Stock market trend reversal: शेयर मार्केट के ट्रेंड रिवर्सल को कैसे पहचानें?
शेयर मार्केट निवेश के बारे में एक पुरानी कहावत है कि स्टॉक्स ऊपर एस्केलेटर से जाते हैं और लिफ्ट से नीचे आते हैं। स्टॉक्स के प्राइस गिरने से पहले लगातार चढ़ते रहते हैं। जब रिवर्सल आता है, तब स्टॉक्स के प्राइस की दिशा (ट्रेंड) बदल जाती है इसी को Trend reversal कहते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं- शेयर मार्केट के ट्रेंड रिवर्सल को कैसे पहचानें? What is stock market trend reversal in Hindi.
अमीर तो सभी बनना चाहते हैं लेकिन अमीर बनने के लिए रियल कोशिश सभी नहीं करते। अगर आप अमीर बनने के लिए सच में एफर्ट करना चाहते हैं तो एक बार आपको ट्रेंड रिवर्सल पर आधारित फिलिप एन. कोलेमन द्वारा लिखित बुक टॉप सीक्रेट ऑन रिवर्सल ट्रेडिंग अवश्य पढ़नी चाहिए।
Trend Reversal क्या है?
रिवर्सल आने पर स्टॉक्स के प्राइस की दिशा बदल जाती है, रिवर्सल किसी भी ऊपर या नीचे की दिशा में आ सकता है। अपट्रेंड के बाद आने वाला रिवर्सल डाउनसाइड में होगा। यानि अगर अपट्रेंड के बाद Trend reversal आता है तो शेयर प्राइस डाउनट्रेंड में चलेगा।
डाउनट्रेंड के दौरान आने वाला रिवर्सल इसकी विपरीत दिशा में होगा। यानि प्राइस ऊपर की तरफ बढ़ेगा। रिवर्सल ओवर ऑल प्राइस डायरेक्शन पर आधारित होते हैं। एक या दो दिन के ट्रेंड या चार्ट पर एक, दो कैंडल के आधार पर ट्रेंड रिवर्सल नहीं होते हैं।
कुछ टेक्निकल इंडीकेटर्स जैसे कि MACD, ऑसिलेटर्स और चैनल आदि। ये trend reversal का पता लगा सकते हैं। रिवर्सल की तुलना ब्रेकआउट से की जा सकती है। एक रिवर्सल तब आता है, जब स्टॉक्स के प्राइस की दिशा बदल जाती है। ऊपर से नीचे की तरफ और नीचे से ऊपर की तरफ यानि एक दूसरे के विपरीत दिशा में।
रिवर्सल के दौरान ट्रेडर्स अपनी पोजीशन से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं। कुछ मार्केट में उलटफेर होते देखकर अपनी पोजीशन से बाहर निकल जाते हैं और कुछ के स्टॉपलॉस हिट हो जाते हैं। रिवर्सल विशेषतौर पर स्टॉक्स के प्राइस में बड़े बदलाव को दर्शाता है।
यानि कि जब स्टॉक्स के प्राइस की डायरेक्शन में बदलव होता है। यानि की यदि स्टॉक अपट्रेंड में है तो डाउनट्रेंड में चला जाता है। इसके विपरीत यदि स्टॉक डाउनट्रेड में है तो अपट्रेंड में चला जाता है।
मार्केट ट्रेंड्स के विपरीत आने वाले छोटे-छोटे काउंटर-मूव्स को पुलबैक या कंसोलिडेशन कहा जाता है। Trend reversal को पुलबैक से अलग नहीं किया जा सकता है। क्योंकि मार्केट में यह उलटफेर चलता रहता है जिससे नया ट्रेंड आता है। जब पुलबैक का अंत होता है तो प्राइस फिर से पुराने ट्रेंड की दिशा में चलने लगते हैं।
Trend reversal को समझें
इंट्राडे ट्रेडिंग ट्रेडिंग में ट्रेंड रिवर्सल बार-बार और बहुत जल्दी-जल्दी आते हैं। लेकिन वे कुछ दिन, कुछ सप्ताह और कुछ साल बाद भी आते रहते हैं। रिवर्सल विभिन्न टाइमफ्रेम में आते हैं जो अलग-अलग प्रकार के ट्रेडर्स के लिए प्रसांगिक होते हैं।
फाइव मिनट के चार्ट पर ट्रेंड रिवर्सल एक लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टर के लिए कोई मायने नहीं रखता। क्योंकि वह डेली और वीकली चार्ट के ट्रेंड रिवर्सल के हिसाब से मार्केट में पोजीशन बनाता है। फिर भी इंट्राडे ट्रेडर्स के लिए फाइव मिनट के चार्ट पर आया रिवर्सल बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि वह बहुत ही शार्ट-टर्म के लिए मार्केट में पोजीशन बनाता है।
अपट्रेंड में स्टॉक्स के प्राइस की हायर स्विंग हाई और हायर लो की एक सीरीज होती है, जो लम्बे समय तक जारी रह सकती है। इसके रिवर्स डाउनट्रेंड में प्राइस लोअर लो और लोअर हाई बनाता है। डाउनट्रेंड में प्राइस लोअर लो और लोअर हाई की एक श्रृंखला बनता है। इसके रिवर्स अपट्रेंड में प्राइस हायर हाई और हायर लो की श्रंखला में बदल जाता है।
जैसा कि ऊपर बताया जा चूका है, ट्रेंड्स और रिवर्सल को प्राइस एक्शन के द्वारा आसानी से पहचाना जा सकता है। बहुत से ट्रेडर्स टेक्निकल इंडिकेटर्स का उपयोग करना पसंद करते हैं। मूविंग एवरेज ट्रेंड और रिवर्सल दोनों का पता लगाने में मदद करते हैं। यदि स्टॉक का प्राइस मूविंग एवरेज से ऊपर है तो स्टॉक अपट्रेंड में है।
इसके विपरीत यदि प्राइस मूविंग एवरेज के नीचे है तो स्टॉक डाउनट्रेंड में हैं। जब प्राइस मूविंग एवरेज से नीचे गिरता है तो यह डाउनट्रेंड का संकेत देता है। इसके विपरीत जब प्राइस मूविंग एवरेज से ऊपर निकलता है तो यह अपट्रेंड का संकेत देता है।
ट्रेंडलाइन का उपयोग trend reversal का पता लगाने के लिए किया जाता है। चूँकि प्राइस अपट्रेंड में हायर हाई और हायर लो बनाता है तो हाई प्राइस से लो तक एक ट्रेंडलाइन खींची जा सकती है। जब प्राइस ट्रेंडलाइन से नीचे चला जाता है तो यह ट्रेंड रिवर्सल का संकेत हो सकता है।
यदि ट्रेंड रिवर्सल को पहचानना आसान होता। यानि छोटे पुलबैक और रिवर्सल में अंतर करना आसान होता तो ट्रेडिंग करना बहुत आसान हो जाता। लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि बहुत से सिग्नल फेक निकलते हैं। चाहे कितना ही प्राइस एक्शन और इंडिकेटर्स का उपयोग किया जाये लेकिन इनके भी बहुत से सिग्नल फेक (fake) निकलते हैं।
कभी-कभी रिवर्सल इतनी ज्यादा तेज गति से होता है कि ट्रेडर्स अपने नुकसान को रोक नहीं पाते हैं। इसलिए ट्रेडिंग में नुकसान से बचने के लिए स्टॉपलॉस अवश्य लगाना चाहिए।
Trend Reversal और पुलबैक के बीच अंतर
- पुलबैक और ट्रेंड रिवर्सल के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि पुलबैक अस्थायी होता है जबकि रिवर्सल से स्टॉक के प्राइस ट्रेंड की सम्पूर्ण दिशा में समग्र परिवर्तन आ जाता है।
- पुलबैक सामान्यतः कुछ ट्रेडिंग सेशन तक सीमित रहता है। जबकि रिवर्सल की वजह से मार्केट सेंटीमेंट में पूर्ण बदलाव आ जाता है।
- बुल मार्केट के दौरान ट्रेंड रिवर्सल आने पर पूर्ण मार्केट ट्रेंड बुल से बदलकर बियर हो जायेगा। जबकि बियर मार्केट के दौरान रिवर्सल आने पर पूर्ण मार्केट ट्रेंड बियर से बदलकर बुल हो जायेगा।
- अपट्रेंड में स्टॉक्स के प्राइस हायर स्विंग हाई और हायर स्विंग लो बनाते हैं लेकिन पुलबैक में प्राइस हायर लो बनाते हैं। बेयरिश एंगल्फिंग पैटर्न
- अपट्रेंड में ट्रेंड रिवर्सल तब तक नहीं माना जाता। जब तक ट्रेडर जिस टाइमफ्रेम को देख रहा है। उस टाइमफ्रेम तक प्राइस लोअर लो नहीं बनाता है। रिवर्सल हमेशा एक संभावित पुलबैक के बाद आता है लेकिन यह कोई नहीं जानता कि कौन सा पुलबैक ट्रेंड रिवर्सल में बदल जायेगा।
Trend Reversal के उपयोग की सीमाएं
ट्रेंड रिवर्सल स्टॉक मार्केट की सच्चाई है, यानि अक्सर मार्केट में रिवर्सल आते रहते हैं। कुछ पॉइंट्स पर प्राइस रिवर्स हो जाते हैं। जिसकी वजह से स्टॉक्स के प्राइस बहुत ज्यादा ऊपर चले जाते हैं या तो बहुत ज्यादा नीचे गिर जाते हैं।
प्राइस में आने वाले रिवर्सल को नजरअंदाज करने से आप बहुत ज्यादा नुकसान उठा सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, यदि किसी ट्रेडर को लगता है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज का शेयर जोकि अभी 1170 रूपये के आस-पास चल रहा है। वह आगे चलकर 1200 रूपये तक जा सकता है। BSE तथा NSE
इसलिए ट्रेडर उसमे लॉन्ग पोजीशन बना लेते हैं किन्तु स्टॉक का प्राइस बढ़ने के बजाय गिरकर पहले 1000 रूपये पर आता है। उसके बाद 970 रूपये और फिर 920 रूपये पर आ जाता है। इस तरह ट्रेडर को प्रॉफिट के बजाय नुकसान अधिक हो जाता है। स्टॉक प्राइस के 920 पर पहुँचने से पहले ही ट्रेंड रिवर्सल के क्लीयर संकेत मिल रहे थे।
सभवतः स्टॉक प्राइस के 103 रूपये तक गिरने पर ही trend reversal के सिग्नल मिलने लग गए थे। इसलिए जानकर ट्रेडर रिवर्सल के संकेतों को पहचान कर अपने प्रॉफिट/लॉस को लॉक कर सकते हैं। जब मार्केट में रिवर्सल आता है, तब यह पता नहीं होता कि यह रिवर्सल है या पुलबैक।
जब तक यह पता चलता है कि यह रिवर्सल है, तब तक स्टॉक्स के प्राइस काफी आगे निकल चुके होते हैं। जिससे ट्रेडर्स को भारी नुकसान हो जाता है या प्रॉफिट काफी कम हो जाता है। इस वजह से ट्रेडर्स अपनी पोजीशन को खत्म कर देते हैं। जबकि प्राइस अभी भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहे होते हैं। एडवांस/डिक्लाइन रेश्यो
फॉल्स ब्रेकआउट भी स्टॉक मार्केट की हकीकत है। एक फॉल्स ब्रेकआउट के बाद प्राइस वापस मार्केट ट्रेंड की दिशा में मूव कर जाते हैं। टेक्निकल इंडिकेटर और प्राइस एक्शन को देखकर trend reversal का पता लगाया जा सकता है।
Trend Reversal के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs
स्टॉक मार्केट में ट्रेंड रिवर्सल को कैसे पहचाने?
ट्रेंड रिवर्सल को पहचाननें के निम्नलिखित तरीके हो सकते हैं-
- ट्रेंड रिवर्सल की पहचान करने के लिए प्राइस मोमेंटम की कमजोरी को पहचानें।
- रिट्रेसमेंट की शक्ति को पहचानें।
- सपोर्ट एंड रेसिस्टेन्स पॉइंट का टूटना।
- लॉन्ग-टर्म ट्रेंडलाइन का टूटना।
- प्राइस का लॉन्ग-टर्म टाइमफ्रेम स्ट्रक्चर में पहुँचना।
- प्राइस का ओवरबॉट जोन में पहुँचना। Stock market terms
ट्रेंड रिवर्सल: जब स्टॉक्स प्राइस की दिशा (trend) बदल जाती है उसे ट्रेंड रिवर्सल कहा जाता है। स्टॉक प्राइस का अपट्रेंड से डाउनट्रेंड में बदल जाना और डाउनट्रेंड से अपट्रेंड में बदल जाना ही ट्रेंड रिवर्सल कहलाता है।
पुलबैक: स्टॉक्स के प्राइस में अस्थायी गिरावट या टेम्परेरी रिवर्सल को पुलबैक कहते हैं। पुलबैक सामान्यतः केवल कुछ ट्रेडिंग सेशन के लिए ही आता है उसके बाद प्राइस वापस पुराने ट्रेंड की दिशा में मूव कर जाते हैं।
कंसोलिडेशन:अपट्रेंड फिर से शुरू होने से पहले जब तक प्राइस एक रेंज में रहते हैं। उस समय को कंसोलिडेशन कहा जाता है। ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग
बेयरिश ट्रेंड रिवर्सल क्या है?
बेयरिश ट्रेंड रिवर्सल अपट्रेंड के दौरान बनने वाला एक कैंडलस्टिक पैटर्न है। यह इंडीकेट करता है कि प्राइस गिरने पर ट्रेंड रिवर्स हो जायेगा। ऐसा सामान्यतः तब होता है, जब bears समय के साथ bulls को रिप्लेस कर देते हैं। दूसरे शब्दों में बेयरिश ट्रेंड रिवर्सल इंडिकेट करता है सेलर ने खरीदारों पर कब्जा कर लिया है। यानि की मार्केट में खरीदारों से बेचने वाले ज्यादा सक्रिय हैं।
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