Economic Recession: आर्थिक मंदी, क्या करें क्या ना करें?
क्या दुनिया में विशेषकर अमेरिका में आर्थिक मंदी (economic recession) आने वाली है? क्या इसका असर भारत के लोगों पर भी हो सकता है? क्या आपकी नौकरी पर खतरा हो सकता है? क्या आपके होम लोन की ईएमआई बढ़ने वाली है? क्या अमेरिका बर्बाद हो जाएगा? आइए विस्तार से जानते हैं- आर्थिक मंदी (Economic Recession) आने वाली है क्या करें क्या ना करें? Aarthik mandi (economic recession) aane wali hai in Hindi
पाकिस्तान और श्रीलंका के बाद क्या इंडिया में भी मंदी आने की आशंका है? क्या इंडिया का सर्विस सेंटर तबाह होने वाला है? पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है कि मंदी आने वाली है, तो चलिए जानते हैं देश और हमारे-आपके जीवन पर आर्थिक मंदी का क्या प्रभाव पड़ सकता है।
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Economic Recession (आर्थिक मंदी) क्या है?
आर्थिक मंदी एक ऐसा कुचक्र है, जिसमें फंसकर देश का आर्धिक विकास रुक जाता है जिससे देश के विकास कार्यों में बाधा आती है। इस दौरान मार्केटों में सामानों की भरमार होती है। लेकिन इनके खरीदार बहुत कम हो जाते हैं। सामानों की सप्लाई ज्यादा और मांग कम होने से देश की इकोनॉमी बर्बाद हो जाती है।
आर्थिक मंदी तब आती है, जब किसी देश की अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तार धीमी हो जाती है। सभी देश आमतौर पर सकल घरेलू (GPD) उत्पाद से माना जाता है। प्रत्येक देश में प्रत्येक तिमाही के GDP के आंकड़े जारी किये जाते हैं। जब लगातार दो तिमाहियों में देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट जारी रहती है। तब कहा जाता है कि देश में आर्थिक मंदी आ रही है। कॉफी कैन इन्वेस्टिंग
अब फिर से दुनिया में आर्थिक मंदी की आशंका गहरा रही है। इसका सबसे ज्यादा असर अमेरिका, इंग्लैंड और सम्पूर्ण यूरोप इसकी चपेट में आ सकता है। चीन में तो पहले से ही हालत खराब हैं। क्योंकि वर्ल्ड बैंक और रेटिंग एजेंसियो ने इनकी संभावित ग्रोथ रेट घटाई हैं।
हालाँकि भारत की ग्रोथ रेट भी एक प्रतिशत कम बताई है। अधिकांश रेटिंग एजेंसियों ने इसे 7.5 से घटाकर 6.5 % किया है। लेकिन वर्ल्ड बैंक का कहना है कि AarthikMandi का भारत पर कोई ख़ास असर नहीं होगा। उसका कहा है कि इस दौरान अकेला भारत ही दुनिया का चमकता सितारा होगा। इन द मनी ऑप्शन
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने कोविड-19 की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी झेली है। कोविड के दौरान दुनिया में कोविड-19 की वजह से 60 लाख से ज्यादा जाने जा चुकी है। करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई और दुनिया भर में कई सेक्टर तबाह हो गई हैं। इससे पहले अमेरिका में 1933 में Economic Recession आया था।
इस दौरान होटल और पर्यटन सबसे ज्यादा तबाह होने वाले सेक्टर था। Economy की अवस्था भी किसी इससे छुपी नहीं थी, कोरोना की वजह से इंडिया में बचत भी पिछले 20 वर्ष के निम्नतम स्तर पर पहुंच चुकी थी। मिड कैप स्टॉक्स
इस समय भारत में विदेशी पूजी निवेश 6 वर्ष के न्यूनतम स्तर पर था। और खपत तीन वर्ष के न्यूनतम स्तर पर है। जबकि बैंकों का कर्ज रिकॉर्ड स्तर पर है, आंकड़ों के अनुसार भारत में कोरोना की वजह से करीब 12 करोड़ लोगों के रोजगार छिन गए। जबकि 23 करोड लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए, जीडीपी में करीब 55% हिस्सेदारी रखने वाला सर्विस सेक्टर पूरी तरह तबाह हो गया था।
हालांकि केंद्र और राज्यों ने मिलकर इस सेक्टर को सभालने की कोशिश की थी। जैसे कारोबारी जगत को आर्थिक पैकेज (PLI Scheme) दिया गया था। जरूरतमंदों को मुफ्त राशन आदि। समय बीतने के साथ लगा कि मानो हालात सुधर रहे हैं, जिंदगी और अर्थव्यवस्था दोनों ही पटरी पर आ रहे हैं। लेकिन वर्तमान के समय के महंगाई के आंकड़े पूरे विश्व को डरा रहे हैं। इसीलिए कहा जा रहा था कि2022 में आर्थिक मंदी economic recession आ रही है। मार्केट की सीक्रेट जानकारी
विश्व के देशों में महंगाई की स्थिति
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में महंगाई 8% से ज्यादा थी। यूरोप में भी महंगाई का यही हाल था। ब्रिटेन में महंगाई दर 40 साल के बाद सबसे ज्यादा 9% से ज्यादा है। ब्राजील में इस समय महंगाई 12% के करीब है।
पाकिस्तान में महंगाई 14% और यूएस में महंगाई 17% है. इंडिया में भी इन्फ्लेशन 7% थी। भारत में थोक महंगाई दर भी 30 साल में सबसे ज्यादा है। जानकारों के अनुसार भारत में महंगाई लंबी चलने वाली है। भारत में करीब 2024 तक महंगाई रहने वाली है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, भारतीय अर्थव्यवस्था ने बहुत जल्दी रिकवर कर लिया है। भारतीय शेयर मार्केट ऑल टाइम हाई पर ट्रेड कर रहा है। बीएसई सेंसेक्स
रिजर्व बैंक के अनुसार
रिजर्व बैंक की मॉनिटरिंग पॉलिसी की कमेटी ने विकास के मोर्चे पर बढ़ती हुई महंगाई को बड़ी बाधा माना है। रिजर्व बैंक के अनुसार आने वाला समय बहुत ही मुश्किल भरा हो सकता है। पूरी दुनिया की तरह इंडिया में भी Interest rate बढ़ सकते हैं।
पहले ही रिजर्व बैंक दो बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। इससे लोगों द्वारा लिए गए लोन की ईएमआई बढ़ सकती है, यह सभी बातें पूरी दुनिया में महामंदी (economic recession) इकोनामिक रिसेशन की ओर इशारा कर रहे हैं। कॉमन स्टॉक्स एंड अनकॉमन प्रॉफ़िट्स
अमेरिका में पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में गिरावट दिखी है. यदि दूसरी तिमाही में भी गिरावट रहती है तो इसे रिसेशन यानि आर्थिक मंदी कहा जाएगा। यूएस फेडरल बैंक के चेयरमैन लगातार मंदी की ओर इशारा कर रहे हैं।
साथ ही अमेरिका अपनी ब्याज दरों में 28 वर्ष के बाद रिकॉर्ड बढ़ोतरी कर रहा है। यदि किसी भी देश की जीडीपी में दो तिमाही यानी की लगातार छः महीने तक गिरावट रहती है तो इसे मंदी माना जाता है। गिफ्ट निफ़्टी
जीडीपी में लगातार मंदी को आर्थिक सुस्ती कहा जाता है GDP में यदि दो तिमाहियों तक 10% से ज्यादा मंदी रहे तो इसको महामंदी यानी डिप्रेशन माना जाता है। ऐसी महामंदी (economic recession) दुनिया में 1930 के दशक में आई थी। इसके बाद 2008 में अमेरिका में मंदी आई थी।
इससे अमेरिका में एक करोड़ से भी ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए थे, तब की अमेरिकी मंदी का असर पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी दिखा था। 2008 की aarthik mandi के शुरुआत में ही भारतीय शेयर मार्केट क्रैश कर गया था। निफ़्टी फिफ्टी 6200 से गिरकर पैतालीस हफ़्तों में 2500 पर पहुंच गया था। एक सर्वे के अनुसार उस समय भारत में पांच लाख लोगों की नौकरियां चली गई थी।
उस समय गारमेंट, ज्वेलरी, बीपीओ, मेटल, टेक्सटाइल सहित अन्य कई सेक्टर्स को भारी नुकसान हुआ था। आर्थिक विशेषज्ञों को इस समय हालात उसी तरफ जाते हुए दिख रहे हैं। बीते दो वर्ष में कोरोनावायरस ने बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को बर्बाद कर दिया है।
इस समय भी चीन में सख्त लॉकडाउन लगा है, जिसकी वजह से सप्लाई चैन बर्बाद हो गया है। इसकी वजह से भी रिसेशन आने की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ गई है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भी कमोडिटी, तेल, गैस, एडिबल ऑयल आदि की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। हिंदुस्तान यूनिलीवर
शेयर मार्केट में गिरावट
कहते हैं, share market आने वाले समय को सबसे पहले पहचान लेते हैं। इस समय पूरे विश्व के शेयर मार्केट में बड़ी-बड़ी गिरावटें हो रही थी। शेयर मार्केट economic recession को तब मानता है, जब वह 20% से ज्यादा गिर जाए। 2021 - 2022 में अमेरिकी शेयर मार्केट डाउजॉन्स और नैस्डेक पिछले छः महीनों में 15 से 20% गिर चुके थे। उस समय भारतीय शेयर मार्केट भी अपने हाई से करीब 15 से 20% नीचे ही कारोबार कर रहा था। रिच डैड पुअर डैड
लॉकडाउन लगने के बाद इंडिया में शेयर मार्केट में काम करने वाले लोगों की संख्या तेजी से बड़ी थी। सरकार के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में डीमैट खाताधारकों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी है। मौजूदा समय में देश में 7 करोड़ 48 लाख डीमैट अकाउंट होल्डर्स हैं। जो शेयरों में पैसा लगाते हैं। जबकि दो करोड़ 75 लाख लोग म्युचुअल फंड्स के निवेशक हैं।
इस समय में अमेरिका के मुकाबले भारत की मुश्किलें ज्यादा थी क्योंकि भारत को एनर्जी के लिए गैस क्रूड ऑयल को बड़े स्तर पर आयात करना पड़ता है। जिसकी वजह से हमारे रुपए की कीमत गिर रही थी। यानी भारतीयरुपया कमजोर हो रहा था, पूरी दुनिया की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही थी। भारतीय रुपया भी डॉलर के मुकाबले करीब 5% कमजोर हुआ है।
दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय विकास दर को घटाया है, इसे 8% से घटाकर 7. 5% कर दिया है। आरबीआई ने भारत की विकास दर को 8% से घटाकर 7% कर दिया है, वैसे भारतीय अर्थव्यवस्था के फेवर में कुछ अच्छी चीजें भी हैं। जैसे जीएसटी (GST) कलेक्शन जो सालाना 44% की वृद्धि के साथ लगातार तीसरे वर्ष 140000 करोड़ से ज्यादा का हो चुका है। आईपीओ अलॉटमेंट
NBER (National Bureau of Economic Research) की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1945 से लेकर वर्ष 2009 तक दुनिया में सभी आर्थिक मंदी औसतन ग्यारह महीने तक ही चली। हालांकि वर्ष 2020 में कोरोना के चलते आया economic recession सिर्फ दो महीने ही चला था।
Aathik Mandi के दौरान लोगों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
RBI का ऐसा अनुमान है कि इस aarthik mandi के दौरान एफआईआई शेयर मार्केट से हंड्रेड बिलियन डॉलर निकाल सकते हैं। मंदी के दौरान बड़ी मात्रा में लोगों की नौकरियां छिन जाती हैं। लोन लेना भी महंगा हो जाता है। यदि आपके पास नकद पैसा है तो उसे संभालकर बैंक में रखें। उसे अनावश्यक चीजों पर खर्च ना करें।
अत्यंत आवश्यक हो तभी उस पैसे को खर्च करें। जहाँ तक हो सके अपने आमदनी के स्रोत को जरूर बनाये रखें। सेबी के नए नियम क्या हैं?
आप उस समय का इंतजार कीजिए जब थोक महंगाई दर 4% के पास आ जाए तथा बैंकों के इंटरेस्ट रेट कम होने लग जाएं। साथ ही शेयर मार्केट की भयंकर गिरावट भी थम जाए और उसमें वापस उछाल आना शुरू हो जाए। तब समझें की मंदी खत्म हो गई है, शेयर मार्केट के छोटे-मोटे उछाल पर खुश मत होइए। अभी शेयर मार्केट के विशेषज्ञ ही सलाह दे रहे हैं कि शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट करने से फिलहाल दूर रहें।
जब भी आपको यह न्यूज़ सुनने को मिले कि महंगाई दर 4% के आसपास है, उसके एक महीने बाद आप शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट शुरू कर सकते हैं। वह भी थोड़ा थोड़ा किस्तों के रूप में, कभी भी एक साथ अपना पूरा पैसा शेयर मार्केट में नहीं लगाना चाहिए। मनी कंट्रोल प्रो
बहुत से लोगों का कहना है कि भारत में भी श्रीलंका जैसे हालात हो जाएंगे लेकिन यह सही नहीं है। क्योंकि वर्तमान समय में भारत में जो महंगाई दर चल रही है, उसी के आसपास बैंकों द्वारा ब्याज ली जा रही है। इसलिए इंडिया के हालात अन्य देशों के जैसे होने की आशंका नहीं है। यानी कि मंदी के दौरान इंडिया के हालात दूसरे देशों के बराबर खराब नहीं होंगे।
फंड मैनेजर्स का भारत पर विश्वास कायम
Economic recession का मुकाबला करने के लिए इंडिया विकासशील देशों के मुकाबले ज्यादा अच्छी स्थिति में है अमेरिकी ऐसेट मैनेजमेंट फर्म जी क्यों जी पार्टनर्स एलएलसी के मुताबिक भारत के बढ़ते घरेलू बाजार के कारण उसकी एक्सपोर्ट पर निर्भरता कम हो रही है। शार्ट कवरिंग
इस कंपनी ने इंडिया में सात अरब डॉलर (करीब 56 हजार करोड रुपए) से अधिक का निवेश कर रखा है। इंडिया की बढ़ती जनसंख्या के कारण घरेलू डिमांड में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली के बावजूद जी क्यों जी का नजरिया इंडिया के बारे में उत्साहित करने वाला है।
उम्मीद है, आपको यह आर्थिक मंदी (Economic Recession) आने वाली है क्या करें क्या ना करें? आर्टिकल पसंद आया होगा। अगर आपको यह Aarthik mandi (economic recession) aane wali hai in Hindi आर्टिकल पसंद आया हो। तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें।
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