Volume Trading: ट्रेडिंग वॉल्यूम से स्टॉक ट्रेडिंग स्ट्रैटजी कैसे बनायें?

वॉल्यूम ट्रेडिंग का अर्थ शेयरों  की उस संख्या से है, जो एक ट्रेडिंग सेशन के दौरान खरीदे और बेचे जाते हैं। यह संख्या लाइव स्टॉक मार्केट सेशन के दौरान लगातार बदलती रहती है। इस आर्टिकल में वॉल्यूम ट्रेडिंग से स्टॉक ट्रेडिंग स्ट्रैटजी कैसे बनायें? के बारे में विस्तार से बताया गया है। आइए जानते हैं- Trading Volume se stock trading strategy kaise banaye in Hindi.
                                                                               
Volume trading

यदि आप शेयर मार्केट ट्रेडिंग में एक्सपर्ट बनाना चाहते हैं तो आपको टेक्निकल एनालिसिस और कैंडलस्टिक की पहचान बुक जरूर पढ़नी चाहिए 

 ट्रेडिंग वॉल्यूम क्या है?

ट्रेडिंग वॉल्यूम एक सेशन के दौरान ट्रेड किये गए स्टॉक्स की कुल संख्या है। इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स ट्रेडिंग वॉल्यूम का उपयोग बार-बार ट्रेंड कंटीन्यूएशन और ट्रेंड रिवर्सल के लिए करते हैं। यह एक टेक्निकल इंडिकेटर है क्योंकि यह स्टॉक्स और Stock market की सम्पूर्ण गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करता है।  

ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स के प्राइस एक्शन को वैध बनाता है। जिसके आधार पर ट्रेडर्स स्टॉक्स को खरीदने और बेचने का निर्णय करते हैं। ट्रेडिंग वॉल्यूम ट्रेडर्स को स्टॉक्स को खरीदने या बेचने का संकेत देता है। मार्केट में पोजीशन बनाने से पहले Trading  Volume के साथ-साथ दूसरे इंडीकेटर्स का भी यूज करना चाहिए। 

ट्रेडिंग वॉल्यूम के आधार पर ट्रेडिंग स्ट्रेटजी बनायीं जाती हैं। यानि ट्रेडिंग स्ट्रेट्जी बनाते समय वॉल्यूम डाटा को एक मुख्य बिंदु के रूप में एनालाइज किया जाता है। ट्रेडिंग वॉल्यूम उन कुल शेयरों का प्रतिधित्व करता है, जिनको एक निश्चत सेशन में ट्रेड किया जाता है। इसमें स्टॉक को खरीदना और बेचना दोनों शामिल है। 

ट्रेडर्स और स्टॉक मार्केट विश्लेषक Trading Volume का उपयोग प्राइस मूवमेंट और टर्निग पॉइंट की स्ट्रेंथ जानने के लिए करते हैं। स्टॉक्स के प्राइस में उतार-चढाव के दौरान ज्यादा ट्रेडिंग वॉल्यूम मार्केट सहभागियों की इसमें रूचि को बताता है। इसके विपरीत स्टॉक्स के प्राइस में उतार-चढ़ाव के दौरान कम ट्रेडिंग वॉल्यूम मार्केट सहभागियों के कम इंट्रेस्ट को बताता है। जिसका अर्थ होता है कि प्राइस के trend की दिशा में सस्टेन करने की उम्मीद बहुत कम है।  

ट्रेडिंग वॉल्यूम और मोमेंटम में सम्बन्ध  

ट्रेडिंग वॉल्यूम ट्रेडर्स को ऐसे स्टॉक्स ढूड़नें में मदद करता है। जिनमें मोमेंटम और ट्रेंड क्लियर होता है। यदि किसी शेयर का ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ता है तो उसका प्राइस ट्रेंड की दिशा में बढ़ता है। यानि किसी दिन, किसी शेयर में हाई वॉल्यूम के साथ ट्रेडिंग हो रही है और उसका प्राइस बढ़ रहा है। तो इस बात की उम्मीद बहुत ज्यादा हैं कि उस शेयर का प्राइस और बढ़ेगा। 

इसके विपरीत यदि किसी शेयर का प्राइस हाई वॉल्यूम के साथ गिर रहा है तो इसके प्राइस के और गिरने के चांस बहुत ज्यादा हैं। इसे ब्रेकआउट ट्रेडिंग भी कहते हैं। लॉन्ग टर्म के लिए वॉल्यूम और मोमेंटम को ऐसे भी समझ सकते हैं। मान लीजिये XYZ कंपनी के शेयर की प्राइस पिछले महीनें 15 प्रतिशत बढ़ गई। कोई इन्वेस्टर जो इस कंपनी के शेयर खरीदना चाहता है। वह इस कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस करता है। तो वह पाता है कि उस कंपनी के राजस्व में वृद्धि हो रही है। 

इसके बाद भी यदि इन्वेस्टर्स को इस कम्पनी के शेयर के बारे में कोई संशय है। तो वह इसके शेयर के Trading Volume का एनालिसिस कर सकता है। यदि ट्रेडर को XYZ कंपनी के शेयर के ट्रेडिंग वॉल्यूम में पिछले कुछ महीनों से लगातार वृद्धि दिखाई दे रही है। साथ ही अगर ट्रेडिंग वॉल्यूम में पिछले दो वर्षों में सर्वाधिक वृद्धि हो रही है और शेयर भी हायर हाई बना रहा है। 

इससे निवेशक को विश्वास होता है कि शेयर लॉन्ग-टर्म अपट्रेंड में है। इससे वह इन्वेस्टर XYZ कंपनी के शेयरों में इन्वेस्ट करने के लिए प्रेरित होता है। क्योंकि उसे लगता है कि इस शेयर के टेक्नीकल्स और फंडामेंटल्स दोनों अच्छे हैं। 

ट्रेडिंग वॉल्यूम में ध्यान देने योग्य मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं-

1. ट्रेंड को कन्फर्म करनाअपट्रेंड या डाउनट्रेंड के दौरान यदि ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ता है तो यह trend की स्ट्रेंथ को कन्फर्म करता है। जब प्राइस एवरेज वॉल्यूम से ज्यादा वॉल्यूम के साथ बढ़ता है। तो यह शेयर में बुलिश सेंटीमेंट को बढ़ाता है। इसी तरह यदि प्राइस एवरेज वॉल्यूम से ज्यादा वॉल्यूम के साथ घटता है तो यह शेयर में बेयरिश सेंटीमेंट को बढ़ाता है। इस तरह आप वॉल्यूम को देखकर स्टॉक्स के ट्रेंड को कन्फर्म कर सकते हैं। 

2. ट्रेंड रिवर्सल को पहचानें: यदि शेयर के प्राइस में महत्वपूर्ण परिवर्तन के साथ-साथ अगर उसके trading volume में भी वृद्धि होती है। तो यह एक संभावित ट्रेंड रिवर्सल हो सकता है। ट्रेडर्स मार्केट में ऐसी संभावनाएं तलाशते रहते हैं, जहाँ हाई वॉल्यूम के साथ प्राइस रिवर्सल भी हो रहा होता है। जो मार्केट सेंटीमेंट में बदलाव का संकेत देता है। यानि कि शेयर के प्राइस नए ट्रेंड की दिशा में सस्टेन कर सकते हैं। पिवोट पॉइंट

3. ब्रेकआउट ट्रेडिंग: Breakout तब होता है, जब शेयर का प्राइस सपोर्ट या रेजिस्टेंस लेवल को हाई वॉल्यूम के साथ तोड़ देता है। हाई वॉल्यूम के साथ होने वाले ब्रेकआउट के सस्टेन करने के चांस बहुत ज्यादा होते हैं। यदि एवरेज या कम वॉल्यूम के साथ ब्रेकआउट होता है तो वह फॉल्स ब्रेकआउट हो सकता है। अतः अगर कम वॉल्यूम के साथ शेयर के प्राइस में परिवर्तन होता है तो आपको ट्रेड लेने से बचना चाहिए। 

4. डायवर्जेंस: वॉल्यूम का उपयोग करके आप प्राइस और वॉल्यूम मूमेंटम के बीच डाइवर्जेन्स को पहचान सकते हैं। यदि शेयर का प्राइस बढ़ रहा है, यानि प्राइस हायर हाई बना रहा है। लेकिन वॉल्यूम लगातार गिर रहा है तो इसका मतलब वर्तमान ट्रेंड अपनी स्ट्रेंथ खो रहा है। यानि कि कभी भी ट्रेंड रिवर्सल आ सकता है। 

ट्रेडिंग वॉल्यूम और प्राइस रिवर्सल 

जब लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टर्स प्रॉफिट बुक कर रहे होते हैं और धीरे-धीरे अपने शेयर बेच रहे होते हैं। तब ट्रेडिंग वॉल्यूम इसका भी सिग्नल देते हैं। आप वॉल्यूम का विश्लेषण करके बड़े आसानी से इसे पहचान सकते हैं। यदि Trading volume और शेयर के प्राइस मूवमेंट में कोई सम्बन्ध नहीं है। तो यह वर्तमान ट्रेंड की कमजोरी को दर्शाता है यानि अब ट्रेंड रिवर्सल हो सकता है। मेरे कहने का मतलब है यदि शेयर का प्राइस कम वॉल्यूम के साथ बढ़ रहा है तो यह वर्तमान ट्रेंड की कमजोरी का सिग्नल है।

इसे उदाहरण के साथ ऐसे समझ सकते हैं जैसे XYZ कंपनी का शेयर पिछले एक वर्ष से अपट्रेंड में है। इस दौरान उसके शेयर में 75% की वृद्धि हुई है। इस कंपनी के इन्वेस्टर्स देखते हैं कि शेयर लगातार अपट्रेंड में है। साथ ही शेयरों पर पकड़ बनी हुई है। हालाँकि Trading volume कम हो रहा है। यह इन्वेस्टर्स को संकेत दे सकता है कि XYZ शेयर में अपट्रेंड जल्दी ही खत्म हो सकता है। 

अगले सप्ताह XYZ एक वर्ष तक अपट्रेंड में रहने के साथ 15% गिर जाता है। इसके परिणाम स्वरूप इस शेयर का अपट्रेंड खत्म हो जाता है। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि शेयर के प्राइस में गिरावट के समय ट्रेडिंग वॉल्यूम अधिक होता है। इन्वेस्टर भी अब अपने शेयरों को बेच देता है क्योंकि शेयर के प्राइस में अधिक वॉल्यूम के साथ तेज गिरावट होती है। जो इस बात का संकेत है किअब ट्रेंड रिवर्सल हो सकता है। यानि इस शेयर में अब डाउनट्रेंड शुरू हो सकता है। ट्रेडिंग सेटअप 

ट्रेडिंग वॉल्यूम के महत्वपूर्ण संकेत- 
  • अपट्रेंड के दौरान हाई या बढ़ता हुआ वॉल्यूम शेयर में खरीदारी का संकेत होता है।  
  • अपट्रेंड में कम या गिरता हुआ वॉल्यूम प्रॉफिट बुक करने और शार्ट सेलिंग करने का संकेत होता है। डाउनट्रेंड के दौरान हाई या बढ़ता हुआ वॉल्यूम साइड लाइन बैठने यानि कोई भी पोजीशन ना लेने का संकेत होता है। 
  • डाउनट्रेंड के दौरान कम या गिरता हुआ वॉल्यूम ट्रेंड रिवर्सल का संकेत होता है। यानि यह समय शेयरों में खरीदारी करने का होता है।  
  • ट्रेंड रिवर्सल की पुष्टि करने के लिए आप चार्ट पैटर्न्स जैसे हैड एंड शोल्डर, डबल टॉप कैंडलस्टिक पैटर्न, डबल बॉटम कैंडलस्टिक पैटर्न आदि का उपयोग कर सकते हैं।  

वॉल्यूम पर आधारित टेक्निकल इंडीकेटर्स 

ट्रेडर्स वॉल्यूम पर आधारित विभिन्न इंडीकेटर्स का उपयोग करते हैं। जैसे ऑन-बेलेन्स-वॉल्यूम ( OBV ) चाइकिन मनी फ्लो ( CMF ) और वॉल्यूम वेटेड एवरेज प्राइस ( VWAP ) का उपयोग मार्केट के व्यवहार पर बढ़त हासिल करने के लिए करते हैं।  

वॉल्यूम ट्रेडिंग में ध्यान रखने योग्य सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वॉल्यूम ट्रेडिंग व्यापक Stock market trading strategy का एक भाग है। अनुभवी स्टॉक मार्केट ट्रेडर्स हमेशा दूसरे टेक्निकल इंडीकेटर्स के साथ वॉल्यूम का भी विश्लेषण करते हैं। लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टर्स मार्केट में कोई भी पोजीशन बनाने से पहले वॉल्यूम विश्लेषण के साथ-साथ फंडामेंटल विश्लेषण भी अवश्य करते हैं।   

Trading Volume के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

ट्रेडिंग वॉल्यूम कैसे बढ़ता है? 

जब किसी शेयर के बारे इन्वेस्टर्स को लगता है कि वे उसे खरीदने से चूक रहे हैं। तब वे उसमे हाई प्राइस पर भी खरीदारी करते हैं। जिस कारण उसके वॉल्यूम में तेज वृद्धि होती है। हालाँकि जब सभी शेयर खरीद लेते है तो उसका प्राइस फिर से गिर जाता है। क्योंकि मार्केट ने उस शेयर में रूचि रखने वाले सभी लोगों को समाप्त कर दिया। 

ऐसा इसलिए होता है। क्योंकि उस पर्टिकुलर शेयर में रूचि रखने वाले लोग एक साथ उसे खरीदने के लिए टूट पड़ते हैं। लेकिन शार्ट-टर्म ट्रेडर्स प्रॉफिट बुक करने के लिए अपने शेयर बेच देते हैं। जिससे उसका प्राइस फिर से गिर जाता है। 

क्या ट्रेडिंग वॉल्यूम एक अच्छा इंडिकेटर है? 

ट्रेडिंग वॉल्यूम किसी एक ट्रेडिंग सेशन में ट्रेड किये गए। यानि खरीदे और बेचे गए शेयरों या F&O कॉन्ट्रेक्ट की संख्या को मापता है। वॉल्यूम मार्केट की ताकत का संकेत देता है। बढ़े हुए वॉल्यूम के साथ प्राइस का बढ़ना आमतौर पर मजबूत और स्वस्थ मार्केट का संकेत देता है। इसके विपरीत जब बढ़े हुए वॉल्यूम के साथ प्राइस गिरता है तो यह डाउनट्रेंड की ताकत को बताता है।  

कम ट्रेडिंग वॉल्यूम क्या संकेत देता है? 

ट्रेडिंग वॉल्यूम को निश्चित अवधि में ट्रेड किये गए स्टॉक्स की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। कम ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स को खरीदने और बेचने में ट्रेडर्स की कम रूचि को दर्शाता है। इसका मतलब है कि यदि डाउनट्रेंड में कम वॉल्यूम है तो ट्रेडर्स इस शेयर को अब और नहीं बेचना चाहते हैं। 

यानि इसमें अब अपट्रेंड स्टार्ट हो सकता है। इसके विपरीत जब अपट्रेंड में कम वॉल्यूम होने लगता है तो इसका अर्थ यह होता है. कि अब ट्रेडर्स इस शेयर को और नहीं खरीदना चाहते। इसलिए इसमें अब डाउनट्रेंड की शुरुआत हो सकती है। 

उम्मीद है, आपको यह ट्रेडिंग वॉल्यूम से स्टॉक ट्रेडिंग स्ट्रैटजी कैसे बनायें? आर्टिकल जरूर पसंद आया होगा। अगर आपको यह Trading Volume se stock trading strategy kaise banaye in Hindi. आर्टिकल पसंद आये तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें। 

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