Short Selling से गिरते हुए शेयर मार्केट से भी पैसे कैसे कमाए?

ज्यादातर लोग शेयर बाजार से पैसा, शेयर को सस्ता खरीदकर और महंगा बेचकर कमाते हैं। इसके बीच का अंतर ही प्रॉफिट होता है। इसके विपरीत यदि शेयर का प्राइस नीचे जा रहा है, तब भी आप उसे पहले बेचकर बाद में बायबैक करके पैसे कमा सकते हैं। इसे ही शॉर्ट सेलिंग (Short selling) कहते हैं। 

शार्ट सेलिंग की इस तकनीक को आप शेयर मार्केट, करेंसी मार्केट और डेरिवेटिव मार्केट पर समान रूप से अप्लाई कर सकते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं- शॉर्ट सेलिंग से गिरते हुए शेयर मार्केट से भी पैसे कैसे कमाए? Short Selling in stock market kya hai in Hindi.   
                                                               
Short selling in stock market


यदि आप शेयर मार्केट चार्ट पैटर्न में एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको कैंडलस्टिक, ब्रेकआउट पैटर्न, इंडीकेटर्स, एंट्री एग्जिट और रिस्क मैनेजमेंट की जानकारी देने वाली बुक ट्रेडिंग चार्ट पैटर्न जरूर पढ़नी चाहिए। 

Short selling के बारे में 

Stock market में सामान्यतः शेयरों को पहले खरीदा जाता है और बाद में बेचा जाता है। इसके बीच का अंतर आपका प्रॉफिट होता है। लेकिन Short Selling में ठीक इसका उल्टा होता है, इसमें गिरते हुए शेयर को पहले बेचा जाता है फिर उसके बाद खरीदा जाता है। इसमें हाई प्राइस पर शेयर को बेचा जाता है तथा लो प्राइस पर शेयर खरीदा जाता है इसके बीच का अंतर ही आपका प्रॉफिट होता है। 

इस आर्टिकल में लॉन्ग और शार्ट टर्म के आधार पर होने वाली Short Selling के बारे में बताया गया है। शॉर्ट सेलिंग में रिस्क हो सकता है इसलिए शॉर्ट सेलिंग करने से पहले आपको शेयर प्राइस के गिरने का कारण, बहुत अच्छे से पता होना चाहिए। इलियट वेव थ्योरी

Share market के गिरने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि 2008 में फाइनेंसियल  क्राइसिस आया था। इसी तरह 2020 में जब कोरोना की महामारी फैली थी। तब भी शेयर मार्केट में बहुत बड़ी गिरावट हुई थी। अभी हाल ही में (जून 2024) में जब लोकसभा चनावों के रिजल्ट आये थे। उस समय संपूर्ण शेयर बाजार बहुत ज्यादा गिर गए थे।इस दौरान अच्छे-अच्छे शेयरों के प्राइस बहुत ज्यादा गिर गए थे।  

बहुत सारे अच्छे अच्छे शेयरों के प्राइस भी बहुत ज्यादा गिर गए थे। ऐसे समय में आपको ट्रिगर मिल जाता है। किसी शेयरों में बहुत ज्यादा गिरावट आ सकती है। तो उसमें आप शॉर्ट सेलिंग कर सकते हैं, जैसे कि कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन के कारण एविएशन सेक्टर और होटल इंडस्ट्री के शेयर बहुत ज्यादा गिर गए थे। ट्रैवल बैन होने की वजह से तब इसे भी एक ट्रिगर माना जा सकता था। द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर

दूसरा किसी नेगेटिव न्यूज़ की वजह से भी किसी पूरे बिजनेस ग्रुप के stocks में गिरावट हो सकती है। जैसे 2023 की शुरुआत में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की वजह से अडानी ग्रुप के शेयरों में भरी गिरावट हुई थी। ये तो भारतीय Stock market का बहुत बड़ा मामला है जिसमें बड़े-बड़े फंड हाउस ने शार्ट सेलिंग से अथाह धन कमाया था। 

यदि किसी पर्टिकूलर share के अंदर ही किसी प्रॉब्लम का पता चले जैसे कि रेटिंग एजेंसी द्वारा किसी कंपनी की रेटिंग को डाउन  ग्रेड किया जाना आदि। कोई अन्य नेगेटिव न्यूज़ भी आ सकती है, जैसे कि कंपनी के प्रमोटर के खिलाफ कोई क़ानूनी कार्यवाही हुई हो। IPO में invest

इसी तरह आप किसी भी शेयर की नेगेटिव न्यूज़ को जानकर तथा शेयर पर उसके प्रभाव को समझकर आप उस शेयर को Short sell कर सकते हैं। Short selling में आपका विश्लेषण और थोड़ा सा भाग्य, दोनों ही काम करते है। यदि यह सही बैठते हैं तो आप शॉर्ट सेलिंग से अच्छा पैसा कमा सकते हैं। सेंसेक्स और निफ्टी

Normal buying (खरीददारी) से पैसा कैसे कमाते हैं?

स्टॉक्स नॉर्मल बाइंग में बायर, शेयर को खरीदते हैं और सेलर्स शेयर को बेचते हैं। बेचने वाले के शेयर उसके डीमेट अकाउंट से ट्रांसफर होकर, खरीदने वाले के डीमेट अकाउंट में जमा हो जाते हैं। नॉर्मल बाइंग में प्रॉफिट ऐसे होता है, मान लीजिए आपने कोई शेयर 200 रूपये में खरीदा और उसका प्राइस 200 रूपये से ज्यादा होने पर आपने बेच दिया।

मानलो बाद में आपके खरीदे हुए शेयर का प्राइस 300 रूपये प्रति शेयर हो जाता है। इस प्राइस पर बायर अपने शेयर बेच देता है, इस तरह उसे 100 रूपये प्रति शेयर के हिसाब से प्रॉफिट हो जाता है। इसी पोजीशन में दूसरी स्थिती यह भी हो सकती है। यदि शेयर मार्केट गिरता है और उसके शेयर का प्राइस भी गिरकर 150 रूपये प्रति शेयर हो जाता है । इस समय शेयर बेचने पर आपको 50 रूपए प्रति शेयर का नुकसान हो जाता है। नॉर्मल बाइंग में इसी तरह मुनाफा और नुकसान होता है। Groww app

 लांग टर्म Short Selling क्या है?

शॉर्ट सेलिंग मैं नॉर्मल बाइंग का बिल्कुल उल्टा होता है, हम  इसमें 3 महीने का समय मान कर चल रहे हैं। यह समय सीमा कम या ज्यादा भी हो सकती है। अगर किसी ट्रेडर को यह लगता है कि आने समय में शेयर का प्राइस नीचे जाएगा, यानी इसका प्राइस गिर सकता है। 

ऐसे में वह उस शेयर को 200 रूपये के price पर सेल कर देता है। अगर जैसा कि वह सोच रहा है, उस शेयर का प्राइस आने वाले समय में 200 रूपए से गिरकर 150 रुपए प्रति शेयर हो जाता है। तो वह सेलर उस स्टॉक को बायबैक कर लेगा इस तरह उसे 50 रूपए प्रति शेयर का प्रॉफिट हो जाएगा। Nifty fifty companies 

यहां पर जिन शेयरों की बात हो रही है यदि यह शेयर, शॉर्ट सेलर के पास, उसके डीमेट अकाउंट में होते तो उसके लिए सेलिंग बहुत आसान हो जाती । चूंकि उसके पास शेयर नहीं है, फिर भी वह उन्हें बेचना चाहता है। इसी को short selling कहते हैं। शार्ट सेलर के पास शेयर है ही नहीं तो यह शेयर लाएगा कहां से,  क्योंकि तीन दिन के बाद अनिवार्य रूप से स्टॉक्स की डिलीवरी देनी होती है।

इसके लिए एक कांसेप्ट होता है, जिसे सिक्योरिटी एंड लेंडिंग बौरोइंग (SLB) कहा जाता है। लैंडर के डीमैट अकाउंट में पहले से ही शेयर होते हैं, जिन्हें वह उधार दे सकता है। शार्ट सेलर को लेंडर से शेयर उधार मिलते हैं और बायर के पास पहुंच जाते हैं। वारेन बुफेट पोर्टफोलियो

 
तीन दिन से पहले ही यह काम हो जाता है, लैंडर को कुछ ना कुछ इंटरेस्ट (ब्याज) मिल जाता है। यह एसएलबी का कांसेप्ट होता है यह एसएलबी अकाउंट से ऑपरेट होता है। जिसे सिक्योरिटी एंड लेंडिंग बौरोइग (SLB) अकाउंट कहा जाता है। यह सुविधा ज्यादातर ब्रोकर्स के पास होती है।

एसएलबी की फैसिलिटी इंडिया में ज्यादा यूज नहीं होती है इसलिए इसमें लिक्विडिटी बहुत कम होती है। SLB में लेडर, सेलर को 3 महीने के लिए अपने शेयर उधार दे देता है और बदले में 10 रुपये प्रति शेयर का ब्याज मांग सकता है। ब्याज कम या ज्यादा भी हो सकती है, इसमें लेंडर को कोई रिस्क नहीं होता है। शेयर का प्राइस किधर भी जाए चढ़े या गिरे लैंडर को अपने stocks ब्याज मिल जाता है।  मनी कंट्रोल प्रो क्या है?

जिस तरह बैंक से पैसा उधार लिया जाता है, उसी तरह इसमें भी शेयर उधार लिए जाते हैं। अब मान लेते हैं कि स्टॉक मार्केट उल्टी दिशा में चल जाता है। यानी कि शेयर का प्राइस नीचे गिरने की बजाय 50 रुपए ऊपर चढ़ जाता है। तीन महीने बाद शार्ट सेलर को, लैंडर को उसके शेयर अनिवार्य रूप से वापस करने पड़ते हैं। इसलिए शार्ट सेलर को स्टॉक्स 250 रुपए प्रति शेयर के प्राइस पर खरीदने ही पड़ेंगे। इस तरह उसे 50 रुपए प्रति शेयर का नुकसान हो जाएगा। 

इस तरह Short selling से मुनाफा और नुकसान दोनों ही हो सकते हैं। तीन महीने बाद शार्ट सेलर को शेयर खरीदने पड़ते हैं। वहां पर उसे और सेलर्स मिल जायेंगे। जिनसे शार्ट सेलर 250 या 200 रूपए प्रति शेयर के प्राइस पर शेयर खरीदेगा जो भी उस शेयर का मार्केट प्राइस होगा। इस तरह शार्ट सेलर, लेंडर को उसके शेयर वापस कर देगा। प्राइस एक्शन

साथ ही शार्ट सेलर ने, लेंडर से 10 रूपए प्रति शेयर का जो इंटरेस्ट प्रॉमिस किया था। उसे भी वापस कर देगा। शार्ट सेलर को अपने नेट प्रॉफिट 50 रुपए प्रति शेयर में से 10 रुपए प्रति शेयर लेंडर को देने के बाद, उसे 40 रूपये प्रति शेयर का प्रॉफिट शेष बचेगा। इसी तरह यदि शार्ट सेलर को 50 रुपए प्रति शेयर का नुकसान होने पर भी, लेंडर को 10 रुपए प्रति शेयर इंटरेस्ट के अनिवार्य रूप से देने पड़ेंगे। इस स्थिति में शार्ट सेलर को 60 रूपये प्रति शेयर का नुकसान होगा। 

यहां पर शार्ट सेलर को मुनाफा तो 40 रूपये पर प्रति शेयर का हो रहा है परंतु नुकसान 60 रूपये प्रति शेयर का हो रहा है। इसलिए शॉर्ट सेलिंग में ज्यादा रिस्क होता है। दूसरी बात यह है कि शेयर मार्केट के नीचे जाने की आशंका कम होती है जबकि ऊपर जाने की संभावना ज्यादा होती है। शॉर्ट सेलिंग के मौके कम और कभी-कभी मिलते हैं। ऑप्शन चैन 

वैसे अक्सर शेयरों में आने वाली नेगेटिव न्यूज़ की वजह से शॉर्ट सेलिंग के मौके बनते रहते हैं। जब शेयर मार्केट ऊपर चढ़ता है, तब मुनाफा कमाने की संभावना ज्यादा होती है। गिरते हुए मार्केट में शॉर्ट सेलिंग के द्वारा मुनाफा कमाने की संभावना तो रहती है परंतु इसमें जोखिम ज्यादा रहता है। 

एक बार फिर से रिपीट कर दूं कि जब भी आपको शॉर्ट सेलिंग के लिए क्लियर ट्रिगर दिखे या आपको लगे कि किसी शेयर के नीचे जाने के चांस बहुत ही ज्यादा लग रहे हैं। तभी आपको शॉर्ट सेलिंग की पोजीशन बनानी चाहिए। 

Intraday में short selling कैसे करें?

इंट्राडे में शॉर्ट सेलिंग, लोंग टर्म शॉर्ट सेलिंग से ज्यादा प्रसिद्ध है क्योंकि इंट्राडे के अंदर लिक्विडिटी काफी हाई होती है। अतः इसे काफी आसानी से किया जा सकता है। जिसकी वजह से इसके अंदर कोई समस्या भी नहीं आती है। सुबह 9:15 से शेयर मार्केट खुलता है और 3:30 बजे बंद होता है। ओपन इंटरेस्ट 

इंट्राडे में शॉर्ट सेलिंग का भी यही टाइम होता है।  मान लीजिए जिस शेयर में आप शॉर्ट सेलिंग की पोजीशन लेना चाहते हैं। उसका प्राइस 200 रूपए है और शार्ट सेलर को लगता है कि शेयर का प्राइस 190 रुपए तक नीचे जा सकता है। इस पोजीशन में शार्ट सेलर 10 रूपए प्रति शेयर का प्रॉफिट कमाना चाहता है। 

3:30 बजे से पहले जब भी उसका टारगेट हिट हो जाएगा, तभी वह अपना मुनाफा बुक कर लेगा इसलिए शार्ट सेलर को पहले 200 रूपए के प्राइस पर शेयर को बेचना होगा। मान लेते हैं कि उसी के हिसाब से मार्केट चल रहा है और 2:30 बजे शॉर्ट सेलर के रेट 190 पर शेयर का प्राइस पहुंच जाता है और यहां पर शार्ट सेलर अपने सेल किए हुए शेयरों को बायबैक कर लेता है। ट्रेंड (Trend)

इस तरह उसे प्रतिशत 10 रूपए प्रति शेयर का मुनाफा हो जाता है। अब मुद्दे की बात यह है कि यह शेयर तो उसके पास है ही नहीं, फिर शेयर कहां से आए आएंगे। लॉन्ग टर्म में तो आपने देखा कि लैंडिंग होती है, वहां से शार्ट सेलर को शेयर इंटरेस्ट पर उधार लेने पड़ते हैं।

इंट्राडे में शार्ट सेलर को डिलीवरी नहीं करनी पड़ती है इसलिए बाइंग का आर्डर लगा कर, किसी दूसरे सेलर से शेयर खरीदकर सौदा पूरा कर दिया जाता है। यदि इंट्राडे में शेयर मार्केट short sell की पोजीशन के विरुद्ध चला जाए। यानी कि शेयर का प्राइस 190 के बजाय 210 रुपए हो जाता है। इस स्थिति में शार्ट सेलर को 210 रूपए प्रति शेयर के प्राइस पर ही शेयर खरीदना पड़ेगा। SIP के जादू

इस तरह उसे दस रुपए प्रति शेयर का नुकसान हो जाएगा। एक कांसेप्ट यह भी हो सकता है कि नुकसान होने पर वह शेयर बायबैक नहीं करें और उसका नुकसान होता ही जा रहा है। शॉर्ट सेलर शेयर मार्केट बंद होने तक इंतजार करता है। ऐसी स्थिति में ब्रोकर इंतजार नहीं करता और वह 3:15 या 3:20 पर ब्रोकर पोजीशन को ऑटो स्क्वायर ऑफ कर देते हैं।

अलग-अलग स्टॉक ब्रोकर का अलग-अलग समय होता है। जब वह शॉर्ट सेलर की पोजीशन को ऑटो स्क्वायर ऑफ कर देते हैं। अगर आपने इंट्राडे में शॉर्ट सेल किया है तो आपके शेयर तय समय पर ऑटोमेटिक बायबैक हो जाएंगे। इसी तरह यदि आपने इंट्राडे में बाय (खरीदी की) पोजीशन ली है तो उसके शेयर ऑटोमेटिक सेल ऑफ हो जाएंगे।

अगर मार्केट ऊपर जा रहा है और आपने शॉर्ट सेल किए हुए शेयर बायबैक नहीं किए तो आपका ब्रोकर, ऑटोमेटिक रूप से मार्केट रेट पर आपकी पोजीशन को 3:20 पर या अपने तय समय पर बायबैक कर लेगा। अब यहां पर एक सवाल यह उठता है कि क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे आप अपने नुकसान को कंट्रोल कर सके क्योंकि मार्केट ऊपर जितना चाहे उतना जा सकता है। 

यदि आप अपने नुकसान को कम करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको स्टॉपलॉस लगाना पड़ेगा यदि आप प्रति शेयर 5 रूपए से ज्यादा का नुकसान नहीं उठाना चाहते तो आपको 205 पर स्टॉपलॉस ऑर्डर लगाना चाहिए। इंट्राडे में जब भी 3:20 बजे से पहले यदि आप का स्टॉपलॉस 205 हिट हो जाता है तो ऑटोमेटिक्ली आपके शेयर बायबैक हो जाएंगे।

इस तरह आप जितना रिस्क लेना चाहते हैं, अपनी पोजीशन गलत होने पर आपको उतना ही नुकसान होगा। आप अनलिमिटेड नुकसान से बच जाएंगे और यदि आप चाहे तो इसके बाद दूसरा ट्रेड भी ले सकते हैं। एक कांसेप्ट यह भी है कि यदि 3:20 तक आपने अपनी पोजीशन को कवर नहीं किया और ब्रोकर को भी इस पोजीशन को स्क्वायर ऑफ करने का समय ना मिले और 3:30 बजे जाते हैं। 

तब उसके बाद क्या होगा क्योंकि आपने जिनके  stocks को बेचा था। उसे शेयर खरीद कर आपने डिलीवरी नहीं दी। अब आपको सेबी पेनल्टी लगा सकता है। लेकिन सेबी की पेनल्टी से बचा भी जा सकता है। 3:30 से 4:00 तक शेयर ऑक्शन में चले जाते हैं, इस दौरान ब्रोकर्स मार्केट चलता है। सेंसेक्स और निफ्टी

इस दौरान जितनी भी ओपन पोजीशन होती हैं, ब्रोकर उन्हें क्लोज करने की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां पर पोजीशन क्लोज करने का प्राइस अलग होता है। क्योंकि जिस शेयर को ब्रोकर आपके लिए खरीदना चाहते हैं। यदि वह दूसरे ब्रोकर के पास मिल जाता है तो वह दूसरा ब्रोकर चाहे जितना प्राइस रखेगा और उतने प्राइस पर शेयर खरीदना पड़ेगा। 

तभी सेबी की पेनल्टी से बचा जा सकता है। इसलिए जब भी आप शॉर्ट सेलिंग करें तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपके ब्रोकर की डेडलाइन से पहले अपने शेयरों को बायबैक जरूर कर लें। उम्मीद है अब आप अच्छे से जान गए होंगे की short selling kya hai? ग्रे मार्केट प्रीमियम

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