शेयर मार्केट ट्रेडिंग ( Stock market trading strategies ) कितने प्रकार की होती है?

सामान्यतः शेयर मार्केट ट्रेडिंग दो प्रकार की होती है शार्ट-टर्म ट्रेडिंग और लॉन्ग-टर्म ट्रेडिंग। लेकिन आप निवेश की  रणनीतियों के हिसाब से इसे वर्गीकृत कर सकते हैं। जैसे फंडामेंटल और टेक्निकल ट्रेडिंग। इसके अलावा अवधि के आधार पर शेयर ट्रेडिंग को इंट्राडे ट्रेडिंग, स्विंग ट्रेडिंग और पोजिशनल ट्रेडिंग में विभाजित कर सकते हैं। चलिए विस्तार से जानते हैं- शेयर मार्केट ट्रेडिंग ( Stock market trading strategies ) कितने प्रकार की होती है? Types of Stock market trading strategies in Hindi.                                                   
                                                                             
Types of share trading


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Stock market ट्रेडिंग क्या है?

शार्ट-टर्म मूवमेंट के आधार पर stocks को खरीदने और बेचने को स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग या एक्टिव ट्रेडिंग कहते हैं। जिससे जल्दी प्रॉफिट कमाया जा सके, इसके लिए शेयर मार्केट में ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स बहुत सारी ट्रेडिंग रणनीतियों (स्ट्रटेजी ) का उपयोग करते हैं। ये ट्रेडिंग रणनीतियाँ एक दूसरे से समय सीमा, ट्रेड की संख्या और ट्रेडिंग दृष्टिकोण के आधार पर अलग-अलग होती हैं।  

लेकिन ये रणनीतियाँ लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट के बिलकुल विपरीत है। लॉन्ग-टर्म रणनीति में शेयरों को खरीदकर लम्बे समय तक बनाये रखा जाता है यानि होल्ड किया जाता है। ट्रेडर्स बहुत सारे टेक्निकल टूल्स और trading strategies का उपयोग करते हैं। जिसमें टेक्निकल एनलिसिस, फंडामेंटल एनालिसिस हुए मात्रात्मक एनालिसिस भी शामिल होता है। इसके साथ ही बहुत से ट्रेडर्स स्टॉक मार्केट सम्बन्धी न्यूज और इस पर इफेक्ट डालने वाले समाचारों पर भी नजर बनाये रखते हैं। 

इसके अतिरिक्त कुछ एक्टिव ट्रेडर्स दूसरे फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट में बॉन्ड, करेंसी और कमोडिटी में भी एक्टिव ट्रेडिंग करते हैं। वे अपनी पोजीशन को हैज करने के लिए फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस और डेरीवेटिव का भी उपयोग करते हैं। क्योंकि यह active trading strategies के लिए ही बने हैं। एक्टिव ट्रेडिंग स्ट्रेटजी एक ऐसी रणनीति है जिसमे ऐसे ट्रेडिंग के मौके की तलाश की जाती है। जिसमे बहुत कम समय और कम पैसों में प्रॉफिट कमाया जा सके। इसमें डे ट्रेडिंग, स्केल्पिंग, पोजीशन ट्रेडिंग आदि रणनीतियां शामिल हैं। 

निम्नलिखित स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग रणनीतियों का विस्तार से वर्णन किया गया। 

Day Trading 

डे ट्रेडिंग को इंट्राडे ट्रेडिंग भी कहते हैं, डे ट्रेडिंग स्ट्रेट्जी एक शार्ट-टर्म ट्रेडिंग स्ट्रेट्जी है। जिसमें ट्रेडर्स जिस दिन शेयरों को खरीदते हैं, उसी दिन बेच भी देते हैं। डे ट्रेडर्स शेयरों को रातभर यानि अगले दिन के लिए होल्ड नहीं करते हैं। उनका उद्देश्य स्टॉक्स प्राइस की शार्ट-टर्म प्राइस मूवमेंट से पैसा कमाना होता है। इसलिए ट्रेडिंग सेशन समाप्त होने से पहले day traders अपनी सभी ओपन पोजीशन को बंद कर देते हैं। फिर चाहे उनमें नुकसान हो या प्रॉफिट। Day trading के लिए ट्रेडर्स शार्ट-टर्म चार्ट पैटर्न्स और टेक्निकल एनालिसिस का सहारा लेते हैं। 

डे ट्रेडिंग के फायदे

  • यदि डे ट्रेडिंग को सही से किया जाय तो बहुत कम समय और पैसों में बहुत ज्यादा प्रॉफिट कमाया जा सकता है। 
  • इंटरनेट के साथ डे ट्रेडिंग कहीं से भी की जा सकती है। यदि आपके पास एक एंड्रॉयड मोबाइल है और उसमे डाटा है। तो आप बड़ी आसानी से घर, बाहर, जहाँ चाहें वहाँ से stock market trading कर सकते हैं। 
  • इसमें ओवरनाईट आने वाली न्यूज से नुकसान होने का भी कोई खतरा नहीं रहता है। क्योंकि सेशन खत्म होने से पहले ही सभी पोजीशन बंद कर दी जाती हैं। 

डे ट्रेडिंग के नुकसान 

  • डे ट्रेडिंग एक हाई रिस्क ट्रेडिंग है क्योंकि इंट्राडे में मार्केट बहुत वोलेटाइल रहता है। जिसके कारण शेयर के प्राइस  लगातार ऊपर-नीचे होते रहते हैं। 
  • यदि आप मार्केट ट्रेंड टेक्निक्स को बहुत अच्छे से नहीं समझते हैं। तो आपको बहुत भारी नुकसान हो सकता है। 
  • बार-बार स्टॉक्स को खरीदने और बेचने के कारण ट्रेडिंग ब्रोकरेज बहुत ज्यादा देनी पड़ती है इसलिए छोटे-छोटे ट्रेडिंग प्रॉफिट तो ब्रोकरेज फीस चुकाने में ही चले जाते हैं। 
  • डे ट्रेडिंग में इमोशंस पर कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है। जिसकी वजह से सही समय पर स्टॉक्स को खरीद और बेच भी नहीं पाते। जिसके कारण अक्सर बहुत ज्यादा नुकसान होता रहता है। 

Scalping Trading 

स्कैल्पर्स का मुख्य उद्देश्य लगातार कुछ मिनट या सैकेंड में छोटे-छोटे trade करके प्रॉफिट कमाना होता है। ये शेयरों के छोटे-छोटे प्राइस मूवमेंट के लिए बहुत ज्यादा ट्रेड करते हैं। स्कैलपर्स अपनी ट्रेडिंग पोजीशन को बहुत कम समय कुछ मिनट या सैकेंड के लिए होल्ड करते हैं। जो ट्रेडर्स स्केल्पिंग ट्रेडिंग करते हैं, उन्हें ट्रेडिंग ब्रोकरेज और bid-ask प्राइस पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। क्योंकि उनका प्रॉफिट मार्जिन बहुत कम होता है। 

कहने का मतलब यह है कि बिड-आस्क प्राइस में इतना गैप होना चाहिए। जिससे उसमे से ब्रोकरेज निकालने के बाद स्कैलपर्स को भी प्रॉफिट मिल जाय। Scalping trading में त्वरित निर्णय, डिसिप्लिन ट्रेडिंग और फोकस की अति आवश्यकता पड़ती है। जिससे स्कैल्पिंग पोजीशन में जल्दी एंटर और एग्जिट किया जा सके। स्कैलपर्स को पोजीशन में स्मॉल प्राइस मूवमेंट के लिए क़्विक एंटर और एग्जिट करने में सक्षम होना चाहिए। 

Scalping trading के फायदे 

  • स्केल्पिंग ट्रेडिंग ट्रेडर्स को तुरंत प्रॉफिट दिला सकता है। इसका उद्देश्य बहुत कम समय में बहुत छोटे प्राइस मूवमेंट से प्रॉफिट कमाना होता है। 
  • बहुत ज्यादा संख्या में छोटे-छोटे ट्रेड्स करके, स्कैल्पर्स प्रॉफिट से अच्छा अमाउंट एकत्र कर लेते हैं। 
  • स्कैल्पर्स का उद्देश्य शेयरों के छोटे-छोटे प्राइस मूवमेंट को पकड़ना होता है। जिससे शेयरों के प्राइस में अचानक आने वाले भारी उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचा जा सके। 
  • स्केल्पिंग से ट्रेड्स का ट्रेडिंग डिसिप्लिन और मनी मैनेजमेंट मजबूत होता है। 

Scalping trading के नुकसान 

  • स्केल्पिंग ट्रेडिंग में बहुत ज्यादा संख्या में ट्रेड लेने पड़ते हैं तब जाकर एक उचित प्रॉफिट एकत्र होता है। ज्यादा ट्रेड की ब्रोकरेज भी ज्यादा देनी पड़ती है। 
  • चूँकि स्कैल्पर्स पूरे ट्रेडिंग सेशन के दौरान स्केल्पिंग ट्रेडिंग करते हैं। अतः यह उनके लिए मानसिक रूप से और भावात्मक रूप से बहुत थका देने वाला होता है। 
  • छोटे-छोटे प्रॉफिट को बुक कर लेने से इसमें सीमित प्रॉफिट होता है। मल्टीबैगर स्टॉक्स

Swing Trading 

स्विंग ट्रेडर्स अपनी पोजीशन को कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह या कुछ महीनों तक होल्ड करते हैं। Swing traders शार्ट-टर्म मार्केट ट्रेंड का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। स्विंग ट्रेडर्स का उद्देश्य मार्केट में शार्ट-टर्म प्राइस मोमेंटम से प्रॉफिट कमाना होता है। ये स्टॉक्स के प्राइस में उतार-चढ़ाव या swings का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। जब शेयरों के प्राइस कम होते हैं तब उन्हें खरीदना और जब प्राइस ज्यादा होते तब उन्हें बेचना। यही स्विंग ट्रेडिंग करने का तरीका है। 

स्विंग ट्रेडर्स  को मार्केट में अचानक और अप्रत्याशित मूवमेंट ( भारी उतार-चढ़ाव ) को मैनेज करना पड़ता है। जिससे  नुकसान हो  सकता है। इसलिए स्विंग ट्रेडर्स को मार्केट ट्रेंड और उससे सम्बन्धित समाचारों से अपडेट रहना चाहिए। जिससे समय रहते अपनी पोजीशन को एडजस्ट किया जा सके। इसके अलावा Swing traders को अपनी ट्रेडिंग योजना पर टिके रहना चाहिए। इन्हें इमोशनल ट्रेडिंग डिसीजन से बचने के लिए मजबूत ट्रेडिंग डिसिप्लिन अपनाना चाहिए।  

Swing trading के फायदे 

  • स्विंग ट्रेडिंग में इंट्राडे ट्रेडिंग और स्केल्पिंग के मुकाबले ब्रोकरेज बहुत कम लगती है। 
  • इनके पास मार्केट ट्रेंड्स (trends ) का विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त समय होता है। जिससे इमोशनल डिसीजन से बचा जा सकता है। 
  • पोजिशनल ट्रेडिंग की तुलना में स्विंग ट्रेडिंग में ज्यादा लचीलापन होता है क्योंकि इसमें मार्केट की बदलती हुई स्थिति के अनुसार पोजीशन को एडजस्ट किया जा सकता है। 

Swing trading के नुकसान 

  • स्विंग ट्रेडर्स अचानक मार्केट में होने वाले भारी उतार-चढ़ाव में फंस सकते हैं। जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। क्रिप्टोकरेंसी
  • स्विंग ट्रेडिंग के लिए अपेक्षाकृत अधिक समय की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि उन्हें मार्केट ट्रेंड्स का विश्लेषण करना पड़ता है और अपनी पोजीशन को बराबर मॉनिटर भी करना पड़ता है। 
  • Swing trading में लॉन्ग-टर्म प्राइस मूवमेंट का फायदा नहीं हो सकता क्योंकि इसमें पोजीशन को कुछ दिन या कुछ महीनों तक होल्ड किया जाता है। 

Position trading 

पोजीशन ट्रेडिंग को ज्यादातर इन्वेस्टिंग और पोजिशनल ट्रेडर्स को इन्वेस्टर्स कहा जाता है। क्योंकि इसमें शेयरों को लॉन्ग-टर्म तक होल्ड किया जाता है। आमतौर पर कुछ महीनों से लेकर वर्षों तक या यूँ कहें दशकों तक शेयरों को होल्ड किया जाता है। इसमें फंडामेंटल एनालिसिस पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। जिसके कारण शेयरों के प्राइस में शार्ट-टर्म में होने वाले उतार-चढ़ाव की चिंता नहीं की जाती है। पोजीशन ट्रेडिंग का उद्देश्य शार्ट-टर्म प्राइस मूवमेंट के बजाय लॉन्ग-टर्म प्राइस मूवमेंट से प्रॉफिट कमाना होता है। 

पोजीशन ट्रेडिंग इंट्राडे ट्रेडिंग, स्विंग ट्रेडिंग और स्केल्पिंग की तुलना में बहुत कम सक्रिय ट्रेडिंग है। इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स आमतौर पर अपनी ट्रेडिंग बुक का एक बड़ा हिस्सा पोजीशन ट्रेडिंग के लिए रखते हैं। आमतौर पर पोजीशन ट्रेडर्स शेयरों का चयन करने के लिए उनका फंडामेंटल एनालिसिस करते हैं। कम्पाउंडिंग से अमीर 

शेयरों के चयन के लिए बहुत सारे मापदंड होते हैं। इसमें अंडरवैल्यू शेयरों को खरीदारी के लिए चुना जाता है और जब शेयर ओवरवैल्यू हो जाते हैं तब प्रॉफिट बुक किया जाता है जिसमें वर्षों का समय लग जाता है। पोजीशन ट्रेडर्स शेयरों में एंट्री और एग्जिट ( खरीदने और बेचने ) करने के लिए टेक्निकल एनालिसिस का उपयोग भी करते हैं। 

Position trading के फायदे 

  • पोजीशन ट्रेडिंग में अन्य trading strategies की तुलना में बहुत ज्यादा प्रॉफिट देने की क्षमता होती है। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य लॉन्ग-टर्म प्राइस मूवमेंट से प्रॉफिट कमाना होता है। 
  • बहुत कम ट्रन्जेक्शन के कारण पोजीशन ट्रेडिंग में ब्रोकरेज बहुत कम लगता है। 
  • पोजीशन ट्रेडर्स अपनी trading strategies में बहुत अधिक लचीले हो सकते हैं क्योंकि मार्केट की स्थितियाँ बदलने पर वे अपनी पोजीशन एडजस्ट कर सकते हैं। 
  • पोजीशन ट्रेडिंग में मार्केट ट्रेंड का विश्लेषण करने के लिए बहुत अधिक समय मिलता है। जिससे इमोशनल ट्रेडिंग का रिस्क बहुत कम हो जाता है। 

Position trading के नुकसान 

  • पोजीशन ट्रेडर्स को मार्केट में अचानक आने वाले उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण उन्हें कभी-कभी बहुत अधिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। 
  • लॉन्ग-टर्म दृष्टिकोण पोजीशन ट्रेडर्स को शार्ट-टर्म ट्रेडिंग से होने वाले प्रॉफिट को कमाने से रोकता है। 
  • लॉन्ग-टर्म तक पोजीशन को होल्ड करने से ट्रेडर्स के पास पैसे की कमी हो सकती है। जिससे वह मार्केट में समय-समय पर मिलने वाली ट्रेडिंग अपॉर्च्युनिटी से फायदा नहीं उठा पाता। ट्रेडिंग वॉल्यूम 

Momentum trading 

मोमेंटम ट्रेडिंग एक ऐसी trading strategies है, जिसमे ऐसे शेयरों की तलाश की जाती है। जिनके प्राइस में तेज परिवर्तन दिखाई दे रहा होता है। इसी को मोमेंटम ट्रेडिंग कहते हैं। किसी भी शेयर के प्राइस में तेज उतार-चढ़ाव उसके बारे में कोई न्यूज या उस सेक्टर के बारे में किसी न्यूज या किसी इवेंट की वजह से होता है। मोमेंटम ट्रेडर्स ऐसे स्टॉक्स को खरीदते हैं, जिनका प्राइस बढ़ रहा होता है। और ऐसे स्टॉक्स को बेच रहे होते हैं जिनका प्राइस गिर रहा होता है। 

मोमेंटम ट्रेडर्स स्टॉक्स के प्राइस में मोमेंटम (गति ) से प्रॉफिट कमाने का प्रयास करते हैं। Stock market में ऐसे स्टॉक्स जिनके प्राइस में बड़ा उतार-चढ़ाव ( 20% - 30% ) हो रहा होता है। जैसे ही ट्रेडर को बड़े प्राइस मूमेंटम वाले शेयर की पहचान होती है। Momentum trading में ट्रेडर्स से ट्रेड में जल्दी पोजीशन बनाने आशा की जाती है। और सही समय पर प्रॉफिट बुक करके पोजीशन से एग्जिट करना चाहिए।  

Algorithmic trading 

इसे ज्यादातर आम भाषा में अल्गो ट्रेडिंग बोलै जाता है। अल्गो ट्रेडिंग एक अल्गोरिथ्मिक ट्रेडिंग सिस्टम है। जो इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए बना है। एल्गोरिथम या क्वांटिटिव ट्रेडर्स कम्प्यूटर एल्गोरिथ्म का यूज अल्गो ट्रेडिंग के लिए करते हैं। Algo traders Stock market डेटा का यूज करके कम्पूटराइज़्ड कॉम्प्लेक्स स्ट्रेटजी तैयार करते हैं। जिनके आधार पर कम्प्यूटर्स के द्वारा ऑटोमेटिक algorithmic trading की जाती है। 

अंत में Stock market trading strategies शार्ट टर्म ट्रेडिंग स्ट्रेटजी को संदर्भित करती हैं। इनमें शेयरों को शार्ट-टर्म प्राइस मूवमेंट से प्रॉफिट कमाने के लिए लगातार खरीदा और बेचा जाता है। स्केल्पिंग ट्रेडिंग, ट्रेडिंग का सबसे अग्रेसिव रूप है। जिसमे छोटे-छोटे प्राइस मूवमेंट के लिए कुछ ही मिनट या सैकेंड के लिए पोजीशन को होल्ड किया जाता है। इंट्राडे ट्रेडिंग में जिस दिन मार्केट में पोजीशन बनाई जाती है उसी दिन उसे क्लोज भी किया जाता है। फिर चाहे उसमें प्रॉफिट हो या लॉस। 

इसके विपरीत स्विंग ट्रेडिंग में पोजीशन को कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक होल्ड किया जाता है। दूसरी तरफ पोजीशन ट्रेडिंग में जिसे लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टिंग भी कहा जाता है। उसमे पोजीशन को कुछ महीनों से लेकर कुछ वषों या दशकों तक पोजीशन को होल्ड किया जाता है। जबकि सभी ट्रेडिंग रणनीतियों में प्रॉफिट की संभावना होती है। सोना कैसे खरीदे 

फिर भी ट्रेडिंग करते समय यह जरूर याद रखना चाहिए। हर प्रकार की trading strategies का अपना जोखिम और इनाम होता है। सभी ट्रेडिंग स्ट्रैटजी प्रत्येक ट्रेडर के लिए सही नहीं होती है क्योंकि शेयर मार्केट के बारे में सबका अपना-अपना दृष्टिकोण होता है। अतः किसी भी  stock trading एक्टिविटी में शामिल होने से पहले यूज की जाने वाली ट्रेडिंग स्ट्रेटजी को अच्छे से परख लें। साथ ही रिस्क मैनेजमेंट और ट्रेडिंग डिसिप्लिन नियमों का जरूर पालन करें। 

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