Strike price in Options contracts: ऑप्शन ट्रेडिंग में स्ट्राइक प्राइस क्या होता है?
ऑप्शन ट्रेडिंग करने वाले ज्यादातर लोगों ने स्ट्राइक प्राइस के बारे में जरूर सुना होगा। एक ऑप्शन का स्ट्राइक प्राइस वह प्राइस है, जिस पर एक पुट या कॉल ऑप्शन का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे एक्सरसाइज प्राइस के रूप में भी जाना जाता है।
स्ट्राइक प्राइस दो मुख्य निर्णयों में से एक होता है। दूसरा निर्णय एक्सपायरी डेट होता है। एक इन्वेस्टर या ट्रेडर को स्ट्राइक प्राइस और एक्सपायरी डेट का चयन करके ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट खरीदना चाहिए। आइए विस्तार जानते हैं- ऑप्शन में स्ट्राइक प्राइस (Strike price in Options contracts) क्या होता है? Strike price in Options kya hai? in Hindi.
अपनी जिंदगी में रिच डैड पुअर डैड बुक कम से कम एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। जितनी कम उम्र में पढ़ ले उतना अच्छा है।
स्ट्राइक प्राइस क्या होता है?
ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट एक डेरिवेटिव प्रोडक्ट होता है, जो अंडरलाइंग एसेट होल्डर्स को इसे भविष्य में पूर्वनिर्धारित प्राइस पर खरीदने और बेचने का अधिकार देता है। लेकिन इस खरीदे और बेचे हुए अंडरलाइंग स्टॉक को वापस खरीदने या बेचने के लिए बाध्य नहीं करता है। यही प्राइस, स्ट्राइक प्राइस (Exercise Price) के नाम से जाना जाता है।
कॉल ऑप्शन के लिए स्ट्राइक प्राइस वह प्राइस है, जिस पर ऑप्शन होल्डर द्वारा अंडरलाइंग स्टॉक खरीदा जाता है। पुट ऑप्शन के लिए स्ट्राइक प्राइस वह प्राइस है, जिस पर अंडरलाइंग स्टॉक बेचा जाता है।
किसी भी ऑप्शन की वैल्यू उसके फिक्स स्ट्राइक प्राइस और उसके अंडरलाइंग स्टॉक के मार्केट प्राइस के बीच के अंतर से होती है। जिसे ऑप्शंस के 'मनीनेस' के रूप में जाना जाता है।
कॉल ऑप्शन में जब मार्केट प्राइस, स्ट्राइक प्राइस से कम होता है। तब उसे "इन-द-मनी" (ITM)ऑप्शन कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आप मार्केट से कम प्राइस पर स्टॉक्स खरीदने के ऑप्शन का उपयोग कर सकते हैं।
इसी तरह "इन द मनी" (ITM) पुट ऑप्शन, वे ऑप्शन होते हैं, जिनका स्ट्राइक प्राइस,उनके मार्केट प्राइस से अधिक होता है। जिससे मौजूदा ऑप्शन होल्डर्स को स्टॉक्स को मौजूदा प्राइस से अधिक पर बेचने का अधिकार मिलता है। यही चीज 'इन द मनी' ऑप्शन को इन्ट्रिंसिक वैल्यू (आंतरिक मूल्य) देती है।
Strike Price के मुख्य बिंदु
- Strike price, ऑप्शन प्राइस का वह प्राइस है, जिस पर अंडरलाइंग स्टॉक को खरीदा और बेचा जा सकता है।
- स्ट्राइक प्राइस, एक्सरसाइज प्राइस के रूप में भी जाना जाता है। यह ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट की मुख्य विशेषता है।
- स्ट्राइक प्राइस और अंडरलाइंग स्टॉक के प्राइस के बीच का अंतर यह निर्धारित करता है कि ऑप्शन "इन-द- मनी" है या "आउट-ऑफ़-द-मनी" है।
- इन-द-मनी (ITM) ऑप्शंस का आंतरिक मूल्य (इन्ट्रिंसिक वैल्यू) होता है क्योंकि इनकी स्ट्राइक प्राइस कॉल ऑप्शन के लिए मार्केट प्राइस से कम होती हैं। इसी तरह पुट ऑप्शन के लिए मार्केट प्राइस से ज्यादा होती हैं।
- "एट-द-मनी" स्ट्राइक प्राइस, ऑप्शंस का वह प्राइस होता है जो अंडरलेइंग स्टॉक के मार्केट प्राइस के बराबर होता है।
स्ट्राइक प्राइस को कैसे समझें?
Strike price, ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स की मुख्य की, यानि चाबी होती है। जो यह बताता है कि किस प्राइस पर ऑप्शन होल्डर्स अंडरलाइंग स्टॉक खरीद या बेच सकते हैं। ऑप्शंस मार्केट में स्टॉक्स और इंडेक्स बहुत सारे अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस पर लिस्ट होते हैं।
जैसे निफ्टी 50 इंडेक्स का मार्केट प्राइस 17,000 ट्रेड रहा है। तो 17,050 की स्ट्राइक प्राइस के कॉल ऑप्शन होल्डर को ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट की एक्सपायरी तक या उससे पहले उसे खरीदने का अधिकार देता है।
इसका मतलब यह है कि यदि निफ्टी 50 का प्राइस गिरता है, इससे इसकी वैल्यू कम होगी लेकिन इससे अंडरलेइंग स्टॉक की वैल्यू बढ़ेगी। यदि यह एक्सपायरी डेट तक या उससे पहले 17050 तक नहीं पहुंच पाता है तो यह कॉल ऑप्शन वर्थलेस ही एक्सपायर हो जायेगा।
ऐसा इसलिए क्योंकि "इन-द-मनी" Strike price की एक्सपायरी के दिन भी वैल्यू रहती है। आप उस अंडरलाइंग स्टॉक को कम में खरीद भी सकते हैं। लेकिन अगर आपके ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट का स्ट्राइक प्राइस "आउट-ऑफ़-द-मनी" हो गया तो एक्सपायरी के दिन इसकी वैल्यू जीरो हो जाएगी। इसकी वजह से आपको प्रीमियम का नुकसान भुगतना पड़ेगा।
स्ट्राइक प्राइस और अंडरलाइंग में सम्बन्ध
एक ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट का प्राइस, ऑप्शन प्रीमियम के नाम से जाना जाता है। ऑप्शन बायर प्रीमियम का भुगतान ऑप्शन सेलर को अधिकार के लिए करता है लेकिन उसपर इसका कोई दायित्व नहीं होता है, ऑप्शन को एक्सरसाइज करने के लिए।
अंडरलेइंग स्टॉक मार्केट प्राइस और Strike price के बीच के अंतर से ऑप्शन की वैल्यू तय होती है। जिसे ऑप्शन की "मनीनेस" के रूप में जाना जाता है। पुट-कॉल ऑप्शन
ऑप्शन जितना अधिक "इन-द-मनी" होता है, उसका प्रीमियम उतना ही अधिक होता है। जैसे-जैसे स्ट्राइक प्राइस और अंडरलेइंग एसेट के बीच का अंतर कम होता जाता है। ऑप्शंस अधिक महँगे होते जाते हैं, जब स्ट्राइक प्राइस अधिक हो जाती है, तो वो "इन-द-मनी" होते हैं।
इसी तरह एक ऑप्शन अपनी कीमत तब खो देता है। जब स्ट्राइक प्राइस, अंडरलाइंग स्टॉक के प्राइस से बहुत अंतर हो जाता है। इस तरह ऑप्शन का प्राइस गिर जाता है और ऑप्शन आउट-ऑफ़-द-मनी" हो जाता है।
मनीनेस (Moneyness) के प्रकार
स्ट्राइक प्राइस तीन प्रकार की होती है, इन-द-मनी, एट-द-मनी और आउट-ऑफ-द-मनी। यदि कॉल ऑप्शन का स्ट्राइक प्राइस अंडरलाइंग स्टॉक के प्राइस से अधिक है। तो इसका मतलब वह कॉल ऑप्शन "आउट-ऑफ द मनी" (OTM) है। इस ऑप्शन का इन्ट्रिंसिक वैल्यू नहीं होती है।
इसमें एक्सपायरी डेट तक वोलेटिलिटी के कारण इसका बाहरी मूल्य ही है। अंडरलेइंग स्टॉक के प्राइस में उछाल आने पर आउट-ऑफ-द-मनी पोजीशन में प्रॉफिट हो सकता है। इससे यह पोजीशन "इन-द-मनी" पोजीशन में बदल सकती है। जिसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू होती है।
जिस पुट ऑप्शन का स्ट्राइक प्राइस हाई होता है। वह पुट ऑप्शन "इन-द-मनी" होता है क्योंकि आप शेयर को मार्केट से अधिक प्राइस पर बेच सकते हैं। उसके बाद फिर गारंटीकृत प्रॉफिट के लिए स्टॉक्स को वापस खरीद भी सकते हैं। इसके बजाय पुट ऑप्शन तब भी "इन-द-मनी" होता है। जब उसका स्ट्राइक प्राइस से उसके अंडरलाइंग एसेट का प्राइस कम होता है।
"आउट-ऑफ-द-मनी" पुट ऑप्शन की भी कोई इन्ट्रिंसिक वैल्यू नहीं होती है। इसका एक्सपायरी डेट तक वोलेटिलिटी के कारण इसका बाहरी मूल्य ही होता है। अंडरलाइंग स्टॉक के प्राइस में गिरावट आने पर "आउट-ऑफ-द-मनी' पोजीशन में प्रॉफिट हो सकता है।
जिन ऑप्शंस का मौजूदा मार्केट प्राइस उसकी स्ट्राइक प्राइस के करीब होता है उन ऑप्शंस को एट-द-मनी ऑप्शंस के रूप में जाना जाता है। "एट-द-मनी" ऑप्शंस सबसे ज्यादा लिक्विड (वॉल्यूम) और एक्टिव ऑप्शंस होता हैं। यानि इनमें सबसे ज्यादा कारोबार होता है। फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट
स्ट्राइक प्राइस और ऑप्शन डेल्टा
ऑप्शन डेल्टा प्राइस को मापने का एक तरीका होता है। जोकि अंडरलाइंग स्टॉक में एक रूपये की चाल के बाद प्रीमियम में क्या बदलाव होगा यह बताता है। अलग-अलग Strike price के डेल्टा में बदलाव भी अलग-अलग प्राइस का होता है। "एट-द-मनी" कॉल का डेल्टा +.50 होगा है, इसी तरह "एट-द-मनी" पुट का डेल्टा -.50 होगा है।
डेल्टा कॉल ऑप्शन के लिए पॉजिटिव और पुट ऑप्शन के लिए नेगेटिव होता है। ऑप्शन जितना डीप "इन-द-मनी" होगा उसके प्राइस में परिवर्तन भी ज्यादा जल्दी और ज्यादा होगा। रिवर्स ऑप्शन स्ट्रेटजी
इसके विपरीत डीप "आउट-ऑफ-द-मनी" ऑप्शन का डेल्टा जीरो के करीब होता है। ये ऑप्शंस करीब-करीब बेकार होते हैं। डीप "आउट-ऑफ-द-मनी" ऑप्शंस सस्ते होते हैं लेकिन आपको सस्ते ऑप्शन होने की वजह से इनमे कभी भी पोजीशन नहीं बनानी चाहिए। इनमें ट्रेडर को ज्यादातर नुकसान ही होता है।
सैद्धांतिक रूप से ऑप्शंस का प्रीमियम इस संभावना से जुड़ा होना कि यह "इन-द-मनी" समाप्त हो जाय। इस बात की संभावना जितनी अधिक होगी। उतना ही उन ऑप्शंस के द्वारा प्रदान किये जाने वाले अधिकार का मूल्य भी अधिक होगा। ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स की प्राइस हमेशा निम्नलिखित पाँच इनपुट के आधार पर निर्भर करती हैं-
- Market price
- Strike price
- Time to expiration
- Interest rate
- Volatility
वोलेटिलिटी के कारण जितना उतार-चढ़ाव होगा।
उतना ही मार्केट प्राइस के स्ट्राइक प्राइस तक पहुंचने की ज्यादा संभावना होगीं। जिस ऑप्शन की एक्सपायरी डेट जितनी ज्यादा दूर होगी और वह जितना ज्यादा वोलेटाइल होगा। उस ऑप्शन का प्रीमियम उतना ही ज्यादा होगा।
स्ट्राइक प्राइस के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल निम्नलिखित हैं-
कौन से स्ट्राइक प्राइस अधिक वांछनीय होते हैं?
कौन सा स्ट्राइक प्राइस अधिक वांछनीय है? यह सवाल ट्रेडर के रिस्क सहने की क्षमता और ऑप्शन प्रीमियम पर निर्भर करता है। कई ऑप्शन ट्रेडर उन ऑप्शंस को लेना पसंद करते हैं। जिनका स्ट्राइक प्राइस, उनके स्टॉक के मार्केट प्राइस (इन-द-मनी) के करीब होता है। फाल्स ब्रेकआउट
इस ऑप्शन के प्रॉफिट में आने के चांस अधिक होते हैं। उसी समय कुछ ट्रेडर जानबूझकर ऐसे (आउट-ऑफ-द-मनी) ऑप्शंस की तलाश करते हैं जो मार्केट प्राइस से काफी दूर होते हैं। ये ऑप्शन सस्ते होते हैं अगर एक्सपायरी डेट से पहले ये ऑप्शन strike price के करीब आ गए तो इनसे बहुत अच्छा प्रॉफिट होता है।
क्या स्ट्राइक प्राइस और एक्सरसाइज प्राइस समान होते हैं?
हाँ, स्ट्राइक प्राइस और एक्सरसाइज प्राइस एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। ऑप्शन ट्रेडर इन दोनों में से चाहें जिस टर्म का उपयोग करें लेकिन उसका मतलब समान ही होगा। ऑप्शन मार्केट में दोनों ही शब्दों का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। शेयर मार्केट कैसे सीखें?
स्ट्राइक प्राइस और स्पॉट प्राइस में क्या अंतर है?
ऑप्शंस का स्ट्राइक प्राइस आपको बताता है कि आप अंडरलाइंग स्टॉक को किस प्राइस पर खरीद और बेच सकते हैं। जब आप ऑप्शन का प्रयोग करते हैं। स्ट्राइक प्राइस और स्पॉट प्राइस के बीच का अंतर ऑप्शंस की मनीनेस और उसकी वैल्यू को बताता है।
सारांश: एक ऑप्शन का स्ट्राइक प्राइस आपको बताता है कि आप अंडरलाइंग स्टॉक को किस प्राइस पर खरीद (कॉल के मामले में) सकते हैं और किस प्राइस पर बेच (पुट के मामले में) सकते हैं। स्ट्राइक प्राइस और स्पॉट प्राइस के बीच के अंतर को 'मनीनेस' कहा जाता है।
जिससे इसके आंतरिक मूल्य को मापा जाता है। इन-द-मनी ऑप्शंस का आंतरिक मूल्य होता है। क्योंकि इन्हे एक गारंटीकृत लाभ के लिए स्ट्राइक प्राइस पर प्रयोग किया जाता है। ये ऑप्शंस वर्तमान मार्केट प्राइस के अनुकूल होते हैं।
"आउट-ऑफ-द मनी" ऑप्शंस की इन्ट्रिंसिक वैल्यू नहीं होती है, लेकिन इनका बहरी मूल्य या टाइम वैल्यू होता है। अंडरलाइंग स्टॉक एक्सपायरी डेट से पहले स्ट्राइक प्राइस तक जा सकता है। "एट-द-मनी" ऑप्शंस में स्ट्राइक प्राइस, वर्तमान मार्केट प्राइस (spot price) के बेहद करीब होता है। "एट-द-मनी" ऑप्शंस में हाई वॉल्यूम और हाई वोलेटिलिटी होती है।
उम्मीद है, आपको यह आर्टिकल ऑप्शन में स्ट्राइक प्राइस क्या होता है? पसंद आया होगा। अगर आपको यह Strike price in Options kya hai? in Hindi. आर्टिकल पसंद आये तो इसे सोशल मिडिया पर जरूर शेयर करें।
शेयर मार्केट के बारे में ऐसी ही ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आप इस साइट को जरूर सब्स्क्राइब करें। यदि आपके मन में शेयर मार्केट या ऑप्शन मार्केट के बारे में कोई सवाल या सुझाव हो तो कमेंट जरूर करें। आप मुझे Facebook पर भी जरूर फॉलो करें।
कोई टिप्पणी नहीं