक डायरेक्ट एक्सेस ब्रोकर की जरूरत होती है।
सप्लीमेंट्री ट्रेडिंग की तरह Scalping trading
लॉन्ग टाइम फ्रेम वाले ट्रेडिंग करने वाले ट्रेडर्स एक अतिरिक्त ट्रेडिंग शैली के रूप में स्कैल्पिंग ट्रेडिंग का प्रयोग कर सकते हैं। इसे प्रयोग करने का सबसे सही समय तब होता है जब मार्केट चॉपी या नेरौ रेंज में होता है। लेकिन लॉन्ग टाइम फ्रेम में कोई ट्रेंड नहीं होता है। इसलिए आप शार्ट टाइम फ्रेम के ट्रेंड को देखकर उसके हिसाब से स्कैल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी बना सकते हैं।
एक दूसरा तरीका भी है, लॉन्ग-टाइम फ्रेम में Scalping trading का जिसे अम्ब्रेला कांसेप्ट कहते हैं। इस अप्रोच के द्वारा ट्रेडर्स अपनी ट्रेडिंग कॉस्ट को इम्प्रूव करके अपने प्रॉफिट को बढ़ा सकते हैं। अम्ब्रेला को निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है-
- ट्रेडर लॉन्ग-टर्म के लिए एक ट्रेडिंग पोजीशन बना सकता है और जब मुख्य ट्रेड डवलप होता है। तब ट्रेडर मुख्य ट्रेड की वर्तमान दिशा में नए शार्ट-टर्म ट्रेड की अपॉर्च्युनिटी ढूढ़कर स्कैल्पिंग के सिद्धांतों के अनुसार एंट्री-एग्जिट पॉइंट ढूढ़कर स्कैल्पिंग कर सकता है।
- उपर्युक्त सेटअप के अनुसार किसी भी ट्रेडिंग सिस्टम का यूज scalping के लिए किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में स्कैल्पिंग को एक रिस्क मैनेजमेन्ट पद्धति के रूप में देखा जा सकता है।
- किसी भी ट्रेड को 1:1 के अनुपात में रिस्क/प्रॉफिट लेकर scalping trading में बदला जा सकता है। इसका मतलब आपको अपने सेटअप में प्रॉफिट का साइज, स्टॉपलॉस के बराबर रखना चाहिए।
- उदाहरण स्वरूप यदि कोई ट्रेडर सौ रूपये के प्राइस पर किसी शेयर में पोजीशन बनाता। उसमें एक सौ एक रूपये का टारगेट और निन्यान्वे (99) रूपये का स्टॉपलॉस रखता है। इसका मतलब ट्रेडर ने इस पोजीशन में 1:1 का रिस्क/रिवॉर्ड रखा है।
- स्कैल्प ट्रेड को लॉन्ग और शार्ट दोनों साइड लिया जा सकता है। इसमें ब्रेकआउट और ब्रेकडाउन दोनों स्थितियों में ट्रेडिंग किया जा सकता है। स्कैल्पिंग ट्रेडिंग के लिए आप परंपरागत चार्ट पैटर्न जैसे कप एंड हेंडल, हेड एंड शोल्डर बुलिश फ्लेग और बेयरिश फ्लेग पैटर्न आदि का प्रयोग कर सकते हैं। इसी तरह टेक्निकल इंडिकेटर का प्रयोग भी Scalping trading के लिए किया जा सकता है।
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी के प्रकार
वैसे तो स्कैल्पिंग कई तरह से की जा सकती है लेकिन Scalping trading मुख्य तीन प्रकार निम्नलिखित हैं-
पहला प्रकार- सबसे ज्यादा स्कैल्पिंग को मार्केट मेकिंग के रूप में संदर्भित किया जाता है और इसे करने वाले ट्रेडर्स को मार्केट मेकर भी कहा जाता है। मार्केट मेकर या लिक्विडिटी प्रदाता कोई इन्वेस्मेंट फर्म या इंडिवीजुअल व्यक्ति भी हो सकते हैं। जो ऑर्डर बुक में दिए गए Bid-Ask स्प्रेड शीट से प्रॉफिट कमाने की कोशिश करते हैं।
यह स्ट्रेटजी ज्यादातर उन शेयरों पर सफल रहती है जिनका प्राइस स्थिर रहता है। ऐसे शेयरों के प्राइस में बिना परिवर्तन के भी बड़ा ट्रेडिंग वॉल्यूम रहता है। लेकिन इस प्रकार की Scalping trading में सफल होना बेहद मुश्किल है क्योंकि मार्केट मेकर्स को Bid-Ask यानि दोनों साइड ट्रेडर्स के साथ स्पर्धा करनी पड़ती है। जो कि बेहद कठिन काम है। Market terms
मार्केट मेकिंग स्ट्रेटजी में प्रॉफिट इतना कम है। कि ट्रेडर की पोजीशन के विपरीत प्राइस के चलने पर प्रॉफिट से कई गुना ज्यादा नुकसान होने की पक्की गारंटी है। यदि वह स्टॉप -लॉस ना लगाए, अन्य दोनों स्ट्रेटजीज ट्रेडिशनल ज्ञान पर आधारित हैं, जिनमें एक ऐसे शेयर में स्कैल्पिंग की जाती है जिसका प्राइस लगातार चेंज होता रहता है। इन दोनों स्कैल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजीज के लिए प्राइस मूवमेंट को पकड़ने वाली ठोस स्ट्रेटजी की आवश्यकता होती है।
दूसरा प्रकार- इसमें बड़ी संख्या में शेयरों को खरीदा जाता है, जिन्हें प्राइस में बहुत कम उतार-चढ़ाव पर प्रॉफिट के लिए बेचा जाता है। इस स्ट्रेटजी में ट्रेडर्स कई हजार स्टॉक्स की पोजीशन बनाते हैं और प्राइस में छोटे से मूव की प्रतीक्षा करते हैं। जिसे आमतौर पर पैसों में मापा जाता है।
इस तरह की ट्रेडिंग के लिए बहुत ज्यादा लिक्विड शेयर की आवश्यकता होती है। जिसमे आसानी से 3,000 से 10,000 तक स्टॉक्स में एंट्री और एग्जिट की पोजीशन बनायीं जा सके। ट्रेडिंग के लिए आपको प्राइस एक्शन भी सीखना चाहिए।
तीसरा प्रकार- इसमें स्केलपर अपने सिस्टम में किसी सेटअप या सिग्नल पर एक निश्चित संख्या में शेयरों की पोजीशन बनाता है और पहला एग्जिट सिग्नल (1:1 रिस्क/रिवॉर्ड रेश्यो के पास) मिलने पर ही पोजीशन बंद कर देता है।
नौसिखिये स्केल्पर्स के लिए टिप्स
अब मार्केट ट्रेडिंग की दुनिया में प्रवेश करना बहुत ही आसान है। अतः इंट्राडे ट्रेडिंग, स्विंग ट्रेडिंग और स्कैल्पिंग सहित अन्य बहुत सी शार्ट-टर्म ट्रेडिंग स्ट्रेटजीज अपनाने वाले ट्रेडर्स की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। अतः Scalping trading में आने वाले नए ट्रेडर्स के लिए यह अति आवश्यक है कि ट्रेडिंग का तरीका उनके व्यक्तित्व के अनुकूल हो। इसके किये ट्रेडिंग डिसिप्लिन बहुत जरूरी है।
साथ ही स्केल्पर्स को त्वरित डिसीजन, स्कैल्पिंग के मौके तलाशने और ओपन पोजीशन की लगातार निगरानी की जरूरत पड़ती है। जो लोग अधीर हैं और छोटे-छोटे प्रॉफिट से संतुष्ट हो जाते हैं। उनके लिए स्कैल्पिंग सही है। स्कैल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी सबसे अच्छी नहीं है क्योंकि इसमें फ़ास्ट डिसीजन लेने पड़ते हैं।
साथ ही ओपन पोजीशन की लगातार निगरानी करनी पड़ती है और बहुत बड़ी मात्रा में ट्रेड करने पड़ते हैं। तब जाकर रीजनेबल प्रॉफिट कमाया जाता है। रॉबर्ट कियोस्की द्वारा लिखित रिच डैड पुअर डै बुक का सारांश हिंदी में। निम्नलिखित कुछ टिप्स हैं जो मार्केट में नए स्केल्पर्स की मदद कर सकते हैं-
ऑर्डर लगाना
एक नए ट्रेडर्स को सही order execution (निष्पादन) में महारत हासिल होना चाहिए क्योंकि खराब और देर से लगाया गया ऑर्डर छोटे से प्रॉफिट को खत्म कर सकता है बल्कि इसके कारण नुकसान भी हो सकता है। चूँकि स्कैल्पिंग ट्रेडिंग में प्रॉफिट मार्जिन बहुत कम होता है इसलिए ऑर्डर एक्सेक्यूशन सटीक होना चाहिए। जैसा कि ऊपर भी बताया जा चूका है। इसके लिए सहायक सिस्टम की आवश्यकता होती है जैसे कि डायरेक्ट एक्सेस ट्रेडिंग और लेवल 2 कोटेशन।
फ्रेक्वेंसी और कॉस्ट
एक नए स्कैल्पर को ट्रेड में लगने वाली ब्रोकरेज फीस (लागत) को भी दिमाग में रखना चाहिए। स्कैल्पिंग के लिए बहुत सारे ट्रेड करने की जरूरत होती है। इस लिए बार-बार स्टॉक्स खरीदने और बेचने के कारण ब्रोकरेज मँहगा होना तय है। जिससे प्रॉफिट मार्जिन कम हो सकता है। इसलिए आपको एक ऐसा ऑनलाइन ब्रोकर चुनना चाहिए।
जो मार्केट तक सीधी पहुँच उपलब्ध कराता हो। साथ ही उसकी ब्रोकरेज फीस भी अन्य स्टॉक ब्रोकर्स की तुलना में कम होना चाहिए। साथ ही वह Scalping trading की अनुमति देता हो। अतः एक सही ब्रोकर का होना बहुत जरुरी है।
ट्रेडिंग
Trend और मोमेंटम को पहचानने में एक स्कैल्पर को महारत हासिल करना चाहिए। जिससे किसी भी पैटर्न के दोहराने पर आसानी पोजीशन में एंट्री और एग्जिट किया जा सके। अतः एक नए स्कैल्पर को मार्केट की नब्ज को पहचानना आना चाहिए। शेयर मार्केट में काम करने वाले लोगों को एक बार राकेश झुनझुनवाला बायोग्राफी जरूर पढ़नी चाहिए।
यदि स्कैल्पर मार्केट की नब्ज पहचान सकता है तो ट्रेंड ट्रेडिंग और मोमेंटम ट्रेडिंग के द्वारा बहुत ज्यादा प्रॉफिट कमाया जा सकता है। स्कैल्पर के द्वारा उपयोग की जाने वाली अन्य स्ट्रेटजी Countertrend भी है लेकिन नए ट्रेडर्स को इससे बचना चाहिए। नए स्कैल्पर को ट्रेंड ट्रेडिंग ही करना चाहिए।
ट्रेडिंग साइड
सामान्यतः नए ट्रेडर्स बाइंग (शेयर खरीदने) में अधिक सहज होते हैं। यह सही भी है कि जब तक आप शॉर्ट सेलिंग करने के एक्सपर्ट न बन जाएँ और पूर्ण आत्मविश्वास ना आ जाये। तब तक आपको केवल खरीदारी की ही पोजीशन ही बनानी चाहिए। हालाँकि स्कैल्पर्स को अंततः सर्वोतम परिणामों के लिए लॉन्ग और शार्ट ट्रेड्स को संतुलित मात्रा में रखना चाहिए।
टेक्निकल एनालिसिस (तकनीकी विश्लेषण)
इंट्राडे ट्रेडिंग की दुनिया में बढ़ती पर्तिस्पर्धा के कारण स्कैल्पर को भी टेक्निकल एनालिसिस में खुद को एक्सपर्ट बना लेना चाहिए। वर्तमान समय में हाई फ्रेक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT) होने की वजह से भी टेक्निकल एनालिसिस की जरूरत बहुत बढ़ गई है।आजकल ऑनलाइन ट्रेडिंग होने की वजह से ज्यादातर ट्रेड्स स्टॉक एक्सचेंज से कहीं बहुत दूर होते हैं। जो रियल टाइम में रिपोर्ट नहीं करते हैं।
स्कैल्पर्स अब रियल टाइम पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। इसलिए मार्केट डेप्थ का विश्लेषण करके बहुत सारी Scalping trading के लिए सिग्नल खोजकर, ट्रेडिंग से छोटा-छोटा प्रॉफिट एकत्र करने की कोशिश करनी चाहिए। स्कैल्पिंग के लिए ऐसे टेक्निकल इंडीकेटर्स का प्रयोग करना चाहिए जो शार्ट टाइम फ्रेम में अच्छे सिग्नल देते हों।
ऐसे मुख्य तीन टेक्निकल इंडीकेटर्स (मूविंग एवरेज, RSI और मल्टीपल चार्ट स्कैल्पिंग) हैं जो शार्ट टाइम फ्रेम में अच्छा काम करते हैं।
Volume (वॉल्यूम)
स्कैल्पिंग के लिए लगातार ट्रेड में एंट्री और एग्जिट करना होता है। इस स्ट्रेटजी को तभी सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है और ऑर्डर भरे जा सकते हैं। अगर सिक्युरिटी में हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम होगा, तभी बड़ी मात्रा में पोजीशन में एंट्री और एग्जिट ऑर्डर भरे जा सकते हैं। स्कैल्पिंग की वजह से ही ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ता है।
Discipline (अनुसाशन)
इंट्राडे रूल्स के हिसाब से ट्रेड में खुली हुई सभी पोसिशन्स को सेशन की समाप्ति तक क्लोज कर देना चाहिए। पोसिशन्स को अगले दिन तक ओपन नहीं रखना चाहिए। स्कैल्पिंग मार्केट में ट्रेडिंग के मिलने वाले छोटे-छोटे मौकों पर निर्भर करती है। स्कैलपर को अपनी पोजीशन को शार्ट-टर्म के लिए होल्ड करने के नियम का हमेशा सख्ती से पालन करना चाहिए। आपको सपोर्ट एंड रेसिस्टेन्स लेवल को जानना चाहिए।
Scalping trading के लाभ और कमियाँ
स्कैल्पिंग के लाभ और कमियाँ निम्नलिखित हैं-
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग के लाभ यदि ट्रेडर एग्जिट स्ट्रेटजी को सख्ती के लागु कर सकता है तो स्कैल्पिंग ट्रेडिंग लाभदायक साबित हो सकती है। स्कैल्पर्स प्राइस में छोटे बदलावों से प्रॉफिट कमा सकते है उन्हें सिक्युरिटी के ओवरऑल ट्रेंड को देखने की कोई जरूरत नहीं है। स्कैल्पर्स को सिक्युरिटी के फंडामेंटल को देखने की जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि वे बहुत कम समय सीमा में काम करते हैं।
स्कैल्पिंग का सबसे बड़ा फायदा यह भी है की इसमें बहुत कम मार्केट रिस्क होता है। इसमें नुकसान को कम करने के लिए स्टॉप-लॉस अनिवार्य रूप से लगाया जाता है। यह एक नॉन डायरेक्शनल स्ट्रेटजी है अतः इसके लिए मार्केट का एक निश्चित दिशा में चलना जरूरी नहीं है। इसमें कई ट्रेडिंग स्ट्रेटजीज को लागु किया जा सकता है। क्योंकि इसमें टेक्नीकल मानदंडों पर आधारित ट्रेडिंग की जाती है। सेंसेक्स और निफ्टी
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग की कमियाँ इसकी बड़ी कमी तो यही है कि इसमें बहुत बड़ी मात्रा में ट्रेड करने पड़ते हैं। बड़ी संख्या में ट्रेड करने के कारण इसमें ब्रोकरेज बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इसके द्वारा पर्याप्त प्रॉफिट कमाने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में ट्रेड करने पड़ते हैं जिसकी वजह से जोखिम बढ़ जाता है।
कुछ स्कैल्पर्स दिन में दर्जनों या सैंकड़ों की संख्यां में ट्रेड करते है जो बहुत समय लेने वाला और एकाग्रता वाला काम है। जिसके कारण स्कैल्पिंग करने वाला व्यक्ति कोई दूसरा काम नहीं कर पाता है। आप शेयर मार्केट के बारे में मनी कंट्रोल प्रो से भी जान सकते हैं।
Scalping trading के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs
क्या स्कैल्पिंग ट्रेडिंग लाभदायक है?
स्कैल्पिंग ट्रेडिंग में सबसे ज्यादा आशंका इस बात की है कि आपको इसमें नुकसान होगा। स्कैल्पिंग ट्रेडिंग में बहुत कम लोग ही प्रॉफिट कमा पाते हैं। लॉन्ग-टर्म ट्रेडिंग में ही ज्यादातर लोग प्रॉफिट कमा पाते हैं। इसके अतिरिक्त शॉर्टर टाइम फ्रेम में बैकटेस्टिंग बहुत ही मुश्किल है।
आप स्कैल्पिंग ट्रेडिंग कैसे करते हैं?
Scalping trading में सिक्युरिटी को एक दिन में कई बार खरीदा और बेचा जाता है। जिसमे आप प्राइस के अंतर से प्रॉफिट कमा सकते हैं। किसी सिक्यरिटी को कम प्राइस पर खरीदना और प्राइस के थोड़ा ऊपर जाने बेचना।
स्कैल्पिंग स्ट्रेटजी का मुख्य लक्ष्य होता है। इसके लिए बहुत लिक्विड शेयरों की जरूरत होती है, जिनके प्राइस में इंट्राडे में बार-बार परिवर्तन होता रहता है। एडवांस/डिक्लाइन रेश्यो क्या है इसके बारे में भी जानना चाहिए।
सारांश यह है कि यदि आपकी इंट्राडे ट्रेडिंग में रूचि है तो आपको स्कैल्पिंग ट्रेडिंग के बारे में सीखना चाहिए। स्कैल्पिंग ट्रेडिंग उन ट्रेडर्स के लिए काफी प्रॉफिटेबल हो सकता है। जो इसे प्राइमरी स्ट्रेटजी के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं। स्कैल्पिंग उन ट्रेडर्स के लिए भी प्रॉफिटेबल हो सकती है जो सेकेंडरी स्ट्रेटजी के रूप में इसका प्रयोग करना चाहते हैं।
पोजीशन में सख्त एग्जिट प्लान से ही स्कैल्पिंग ट्रेडिंग में छोटे प्रॉफिट को बड़े प्रॉफिट में बदला जा सकता है। स्कैल्पिंग में मार्केट रिस्क कम और प्राइस में छोटे-छोटे मूव्स इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। यही कारण है यह कई प्रकार के ट्रेडर्स के बीच लोकप्रिय है। Scalping trading का आप मार्जिन ट्रेडिंग के द्वारा कम पैसों में बड़ा ट्रेड ले सकते हैं।
इस आर्टिकल का उद्देश्य ट्रेडिंग की सलाह देना नहीं है। सिक्युरिटी इन्वेस्टिंग में जोखिम की अलग-अलग श्रेणी होती है। जिसके फलस्वरूप ट्रेडर्स को मूलधन या आंशिक धन का नुकसान हो सकता है। इस आर्टिकल में बताया गया है कि स्कैल्पिंग स्ट्रेटजीज कठिन और जटिल होती हैं इसलिए नए ट्रेडर्स को इनसे बचना चाहिए। स्कैल्पिंग ट्रेडिंग की इच्छा रखने वाले लोगों को पहले इसे अच्छे से सीखना चाहिए। Sitemap
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