Stock market terms in Hindi - part one - शेयर बाजार में यूज़ किये जाने वाले टर्म्स

इस आर्टिकल में stock market में यूज़ होने वाले कुछ शब्दों के बारे जानकारी दी गयी है। जिनके बारे में शेयर बाजार में काम करने वाले प्रत्येक ट्रेडर और इन्वेस्टर को जरूर पता होना चाहिए। जब भी शेयर बाजार के दिग्गज एक्सपर्ट शेयर मार्केट के बारे में बात करते हैं तब वे शेयर मार्केट टर्म्स (Terms ) का यूज़ करते हैं। आप भी इन्हे सीख सकते हैं। आइये विस्तार से जानते हैं- शेयर मार्केट में उपयोग किये जाने वाले टर्म्स के बारे में । Stock market in Hindi.         
                                                       
Stock market terms


अगर आप शेयर मार्केट एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको निकोलस डरबास द्वारा लिखित स्टॉक मार्केट में 0 से 10 करोड़ स्टॉक मार्केट में 0 से 10 करोड़ कैसे कमाए बुक जरूर पढ़नी चाहिए। 

शॉर्ट सेलिंग 

Short selling गिरते शेयर बाजार में प्रॉफिट कमाने की ट्रेडिंग रणनीति है। इसमें ट्रेडर को तब लाभ होता है, जब शेयर के दाम गिरते हैं। ट्रेडर को जब लगता है कि किसी शेयर की कीमत गिर रही है या गिर सकती है। तो वह ब्रोकर से उस शेयर को उधार लेता है और मार्केट प्राइस पर बेच देता है। शेयर के दाम गिरने पर वह शेयर वापस खरीदकर ब्रोकरेज को लौटा देता है और बेचने के दाम तथा खरीद  दाम के अंतर का मुनाफा कमाता है।                                                                                                                                                             

अपर और लोअर सर्किट क्या होता है? 

स्टॉक मार्केट में ज्यादा उतार-चढ़ाव होने पर ट्रेडर और इन्वेस्टर को नुकसान से बचाने के लिए स्टॉक एक्सचेंज की तरफ lower and upper circuit लगाया जाता है। किसी शेयर के दाम पिछली क्लोजिंग से 5, 10, 15 और 20 प्रतिशत की सीमा से ऊपर जाने पर अपर सर्किट तथा  नीचे जाने पर लोअर सर्किट लगता है। 

यानी उस शेयर में उस दिन के लिए ट्रेडिंग रोक दी जाती है। इसी तरह सेंसेक्स और निफ़्टी में भी एक दिन में 20 प्रतिशत की गिरावट आने पर लोअर तथा बढ़त आने पर अपर सर्किट लगता है तथा उस दिन के लिए कारोबार रोक दिया जाता है।                                                                                                                                                                                                                                        

 ETF (ईटीएफ)

एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) शेयर बाजार में इन्वेस्ट के कई ऑप्शन में से एक है। ये म्यूच्यूअल फंड के जैसे ही होते हैं। इन्हे शेयरों की तरह ही स्टॉक एक्सचेंज से खरीदा और बेचा जाता है तथा  डीमैट एकाउंट में होल्ड किया जाता है। 

ETF के पोर्टफोलियो में कई तरह की सिक्यूरिटीस होती हैं तथा इनका रिटर्न इंडेक्स जैसा होता है। ETF की शुरुआत किसी एसेट मैनेजमेंट कम्पनी के एनएफओ ( nfo ) के तौर पर होती है।  यह शेयर मार्केट की बहुत प्रसिद्ध term है।                                                                                                                                                                                   

ऑर्डरबुक (Order Book) 

ऑर्डरबुक शेयर बाजार की एक बहुत ही प्रचलित term है। जिसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि किसी कम्पनी को कितने ऑर्डर मिल रहे हैं तथा कम्पनी की ऑर्डर बुक में कितने ऑर्डर बकाया हैं। इनकी जानकारी के आधार पर कम्पनी की कार्य प्रणाली, स्थिरता तथा भविष्य का अनुमान लगाया सकता है। 

जिस कम्पनी के पास ऑर्डर न हो या भरपूर मात्रा में नहीं हो, ऐसी कम्पनी को इन्वेस्टिंग के लिए अच्छा नहीं माना जाता। जिस कम्पनी को लगातार तथा भरपूर मात्रा  ऑर्डर मिल रहे हों ऐसी कम्पनी को अच्छा माना जाता है। भरपूर ऑर्डर का मतलब यह है कि कम्पनी के पास पर्याप्त काम है तथा कम्पनी की आय लगातार बनी रहेगी।                                                                                                                                                                              

आर्बिट्रेज (Arbitrage)

एक Stock Exchange से कम प्राइस पर शेयर खरीदकर दूसरे स्टॉक एक्सचेंज पर ज्यादा प्राइस पर बेचने को आर्बिट्रेज कहा जाता है। उदाहरण स्वरूप जैसे हम किसी भी एबीसी  कम्पनी के शेयर BSE पर 125. 30 रूपये के प्राइस खरीदकर। उसी समय NSE पर 125. 40 रूपये के प्राइस पर बेच देते हैं, इसे आर्बिट्रेज कहेंगे। 

इस प्रकार हमें 10 पैसे  अंतर्  फायदा मिलता है। इस प्रकार  सौदे दोनों एक्सचेंजों पर एक ही समय पर किये जाते हैं। इस प्रकार के सौदों में stocks के प्राइस में बहुत कम अंतर होता है। लेकिन बड़ी मात्रा में ऐसे trade किये जाने के कारण काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।  

इस प्रकार स्टॉक ट्रेडिंग करने वाले को आर्बिट्रेजर कहा जाता है। इसमें जरूरी यह है कि दोनों एक्सचेंजों पर ट्रेड एक ही समय पर होना चाहिए। स्टॉक ब्रोकर्स  Arbitrage के लिए विशेष स्टाफ रखते हैं। जो NSE तथा BSE दोनों पर बड़ी मात्रा में ऐसे ट्रेड करते हैं।                                                                                                                                                                    

एफआईआई (FII)

Stock market के ट्रेंड को सेट करने वाला यह terms शेयर मार्केट में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। शेयर मार्केट से सम्बन्धित समाचारों में यह बहुत सुनने को मिलता है। जिसमे अक्सर हम यह सुनते हैं कि FII की बिकवाली या खरीददारी के कारण आज शेयर बाजार गिरा या चढ़ा। 

एफआईआई यानि फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर अर्थात विदेशी संस्थागत निवेशक। एफआईआई अंतरराष्ट्रीय स्तर के निवेशक होते हैं जो कि अपने  के देश लोगों से बड़ी मात्रा में धन एकत्र करके, उसे  विदेशी शेयर बाजारों में invest करते हैं। इन FII के ग्राहकों की सूची में रिटेल इन्वेस्टर से लेकर बड़े-बड़े फंड हाउस भी होते हैं। 

जिसकी वजह से इनके पास बहुत अधिक धन होता है। क्योंकि एफआईआई के पास बड़ी मात्रा में धन होता है इसलिए ये बहुत बड़ी मात्रा में शेयर बाजार में खरीददारी या बिकवाली करते हैं जिससे बाजार के ट्रेंड पर इनका प्रभाव पड़ता है। भारतीय शेयर बाजार में इन्वेस्ट करने से पहले इन्हें अपना रजिस्ट्रेशन सेबी और भारतीय रिसर्व बैंक ( RBI ) में करवाना जरूरी होता है और इन्हें इनके नियमों का पालन भी करना  होता है।                                                                                                                                                           

एसटीटी (STT)

सिक्युरिटी ट्रन्जेक्शन टैक्स की शार्ट फॉर्म है एसटीटी (STT ) यह terms स्टॉक्स की खरीद बिक्री के प्रत्येक trade पर सरकार की तरफ से लगाया जाने वाला टैक्स टैक्स है। यह स्टॉक ब्रोकर को भरना होता है, परन्तु ब्रोकर इसे अपने ग्राहक से वसूलते हैं। सरकार को STT से प्रतिदिन काफी बड़ी मात्रा में राजस्व मिलता है। प्रत्येक कॉन्ट्रक्ट नोट या बिल में ब्रोकरेज के साथ -साथ एसटीटी भी लिखा रहता है।                                                                                                                                             

एक्सपोजर

Exposure वर्ड को साधारण भाषा में जोखिम कहा जाता है। लेकिन stock market में, जब इन्वेस्टर किसी कम्पनी में इन्वेस्ट करता है तो उसे एक्सपोजर लेना कहा जाता है। यानि इन्वेस्टर ने कम्पनी में एक्सपोजर लिया है। एक्सपोजर केवल कम्पनी में ही नहीं बल्कि सभी तरह के बिज़नेस में लिया जाता है। 

फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के सौदों में इस terms का ज्यादा उपयोग होता है क्योंकि जब कोई ट्रेडर फ्यूचर कॉट्रेक्ट करता है। तब वह भविष्य का जोखिम लेता है। जब भी कोई इन्वेस्टर Stock market में इन्वेस्ट करता है। तो उसके मूल्य में घट-बढ़ की संभावना होने के  कारण ही उस निवेश को  एक्सपोजर कहा जाता है।                                                                                                                                                                                                                                                                                                     
आर्बिट्रेशन
Arbitration का अर्थ है, विवादों का निपटान' जब कभी ब्रोकर और ग्राहक के बीच या ब्रोकर और ब्रोकर के बीच  विवाद हो जाता है। तब इस विवाद को निपटाने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति की जाती है। जिसे आर्बिट्रेटर कहा जाता है तथा इसे निपटाने के तरीके को आर्बिट्रेशन प्रोसेस कहते हैं। 

Stock market में ऐसे विवादों को निपटाने के लिए एक विभाग Stock Exchange के नियमों के तहत कार्य करता है। और आर्बिट्रेटर की नियुक्ति भी एक्सचेंज के नियमों के अनुसार होती है। आर्बिट्रेटर के द्वारा दिए गए निर्णय, ब्रोकर और ग्राहक दोनों पर समान रूप से लागू होते हैं। इस प्रोसेस में आर्बिट्रेटर दोनों पक्षों को सुनने  बाद ही अपना फैसला देते हैं।                                                                                                         

ऑक्शन

Auction यानि नीलामी, Stock market में जब investor किन्ही stocks को बेच देता है। परन्तु शेयर बाजार के बंद होने से पहले उनकी डिलीवरी नहीं दे पाता है। तब स्टॉक एक्सचेंज की कार्य पद्धति के तहत इन्वेस्टर, के शेयर डिलीवरी के दायित्व को उतारने के लिए उसके stock broker के द्वारा ऑक्शन के जरिये उतनी ही मात्रा में शेयर बाजार भाव पर खरीदकर डिलीवरी दी जाती है। 

इसके प्राइस के अंतर को इन्वेस्टर से वसूला  जाता है। शेयर प्राइस का अंतर् इन्वेस्टर से इसलिए वसूला जाता है क्योंकि उसने अपने पास शेयर न होने के बावजूद उन्हें बेचा। आप शार्ट सेल्स के बारे में तो जानते ही होंगे, जिसमें शार्ट सेल्स करने वाले ट्रेडर को  बाजार भाव पर शेयर खरीदकर डिलीवरी देनी होती है। 

यदि कोई ट्रेडर  ऐसा करने में विफल रहता है तो उसके ब्रोकर के द्वारा,  Stock exchange के नियमों के तहत आवश्यक रूप से, नीलामी के मार्फत शेयर खरीदकर उस सौदे  का निपटान किया जाता है। शेयर की buying-selling के अंतर का नुकसान ट्रेडर को  भुगतना पड़ता है। शेयर कैसे खरीदें?                                                                                                                                                                                                                            

ब्लूचिप स्टॉक्स 

Stock market की राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त, श्रेष्ठ तथा आर्थिक रूप से मजबूत कंपनियों को Blue Chip कम्पनी कहा जाता है। इनके शेयर इन्वेस्टर के पसंदीदा शेयर होते हैं तथा यह शेयर बाजार की टॉप 100 कंपनियों में शामिल होती हैं। 

ब्लू चिप श्रेणी की कंपनियां आम तौर पर हाई क्वालिटी के उत्पाद और सेवाओं को एक बड़े ग्राहक वर्ग को बेचती हैं। इनके stocks में उतार -चढ़ाव भी काफी होता है तथा इनके प्रति investors में  बहुत आकर्षण  अधिक होता है।                                                                                   
बेस्ट बाई
 
Best buy ऐसे stocks होते है जिनका प्राइस खरीदने के लिए सही माना जाता है तथा भविष्य में जिनका प्राइस, वर्तमान भाव से ज्यादा बढ़ने की संभावना होती है। ये शेयर बाजार की श्रेष्ठ कंपनियों  के शेयर होते हैं जो कि वर्तमान स्थिति में स्टॉक एनालिस्ट, इन्वेस्टर, ट्रेडर आदि के अनुसार सही प्राइस पर मिल रहे होते हैं।                                                                                                                                                                                                                                                 

करेक्शन

जब शेयर बाजार या किसी कम्पनी के शेयर के प्राइस कई दिनों तक ऊपर चढ़ने बाद, जब उनमे गिरावट आती है। तब उसे करेक्शन कहा जाता है। उदाहरण स्वरूप यदि Stock market के लगातार चार-पाँच दिन तक ऊपर चढ़ने के बाद, उसमें गिरावट आती है। तब उसे शेयर बाजार का करेक्शन माना जायेगा। 

समय समय पर आने वाले ऐसे करेक्शन बाजार के अच्छे स्वास्थ के प्रतीक होते हैं। लगातार एक तरफा बढ़ने वाला शेयर बाजार हो या किसी कम्पनी के शेयर प्राइस इन्हे जोखिमपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे भारी गिरावट की आशंका बढ़ जाती है।                                                                                                                                                               

कॉन्ट्रैक्ट नोट

Contract Note शेयर बाजार के निवेशकों के लिए सबसे जरूरी क़ानूनी  दस्तावेज  है। हिंदी में इसे अनुबंध नोट भी कह सकते हैं। आप स्टॉक ब्रोकर के जरिये जितने भी शेयरों की खरीद बिक्री करते हैं। उन सब का ब्यौरा कॉन्ट्रेक्ट नोट में होता है। यह आपके सौदे का दस्तावेजी प्रमाण भी है। 

यदि आपके साथ कोई धोखाधड़ी होती है तो आप कॉन्ट्रेक्ट नोट के आधार पर अपने ब्रोकर के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही कर सकते हैं। इसके न होने पर आपकी क़ानूनी कार्यवाही  वैध नहीं मानी जाएगी इसलिए शेयरों की खरीद बिक्री करने पर अपने ब्रोकर से कॉन्ट्रेक्ट नोट अवश्य लेना चाहिए। इस पर ब्रोकर का सेबी रजिस्ट्रेशन नम्बरभी जरूर होना चाहिए।                                                                                                                                                                                       

डिलिस्टिंग

जिस प्रकार कोई कम्पनी आईपीओ (Initial Public Offering) के बाद शेयर बाजार में लिस्ट होती है, उसी प्रकार बहुत सी कंपनियाँ खुद को Stock exchange से delisting करावा लेती हैं। एक बार कम्पनी के डीलिस्टिंग हो जाने के बाद, उसके स्टॉक्स की शेयर बाजार में खरीद बिक्री बन्द हो जाती है। 

ज्यादातर कम्पनियाँ अपनी स्वेच्छा से डीलिस्टिंग कराती हैं। ऐसा करते समय इनको 'सेबी' के डीलिस्टिंग नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करना होता है, जिसके तहत कम्पनी को शेयरधारकों के पास से अपने शेयर स्वयं ही खरीदने पड़ते हैं इसलिए स्वेच्छिक डीलिस्टिंग के कारण कम्पनी के शेयरधारकों को नुकसान नहीं होता है।                                                                                                                                                

डिसइन्वेस्टमेंट 

Disinvestment, आजकल यह शब्द बहुत ही चर्चा में है हिंदी में इसे विनिवेश कहते हैं। इन्वेस्टमेंट का अर्थ है निवेश करना तथा डिसइन्वेस्टमेंट का अर्थ है निगम (corporation) से पूँजी की निकासी करना। सरकारी यानि सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना सरकार ने की होती है। इसलिए उस कम्पनी पर सरकार का मालिकाना हक़ होता है।

नब्बे के दशक में, जब से सरकार ने देश का उदारीकरण किया तब से निजीकरण का दायरा बढ़ता जा रहा है। सरकार सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनियों में से अपना हिस्सा बेच देती है तो इसे डिसइन्वेस्टमेंट कहा जाता है। सरकार जिस कम्पनी का डिसइन्वेस्टमेंट करना चाहती है उसका प्रस्ताव सर्वजनिक जनता, निजी निवेशकों, बैंकों तथा इंस्टीट्यूशन को देती है। इससे मिलने वाले धन  उपयोग सरकार देश के विकास के लिए करती है। सीएमपी                                               

डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (DP)  

जिस प्रकार बैंक अपने खाताधारकों की रकम को संभाल कर रखते हैं उसी प्रकार Depository participant (DP) निवेशकों के स्टॉक्स, म्यूच्यूअल फंड्स, ईटीएफ आदि को इलक्ट्रोनिक स्वरूप में संभाल कर रखते हैं।  हमारे देश में CDSL (सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड) तथा NSDL ( नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड ) दो डिपॉजिटरी हैं। 

Stock market  में सौदे करने  लिए निवेशकों को डीमैट अकाउंट खुलवाना आवश्यक है यह खाता डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के पास खुलवाया जाता है। Stock market में यूज़ होने वाली terms बहुत ज्यादा हैं इसलिए इनके बारे में और भी पोस्ट लिखनी पड़ेंगी तभी यह टॉपिक पूरा हो पायेगा। 

उम्मीद है, आपको यह आर्टिकल शेयर मार्केट में उपयोग किये जाने वाले टर्म्स का अर्थ जरूर पसंद आया होगा। मेरी यही कोशिश रहती जो भी लिखूँ  ज्ञानवर्धक लिखूँ। ऐसी ही इन्फॉर्मेशनल आर्टिकल पढ़ने  लिए इस साइट को जरूर सब्सक्राइब करें। 

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