IPO में Invest करके पैसे कैसे कमाएँ और आईपीओ क्या है?

बहुत से लोग शेयर मार्केट आईपीओ में इन्वेस्ट करके पैसे कामना चाहते हैं। जब स्टॉक एक्सचेंज में गैर सूचीबद्ध कंपनी जनता से पैसा जुटाना चाहती है। तो उसे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट कराना पड़ता है। पैसे जुटाने के लिए कंपनी प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश करती है जिसे IPO यानी initial public offering कहते हैं।

इसमें कंपनी पहली बार जनता के लिए आईपीओ के माध्यम से प्राइमरी मार्केट में शेयर बेचती है। आइए विस्तार से जानते हैं- IPO में Invest करके पैसे कैसे कमाएँ और आईपीओ क्या है? Learn Everything About IPO, What is Initial Public offering?
                                                              
IPO investing kaise kren?


यदि आप शेयर मार्केट एक्सपर्ट बनना चाहते है तो आपको महेशचंद्र कौशिक द्वारा लिखित बुक्स शेयर मार्केट में सफल कैसे हों? एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। 

IPO (Initial Public Offering) क्या है? 

आईपीओ एक सार्वजनिक आरंभ पेशकश है, जिसमें किसी प्राइवेट कंपनी के शेयर पहली बार जनता के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं। IPO किसी कंपनी को रिटेल और इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स से इक्विटी पूंजी जुटाने की अनुमति देता है। 

किसी कंपनी द्वारा प्राइवेट से पब्लिक कंपनी में बदलना रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए प्रॉफिट कमाने का एक अवसर हो सकता है। इसमें शामिल इन्वेस्टर्स  को प्रीमियम पर लिस्टिंग से प्रॉफिट होने की संभावना रहती है। किसी प्राइवेट कंपनी द्वारा शायरों के नए stock जारी करके जनता को बेचने की प्रक्रिया को आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) कहते हैं। 

आईपीओ लाने के लिए कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंज और SEBI की शर्तों को पूरा करना होता है। तभी कोई कंपनी Stock market में अपना आईपीओ ला पति है। IPO कंपनियों को प्राइमरी मार्केट के माध्यम से शेयरों की पेशकश करके पूंजी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। 

कंपनियां मार्केट में invest करने, मांग का आकलन करने, IPO का प्राइस और तिथि निर्धारित करने आदि के लिए इन्वेस्टमेंट बैंकों को नियुक्त करती हैं। आईपीओ एक एग्जिट स्ट्रेटेजी है जिसके माध्यम से कंपनियों के संस्थापक और शुरुआती investors अपने इन्वेस्टमेंट पर पूरा प्रॉफिट बुक कर लेते हैं।
 

IPO कैसे काम करता है? 

आईपीओ से पहले कंपनी को प्राइवेट कंपनी माना जाता है। फंडिंग की फर्स्ट स्टेज में प्रमोटर कंपनी को खुद फंड् मुहैया करवाते हैं। जैसे की प्रमोटर अपनी सेविंग लगाते हैं। साथ ही उनकी फैमिली तथा दोस्त भी पैसा लगाते हैं।

फंडिंग की सेकेंड स्टेज में, जब कंपनी थोड़ी बड़ी हो जाती है। तब Angel investor पैसा लगते हैं। एंजेल इन्वेस्टर वो होते हैं, जो किसी भी स्टार्टअप के शुरुआत में हिस्सेदारी के बदले में पैसा लगाते हैं।

तीसरी स्टेज में  जब कंपनी और बड़ी हो जाती है तथा भविष्य में कंपनी की अच्छी ग्रोथ की संभावना होती है। तब उसमे वेंचर कैपिटल तथा प्राइवेट इक्विटी फर्म पैसा लगाती हैं।

चौथी स्टेज में कंपनी
IPO लेकर आती है। जिसे Initial Public Offering
भी कहा जाता है क्योंकि यह आईपीओ की फुल फोर्म है। इसमें कंपनी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) या बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) पर लिस्ट हो जाती है।

आईपीओ में अलग-अलग तरह के इन्वेस्टर इन्वेस्ट करते हैं। जैसे इंस्टीटूशनल इन्वेस्टर तथा नॉन इंस्टीटूशनल इन्वेस्टर।

कंपनियाँ IPO लाती क्यों है?

कंपनियों आईपीओ तब लाती हैं?  जब कंपनी को expansion के लिए फंड्स की जरूरत होती है। यदि कंपनी ने कर्ज लिया हुआ है तो उसे चुकाने के लिए पैसे की जरूरत होती है।

 हो सकता है, जिन्होंने कंपनी में पहले इन्वेस्ट कर रखा है जैसे पीई फर्म, एंजेल इन्वेस्टर आदि, उन्हें अपने शेयर बेचकर बाहर निकलना हो इसलिए कंपनी को पैसा raise (रेज) करना पड़ रहा हो। टाटा मोटर्स

जब कंपनी Stock Exchange में लिस्ट हो जाती है। तब उसमे निवेशकों की लिक्विडिटी बढ़ जाती है। ऐसे में किसी भी बड़े निवेशक को अपना हिस्सा बेचकर कंपनी से बहार निकलना आसान होता है।

आईपीओ में रिटेल इन्वेस्टर बड़ी मात्रा में पार्टिसिपेट करते है तथा पैंशन फंड्स और म्यूच्यूअल फंड्स को भी जोड़ना आसान होता है। इसलिए कंपनियाँ
IPO  
(Initial public offering) लेकर आती हैं। Mutual Funds 

आईपीओ की प्रक्रिया

जब कोई कंपनी IPO लेकर आती है तो उसे कई निम्नलिखित कदम उठाने होते हैं-

Investment Bank को हायर करना

यानी इन्वेस्टमेंट बैंक को नियुक्त करना। जब कंपनी IPO लाने वाली होती है। तब वह इस काम के लिए सबसे पहले एक फाइनेंस एक्सपर्ट( इन्वेस्टमेंट बैंक) को नियुक्त करती है। जिन्हे मर्चेंट बैंक  जाता है।

जितने भी बड़े-बड़े बैंक हैं जैसे- आईसीआईसीआई, एचडीफसी, कोटक महेंद्रा बैंक आदि। इनमे से ज्यादातर इन्वेस्टमेंट बैंकिंग का भी काम करते हैं।

कंपनी बैंक को हायर करने से पहले उसकी कई चीजों को देखती है जैसे फंड रेज करने का उसका ट्रेक रिकॉर्ड कैसा है? रिसर्च की क्वालिटी कैसी है? कंपनी की वैल्यूएशन और प्राइसिंग कैसे करती है? 

कंपनी यह भी देखती है कि इन्वेस्टमेंट बैंक का इंस्टीटयूशनल इन्वेस्टर के साथ टाईअप है या नहीं? बैंक का डिस्ट्रीब्यूशन रिकॉर्ड कैसा है? इन्वेस्टमेंट बैंक नॉन इंस्टीटूशनल इन्वेस्टर्स तथा रिटेल इन्वेस्टर्स के साथ कैसे मार्केटिंग करती हैं?

Due Diligence & Filing 

जब कोई कंपनी किसी इन्वेस्टमेंट बैंक को हायर कर लेती है। तब वह इन्वेस्टमेंट बैंक के साथ एक लीगल करार और ड्यु डिलिजेंस करती है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित कई चीजें आती हैं-

Underwriting यह ड्यू डिलिजेंस का सबसे महत्वपूर्ण प्रोसेस है। इसमें फीस लेकर कार्य करने वाली फर्म (Investment Bank) कंपनी से यह कमिटमेंट कर सकता है। जितनी रकम कंपनी चाहती है, उतनी वह शेयर मार्केट से रेज करके कंपनी को दे देगा।

इन्वेस्टमेंट बैंक यह भी कमिटमेंट कर सकता है कि यदि  उसे कोई मुनाफा या नुकसान होता है। वह बैंक का होगा। इसका मतलब यह है कि इन्वेस्टमेंट बैंक कंपनी के IPO ( Initial public offering) को बेचने की जिम्मेदारी खुद ले लेता है। 

Best Effort Commitment or agreement इसमें इन्वेस्टमेंट बैंक कंपनी से यह कमिटमेंट कर सकता है। कि हम आपके IPO की वैलुएशन करेंगे तथा डिस्ट्रीब्यूशन भी करेंगे। Issue price भी सेट करेंगे। लेकिन कंपनी के आईपीओ को कैसा रेस्पॉन्स मिलेगा तथा सब्सक्रिप्शन कैसा होगा। इसकी कोई गारंटी नहीं है। IPO अलॉटमेंट स्टेटस चैक

Syndicate Underwriting जब कोई कंपनी बहुत बड़ा आईपीओ लेकर आती है। जैसे पंद्रह हजार करोड़ या बीस हजार करोड़ रूपये। तो हो सकता है कि इतने बड़े आईपीओ को एक Investment Bank ना हेंडल कर सके। तब कई इन्वेस्टमेंट बैंक मिलकर एक सिंडिकेट अंडरराइटिंग ग्रुप बनाते हैं।

जो कंपनी के आईपीओ को अलग-अलग हिस्सों में बाँटकर बेच देते हैं। जैसे एक बैंक को पांच हजार करोड़ रूपये रेज करने का आर्डर दे दिया जायेगा। इसी तरह दूसरे बैंक को भी उसकी क्षमता के अनुसार पांच या दस हजार करोड़ रूपये शेयर मार्केट से रेज करने का आर्डर दिया  जा सकता है। IPO ग्रे मार्केट प्रीमियम

इसी तरह जितने रूपये IPO से raise करने का टारगेट है। उसे पूरा किया जाता है। जो मैन बुक मैनेजर होता है, उसे लीड मैनेजर कहते हैं। बाकी सभी पार्टिसिपेट मैनेजर होते हैं। इसी को सिंडिकेट अंडरराइटिंग कहते हैं। 

जैसे एक बैंक को पांच हजार करोड़ रूपये रेज करने का आर्डर दे दिया जायेगा। इसी तरह दूसरे बैंक को भी उसकी क्षमता के अनुसार पांच या दस हजार करोड़ रूपये शेयर मार्केट से रेज करने का आर्डर दिया  जा सकता है। 

इसी तरह जितने रूपये IPO से raise करने का टारगेट है। उसे पूरा किया जाता है। जो मैन बुक मैनेजर होता है, उसे लीड मैनेजर कहते हैं। बाकी सभी पार्टिसिपेट मैनेजर होते हैं। इसी को सिंडिकेट अंडरराइटिंग कहते हैं। क्रिप्टो करेंसी

Red Herring prospectus 

जब भी किसी कंपनी का आईपीओ आता है। तब कंपनी अपने इन्वेस्टर्स के लिए एक पम्पलेट जारी करती है जिसे रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस कहते हैं।

Red Herring prospectus IPO का बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है। इसके द्वारा इन्वेस्टर को आईपीओ लाने वाली कंपनी के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं पता चलती हैं। 
जब आप स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड किसी कंपनी में निवेश करते हैं। तो निवेश करने से पहले उसका डेटा एनालिसिस करते हैं।

आपको कंपनी का पूरा डेटा NSE तथा BSE की वेबसाइट और कंपनी की वेबसाइट पर मिल जाता है। लेकिन किसी अनलिस्टेड कंपनी का डेटा आपको NSE तथा BSE की वेबसाइट पर नही मिलेगा। क्योंकि अनलिस्टेड कंपनी का डेटा स्टॉक एक्सचेंज पर नही होता। सीएमपी

सेबी के रेगुलेशन के अनुसार जो कंपनी आईपीओ (Initial Public Offering) ला रही होती है। उसे रेड हेरिंग प्रोस्पटस अनिवार्य रूप से जारी करना होता है। रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में कंपनी की सम्पूर्ण जानकारी होती है। जैसे कंपनी के प्रमोटर कौन हैं तथा उनकी कंपनी में कितने प्रतिशत हिस्सेदारी है। 

कंपनी के बिजनेस ऑब्जेक्टिव्स क्या हैं। कंपनी के प्रोडक्ट्स क्या क्या हैं। कंपनी की फाइनेशियल स्थिति कैसी है। जैसे कंपनी पर कर्ज है या कंपनी डेट फ्री है आदि और भी बहुत सी जानकारी रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में होती है। 

Red herring prospectus करीब चार सौ, पांच सौ पेज का दस्तावेज होता है। यदि आप पूरा प्रोस्पेटस पढ़ेंगे तो आप कन्फ्यूज हो सकते हैं इसलिए नीचे दिए गए महत्वपूर्ण बिंदुओं को ध्यान से पढ़कर आप यह निर्णय ले सकते हैं कि आपको इस आइपीओ में निवेश करना चाहिए या नहीं।

About Us Section - रेड हैरिंग प्रोस्पेटस में, आपको कंपनी का अबाउट अस सेक्शन जरूर पढ़ना चाहिए क्योंकि इसमें कंपनी के बारे में डिटेल में जानकारी होती है। जैसे कंपनी का 
बिजनेस मॉडल क्या है तथा कंपनी का इंडस्ट्री स्ट्रक्चर कैसा है। फंडामेंटल एनालिसिस

कंपनी के मैनेजमेंट में कौन कौन हैं तथा उनकी हिस्ट्री क्या है? कंपनी की डिविडेंड पॉलिसी क्या है? कंपनी के लिए क्या क्या मार्केट ऑपर्चुनिटी हो सकती हैं? Legal information या Legal Proceeding Section इसमें आपको यह देखना चाहिए कि अब तक कंपनी पर कितनी लीगल प्रोसिडिंग्स (केस) हुई हैं?

क्या वर्तमान में भी कोई केस कंपनी पर चल रहा है? यदि हां, तो अगर कंपनी केस हार जाती है। उस स्थिति में कंपनी पर कितनी देनदारियां आयेगी? 

Red herring prospectus को कहां से डाउनलोड करें? इसे आप NSE, BSE तथा SEBI की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं। साथ ही इसे आप आईपीओ लाने वाली कंपनी की वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। 

जब भी आप किसी आईपीओ में निर्वेश करने के बारे में सोच रहे हैं तो निवेश करने से पहले कंपनी के रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस को अवश्य पढ़ें।

Compliance & Filling सेबी की गाइडलाइंस आईपीओ लाने वाली कंपनी को सेबी द्वारा निर्धारित रूल्स और रेगुलेशन को मानना जरूरी होता है। बीएसई या एनएसई जिस भी स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी लिस्ट होगी उसके भी रूल्स और रेगुलेशन को कंपनी को अवश्य मानना पड़ेगा। Patanjali foods

Security contract act या फिर companies act ये जितने भी रेगुलेशन हैं IPO के दौरान कंपनी को इनका पालन करना होता है। उम्मीद है कि आपको Initial public offering IPO in share market अच्छे से समझ आ रहा होगा।
                  

Pricing (कीमत) यह जिम्मेदारी भी इन्वेस्टमेंट बैंक ही निभाता है। इसमें कंपनी की वैल्युएशन निकाली 
जाती है। कंपनी इन्वेस्टमेंट बैंक को यह भी बताती है कि वह कितने प्रतिशत हिस्सेदारी बेचना चाहती है। 

माना जैसे कि कंपनी की वैल्युएशन बीस हजार करोड़ रूपए है तथा वह इसका बीस प्रतिशत हिस्सेदारी आईपीओ के जरिए बेचना चाहती है। इसका मतलब IPO से चार हजार करोड़ रूपए का फंड रेज किया जाएगा। रूस के शेयर मार्केट

बीस प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने के बाद, कंपनी के वर्तमान प्रमोटर के पास कंपनी की अस्सी प्रतिशत हिस्सेदारी रह जायेगी। इस तरह बीस प्रतिशत शेयर की वैल्यू हाेगी चार हजार करोड़ रूपए। इस तरह हम कह सकते हैं कि इश्यू साइज चार हजार करोड़ रूपए का है।

ये पैसा पब्लिक से रेज किया जाएगा। चार हजार करोड़ रूपए रेंज करने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में Stocks जारी करने होगे और प्रत्येक शेयर का एक प्राइस रखना होगा। मान लेते हैं कि एक शेयर का प्राइस दो सौ रुपए रखा जाता है और बीस करोड़ शेयर जारी किए जाते हैं। 
 

यदि कोई इन्वेस्टर कहता है कि मुझे केवल दो हजार रुपए ही आईपीओ में इन्वेस्ट करने हैं तो वह ऐसा नहीं कर सकता। आईपीओ में एक मिनिमम लॉट साइज रखा जाता है। आप मिनिमम लॉट साइज से कम में इन्वेस्ट नहीं कर सकते। 

उदाहरण स्वरूप यदि कंपनी मिनिमम लॉट साइज सौ शेयर का रखती है। तो इसका मतलब आप सौ शेयर से कम के लिए अप्लाई नहीं कर सकते। आप कम से कम सौ या इसके मल्टीपल में ही बुकिंग डाल सकते हैं। जैसे सौ, दो सौ, तीन सौ आदि।  200×100=20,000 इस तरह आप इस आईपीओ में बीस हजार से कम रूपए इन्वेस्ट नहीं कर सकते। 

Stock market terms IPO में दो तरह के इश्यू प्राइस होते हैं पहला होता है, फिक्स प्राइस इश्यू जैसे कि इश्यू प्राइस दो सौ रूपये फिक्स कर दिया। दूसरा होता है बुक बिल्डिंग इश्यू इसके अंतर्गत प्राइस बैंड रखा जाता है। जैसे कि प्राइस बैंड एक सौ साठ से दो सौ रूपये तक तय कर दिया। निचले बैंड को फ्लोर प्राइस कहते हैं तथा ऊपरी बैंड को कैप कहा जाता है। फ्लोर प्राइस में से ही फाइनल प्राइस तय किया जाता है। 


आईपीओ का Distribution (वितरण ) 

IPO को कंपनी और इन्वेस्टमेंट बैंक दोनों मिलकर सेल करते हैं।आइपीओ को अलग अलग लोगों को बेचा जाता है, जैसे क्वालिफाइड इन्वेस्टर जिनमे म्यूचुअल फंड्स और पेंशन फंड्स आते हैं। जो बहुत सारा पैसा मैनेज करते हैं। उन्हें अप्रोच किया जाता है।

नॉन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर को भी अप्रोच किया जाता है। नॉन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर हाई नेटवर्थ इंडिविजिवल्स व्यक्ति होते हैं। जो काफी बड़ा अमाउंट IPO में डालते हैं। तीसरी कैटेगरी हमारी आपकी यानी रिटेल इन्वेस्टर्स की होती है। तीनों प्रकार के इन्वेस्टर्स को आईपीओ लाने वाली कंपनी और इन्वेस्टमेंट बैंक दोनों मिलकर मार्केटिंग करते हैं।
 हॉलीडेज लिस्ट            

Application process डिस्ट्रीब्यूशन होने के बाद एप्लीकेशन प्रोसेस शुरू हो जाता है। मान लो कंपनी बीस करोड़ शेयरो के लिए एप्लीकेशन जारी करती है। हो सकता है कि एप्लीकेशन इससे ज्यादा तीस करोड़ या और भी ज्यादा शेयरों के लिए बोलियां आ सकती हैं।

कभी कभी ऐसा भी होता है कि IPO दोगुने से भी ज्यादा सब्सक्राइब हो जाता है। यह इन्वेस्टर्स के इंट्रेस्ट पर निर्भर करता है क्योंकि यदि इन्वेस्टर्स को लगता है कि इस आईपीओ में अच्छा मुनाफा हो सकता है। तो उस आईपीओ को अच्छा रिस्पॉन्स मिलाता है।

जिसकी वजह से आईपीओ ओवर सब्सक्राइब हो जाता है। जब आईपीओ ओवर सब्सक्राइब हो जाता है तब आईपीओ में अप्लाई करने वाले सभी लोगों को शेयर नहीं मिल पाते। Rakesh Jhunjhunwala' biogaraphy 


Share Allotment शेयर अलॉटमेंट का कोटा होता है जो इस प्रकार है। क्वालिफाइड इन्वेस्टर का पचास प्रतिशत कोटा होता है। नॉन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर का पंद्रह प्रतिशत कोटा होता है। रिटेल इन्वेस्टर्स का पैंतीस प्रतिशत कोटा होता है। कोटा के हिसाब से स्टॉक्स अलॉट किए जाते हैं।

IPO Listing on Stock Exchange

NSE या BSE जहां पर भी कंपनी लिस्ट होना चाहती है, वहां लिस्ट हो जाएगी। जब IPO की बिड खुलती है तो वह तीन या चार दिन खुली रहती है। जिस समय एप्लीकेशन क्लेक्ट की जाती हैं। IPO में एप्लीकेशन लगाना बहुत ही आसान है। आजकल आप यूपीआई जैसे भीम एप, पेटीएम आदि के द्वारा भी निवेश कर सकते हैं।

स्टॉक ब्रोकर के माध्यम से भी आईपीओ में निवेश किया जा सकता है। इश्यू के बंद होने की डेट से तीन दिन के अंदर ही कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज के अंदर लिस्ट होना होता है। ऐसा इसलिए ताकि जिन्होंने आईपीओ में अप्लाई किया है, उनका पैसा ज्यादा दिन तक रुका ना रहे। डायवर्सिफिकेशन

स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी के लिस्ट होने के तीन दिन के अंदर, जिनको शेयर अलॉट होते हैं उन्हें मिल जाते हैं। बाकी लोगों का पैसा रिफंड कर दिया जाता है। इस प्रकार IPO की प्रक्रिया पूरी होती है। 

IPO बंद होने के दिन 

लिस्टिंग मार्केट रेग्युलेटर सेबी 29-06-2023 को जारी सर्कुलर में Initial Public Offering (IPO) के बस स्टॉक एक्सचेंज पर स्टॉक्स की लिस्टिंग में लगने वाले समय को घटाकर आधा कर दिया है। IPO की बोली बंद होने के बाद उसकी लिस्टिंग समयसीमा को टी + 6 से घटाकर टी + 3 कर रहा है। 

यहाँ टी (T) का मतलब IPO की बोली बंद होने की तारीख से है। इस पर SEBI का कहना है कि ऐसा करने से इन्वेस्टर्स और कंपनियों के प्रमोटर्स को काफी फायदा होगा। क्योंकि इससे कंपनियों की पैसे जुटाने में आसानी होगी और इन्वेस्टर्स को भी अर्जी लगाने के बाद जल्दी लिक्विडिटी मिल जायेगी। 

उम्मीद है, आपको यह लेख IPO में Invest करके पैसे कैसे कमाएँ और आईपीओ क्या है? आया होगा। अगर आपको यह लेख Initial public offering (IPO) in Share market क्या है? पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें। 
इस लेख को लिखते समय मैने कोशिश की है कि पाठकों को आईपीओ के विषय में पूरी जानकारी दी जाय। 

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