मार्केट तो जोखिमों के अधीन है फिर मार्केट रिस्क कैसे मैनेज करें? Market Risk Management |
मार्केट रिस्क वह आशंका है, जिसके कारण ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स को फाइनेंशियल मार्केट के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले कारकों के कारण वित्तीय नुकसान हो सकता है। मार्केट रिस्क का मूल्यांकन कई फेक्टर्स के आधार पर किया जाता है। जैसे इंट्रेस्ट रेट, विदेशी मुद्रा एक्सचेंज रेट, कमोडिटीज के प्राइस आदि। आइए विस्तार से जानते हैं- मार्केट जोखिमों के अधीन है, का मतलब क्या है? Market Risk Management in Hindi.
अगर आप शेयर मार्केट एक्सपर्ट बनकर इससे अथाह धन कमाना चाहते हैं। तो आपको प्रसेनजीत पॉल द्वारा लिखित बुक शेयर बाजार में नुकसान से कैसे बचें और धनवान कैसे बनें जरूर पढ़नी चाहिए।
Market Risk क्या है?
मार्केट रिस्क वह आशंका है, जिससे फाइनेंशियल मार्केट (स्टॉक, कमोडिटी, करेंसी) के सम्पूर्ण प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले फेक्टर्स के कारण ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स को नुकसान उठाना पड़ता है। प्राइस और मार्केट वोलेटिलिटी में अनएस्पेक्टिड मूवमेंट के कारण मार्केट रिस्क उत्प्न्न होता है।
इसीलिए शेयर मार्केट संबंधी टिप्स देते समय कहा जाता है कि "मार्केट जोखिमों के अधीन है, अतः सोच समझकर अपनी जिम्मेदारी पर शेयर मार्केट, आईपीओ, म्यूच्यूअल फंड्स में investment करें"। Stock market के जोखिमों से बचने के लिए ही यह सलाह भी अक्सर दी जाती है कि "डोंट पुट ऑल योर इन वन बास्केट" यानि अपने सभी अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखने चाहिए।
शेयर मार्केट के संदर्भ में आसान शब्दों में कहें तो, यह stocks के प्राइस में अचानक तेज गिरावट होने पर लॉन्ग-टर्म और शार्ट टर्म इन्वेस्टर्स को भारी नुकसान का रिस्क हमेशा बना रहता है। Market risk पूरे मार्केट के प्रदर्शन को एक साथ प्रभावित करता है। पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन करके मार्केट रिस्क को कम जरूर किया जा सकता है। लेकिन समाप्त नहीं किया जा सकता है।
ब्याज दरों, करेंसी एक्सचेंज रेट और मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण, युद्ध और मंदी की आशंका के कारण भी market risk उतप्न्न हो जाता है। जिससे अक्सर market crash हो जाते हैं। इन्वेस्टमेंट रिस्क को दो केटेगरी में डिवाइड किया जा सकता है-
- Market risk (व्यवस्थित रिस्क)
- Specific risk (अव्यवस्थित रिस्क)
व्यवस्थित जोखिम या बाजार जोखिम, एक ही समय में पूरे बाजार को प्रभावित करता है। अतः investors को अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले सभी फैक्टर्स पर नजर बनाये रखनी चाहिए।
Specific Risk, इसकी तुलना अव्यवस्थित जोखिम से की जा सकती है। इसमें किसी विशेष कंपनी या सेक्टर्स में इन्वेस्ट करने पर जोखिम हो सकता है। यदि किसी कंपनी के फंडामेंटल अच्छे नहीं है तो उसमें इन्वेस्ट करने पर जोखिम हो सकता है।
विभिन्न प्रकार के market risk में ब्याज दर बढ़ने का रिस्क, कमोडिटी प्राइस बढ़ने का रिस्क, अपने देश की करेंसी के कमजोर होने का रिस्क आदि बहुत से रिस्क शामिल हैं। पेशेवर विश्लेषक स्टेटिक्स रिस्क मैनेजमेंट के द्वारा संभावित नुकसान की पहचान करने के लिए वैल्यू एट रिस्क (VaR) मॉडलिंग और बीटा गुणांक जैसी विधियों का उपयोग करते हैं।
Market Risk के प्रकार
सम्पूर्ण मार्केट रिस्क के विपरीत स्पेसिफिक रिस्क (अव्यवस्थित रिस्क) सीधे किसी विशेष stock के प्रदर्शन से जुड़ा होता है। पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन से इसे कम किया जा सकता है और इसकी भरपाई अन्य स्टॉक्स के अच्छे प्रदर्शन के की जा सकती है। स्पेसिफिक रिस्क का उदाहरण, यदि कोई कंपनी दिवालिया हो जाती है तो उसके स्टॉक, इन्वेस्टर्स के लिए बेकार हो जाते हैं।
मार्केट रिस्क के सबसे कॉमन निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
- इंट्रेस्ट रेट रिस्क: भारत देश के रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति में बदलाव करने से बैंकों के इंट्रेस्ट रेटों में भी बदलाव होता है। जिसका असर शेयर मार्केट, बांड मार्केट और रियल एस्टेट आदि पर भी पड़ता है। जिसकी वजह से शेयर मार्केट में वोलैटिलिटी बहुत बढ़ जाती है। साथ ही इंट्रेस्ट रेट से प्रभावित होने वाली कंपनियों के स्टॉक के प्राइस में भी भारी उतार-चढ़ाव होता है।
- इक्विटी रिस्क: स्टॉक्स के प्राइस में होने वाले उतार-चढ़ाव के किन्हीं लोगों को प्रॉफिट होता है तो किसी को लॉस होता है।
- कमोडिटी रिस्क: कुछ कमोडिटीज, जैसे कि क्रूड ऑइल और खाद्यान्न तेल और अनाज आदि सभी देशों की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक होते हैं। अतः कमोडिटी के प्राइस में बढ़ोतरी से उत्प्न्न होने वाली वोलैटिलिटी सम्पूर्ण बाजार के प्रदर्शन को प्रभावित करती है।
- करेंसी रिस्क: जब किसी देश की करेंसी कमजोर हो जाती है। तब उसे विदेशी व्यापार में नुकसान होने लगता है। साथ ही दूसरे देश उस देश में इन्वेस्टमेंट भी नहीं करते हैं। जिससे फॉरेन करेंसी एक्सचेंज रिस्क कहा जाता है। विदेशी निवेश खोने के जोखिम को कम करने के लिए, कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं उच्च विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखती हैं। ताकि इस भंडार को बेचकर अपनी करेंसी के अवमूल्यन को रोका जा सके।
Market Risk management कैसे करें?
यदि आप Share market में इन्वेस्ट कर रहे हैं तो मार्केट रिस्क से बचने का कोई एक पर्टिकुलर तरीका नहीं है। आप मार्केट वोलैटिलिटी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए hedging strategy अपना सकते हैं। यानि अगर आपको लगता है कि आपके स्टॉक के प्राइस में गिरावट आ सकती है। तो आप उस स्टॉक का Put option खरीदकर अपनी पोजीशन को हैज कर सकते हैं।
इससे स्टॉक प्राइस में गिरावट की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई पुट ऑप्शन से होने वाले प्रॉफिट से हो जाएगी। इस तरह आप अपने नुकसान को कवर कर सकते हैं। Market risk को manage करने के लिए आप रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति पर नजर बनाये रखें। साथ ही interest rate में होने वाले बदलावों के साथ, आप भी अपने इन्वेस्टमेंट को बदलने के लिए तैयार रहें।
अगर आपको लगता है की किसी सेक्टर में इंट्रेस्ट रेट बढ़ने से उसके share के प्राइस बढ़ेंगे, तो आप भी उनमें इन्वेस्ट कर सकते हैं। इसी तरह अगर आपको लगता है कि इंट्रेस्ट रेट में परिवर्तन से आपके किसी holdings स्टॉक में आपको नुकसान हो सकता है या हो रहा है। तो आप उससे निकलकर दूसरे profit वाले सेक्टर में इन्वेस्ट कर सकते हैं।
आप रोजमर्रा के जीवन के लिए जरूरी सामान बनाने वाली companies के स्टॉक्स में इन्वेस्ट करके भी मार्केट रिस्क को कम कर सकते हैं। क्योंकि देश की इकॉनमी चाहे जैसी भी हो दैनिक जीवन में काम आने वाले सामान को लोग हमेशा खरीदते ही हैं। जैसे टूथपेस्ट, आटा, मसाले, दालें, अंडे आदि। तो आप FMCG कंपनियां, फार्मा और पावर कंपनियों के स्टॉक्स में सही प्राइस पर invest करके market risk को कम कर सकते हैं।
Long-term के लिए इन्वेस्ट करके भी आप मार्केट रिस्क को कम कर सकते हैं। इससे आप मार्केट वोलैटिलिटी के प्रभाव को अपने पोर्टफोलियो पर कम कर सकते हैं। साथ ही अगर आप अपने पोर्टफोलियो में छोटे-मोटे बदलाव करना चाहते हैं तो लॉन्गटर्म में आपको ऐसे कई मौके मिल जाते हैं।
जब आप अपने नुकसान को कवर कर सकते हैं और प्रॉफिट भी बढ़ा सकते हैं। लेकिन आपको कभी भी अपनी लॉन्गटर्म स्ट्रेटेजी को एक साथ पूरी तरह से नहीं बदलना चाहिए। वोलैटिलिटी short-term में पोर्टफोलियो को अधिक नुकसान करती है।
लेकिन लॉन्ग टर्म में वोलैटिलिटी का प्रभाव नहीं रहता है क्योंकि यदि कोई बड़े फंडामेंटल बदलाव नहीं होते हैं। तो शेयर के प्राइस हमेशा लॉन्ग टर्म trend को फॉलो करते हैं। जिससे लॉन्ग-टर्म में शेयर प्राइस के market risk से उबरने की संभावना बढ़ जाती है।
मार्केट रिस्क से बचने के लिए आपको कम ट्रेडिंग वॉल्यूम और कम लिक्विड stocks में इन्वेस्ट करने से बचना चाहिए। जब भी मार्केट गिर रहा होता है, तब वैसे भी मार्केट में liquidity कम हो जाती है। वोलेटाइल मार्केट में कम लिक्विड स्टॉक में तो लिक्विडिटी और भी कम हो जाती है। इससे आपको जल्दी से अपने प्राइस पर पोजिशन से बाहर निकलने में परेशानी हो सकती है।
चूँकि मार्केट रिस्क सम्पूर्ण मार्केट को प्रभावित करता है इसलिए इसे पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन से नहीं रोका जा सकता है। लेकिन इससे रिस्क को कम जरूर किया जा सकता है। Stock market इन्वेस्टर्स को स्टॉक्स का अच्छे से टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस करने के बाद ही उसमें investment करना चाहिए। जिससे नुकसान होने का risk कम हो जाता है।
किसी भी स्टॉक की वोलैटिलिटी को मापकर आप उसके रिस्क का अनुमान लगा सकते हैं। स्टॉक मार्केट के प्रोफेशनल एनालिस्ट, स्टेटिक्स मैथड का यूज करके "वैल्यू एट रिस्क" (VaR) से संभावित नुकसान का अनुमान लगा सकते हैं।
मार्केट रिस्क की वजह से सम्पूर्ण Share market का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। आर्थिक मंदी (economic recession), इंट्रेस्ट रेट, जियोपॉलटिकल इवेंट, इंफ्लेशन आदि कारणों से मार्केट रिस्क हो सकता है। इसे सिस्टेमेटिक रिस्क कहा जाता है। इस risk को पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन से भी समाप्त नहीं किया जा सकता है।
दूसरी प्रकार के रिस्क को स्पेसिफिक रिस्क कहा जाता है। यह रिस्क किसी विशेष stock या सेक्टर में हो सकता है। इसे Portfolio diversification से कम किया जा सकता है। इनसाइडर ट्रेडिंग
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