हायर हाई एंड लोअर लो ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी। Higher high and lower lows

हायर हाई तब होता है, जब किसी स्टॉक का प्राइस उसके पिछले हाई प्राइस को क्रॉस करके उससे ऊपर निकल जाता है। जो स्टॉक में अपवर्ड मोमेंटम का संकेत होता है। इसके विपरीत जब स्टॉक का प्राइस उसके पिछले लो प्राइस से भी नीचे गिर जाता है। 

यह स्टॉक में डाउनट्रेंड का संकेत होता है। आइए विस्तार से जानते हैं- हायर हाई एंड लोअर लो ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी। Higher high and lower low trading strategy in Hindi. 

                                                                                     
Higher high lower lows


अगर आप शेयर मार्केट प्राइस एक्शन के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको सुनील गुर्जर द्वारा लिखित मेक मनी विथ प्राइस एक्शन ट्रेडिंग बुक जरूर पढ़नी चाहिए। आप इसकी तीस दिन की रिटर्न पॉलिसी का लाभ भी उठा सकते हैं। 

मार्केट trend क्या है?

ट्रेडिंग की दुनिया में स्टॉक मार्केट ट्रेडर्स, प्रॉफिट कमाने के लिए मार्केट ट्रेंड और स्टॉक प्राइस का टेक्निकल एनालिसिस करते हैं। Trend के द्वारा ट्रेडर्स भविष्य में स्टॉक के प्राइस किस दिशा में चलेंगे, इसका अनुमान लगाते हैं। मार्केट में दो तरह के ट्रेंड होते हैं-
  1. अपट्रेंड: इसमें शेयर के प्राइस लगातार बढ़ते रहते हैं।   
  2. डाउनट्रेंड: इसमें शेयर का प्राइस पिछले प्राइस से कम बढ़ते हैं।
दोनों प्रकार ट्रेंड अलग-अलग कहानी बताते हैं और मार्केट में ट्रेडर्स की सफलता पर इसका अपना प्रभाव होता है। अपट्रेंड में शेयर के प्राइस हायर हाई और हायर लो बनाते हैं। यानि इसमें शेयर के प्राइस प्रत्येक बार पिछले high price से ऊँचा हाई बनाते हैं और पिछले low price से ऊँचा लो बनाते हैं।  

जबकि डाउनट्रेंड में शेयर के प्राइस लोअर लो और लोअर हाई बनाते हैं। यानि प्रत्येक बार शेयर प्राइस पिछले  प्राइस से lower low बनाते हैं। और पिछले हाई प्राइस से lower high बनाते हैं। एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज

Higher High (HH) 

किसी भी शेयर के प्राइस में हायर हाई तब होता है। जब किसी Stock का प्राइस नए पीक पर पहुंचता है। जो पिछले पीक से ऊँचा होता है। यह स्टॉक प्राइस के uptrend को दर्शाता है। क्योंकि शेयर प्राइस का प्रत्येक पीक पिछले पीक से हाई होता है। 

शेयर प्राइस का लगातार higher high और higher lows बनाना बुलिश सिग्नल होता है। जिसका मतलब स्टॉक अपट्रेंड में है। ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स इसे स्टॉक की मजबूती के रूप में देखते हैं। साथ ही इसे संभावित बाइंग अपॉर्च्युनिटी के रूप में भी देखा जाता है। डबल बॉटम

Lower Lows (LL) 

किसी भी शेयर के प्राइस में लोअर लो तब बनता है। जब किसी share का प्राइस लो प्राइस से ज्यादा गिरता है। शेयर के प्राइस का यह पैटर्न डाउनट्रेंड को दर्शाता है। क्योंकि शेयर प्राइस का प्रत्येक लो पिछले लो से नीचे होता है। शेयर प्राइस का लगातार  lower lows और lower high बनाना बेयरिश सिग्नल होता है। 

जिसका मतलब शेयर डाउनट्रेंड में है। ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स इसे शेयर की कमजोरी के रूप में देखते हैं। साथ ही इसे संभावित शार्ट सेलिंग अपॉर्च्युनिटी के रूप में देख जाता है। स्टॉप-लॉस हंटिंग

उदाहरणस्वरूप मान लीजिये NHPC शेयर का प्राइस 100 रूपये से 110 रूपये तक जाता है। इसके बाद फिर 105 पर वापस आ जाता है और फिर 115 रूपये पर पहुंच जाता है। इस तरह इसने अपने पिछले हाई 110 की तुलना में नया हाई 115 रूपये का बनाया है। इसका मतलब NHPC का शेयर अपट्रेंड में है। 

यदि यही NHPC का शेयर बाद में 105 से 90 रूपये तक गिरता है। जोकि पिछले लो 100 रूपये की तुलना में नया लो प्राइस है। तो इसे लोअर लो कहा जायेगा इसका मतलब अब NHPC का शेयर डाउनट्रेंड में है। ऑप्शन डेल्टा

यह पैटर्न व्यापक ट्रेंड एनालिसिस का हिस्सा है। जिसका उपयोग टेक्निकल एनालिसिस में Share market ट्रेंड और संभावित प्राइस मोमेंटम का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। 

आप हायर हाई और लोअर लो पर आधारित ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीज भी बना सकते हैं। इसके लिए आपको market trend  को पहचानना होगा और उस ट्रेंड के अनुसार trading strategy बनानी होगी। कॉन्सेप्ट के इर्दगिर्द निम्नलिखित प्रकार से ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी बना सकते हैं। 

Higher High & Higher Low strategy (Bullish Uptrend) 

हायर हाई और हायर लो ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी तब अच्छी तरह से काम करती है। जब शेयर के प्राइस लगातार हायर हाई और हायर लो बनाते हुए अपट्रेंड में होते हैं। इस स्ट्रेटेजी को निम्नलिखित तरीके से बनाया जाता है- 
  1. अपट्रेंड की पहचान करें: स्टॉक चार्ट पर यह चैक करें कि क्या शेयर प्राइस लगातार higher high बना रहा है? जो यह दर्शाता है कि शेयर प्राइस बयार के कंट्रोल में है और प्राइस ऊपर की तरफ बढ़ रहा है। स्टॉक price trend की पुष्टि करने के लिए आप मूविंग एवरेज और ट्रेंडलाइन्स जैसे टेक्निकल इंडीकेटर्स की मदद ले सकते हैं। 
  2. Entry Points: आप लॉन्ग ट्रेड में तब एंट्री कर सकते हैं। जब स्टॉक प्राइस सपोर्ट एरिया में बाउंस करें। आप इसकी RSI और बोलिंगर बैंड जैसे टेक्निकल इंडीकेटर्स का उपयोग करके पुष्टि कर सकते हैं। जिससे आप जान सकें कि स्टॉक अब ओवरबॉट नहीं है। 
  3. Stoploss: इस पोजीशन में आपको स्टॉपलॉस रीसेंट लोअर हाई प्राइस के नीचे नहीं रखना चाहिए। यदि स्टॉपलॉस टूटता है तो यह ट्रेंड रिवर्सल का संकेत हो सकता है। 
  4. Profit Book करें: इस पोजीशन में आपको पिछले हाई प्राइस के पास profit target सेट करना चाहिए। अथवा जितना संभव हो सके प्राइस के ऊपर की ओर गति को पकड़ने के लिए ट्रेलिंग स्टॉप का उपयोग करें। बहुत से ट्रेडर्स प्रॉफिट को बनाये रखते हुए ट्रॉलिंग स्टॉपलॉस द्वारा प्रॉफिट को बढ़ाने की कोशिश करते हैं। 
  5. उदाहरणस्वरूप: यदि कोई स्टॉक 100 रूपये के प्राइस पर ट्रेड कर रहा है। और उसका प्राइस 110 का नया हायर हाई बनाता है। इसके बाद शेयर का प्राइस 105 का नया लोअर हाई बनाकर ट्रेड कर रहा है। इस लेवल पर अगर आपको मजबूती के संकेत मिलते हैं तो आप 105 के पास इस स्टॉक में लॉन्ग पोजीशन बना सकते हैं और आपको 105 के नीचे स्टॉपलॉस लगाना चाहिए। 

Lower Low & Lower High Trading Strategy (Bearish Downtrend) 

यह ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी डाउनट्रेंड के दौरान बनाई जाती है। जब स्टॉक का price लगातार लोअर लो और लोअर हाई बनाते हुए डाउनट्रेंड में फंसा होता है। इस ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी को निम्नलिखित तरीके से बनाया जाता है- 
  1. Downtrend की पहचान करें: स्टॉक के प्राइस चार्ट पर लोवर लो और लोअर हाई प्राइस वाले स्टॉक की पहचान करें। जिसका शेयर प्राइस सेलर के कंट्रोल में है और शेयर का प्राइस डाउनट्रेंड में है। डाउनट्रेंड की पुष्टि करने के लिए आप मूविंग एवरेज क्रॉसओवर और ट्रेंडलाइन्स जैसे टेक्निकल इंडीकेटर्स का उपयोग कर सकते हैं। 
  2. Entry Points: ऐसे स्टॉक में सेल ऑन रैली की स्ट्रेटेजी अपनाई जाती है। यानि शेयर प्राइस के लोअर हाई बनाने पर शेयर में शार्ट सेल की पोजीशन बनानी चाहिए। यह पॉइंट शेयर को शार्ट करने या बेचने की सही जगह होती है क्योकि शेयर में आगे भी downtrend जारी रहने की संभावना होती है। स्टॉक में रैली पर ओवरबॉट होने की पुष्टि करने के लिए RSI जैसे ऑसिलेटर का उपयोग करना चाहिए। 
  3. Stoploss लगाएं: इस ट्रेडिंग पोजीशन में आपको स्टॉपलॉस रीसेंट हायर लो प्राइस के ऊपर लगाना चाहिए। यदि स्टॉपलॉस टूटता है तो यह ट्रेंड रिवर्सल का संकेत हो सकता है। 
  4. Profit Book करें: इस ट्रेडिंग पोजीशन में आपको पिछले लो प्राइस के पास शार्ट सेल पोजीशन का टार्गेट सेट करना चाहिए। जितना सम्भव हो सके प्राइस के गिरने पर ट्रेलिंग स्टॉपलॉस लगाना चाहिए।
  5. उदाहरणस्वरूप: जब किसी Share का प्राइस 100 रूपये से गिरकर 95 रूपये (नया लोअर हाई) पर आ जाता है। इसके बाद यह वापस 97 रूपये (लोअर हाई) पर आ जाता है। स्टॉक मार्केट की एक प्रसिद्ध कहावत है "Buy on dips & sell on rallies" अतः आपको 97 के प्राइस पर शार्ट सेल की पोजीशन में एंटर करना चाहिए। इस पोजीशन में आपको 97 रूपये से ऊपर 98.50 के आसपास स्टॉपलॉस लगाना चाहिए। और आपका प्रॉफिट टार्गेट 92 रूपये या पिछले लोअर लो प्राइस के पास होना चाहिए। 
Trading strategy को बेहतर बनाने वाले  टूल्स कुछ निम्नलिखित टेक्निकल टूल्स हैं जिनका उपयोग करके आप अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी को सटीक बना सकते हैं- 
  • ट्रेंडलाइन्स: अपट्रेंड में Stock के हायर हाई और हायर लो प्राइस को जोड़ते हुए Trendline खीचें। इसी तरह डाउनट्रेंड में स्टॉक के लोअर लो और लोअर हाई प्राइस को जोड़ते हुए ट्रेंडलाइन खींचनी चाहिए।
  • मूविंग एवरेज: 50 day या 200 day के सिंपल मूविंग एवरेज का उपयोग करके स्टॉक के ट्रेंड की पहचान कर सकते हैं। यदि शेयर का प्राइस मूविंग एवरेज के ऊपर है तो अपट्रेंड है। यदि शेयर का प्राइस मूविंग एवरेज से नीचे चल रहा है तो स्टॉक में डाउनट्रेंड में है। 
  • ट्रेडिंग वॉल्यूम: वॉल्यूम को देखकर ट्रेंड की मजबूती की पहचान करें। यदि शेयर के प्राइस में गिरावट के समय अधिक वॉल्यूम होता है तो स्टॉक मजबूत डाउनट्रेन में है। अगर शेयर का प्राइस अधिक ट्रेडिंग वॉल्यूम के साथ चढ़ता है तो इसका मतलब शेयर मजबूत अपट्रेंड में है। 
  • आरएसआई: यदि RSI 30 से नीचे है तो इसका मतलब स्टॉक ओवरसोल्ड है। अगर RSI 70 से ऊपर है तो इसका मतलब स्टॉक ओवरबॉट है। इसके आधार पर आप trade में एंट्री और एग्जिट का निर्णय ले सकते हैं।

रिस्क मैनेजमेंट  

हमेशा सही रिस्क-रिवॉर्ड रेश्यो के (कम से कम 1:3) के साथ ट्रेड करें। ट्रेडिंग रिस्क को कम करने के लिए ट्रेडिंग पोजीशन का साइज अपनी रिस्क टॉलरेंस क्षमता के अनुसार ही लें। Trading strategy ट्रेडर्स की मार्केट ट्रेंड को फॉलो करने में मदद करती हैं। 

ट्रेड में एंटर करने के लिए पुलबैक और रैली का उपयोग करना चाहिए। यदि ट्रेंड रिवर्सल होता है तो नुकसान को कम करने के लिए रिस्क मैनेजमेंट करना चाहिए। 

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