Difference between Futures & Options: F&O में 90% लोग पैसा गंवाते हैं? आपने शायद सुना होगा कि F&O (Futures & Options) में लोग रातों-रात अमीर बन जाते हैं। आपने यह भी सुना होगा कि F&O में लोग अपना सब कुछ गँवा देते हैं। ये दोनों बातें सच हैं लेकिन इन दोनों के बीच का अंतर क्या है? क्यों F&O को इतना जोखिम भरा माना जाता है? और सबसे महत्वपूर्ण, एक नए ट्रेडर के तौर पर आपके लिए क्या सही है? आइए जानते हैं- फ्यूचर्स या ऑप्शंस, किसमें है ज़्यादा मुनाफ़ा और कम रिस्क? Difference between Futures & Options in Hindi.
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| वायदा (Futures) एक वादा है, विकल्प (Options) एक अधिकार है। F&O की दुनिया में इन दोनों का अंतर ही आपको प्रॉफिट या लॉस तक ले जाता है। |
अगर आप क्रिप्टोकरेंसी के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं कि यह क्या है और क्रिप्टो कितने प्रकार की होती है? क्रिप्टोकरेंसी में इन्वेस्टिंग की संभावनाएं आदि। तो आपको डॉ गिरीश वालावलकर द्वारा लिखित क्रिप्टो करेंसी बुक जरूर पढ़नी चाहिए।
शेयर बाजार की दुनिया में कदम रखते ही दो शब्द जो हर नए ट्रेडर को अपनी ओर खींचते हैं और अक्सर डराते भी हैं। वो हैं - वायदा (Futures) और विकल्प (Options)। एक ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट इसके खरीददार को एक्सपायरी डेट से पहले एक निर्दिष्ट प्राइस पर शेयर खीरदने या बेचने का अधिकार देता है लेकिन दायित्व नहीं।
इसके विपरीत एक फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट इसके खरीदार को एक्सपायरी डेट से पहले अंडरलाइंग एसेट खरीदनी होती है और सेलर को बेचना होता है या उसे अगले महीनें के लिए रोलओवर करना होता है। जब तक कि होल्डर की पोजीशन पहले ही बंद न हो जाए।
डेरिवेटिव्स' क्या बला है?
इससे पहले कि आप फ्यूचर्स और ऑप्शंस की गहराई में उतरें, यह समझना ज़रूरी है कि ये दोनों आखिर हैं क्या?फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस दोनों ही फाइनेंशियल डेरिवेटिव्स हैं। इनका प्रयोग ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स मार्केट प्राइस में होने वाले बदलावों से प्रॉफिट कमानें के लिए करते हैं। साथ नुकसान से बचाने के लिए F&O मार्केट में हेजिंग करते हैं।
जैसा कि नाम से पता चलता है, 'डेरिवेटिव' वह होता है जो अपनी वैल्यू (कीमत) किसी और चीज़ से 'डिराइव' (derive) करता है, यानी लेता है। जिसे अंडरलाइंग एसेट कहा जाता है, यह "कोई और चीज़" कुछ भी हो सकती है, जैसे -
- स्टॉक (जैसे - रिलायंस, टाटा)
- इंडेक्स जैसे - निफ्टी 50, बैंक निफ्टी
- कमोडिटी (जैसे - सोना, चाँदी, कच्चा तेल)
- करेंसी (जैसे - USD/INR)
- क्रिप्टो करेंसी
इसे ऐसे समझें: दूध एक 'अंडरलाइंग एसेट' (underlying asset) है। पनीर, दही और मक्खन 'डेरिवेटिव्स' हैं। उनकी खुद की कोई वैल्यू नहीं है। उनकी वैल्यू दूध की क्वालिटी और कीमत पर निर्भर करती है। बस! F&O भी ऐसे ही हैं। निफ्टी 50 'दूध' है, और 'निफ्टी फ्यूचर्स' या 'निफ्टी ऑप्शंस' उससे बने 'पनीर' या 'दही' हैं। अगर निफ्टी की कीमत बदलेगी तो इनकी कीमत अपने आप बदल जाएगी। अब जब आप डेरिवेटिव्स समझ गए हैं तो चलिए F&O के दो बड़े खिलाड़ियों से मिलते हैं।
1. Futures Trading की दुनिया: एक पक्का वादा
वायदा (Futures), जैसा कि नाम से पता चलता है, "भविष्य का एक पक्का सौदा" होता है। यह दो पार्टियों के बीच एक समझौता (Contract) होता है। जिसमें वे भविष्य की किसी तय तारीख (Expiry Date) पर, किसी तय प्राइस पर, एक तय मात्रा (Lot Size) में किसी एसेट को खरीदने या बेचने का वादा करते हैं। यहाँ सबसे ज़रूरी शब्द है, वादा (Obligation)।
चाहे मार्केट ऊपर जाए या नीचे, अगर आपने वादा किया है तो आपको वह सौदा पूरा करना ही होगा। आप मुकर नहीं सकते। वायदा कॉन्ट्रैक्ट कैसे काम करता है? उदाहरणस्वरूप मान लीजिए, आज निफ्टी 50 इंडेक्स 22,000 पर है। आपको (ट्रेडर A) लगता है कि अगले एक महीने में यह बढ़कर 23,000 हो जाएगा (आप तेज़ी में हैं)।
वहीं, आपके दोस्त (ट्रेडर B) को लगता है कि मार्केट गिरेगा और निफ्टी 21,000 तक आ जाएगा (वह मंदी में है)।
आप दोनों एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट करते हैं, इसके निम्नलिखित मुख्य पॉइंट्स हैं-
- एसेट: निफ्टी 50
- तय कीमत: 25,000
- तय तारीख (एक्सपायरी): महीने का आखिरी गुरुवार
- तय मात्रा (लॉट साइज): मान लीजिए 50 (यानी कीमत का हर 1 पॉइंट 50 रु. के बराबर है)
आपको 500 पॉइंट्स का फायदा हुआ। आपका कुल मुनाफा 500 पॉइंट्स x 50 (लॉट साइज) = 25,000 रु. का फायदा। यह 25,000 रुपये आपके दोस्त (B) की जेब से आएँगे क्योंकि उसे 22,500 की चीज़ आपको 22,000 में बेचनी पड़ी।
अगर स्टॉक मार्केट नीचे गया (आपका दोस्त सही था) एक्सपायरी के दिन निफ्टी 21,800 पर बंद होता है।
आपको (A) 22,000 पर खरीदने का वादा (बाध्यता) है, जबकि बाज़ार में वही चीज़ 21,800 की मिल रही है।
आपको 200 पॉइंट्स का नुकसान हुआ।
इस ट्रेड में आपका कुल नुकसान: 200 पॉइंट्स x 50 (लॉट साइज) = 10,000 रुपये का नुकसान हुआ। यह 10,000 रु. आपके दोस्त (B) को मिलेंगे क्योंकि उसे 21,800 की चीज़ 22,000 में बेचने का मौका मिला। मार्जिन मनी (Margin Money) फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की सबसे बड़ी खासियत है और मार्जिन मनी सबसे बड़ा खतरा भी है।
ऊपर दिए उदाहरण में, निफ्टी के 50 लॉट की कुल वैल्यू (22,000 x 50) लगभग 11 लाख रु. थी। लेकिन फ्यूचर्स ट्रेडिंग में आपको यह सौदा करने के लिए 11 लाख रुपये नहीं देने होते। एक्सचेंज आपसे बस एक "गुड फेथ डिपॉजिट" लेता है, जिसे मार्जिन मनी कहते हैं।
यह आमतौर पर कुल कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का 10% से 20% होता है (जैसे, 1.1 लाख से 1.5 लाख रु.)। इसे लीवरेज (Leverage) कहते हैं। यानी आप कम पैसे (1.5 लाख) लगाकर एक बड़ी पोजीशन (11 लाख) को कंट्रोल कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि अगर आप सही हुए, तो आपका प्रॉफिट आपकी लगाई गई पूँजी (1.5 लाख) पर बहुत ज़्यादा होता है (इसे "बड़ा मुनाफा" कहते हैं)।
इसी तरह इसका नुकसान भी बड़ा है, अगर आप गलत हुए, तो आपका नुकसान भी आपकी लगाई गई पूँजी (1.5 लाख) के हिसाब से बहुत ज़्यादा होता है। आपका 1.5 लाख डूब तो सकता ही है। साथ ही आपको अपनी जेब से और पैसे भी देने पड़ सकते हैं, इसे ही असीमित घाटा कहते हैं।
2. Options Trading की कला: एक अधिकार
अब आते हैं F&O के 'O' यानी ऑप्शंस पर। अगर फ्यूचर्स एक "पक्का वादा" है तो Options पक्का वादा नहीं, बल्कि एक अधिकार (Right) है। ऑप्शंस एक ऐसा कॉन्ट्रैक्ट है जो खरीदार (Option Buyer) को, भविष्य की किसी तय तारीख (Expiry Date) पर, किसी तय कीमत (Strike Price) पर, किसी एसेट को खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, बाध्यता (Obligation) नहीं।
इस अधिकार को पाने के लिए खरीदार को विक्रेता (Option Seller) को एक छोटी-सी नॉन-रिफंडेबल फीस देनी होती है। जिसे प्रीमियम (Premium) कहते हैं। ऑप्शन्स को समझने का सबसे आसान तरीका, टोकन मनी का उदाहरण है, मान लीजिए आपको एक ज़मीन का टुकड़ा पसंद आया जिसकी कीमत 50 लाख रुपये है।
आपको लगता है कि 2 महीने में वहाँ से हाईवे निकलने वाला है और इसकी कीमत 70 लाख हो जाएगी। लेकिन आपके पास अभी 50 लाख रूपये नहीं हैं और आप रिस्क भी नहीं लेना चाहते कि अगर हाईवे नहीं बना तो मेरे रुपयों का क्या होगा?
आप ज़मीन के मालिक से एक सौदा करते हैं। मैं आपको आज 1 लाख रुपये टोकन मनी (बयाना) देता हूँ। मैं 2 महीने बाद आपसे यह ज़मीन 50 लाख में ही खरीदूँगा। अगर 2 महीने में मैं नहीं आया, तो आप मेरे 1 लाख रुपये जब्त कर लेना (नॉन-रिफंडेबल) और ज़मीन किसी और को बेच देना। यह 1 लाख रुपये ही ऑप्शन प्रीमियम है। यह 2 महीने का समय ही एक्सपायरी है और यह 50 लाख रु. ही स्ट्राइक प्राइस (Strike Price) है।
इस ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट (Options contract) में के ऑप्शन खरीदार क्या कर सकता है-
सीन 1: हाईवे की घोषणा हो गई, ज़मीन की कीमत 70 लाख हो गई। आप तुरंत मालिक के पास जाते हैं। अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं और 50 लाख रुपये में ज़मीन खरीद लेते हैं। आपका कुल फायदा: 70 लाख (कीमत) - 50 लाख (खरीदी) - 1 लाख (टोकन) = 19 लाख रूपये का शुद्ध मुनाफा होता है।
सीन 2: हाईवे की योजना रद्द हो गई, ज़मीन की कीमत गिरकर 40 लाख हो गई। क्या आप अब 50 लाख में वह ज़मीन खरीदेंगे? बिलकुल नहीं! आप अपने अधिकार का प्रयोग नहीं करने का फैसला करते हैं। आप मालिक को कहते हैं, मुझे यह सौदा नहीं करना। आपका अधिकतम नुकसान कितना हुआ? सिर्फ वह 1 लाख रूपये का टोकन मनी (प्रीमियम)।
- कॉल ऑप्शन (Call Option): इसका अर्थ है, खरीदने का अधिकार (Right to BUY)। कब खरीदते हैं, जब आपको लगता है कि मार्केट ऊपर जाएगा (तेज़ी)। (ऊपर दिया ज़मीन का उदाहरण एक कॉल ऑप्शन था)।
- पुट ऑप्शन (Put Option): इसका अर्थ है, बेचने का अधिकार (Right to SELL)। कब खरीदते हैं, जब आपको लगता है कि शेयर मार्केट नीचे गिरेगा (मंदी)। (यह आपके स्टॉक पोर्टफोलियो के लिए "बीमा" (Insurance) खरीदने जैसा है।
सबसे ज़रूरी कॉन्सेप्ट: Option Buying vs. Option Selling. यह F&O का वह हिस्सा है जहाँ 90% नए लोग गलती करते हैं। ऑप्शंस के सौदे में हमेशा दो लोग होते हैं-
1. ऑप्शन खरीदार (Option Buyer):
- वह व्यक्ति जो प्रीमियम (टोकन मनी) देता है।
- ऑप्शन बायर की मानसिकता: "मैं छोटी फीस देकर एक अधिकार खरीद रहा हूँ।"
- रिस्क सीमित: ज़्यादा से ज़्यादा उसका दिया हुआ प्रीमियम ज़ीरो हो जाएगा (जैसे, 1 लाख का टोकन)
- मुनाफा असीमित: अगर बाज़ार उसकी दिशा में (जैसे, ज़मीन 70 लाख की हो गई) तेज़ी से बढ़ा।
- जीतने की संभावना कम: बाज़ार को आपकी दिशा में और तेज़ी से चलना होगा।
2. ऑप्शन विक्रेता (Option Seller / Writer)
- वह व्यक्ति जो प्रीमियम (टोकन मनी) लेता है और कॉन्ट्रैक्ट "लिखता" है।
- ऑप्शन सेलर की मानसिकता: "मैं प्रीमियम लेकर एक वादा (Obligation) बेच रहा हूँ।" (यह फ्यूचर ट्रेडर की तरह है)।
- रिस्क असीमित: अगर बाज़ार खरीदार की दिशा में गया (जैसे, ज़मीन 70 लाख की हो गई, तो उसे 50 लाख में बेचनी पड़ेगी)।
- मुनाफा सीमित: ज़्यादा से ज़्यादा उसे सिर्फ मिला हुआ प्रीमियम ही मिलेगा (जैसे, 1 लाख का टोकन)।
- जीतने की संभावना ज़्यादा (High): अगर बाज़ार कहीं नहीं गया, धीरे चला, या उलटा चला, तो भी उसे प्रीमियम मिल जाता है।
यह एक ट्रैप है! नए ट्रेडर "सीमित घाटा, असीमित मुनाफा देखकर ऑप्शन बाइंग (Option Buying) की तरफ भागते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि ऑप्शन बाइंग में जीतने की संभावना कम होती है। प्रोफेशनल ट्रेडर्स और इंस्टिट्यूशन्स ज़्यादातर ऑप्शन सेलिंग (Option Selling) करते हैं क्योंकि वे संभावना (Probability) का खेल खेलते हैं। भले ही उसमें रिस्क असीमित हो (वे उस रिस्क को हेजिंग (Hedging) से मैनेज करते हैं)।
फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (Futures vs Options): असली मुकाबला
अब जब आप दोनों को अलग-अलग समझ गए हैं, तो आइए इन्हें आमने-सामने रखकर तुलना करते हैं। यही इस आर्टिकल का दिल है।
1. बाध्यता (Obligation) बनाम अधिकार (Right):
- फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट, यह एक बाध्यता (Obligation) है। अगर आपने कॉन्ट्रैक्ट किया है तो आपको एक्सपायरी पर सौदा पूरा करना ही होगा। चाहे आपको कितना भी घाटा हो रहा हो।
- ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट, यह एक अधिकार (Right) है (सिर्फ खरीदार के लिए)। अगर सौदा आपके पक्ष में है तो आप अपने अधिकार का प्रयोग करें। अगर सौदा आपके खिलाफ है तो आप अपने प्रीमियम को डूब जाने दें और बाहर निकल जाएँ। आपकी कोई बाध्यता नहीं है। (ध्यान दें: ऑप्शन सेलर के पास बाध्यता होती है)।
2. रिस्क और प्रॉफिट की तस्वीर (Risk & Reward Profile):
- फ्यूचर्स ट्रेडिंग में रिस्क असीमित (Unlimited) होता है। और प्रॉफिट भी असीमित (Unlimited) होता है।
- फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट एक दोधारी तलवार की तरह है। यह जितनी तेज़ी से अमीर बना सक हैता, उतनी ही तेज़ी से बर्बाद भी कर सकता है।
- ऑप्शंस बाइंग में रिस्क सीमित (जितना प्रीमियम दिया, बस उतना) होता है और प्रॉफिट असीमित होता है।
- लेकिन ऑप्शन सेलिंग में रिस्क असीमित होता है और प्रॉफिट सीमित यानि जितना प्रीमियम मिला, बस उतना होता है।
3. लागत: मार्जिन (Margin) बनाम प्रीमियम (Premium)
- Futures trading करने के लिए आपको एक बड़ी रकम मार्जिन मनी के तौर पर ब्लॉक करनी होती है। जैसे, निफ्टी फ्यूचर के लिए 1.5 लाख रुपये की जरूर होती है।
- ऑप्शन बाइंग में आपको सिर्फ एक छोटी रकम प्रीमियम के तौर पर चुकानी होती है। जैसे, निफ्टी का एक ऑप्शन शायद 5,000 रु. में आ जाए। यही कारण है कि नए लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं।
- Options selling आपको भी फ्यूचर्स की तरह ही मार्जिन मनी ब्लॉक करनी होती है क्योंकि आपका रिस्क असीमित है।
4. समय का प्रभाव (Time Decay / थीटा)
- यह वह किलर पॉइंट है जिसे नए ट्रेडर नहीं समझते। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट पर 'टाइम डीके' (Time Decay) का सीधा असर नहीं होता। अगर निफ्टी 10 दिन तक एक ही जगह खड़ा रहे,तो आपके निफ्टी फ्यूचर की कीमत भी लगभग वहीं खड़ी रहेगी।
- Options contract एक "गलने वाली आइसक्रीम" (Melting Ice Cream) की तरह हैं। हर गुज़रते दिन के साथ उनका प्रीमियम कम होता जाता है। भले ही निफ्टी कहीं न जाए। इसे 'थीटा डीके' (Theta Decay) कहते हैं।
- Time Decay ऑप्शन सेलर (Seller) का दोस्त है। सेलर चाहता है कि समय बीत जाए और प्रीमियम ज़ीरो हो जाए। ताकि वह पूरा प्रीमियम अपनी जेब में रख सके।
- थीटा ऑप्शन बायर (Buyer) का दुश्मन है: बायर सिर्फ दिशा में सही होकर नहीं जीत सकता। उसे दिशा और समय, दोनों के खिलाफ जीतना होता है। उसे इतना बड़ा मूव चाहिए जो 'थीटा डीके' को पछाड़ सके।
Futures & Options: आपके लिए क्या बेहतर है?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन हैं और आपका लक्ष्य क्या है? अगर आप एक ट्रेडर (Speculator) हैं तो फ्यूचर्स ट्रेडिंग तब करें, जब आप मार्केट ट्रेंड को लेकर बहुत ज़्यादा आश्वस्त (Confident) हों और आपके पास ज़्यादा मार्जिन देने के लिए पूँजी हो। यह सीधा खेल है आपको या तो बड़ा फायदा या बड़ा नुकसान।
ऑप्शन बाइंग तब चुनें जब आपको लगता है कि मार्केट में बहुत तेज़ और बड़ा मूव जैसे बजट के दिन, इलेक्शन रिजल्ट कंपनियों के तिमाही परिणामआदि इवेंट आने वाले हों। साथ ही आपके पास पूँजी कम हो और आप रिस्क को सीमित रखना चाहते हों।
ऑप्शन सेलिंग प्रोफेशनल ट्रेडर्स का खेल है। यह तब चुनें जब आपको लगता है कि शेयर मार्केट एक दायरे में रहेगा (Sideways) या धीरे-धीरे चलेगा। इसके लिए ज़्यादा पूँजी और रिस्क मैनेजमेंट की गहरी समझ चाहिए।
अगर आप एक निवेशक (Investor / Hedger) हैं, F&O का असली मकसद सट्टा (Speculation) नहीं, बल्कि हेजिंग (Hedging) यानी 'रिस्क से बचाव' करना है। उदाहरण: मान लीजिए आपके पास रिलायंस के 10 लाख रु. के शेयर हैं। आपको डर है कि अगले महीने बाज़ार गिर सकता है।
फ्यूचर हेजिंग: आप रिलायंस का 1 फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट 'शॉर्ट' (Short/बेच) सकते हैं। अगर रिलायंस गिरा, तो आपके शेयरों में नुकसान होगा, लेकिन फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में उतना ही फायदा हो जाएगा। आपका पोर्टफोलियो लॉक हो गया।
ऑप्शन हेजिंग: आप रिलायंस का एक 'पुट ऑप्शन' (Put Option) खरीद सकते हैं। यह आपके पोर्टफोलियो के लिए "बीमा" (Insurance) खरीदने जैसा है। अगर रिलायंस गिरा, तो पुट ऑप्शन की कीमत बढ़ जाएगी और आपके नुकसान की भरपाई हो जाएगी। अगर रिलायंस ऊपर गया, तो आपका बस छोटा सा प्रीमियम (बीमे की किश्त) का नुकसान होगा।
अगर आप बिलकुल शुरुआती (Beginner) ट्रेडर् या इन्वेस्टर हैं। यानि अगर आप बिलकुल नए हैं, तो F&O से 6 महीने दूर रहें। F&O ट्रेडिंग सीखना, कार चलाना सीखने जैसा नहीं है; यह एक हवाई जहाज़ उड़ाना सीखने जैसा है। एक छोटी सी गलती और सब खत्म।
पहले कैश मार्केट (Cash Market) में इक्विटी शेयर खरीदना और बेचना सीखें। बाज़ार की चाल (Market Movement), सपोर्ट, रेजिस्टेंस और कैंडलस्टिक पैटर्न को समझें। जब आप कैश मार्केट में लगातार 6 महीने तक प्रॉफिट में रहने लगें, तब F&O के बारे में सोचना शुरू करें।
जब F&O trading शुरू करें, तो पहले ऑप्शन हेजिंग (Option Hedging) या ऑप्शन सेलिंग (Option Selling) की स्ट्रेटेजी सीखें, न कि रातों-रात अमीर बनने वाली 'ऑप्शन बाइंग' की।
निष्कर्ष: आपका अगला कदम क्या होना चाहिए? Futures contract एक "पक्का वादा" है, जिसमें असीमित लाभ और असीमित रिस्क होता है। लेकिन इसके लिए ज़्यादा मार्जिन लगता है। बायर के लिए Options एक अधिकार होता है। ऑप्शन बाइंग में कम पूँजी लगती है और रिस्क सीमित होता है लेकिन जीतने की संभावना कम होती है।
ऑप्शन सेलिंग में ज़्यादा पूँजी लगती है और रिस्क असीमित होता है लेकिन जीतने की संभावना ज़्यादा होती है। F&O trading कोई जुआ नहीं है, अगर आप इसे हेजिंग (बचाव) के लिए इस्तेमाल करते हैं। अगर आप इसे बिना सीखे, रातों-रात अमीर बनने की स्कीम समझकर इस्तेमाल करते हैं तो यह जुए से भी बदतर है।
फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस, दोनों ही बहुत शक्तिशाली हथियार हैं लेकिन एक अनट्रेंड आदमी के हाथ में एक शक्तिशाली हथियार भी विनाशकारी ही होता है। अतः पहले सीखें और पेपर ट्रेड करें। अपने ज्ञान को मज़बूत करें। फाइनेंशियल मार्केट आपको पैसा बनाने के लिए रोज़ मौके देगा लेकिन आपकी मेहनत की पूँजी, जो एक गलती से चली गई, वो शायद वापस न आए।
F&O से जुड़े सामान्य सवाल (FAQs)
Q1: क्या F&O जुआ (Gambling) है?
A1: नहीं, अगर आप इसे रिस्क मैनेजमेंट (Hedging) के लिए इस्तेमाल करते हैं। हाँ, यह जुआ ही है, अगर आप बिना किसी ज्ञान, स्ट्रेटेजी या रिस्क मैनेजमेंट के सिर्फ 'टिप' के आधार पर ट्रेड कर रहे हैं।
Q2: शुरुआती लोगों के लिए क्या बेहतर है, फ्यूचर्स या ऑप्शन?
A2: सच कहा जाए, तो दोनों ही नहीं। शुरुआती लोगों को पहले कैश मार्केट (इक्विटी) में अनुभव लेना चाहिए। अगर फिर भी F&O में आना है तो 'ऑप्शन बाइंग' सबसे खतरनाक है क्योंकि यह प्रीमियम ज़ीरो होने का नशा लगा देती है। फ्यूचर्स भी बहुत रिस्की होते हैं।
Q3: क्या मैं ऑप्शन खरीदकर अमीर बन सकता हूँ?
A3: सैद्धांतिक रूप से हाँ क्योंकि इसमें असीमित मुनाफा है। लेकिन हकीकत में 90% से ज़्यादा ऑप्शन बायर (Option Buyers) 'टाइम डीके' (Theta Decay) के कारण अपना पैसा गँवा देते हैं। यह दिखने में आसान है, पर करने में सबसे मुश्किल है।
Q4: ऑप्शन सेलिंग में ज़्यादा पैसा क्यों चाहिए?
A4: क्योंकि ऑप्शन सेलर (Seller) का रिस्क असीमित (Unlimited) होता है। अगर बाज़ार उसके खिलाफ गया, तो उसे भारी नुकसान हो सकता है। ब्रोकर उस असीमित रिस्क को कवर करने के लिए आपसे पहले ही एक बड़ा मार्जिन ब्लॉक करवा लेता है।
Q5: F&O में लीवरेज (Leverage) का क्या मतलब है?
A5: लीवरेज का मतलब है 'उधार की ताकत'। यानी आप 1 लाख रु. लगाकर 10 लाख रुपये के सौदे को कंट्रोल कर रहे हैं। यह आपके मुनाफे को 10 गुना बढ़ा सकता है तो यह आपके घाटे को भी 10 गुना बढ़ा सकता है और आपकी पूरी पूँजी को ज़ीरो कर सकता है।

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