सेंसेक्स और निफ्टी क्या हैं ? Nifty aur Sensex |
आज निफ्टी 100 पॉइंट ऊपर तो कल निफ्टी 100 पॉइंट नीचे, इसी तरह सेंसेक्स भी ऊपर नीचे होता रहता है। यानी कि सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ऊपर नीचे मूवमेंट करते रहते हैं। इससे आपके मन में यह सवाल आते होंगे कि यह सेंसेक्स और निफ्टी क्या दर्शाते हैं?
यह ऊपर नीचे क्यों होते रहते हैं? सेंसेक्स और निफ्टी कैसे बने हैं? इस आर्टिकल में सेंसेक्स और निफ़्टी क्या है? के बारे में विस्तार से बताया गया है। चलिए जानते हैं कि Sensex aur Nifty kya hain?
यदि आप कम समय में शेयर मार्केट एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको महेशचंद्र कौशिक द्वारा लिखित शेयर मार्केट में सफल होने के टिप्स नामक बुक जरूर पढ़नी चाहिए।
SENSEX & NIFTY के बारे में
इस आर्टिकल में Sensex aur Nifty के डेली मूवमेंट क्यों होते है? आपको उन्हें कैसे समझना है। जिससे आप इनके मूवमेंट के आधार पर बेहतर निर्णय ले सके। दिनभर बिजनेस न्यूज़ चैनल्स सेंसेक्स और निफ्टी के रियल टाइम लाइव उतार-चढ़ाव बताते रहते हैं।
जैसे कि दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण चीज शेयर मार्केट ही है। यदि सेंसेक्स और निफ्टी अंक गिर गया तो पता नहीं क्या हो जाएगा। लेकिन इनमें यह उतार-चढाव निरंतर चलता रहता है।
Sensex aur Nifty एग्जिट पोल की तरह होते हैं। जिस तरह चुनाव से पहले एग्जिट पोल होते हैं कि आपको यह पता लग जाए कि कौन सी पार्टी जीत सकती है। परंतु एग्जिट पोल हमेशा सही नहीं होते 60/70 % एग्जिट पोल ही सही होते हैं। एग्जिट पोल इसलिए हमेशा सही नहीं होते क्योंकि वोट करने वाले लाखों लोगों में से, केवल कुछ हजार लोगों से पूछकर सैंपल लिया जाता है।
उस सैंपल के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि लाखों लोगों ने किसे वोट दिया होगा। इस चुनाव में कौन सी पार्टी जीत सकती है। कभी-कभी एग्जिट पोल का सैंपल सही बता देता है और कभी-कभी गलत अनुमान लगाता है कि किस पार्टी के जीतने के ज्यादा चांस है। क्रिप्टोकरेंसी
इसी तरह भारतीय stock market में करीब 5000 कंपनियां लिस्टेड है, सभी कंपनियों का रोज प्राइस देखना संभव नहीं है. इसलिए मार्केट की दिशा का अनुमान लगाने के लिए कि आज मार्केट गिरा या चढ़ा। Nifty aur Sensex इंडेक्स का उपयोग किया जाता है।
इस तरह सेंसेक्स निफ़्टी को, एक तरह का एग्जिट पोल कह सकते हैं। यह एक छोटे सैंपल साइज से यह अनुमान लगाने की कोशिश करता है कि संपूर्ण मार्केट किधर जा रहा है।
सेंसेक्स में 30 और निफ्टी में 50 कंपनियों हैं। Sensex 30 कंपनियों की दिशा से आपको एक जनरल ओपिनियन देता है कि आज शेयर मार्केट बढ़ा हुआ है या गिरा हुआ है। इसी तरह Nifty आपको 50 कंपनियों के ओपिनियन पोल से मार्केट के सेंटीमेंट को बताता है।
ज्यादातर समय ऐसा होता है जिधर इन 50 कंपनियों के ज्यादातर शेयर जा रहे होते हैं। उसी तरफ शेयर मार्केट के अधिकांश शेयर जा रहे होते हैं। 60/70 % बार ऐसा होता है परंतु हर बार ऐसा हो यह जरूरी नहीं है। इसलिए कभी भी सेंसेक्स और निफ्टी पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। यह शेयर मार्केट का केवल एक औसत अनुमान देता है।
सेंसेक्स में 30 और निफ्टी में 50 कंपनियों हैं। Sensex 30 कंपनियों की दिशा से आपको एक जनरल ओपिनियन देता है कि आज शेयर मार्केट बढ़ा हुआ है या गिरा हुआ है। इसी तरह Nifty आपको 50 कंपनियों के ओपिनियन पोल से मार्केट के सेंटीमेंट को बताता है।
ज्यादातर समय ऐसा होता है जिधर इन 50 कंपनियों के ज्यादातर शेयर जा रहे होते हैं। उसी तरफ शेयर मार्केट के अधिकांश शेयर जा रहे होते हैं। 60/70 % बार ऐसा होता है परंतु हर बार ऐसा हो यह जरूरी नहीं है। इसलिए कभी भी सेंसेक्स और निफ्टी पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। यह शेयर मार्केट का केवल एक औसत अनुमान देता है।
Sensex & Nifty कैसे बनता है?
सेंसेक्स में 30 बड़ी कंपनियां है और निफ्टी में 50 बड़ी कंपनियां है। Sensex में फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से शेयर मार्केट की 30 सबसे बड़ी कंपनियां हैं। इसी तरह Nifty में भी फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से शेयर मार्केट की 50 सबसे बड़ी कंपनियां हैं।मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है?
इसे कंपनी का बाजार पूंजीकरण भी कहा जाता है। इसमें कंपनी के एक शेयर की कीमत को कंपनी के टोटल शेयरों से गुणा करके निकाला जाता है। मान लो किसी कंपनी के 10 शेयर हैं और एक शेयर की कीमत है 10 रूपये है।तो उस कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन 100 रूपये हो गया। सेंसेक्स में कंपनियां केवल ज्यादा मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर ही शामिल नहीं होते बल्कि free float market capitalization के आधार पर शामिल होती हैं। सुपरट्रेंड इंडिकेटर
फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या है?
कंपनी के मालिक (प्रमोटर) के शेयरों को हटाकर जो मार्केट कैपिटलाइजेशन बचता है। उसे फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन कहते हैं- जैसे किसी कंपनी के टोटल 10 शेयर हैं और उसमें से 7 शेयर कंपनी के मालिक (प्रमोटर) के पास हैं।जिन्हे कभी शेयर मार्केट में बेचा ही नहीं गया है, इन शेयरों घटाने के बाद जो market capitalization बचता है उसे फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन कहते हैं। मल्टीबैगर स्टॉक्स
इस तरह बाकी बचे तीन शेयर, जो पब्लिक के पास हैं 10 रूपये परशेयर के हिसाब से, उसका फ्री फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन निकाला जाएगा। Sensex में वो तीस कंपनिया शामिल होती है। जिनका फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन सबसे ज्यादा होता है। यह कंपनियां अलग-अलग सेक्टर से ली जाती है।
भारतीय शेयर मार्केट में सबसे ज्यादा वेटेज फाइनेंसियल सर्विस सेक्टर जैसे बैंक, एनबीएफसी आदि। और रिलायंस इंडस्ट्री, टीसीएस जैसी कंपनियों का है। Sensex aur Nifty में शामिल कंपनियों के डेली ऊपर नीचे होने से डिसाइड होता है कि आज सेंसेक्स गिरेगा या चढ़ेगा।
निफ्टी जोकि एनएससी का इंडेक्स है और सेंसेक्स बीएसई स्टॉक एक्सचेंज का इंडेक्स है। सेंसेक्स और निफ्टी में फर्क यही है। एक में शेयर मार्केट की सबसे बड़ी 30 कंपनियां है। तथा दूसरे में सबसे बड़ी 50 कंपनियां हैं। इसलिए यह दोनों सूचकांक एक समान घटते बढ़ते नहीं है, कभी सेंसेक्स 200 अंक ऊपर रहता है, तो Nifty 100 अंक ऊपर रहता है। इसी तरह कभी सेंसेक्स 300 अंक गिरता है। तो निफ्टी केवल सौ अंक ही गिरता है।
जिस दिन Share market गिरकर बंद होता है। तब कहा जाता है कि आज मार्केट का सेंटीमेंट ख़राब था। इसी तरह जब मार्केट चढ़कर बंद होता है तब कहा जाता है। कि आज मार्केट का सेंटीमेंट अच्छा था।
Sensex & Nifty इंडेक्स की सीमाएँ
इसमें कोई शक नहीं है कि इंडेक्स शेयर मार्केट को आंकने में आपका बहुत समय बचाते हैं। इन्हें देखकर आप आसानी से सम्पूर्ण शेयर मार्केट का सेंटीमेंट बहुत जल्दी और आसानी से समझ सकते हैं। आज शेयर मार्केट गिरा या चढ़ा लेकिन इस पर पूरी तरह से आंख बंद करके भरोसा करना भी सही नहीं है। क्योंकि सेंसेक्स और निफ्टी की भी अपनी सीमाएं हैं।
सेंसेक्स में शेयर मार्केट की 30 सबसे बड़ी कंपनियां नहीं है। बल्कि 30 वो कंपनियां हैं जिनका फ्री-फ्लोट मार्केट केपीटलाइजेशन सबसे ज्यादा है। यानी जैसे कि अनिल इंडस्ट्री (काल्पनिक नाम) 2,000 करोड़ की कंपनी है। और उसमें से 1500 करोड़ के शेयर उसके प्रमोटर के पास है।
तो यह 1500 करोड़ के शेयर फ्री-फ्लोट मार्केट केपीटलाइजेशन में शामिल नहीं है। सिर्फ 500 करोड़ ही फ्री-फ्लोट में शामिल होगा। इसलिए इस कंपनी को 500 करोड़ की कंपनी माना जाएगा। आईपीओ
वहीं विमल इंडस्ट्री (काल्पनिक नाम) दूसरी कंपनी है जो वह 1000 करोड़ रुपए की ही कंपनी है। यानी विमल इंडस्ट्री, अनिल इंडस्ट्री,कंपनी के आधे साइज की कंपनी है। लेकिन इसके 800 करोड़ के शेयर पब्लिक के पास है।
वहीं विमल इंडस्ट्री (काल्पनिक नाम) दूसरी कंपनी है जो वह 1000 करोड़ रुपए की ही कंपनी है। यानी विमल इंडस्ट्री, अनिल इंडस्ट्री,कंपनी के आधे साइज की कंपनी है। लेकिन इसके 800 करोड़ के शेयर पब्लिक के पास है।
केवल 200 करोड़ के शेयर कंपनी के प्रमोटर के पास है। इसलिए विमल इंडस्ट्री का फ्री-फ्लोट मार्केट केपीटलाइजेशन अनिल इंडस्ट्री कंपनी से बड़ा है। इसलिए विमल इंडस्ट्री कंपनी को बड़ा माना जाएगा। बिग बुल हर्षद मेहता
Index में इसे ज्यादा वेटेज दिया जाएगा वैसे तो विमल इंडस्ट्री कंपनी, अनिल इंडस्ट्री कंपनी के आधे साइज की है। लेकिन इसका फ्री-फ्लोट ज्यादा होने के कारण उसका सेंसेक्स में वेटेज ज्यादा होगा। इसके ऊपर या नीचे होने से सेंसेक्स ज्यादा ऊपर या नीचे होगा। इसलिए इससे आपको मार्केट की सही स्थिति का पता अच्छे से नहीं चलता है।
दूसरा इश्यू यह है कि आप 30 या 50 कंपनियों के शेयर की कीमत के आधार पर 5000 कंपनियों के सेंटीमेंट को जज कर रहे हैं। जो कि व्यवहारिक दृष्टिकोण से सही नहीं है। यह कुछ इस तरह है जैसे कि स्कूल में 5000 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं और उनमें से 30 या 50 टॉपर्स का टेस्ट लेकर बाकी के सभी 5000 बच्चों का भी टॉपर्स के हिसाब से रिजल्ट घोषित कर दिया जाए। जोमैटो और स्विगी
इसलिए एक्यूरेट नहीं हो सकता है। तीसरा इश्यू यह है कि इसमें जो 30 कंपनियां है यदि वह अच्छा परफॉर्मेंस ना करें तो कुछ दिन तो सेंसेक्स गिरेगा। उसके बाद गिरने वाली कंपनियों को सेंसेक्स से हटा दिया जाएगा और अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियों को सेंसेक्स में शामिल कर लिया जाएगा। यदि नई कंपनी अच्छा प्रदर्शन करेंगी तो सेंसेक्स फिर से बढ़ने लगेगा।
कई बार ऐसा होता है कि सेंसेक्स में शामिल कंपनियां तो अच्छा प्रदर्शन कर रही होती हैं। क्योंकि वह देश की सबसे बड़ी और मजबूत कंपनियां है, लेकिन सेंसेक्स के बाहर की कंपनियां अच्छा प्रदर्शन नहीं करती हैं। क्योंकि वे Sensex aur Nifty की कंपनियों की तरह मजबूत कंपनियां नहीं होती हैं। इसलिए वहां पर अच्छे रिटर्न नहीं मिलते हैं। कैंडलस्टिक पैटर्न
सेंसेक्स में शामिल कोई कंपनी यदि अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है और उसका शेयर गिरने लग जाता है। इस कारण उसका फ्री-फ्लोट मार्केट केपीटलाइजेशन बाकी कंपनियों से कम होने लग जाता है। ऐसी कंपनी को सेंसेक्स और निफ़्टी से बाहर कर दिया जाता है।
प्रत्येक तीन महीने में सेंसेक्स में मिल कंपनियों का रिव्यू किया जाता है। अगर कंपनी का फ्री- फ्लोट मार्केट केपेटलाइजेशन प्राइस गिरने के कारण कम हो जाता है। तब कंपनी को सेंसेक्स और निफ़्टी से बाहर कर दिया जाता है। उसकी जगह किसी बड़ी दूसरी कंपनी को इसमें शामिल कर लिया जाता है। पावर ऑफ़ कम्पाउंडिंग
इस तरह जो कंपनी अच्छा प्रदर्शन नहीं करती वह सेंसेक्स और निफ़्टी से बाहर हो जाती है जो अच्छा प्रदर्शन कर रही होती है वह सेंसेक्स और निफ़्टी में शामिल हो जाती है। कहने का मतलब यह है कि हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियों को सेंसेक्स और निफ़्टी में रखा जाता है।
सेंसेक्स के प्राइस के ऊपर जाने का मतलब यह नहीं है कि बाकी सभी कंपनियों के शेयर प्राइस भी ऊपर जा रहे होंगे। कई बार ऐसा होता है कि सेंसेक्स तो बढ़ रहा होता है। परंतु आपका पोर्टफोलियो नहीं बढ़ रहा होता है। अब आप सोच रहे होते हैं कि Nifty aur Sensex तो बढ़ रहे हैं, परंतु मेरा पोर्टफोलियो क्यों नहीं बढ़ रहा है?
ऐसा इसलिए हो रहा होता है क्योंकि सेंसेक्स में तो वही कंपनियां शामिल हैं। जो पिछले कुछ महीने से अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। जिनका मार्केट कैप पहले से ही ज्यादा है इसलिए अपने पोर्टफोलियो की सेंसेक्स निफ़्टी से तुलना नहीं करनी चाहिए। सेंसेक्स में टेंपरेरी विनर्स कंपनियां आती रहती हैं।
अब यहां सवाल यह उठता है कि यदि Nifty aur Sensex में सबसे बड़ी और अच्छी कंपनियां हैं। तो आपको भी उनमें में ही निवेश करना चाहिए। परन्तु यह भी सही नहीं है क्योंकि सेंसेक्स और निफ़्टी में पुराने प्रदर्शन के आधार पर कंपनियां शामिल होती है। लेकिन जरूरी नहीं है कि वह आगे भी अच्छा प्रदर्शन करती रहेंगी।
कई बार ऐसा होता है कि जब कंपनी Nifty aur Sensex में शामिल हुई और जब तक आपको पता चला, तब तक आपने सोचा कि मैं भी इसमें निवेश कर देता हूं। तब तक उस कंपनी का शेयर पहले ही महंगा हो चुका होता है। उसमें वैल्यू ही नहीं बचती और वह शेयर ओवरवैल्यू हो चुका है। आईपीओ अलॉटमेंट
Index में इसे ज्यादा वेटेज दिया जाएगा वैसे तो विमल इंडस्ट्री कंपनी, अनिल इंडस्ट्री कंपनी के आधे साइज की है। लेकिन इसका फ्री-फ्लोट ज्यादा होने के कारण उसका सेंसेक्स में वेटेज ज्यादा होगा। इसके ऊपर या नीचे होने से सेंसेक्स ज्यादा ऊपर या नीचे होगा। इसलिए इससे आपको मार्केट की सही स्थिति का पता अच्छे से नहीं चलता है।
दूसरा इश्यू यह है कि आप 30 या 50 कंपनियों के शेयर की कीमत के आधार पर 5000 कंपनियों के सेंटीमेंट को जज कर रहे हैं। जो कि व्यवहारिक दृष्टिकोण से सही नहीं है। यह कुछ इस तरह है जैसे कि स्कूल में 5000 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं और उनमें से 30 या 50 टॉपर्स का टेस्ट लेकर बाकी के सभी 5000 बच्चों का भी टॉपर्स के हिसाब से रिजल्ट घोषित कर दिया जाए। जोमैटो और स्विगी
इसलिए एक्यूरेट नहीं हो सकता है। तीसरा इश्यू यह है कि इसमें जो 30 कंपनियां है यदि वह अच्छा परफॉर्मेंस ना करें तो कुछ दिन तो सेंसेक्स गिरेगा। उसके बाद गिरने वाली कंपनियों को सेंसेक्स से हटा दिया जाएगा और अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियों को सेंसेक्स में शामिल कर लिया जाएगा। यदि नई कंपनी अच्छा प्रदर्शन करेंगी तो सेंसेक्स फिर से बढ़ने लगेगा।
कई बार ऐसा होता है कि सेंसेक्स में शामिल कंपनियां तो अच्छा प्रदर्शन कर रही होती हैं। क्योंकि वह देश की सबसे बड़ी और मजबूत कंपनियां है, लेकिन सेंसेक्स के बाहर की कंपनियां अच्छा प्रदर्शन नहीं करती हैं। क्योंकि वे Sensex aur Nifty की कंपनियों की तरह मजबूत कंपनियां नहीं होती हैं। इसलिए वहां पर अच्छे रिटर्न नहीं मिलते हैं। कैंडलस्टिक पैटर्न
सेंसेक्स में शामिल कोई कंपनी यदि अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है और उसका शेयर गिरने लग जाता है। इस कारण उसका फ्री-फ्लोट मार्केट केपीटलाइजेशन बाकी कंपनियों से कम होने लग जाता है। ऐसी कंपनी को सेंसेक्स और निफ़्टी से बाहर कर दिया जाता है।
प्रत्येक तीन महीने में सेंसेक्स में मिल कंपनियों का रिव्यू किया जाता है। अगर कंपनी का फ्री- फ्लोट मार्केट केपेटलाइजेशन प्राइस गिरने के कारण कम हो जाता है। तब कंपनी को सेंसेक्स और निफ़्टी से बाहर कर दिया जाता है। उसकी जगह किसी बड़ी दूसरी कंपनी को इसमें शामिल कर लिया जाता है। पावर ऑफ़ कम्पाउंडिंग
इस तरह जो कंपनी अच्छा प्रदर्शन नहीं करती वह सेंसेक्स और निफ़्टी से बाहर हो जाती है जो अच्छा प्रदर्शन कर रही होती है वह सेंसेक्स और निफ़्टी में शामिल हो जाती है। कहने का मतलब यह है कि हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियों को सेंसेक्स और निफ़्टी में रखा जाता है।
सेंसेक्स के प्राइस के ऊपर जाने का मतलब यह नहीं है कि बाकी सभी कंपनियों के शेयर प्राइस भी ऊपर जा रहे होंगे। कई बार ऐसा होता है कि सेंसेक्स तो बढ़ रहा होता है। परंतु आपका पोर्टफोलियो नहीं बढ़ रहा होता है। अब आप सोच रहे होते हैं कि Nifty aur Sensex तो बढ़ रहे हैं, परंतु मेरा पोर्टफोलियो क्यों नहीं बढ़ रहा है?
ऐसा इसलिए हो रहा होता है क्योंकि सेंसेक्स में तो वही कंपनियां शामिल हैं। जो पिछले कुछ महीने से अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। जिनका मार्केट कैप पहले से ही ज्यादा है इसलिए अपने पोर्टफोलियो की सेंसेक्स निफ़्टी से तुलना नहीं करनी चाहिए। सेंसेक्स में टेंपरेरी विनर्स कंपनियां आती रहती हैं।
अब यहां सवाल यह उठता है कि यदि Nifty aur Sensex में सबसे बड़ी और अच्छी कंपनियां हैं। तो आपको भी उनमें में ही निवेश करना चाहिए। परन्तु यह भी सही नहीं है क्योंकि सेंसेक्स और निफ़्टी में पुराने प्रदर्शन के आधार पर कंपनियां शामिल होती है। लेकिन जरूरी नहीं है कि वह आगे भी अच्छा प्रदर्शन करती रहेंगी।
कई बार ऐसा होता है कि जब कंपनी Nifty aur Sensex में शामिल हुई और जब तक आपको पता चला, तब तक आपने सोचा कि मैं भी इसमें निवेश कर देता हूं। तब तक उस कंपनी का शेयर पहले ही महंगा हो चुका होता है। उसमें वैल्यू ही नहीं बचती और वह शेयर ओवरवैल्यू हो चुका है। आईपीओ अलॉटमेंट
यदि आप अब महंगे प्राइस पर इस कंपनी में निवेश करेंगे तो ऐसा हो सकता है। आपको अच्छा रिटर्न ना मिले। आपको विनर्स के पीछे-पीछे नहीं भागना चाहिए। विनर्स को पहले ही पहचान लेना चाहिए। जैसे कि रेस शुरू होने से पहले अच्छे घोड़े को पहचान कर उस पर दांव लगाया जाता है। ना की रेस मैं आगे दौड़ रहे घोड़े को पकड़ कर उस पर दांव लगाया जाता है।
उसी तरह कौन सी कंपनी अगले साल सेंसेक्स और निफ़्टी में शामिल हो सकती है। ऐसी कंपनियों को यदि आप Nifty aur Sensex में शामिल होने से पहले ही पहचान सके। तो उनमें निवेश कर अच्छा मुनाफा सकते हैं। सेंसेक्स और निफ़्टी में शामिल होने के बाद, कंपनी में निवेश करके हर बार प्रॉफिट नहीं कमा सकते हैं। कैंडलस्टिक पैटर्न
कभी भी अपने पोर्टफोलियो की निफ़्टी और सेंसेक्स के प्रदर्शन से तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनमे सबसे बड़ी मजबूत कंपनियां शामिल होती हैं। आपका पोर्टफोलियो उनसे अलग हो सकता है। अगर आपने मिडकैप और स्मॉलकैप में निवेश कर रखा हो तो हो सकता है। कि वहां पर आपको अच्छा रिटर्न नहीं मिल रहा हो।
मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में बहुत ज्यादा वैल्यू होती है। यहां पर आपको बहुत ज्यादा अच्छी क्वालिटी के अंडरवैल्यू शेयर मिल जायगें। यदि आपके पोर्टफोलियो में अच्छी क्वालिटी के मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स है। तो आज नहीं तो कल यानि एक साल बाद या दो साल बाद आपको बहुत अच्छे रिटर्न मिल सकते है। नैस्डेक
सेंसेक्स के रिटर्न से बहुत ज्यादा अच्छे रिटर्न आपको क्वालिटी मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स में मिल सकते हैं। अब आप अच्छी तरह जान गए होंगे कि Nifty aur Sensex क्या है?
उम्मीद है कि अब आप सेंसेक्स और निफ्टी क्या है? इसके बारे में अच्छे से समझ गए होंगे। यदि आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इस आर्टिकल को सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। Share market की जानकारी प्राप्त करने के लिए इस साइट को सब्सक्राइब करें।
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