फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट ( Forwards Contract) की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में।
फसलों के प्राइस को हेज (hedge) करने के लिए फॉरवर्ड कंट्रेक्ट की शुरुआत हुई बाद में इसका अन्य क्षेत्रों में भी विस्तार हो गया। फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट एक प्रकार का डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट है जो स्टॉक, कमोडिटी और विदेशी और देशी करेंसी में भी हो सकता है। इसे हिंदी में वायदा बाजार भी कहा जाता है। विस्तार से जानते हैं- फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट ( Forwards Contract) की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में। Forwards contract kya hain in Hindi.
मल्टीबैग स्टॉक्स कैसे खोजें और कब उनमें निवेश करें तथा कब प्रॉफिट बुक करें आप बेंजामिन ग्राहम द्वारा लिखित द इंटेलीजेंट इन्वेस्टर बुक को जरूर पढ़ना चाहिए।
Forwards Contract का ओवरव्यू
फ्यूचर मार्केट फाइनेंशियल डेरीवेटिव मार्केट का एक अभिन्न अंग है, जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है। यह एक डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट है जिसका मूल्य इसकी अंतर्निहित सम्पत्ति (Underlaying Asset or अंडरलेइंग एसेट) पर निर्भर करता है। डेरिवेटिव दो या दो से अधिक लोगों के बीच एक कॉट्रेक्ट का प्रतिनिधित्व करता है। रूस के शेयर मार्केट इसकी कीमत में अंतर्निहित सम्पत्ति (asset) की कीमत के अनुसार इसकी कीमत उतार-चढ़ाव होता रहता है।
अंडरलेइंग एसेट बॉन्ड, कमोडिटी, स्टॉक और करेंसी कुछ भी हो सकती है। फाइनेंशियल डेरीवेटिव का चलन काफी पुराने समय से चल रहा है, चाणक्य द्वारा लिखित किताब अर्थशास्त्र में भी भविष्य में कटाई के लिए तैयार फसल के मूल्य निर्धारण के तंत्र के बारे में बताया गया है। यानि कि चाणक्य ने किसानों को अग्रिम भुगतान के लिए इस तंत्र का उपयोग किया था। जिससे एक सही forwards contract की संरचना हुई। इसे हिंदी में वायदा कारोबार भी कहा जाता है।
फॉरवर्ड और फ्यूचर मार्केट की समानता को देखते हुए ऐसा लगता है कि फ्यूचर मार्केट को अच्छे से समझने के लिए पहले फॉरवर्ड मार्केट को समझ लिया जाय तो फ्यूचर मार्केट भी आसानी से समझ में आ जायेगा। ब्रेकआउट ट्रेडिंग फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट डेरिवेटिव का सबसे सरल रूप है, फ्यूचर और फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट दोनों ही में एक समान, बहुत सी सामान्य तरीके से लेनदेन होता है।
धीरे-धीरे फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट ट्रेडर की पहली पसंद बन गए, forwards contract अभी भी चलन में हैं लेकिन अब बहुत कम लोग ही इसमें सौदे करते हैं। बैंक और बिजनेस इंडस्ट्री के लोग ही फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट में सौदे करते हैं।
Forwards contract कैसे काम करता है?
फॉरवर्ड मार्केट को मुख्य रूप से किसानों की फसलों के भाव में होने वाले उतार-चढ़ाव, से उनके के हितों की रक्षा करने के लिए बनाया गया था। फॉरवर्ड मार्केट में क्रेता और विक्रेता के बीच नगदी (cash) के लिए माल (कमोडिटी) का आदान-प्रदान करने के लिए सहमत होते हैं।
लेनदेन भविष्य में आने वाली एक निश्चित तारीख पर और निश्चित प्राइस पर होता है। फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट रोलओवर कमोडिटी की कीमत उसी दिन तय की जाती है, जिस दिन उनके बीच समझौता होता है। Forwards Contract में कमोडिटी की डिलीवरी और समय भी तय होता है, इसमें समझौते में कोई तीसरा पक्ष शामिल नहीं होता है।
समझौता केवल क्रेता और विक्रेता के बीच आमने-सामने होता है। समझौते को "ओवर द काउंटर" या OTC कहा जाता है। फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट का व्यवसाय केवल OTC (ओवर द काउंटर) मार्केट में किया जा सकता है। जहां लोग/संस्थाएँ बातचीत के माध्यम से व्यापार करती हैं। जैसे कि मान लीजिए एक कपड़ा मिल का मालिक है जो कपास से धागा बनाता है। दूसरा एक व्यपारी है जो मिल मालिकों को थोक में कपास बेचता है।
10-02 2018 को दोनों के बीच एक समझौता होता जिसके अनुसार मिल मालिक तीन महीने (10-05-2018) में कपास के व्यपारी से पंद्रह कुन्टल कपास खरीदने पर सहमति व्यक्त करता है। रिवर्स ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटजी वे कपास की कीमत उसके मौजूदा मूल्य पर तय करते हैं, जो की दो सौ रूपये प्रति किलोग्राम है। इस समझौते के अनुसार इस समझौते के अनुसार 10-05-2018 को मिल मालिक कपास के बदले, कपास के व्यापारी को तीस लाख रूपये का भुगतान करेगा।
यह एक बहुत ही साधारण और विशिष्ट समझौता है जिसका प्रयोग Forwards Contract या फॉरवर्ड एग्रीमेंट में किया जाता है। उपर्युक्त उदाहरण मे इस समझौते को 10-02-2018 को किया गया था। तीन महीने बाद यदि कपास की कीमत में अन्तर आता है तब भी दोनों ही पक्ष इस समझौते को मानने के लिए बाध्य हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि मिल मालिक ने इस समझौते को क्यों किया? मिल मालिक ने इस समझौते को इसलिए किया क्योंकि उसका मानना है की तीन महीने बाद कपास की कीमत बढ़ जाएगी। डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खोले फ्री में अतः उसने अभी की कीमत पर तीन महीने बाद का समझौता कर लिया। Forwards Contract में अभी की कीमत पर कमोडिटी खरीदने के लिए सहमत होने वाले को फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट का खरीदार (buyer of the forwards contract) कहा जाता है।
इसी तरह कपास के व्यापारी को लगता है कि तीन महीने बाद कपास की कीमत गिर जाएगी इसलिए उसने तीन महीने बाद का समझौता आज की कीमत पर कर लिया। फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट में भविष्य में किसी कीमत पर कमोडिटी को बेचने वाले को फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट का विक्रेता (seller of the forwards contract) कहा जाता है।
कपास की कीमत को लेकर दोनों पक्षों का दृष्टिकोण अलग-अलग है। एक पक्ष सोचता है कि आने वाले समय में कपास की कीमत गिर जाएगी। जबकि दूसरा पक्ष सोचता है कि आने वाले समय में कपास की कीमत बढ़ जाएगी। मान लीजिये आने वाले समय में कपास की कीमत बढ़ जाती है तो इस स्थिति में मिल मालिक (खरीदार) को फायदा होगा। क्योंकि उसे कपास की कीमत बढ़ जाने के बावजूद Forward contract की वजह से कम कीमत (पुरानी कीमत) पर कपास मिल जाएगी। इस स्थिति में कपास के व्यापारी (विक्रेता) को नुकसान होगा।
इसी तरह मान लीजिये यदि आने वाले समय में कपास की कीमत गिर जाती है तो इस स्थिति में कपास के व्यापारी को फायदा होगा। कपास की कीमत कम होने बावजूद वह फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट की वजह से उसकी कपास ज्यादा कीमत (पुरानी कीमत) पर बिकती है। ऑप्शन ट्रेडिंग इस स्थति में कपास के व्यापारी को फायदा होता है और मिल मालिक को नुकसान होता है।
Forward Contract का सेटलमेंट
फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट में क्रेता और विक्रेता के बीच हुए समझौते के सेटलमेंट के दो तरीके होते हैं। पहला तरीका यह है कि खरीदार विक्रेता को उसके माल का पूरा पेमेंट करता है। इसे फिजिकल सेटलमेंट कहते हैं। दूसरा तरीका होता है कैश सेटलमेंट, इसमें माल की कोई डिलीवरी नहीं होती है। इसमें खरीदार और विक्रेता केवल प्रॉफिट और लॉस का कैश में सेटलमेंट करते हैं, इसे कैश सेटलमेंट कहा जाता है।
Forward Contract में क्या जोखिम हो सकते हैं?
फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट एग्रीमेंट में इससे जुड़े जोखिमों के बारे में बताया जाता है। इसमें सबसे बड़ा जोखिम तो कमोडिटी की कीमत में होने वाले उतार-चढ़ाव का होता है। प्राइस एक्शन समझौते में विपरीत दृष्टिकोण के साथ शामिल दोनों पार्टियों के बीच समझौता होना उतना भी आसान नहीं है जितना कि लगता है।
समझौते के लिए इच्छुक पार्टी एक निवेश बैंक से सम्पर्क करेगी जो उसके विपरीत दृष्टिकोण रखने वाली पार्टी को खोजने के लिए मार्केट में छानबीन करेगा। निवेश बैंक इसकी फीस लेते हैं, साथ ही इसमें डिफ़ॉल्ट और काउंटर पारी रिस्क भी होता है। नुकसान होने पर दूसरी पार्टी समझौते से अगल भी हो सकती है या डिफ़ॉल्ट भी कर सकती है।
फॉरवर्ड कॉट्रेक्ट के बीच में कोई नियामक प्राधिकरण नहीं होता है इसलिए इसमें शामिल पक्षों पर इस समझौते का पालन करने के लिए कोई दबाव नहीं होता है। अतः वह इस समझौते से मुकर भी सकते हैं। Forward Contract को बीच में समाप्त नहीं किया जा सकता है। उपर्युक्त जोखिमों की वजह से ही फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट की स्थापना हुई है।
इस आर्टिकल के मुख्य बिंदु
- फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट ने ही फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट के लिए आधार तैयार किया है।
- फॉरवर्ड एक OTC डेरिवेटिव है जिसका एक्सचेंज पर कारोबार नहीं होता है।
- फॉरवर्ड कॉट्रेक्ट निजी समझौते होता हैं जिनकी शर्ते प्रत्येक एग्रीमेंट में अलग-अलग होती हैं।
- इसमें सम्पत्ति खरीदने वाली पार्टी को "फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट का खरीदार" कहा जाता है।
- इसी तरह संपत्ति बेचने वाली पार्टी को "फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट का विक्रेता" कहा जाता है।
- Forward Contract में दो तरह से सेटलमेंट होता है एक फिजिकल और दूसरा कैश सेटलमेंट।
यदि आप फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट और फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं। तो आप इस ऑप्शन ट्रेडिंग से पैसों का पेड़ कैसे लगायें? बुक को पढ़ सकते हैं।
उम्मीद है, आपको यह फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट ( Forwards Contract) की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में। Forwards contract kya hain in Hindi आर्टिकल पसंद आया होगा। अगर आपके मन में शेयर मार्केट से सम्बन्धित कोई सवाल या सुझाव है तो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं। ऐसी ही ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आप इस साइट को सब्स्क्राइब भी कर सकते हैं। आप मुझे Facebook पर भी फॉलो कर सकते हैं।
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