Option Premium: ऑप्शन प्रीमियम के प्राइस कैसे घटते-बढ़ते हैं?

शेयर मार्केट निवेशक और ट्रेडर्स ऑप्शंस ट्रेडिंग को बहुत पसंद करते हैं क्योंकि इनका उपयोग करके शेयर मार्केट जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। ऑप्शन प्रीमियम वह प्राइस है, जिसका ट्रेडर्स को ऑप्शन खरीदने के लिए भुगतान करना पड़ता है। 

एक ऑप्शन का आंतरिक मूल्य (Intrinsic Value) वह राशि है, जो ट्रेडर्स को तब मिलती है जब ट्रेडर्स ऑप्शन एक्सरसाइज करते हैं। इस आर्टिकल में ऑप्शन प्रीमियम की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में दी गई है। चलिए जानते हैं- Option Premium kya hai full jankari in Hindi? 
                                                                                                
Option premium

यदि आप ऑप्शन ट्रेडिंग में परफेक्ट बनना चाहते हैं तो आप फ्यूचर और ऑप्शन की पहचान बुक जरूर पढ़ना चाहिए।

यदि आपको लगता है कि शेयर या इंडेक्स (BANKNIFTY, NIFTY 50) का प्राइस बढ़ने वाला है। तो आप option premium देकर उसका वर्तमान मार्केट प्राइस का कॉल ऑप्शन खरीदकर, बाद में प्राइस बढ़ने पर उसे मार्केट प्राइस पर बेच सकते हैं। अगर आप चाहे तो सम्पूर्ण पैसे चूकाकर शेयर खरीदकर लम्बे समय के लिए होल्ड भी कर सकते हैं। स्ट्राइक प्राइस 

ऑप्शन ट्रेडिंग में अगर शेयर या इंडेक्स का प्राइस आपके अनुमान के अनुसार घट या बढ़ जाता है (अगर आपका अनुमान सही निकले) तो आप मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग में आपके अनुमान के विपरीत शेयर का प्राइस जाने पर आपको नुकसान सीमित (केवल प्रीमियम का) होता है। 

यदि आप अपने जोखिम को कम करना चाहते हैं तो ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटजी बनाकर अपने जोखिम को कम कर सकते हैं। इसके लिए आपको कॉल और पुट  खरीद या बेचकर ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटजी बनानी चाहिए। 

ऑप्शन प्रीमियम क्या है? 

ऑप्शन प्रीमियम, ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट का वर्तमान मार्केट प्राइस होता है। इसे ऑप्शन सेलर (ऑप्शन राइटर) के द्वारा ऑप्शन बायर को बेचा जाता है। इन-द-मनी option premium दो फेक्टर्स इन्ट्रिंसिक वैल्यू (आंतरिक वैल्यू) और एक्सट्रिन्सिक वैल्यू (बाह्य कीमत) पर निर्भर करता है। फाल्स ब्रेकआउट आउट-ऑफ-द-मनी ऑप्शन में केवल एक्सट्रिन्सिक वैल्यू और टाइम वैल्यू होती है। 

स्टॉक ऑप्शन या इंडेक्स ऑप्शन में ऑप्शन प्रीमियम को रूपये में प्रति शेयर के हिसाब से कोट किया जाता है। प्रत्येक ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट में स्टॉक्स और इंडेक्स को अलग-अलग लॉट साइज में सेट किया जाता है। ऑप्शन का प्रीमियम एक्सपायरी डेट और उस अंडरलेइंग स्टॉक्स के प्राइस, की वर्तमान और पिछली वोलेटिलिटी से तय होता है।

ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट बड़े लाभ के द्वार खोल सकते हैं और स्टॉक्स को खरीदें-बेचने (शॉर्ट सेलिंग) से होने वाले संभावित नुकसान से सेफगार्ड भी प्रदान कर सकते हैं। आप थोड़ी सी पूँजी से अपनी बड़ी पोजीशन को हेज कर सकते हैं। फिर आप चाहें ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट को खरीद रहें हों या बेच रहे हों। जितना अधिक आप ऑप्शन प्रीमियम के बारे में जानेगें। उतना ही आप अच्छे सौदे को पहचानने में सक्षम होगें। यह आपके लॉन्ग-टर्म तक प्रॉफिटेबल रहने के लिए जरूरी है। 

ऑप्शन प्रीमियम वह राशि है, जिसका ऑप्शन ट्रेडर्स, ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के लिए भुगतान करते हैं। ऑप्शन की इन्ट्रिंसिक वैल्यू वह राशि है, जो ट्रेडर्स को तब मिलती है। जब वे ऑप्शन को एक्सरसाइज करते हैं।साथ ही ऑप्शन की टाइम वैल्यू वह है, जिसका ट्रेडर इन्ट्रिंसिक वैल्यू से ऊपर भुगतान करने के लिए तैयार रहता है।

ऑप्शन प्रीमियम को कैसे समझें? 

जो ऑप्शन ट्रेडर्स या इन्वेस्टर्स कॉल और पुट को बेचते हैं। उन्हें कॉल राइटर और पुट राइटर कहा जाता है। ये लोग पुट और कॉल ऑप्शंस के प्रीमियम का उपयोग करंट इनकम के रूप में व्यापक ट्रेडिंग स्ट्रेटजी के अनुरूप अपने सम्पूर्ण पोर्टफोलियो या उसके एक हिस्से को हेज करने के लिए करते हैं। ऑप्शन प्राइस को आप NSE की वेबसाइट पर  ऑप्शन चैन में देख सकते हैं। 

ऑप्शन प्रीमियम के कंपोनेंट्स में इसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू, टाइम वैल्यू और अंडरलेइंग स्टॉक्स की वोलेटिलिटी से तय होती है। जैसे ही ऑप्शन की एक्सपायरी डेट नजदीक आने लगती है तो उसकी टाइम वैल्यू भी कम होकर जीरो के पास आने लगती है। जबकि उसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू, अंडरलेइंग स्टॉक का प्राइस और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के स्ट्राइक प्राइस के बीच अंतर का बारीकी से प्रतिनिधित्व करता है।

ऑप्शन की इन्ट्रिंसिक वैल्यू 

ऑप्शन प्रीमियम के दो मूल फेक्टर हैं, पहला फेक्टर इन्ट्रिंसिक वैल्यू है। ऑप्शन की इन्ट्रिंसिक वैल्यू वह राशि है जो ट्रेडर्स को तब मिलती है जब वह अपने ऑप्शन को एक्सरसाइज करता है। यह स्ट्राइक प्राइस और एक्सरसाइज प्राइस के बीच का अंतर होता है। 

उदाहरण के लिए यदि कोई ट्रेडर निफ्टी 50 की 17,000 की स्ट्राइक प्राइस का call option खरीदता है। निफ्टी 50 का वर्तमान मूल्य 17040 है, तो इस कॉल ऑप्शन की 17,040-17,000 = 40, चालीस रूपये इन्ट्रिंसिक वैल्यू है। शेयर मार्केट कैसे सीखें? इस तरह के ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट को इन-द-मनी ऑप्शंस के रूप में जाना जाता है। 

इसी तरह यदि कोई Option trader निफ्टी 50 का 17,000 का कॉल ऑप्शन खरीदता है लेकिन निफ्टी 50 का वर्तमान प्राइस 16990 तो इस ऑप्शन का कोई इन्ट्रिंसिक वैल्यू नहीं है। इसकी केवल टाइम वैल्यू और एक्सटर्नल वैल्यू है। 

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की टाइम वैल्यू क्या है?

अगर अंडरलेइंग स्टॉक्स के मार्केट प्राइस में कोई बदलाव आता है तो आपका ऑप्शन आउट-ऑफ-द मनी हो सकता है। लेकिन फिर भी प्राइस में वोलेटिलिटी के कारण आपको प्रॉफिट हो सकता है। यही Option contract की टाइम वैल्यू है। इसी की वजह से एक ट्रेडर इन्ट्रिंसिक वैल्यू के ऊपर भी प्राइस चुकाने को तैयार होता है। इस आशा में कि उसका इन्वेस्टमेंट उसे वापस pay off करेगा। एडवांस/डिक्लाइन रेश्यो  

उदाहरण के लिए मान लीजिये किसी ट्रेडर ने निफ्टी 50 की 17000 की स्ट्राइक प्राइस का कॉल ऑप्शन खरीदा जिसका वर्तमान Option Premium 200 रूपये है। लेकिन निफ्टी 50 का प्राइस 16900 तक गिर जाता है तो यह ऑप्शन आउट-ऑफ-द-मनी हो जायेगा। किन्तु अंडरलेइंग इंडेक्स रैली कर सकता है और ऑप्शन फिर से इन-द-मनी हो सकता है। 

ऑप्शन प्राइस में टाइम वैल्यू भी शामिल होती है। जिस ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के एक्सपायर होने में जितना अधिक समय होगा। उस ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट की टाइम वैल्यू उतनी ही ज्यादा होगी, उस कॉन्ट्रेक्ट का Option premium भी अधिक होगा। ऐसा इसलिए कि उस ऑप्शन से प्रॉफिट कमाने के लिए अधिक मिलेगा जिससेऑप्शन के प्रॉफिट में आने के चांस बढ़ जायेंगे।

ऑप्शन के प्रीमियम का बदलना 

Option Premium का प्राइस भी लगातार बदलता रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अंडरलेइंग स्टॉक्स के प्राइस में वोलेटिलिटी के कारण, उसके ऑप्शन प्रीमियम में भी परिवर्तन होता रहता है। ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट का मनीनेस जितना डीप इन-द-मनी (एट-द-मनी) और एक्सपायरी डेट में जितना अधिक समय होगा। उसका Option premium  उतना ही ज्यादा बढ़ता है। इसके विपरीत जो ऑप्शन आउट-ऑफ-द-मनी हो जाता है, उसका प्रीमियम उतनी ही तेजी से गिरता है। 

हालाँकि प्रीमियम में गिरावट भिन्न-भिन्न प्राइस पर हो सकती है। एक्सपायरी डेट से भी ऑप्शन प्रीमियम प्रभावित होता है। ओपन इंटरेस्ट  कई ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर हो जाते हैं, इसलिए नुकसान से बचने के लिए टाइम डिके को पहले ही केलकुलेट कर लेंना चाहिए। 

ऑप्शन प्रीमियम की कैलकुलेशन कैसे करें? 

ऑप्शन प्रीमियम को आप बहुत ही आसानी से ऑप्शन केलकुलेटर के द्वारा निकाल सकते है। इसका केलकुलेशन आप सेंसिबुल या किसी भी अन्य शेयर ट्रेडिंग एप पर दिए गए ऑप्शन प्रीमियम कैलकुलेटर से निकाल सकते हैं।    ऑप्शन प्रीमियम केलकुलेट करने का फार्मूला बड़ा ही साधारण है। ट्रेंडलाइन ट्रेडिंग यह फार्मूला निम्नलिखित है- 
  • Option Premium = Time Value + Intrinsic Value  

ऑप्शन बेचना महॅगा क्यों है? 

यदि अंडरलेइंग स्टॉक का प्राइस, कॉल ऑप्शन के स्ट्राइक प्राइस से अधिक हो जाता है। तो ऑप्शन सेलर को वर्तमान मार्केट प्राइस और स्ट्राइक प्राइस के बीच के अंतर का नुकसान हो जायेगा। इसलिए संभावित नुकसान की भरपाई करने के लिए अधिकांश ऑप्शन सेलर हाई प्रीमियम वसूलते हैं।

उम्मीद है,आपको यह ऑप्शन प्रीमियम की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में आर्टिकल पसंद आया होगा। अगर आपको यह Option Premium kya hai full jankari in Hindi? आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें। 

यदि इस आर्टिकल से संबंधित कोई सवाल या सुझाव हो तो उसे आप कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। शेयर मार्केट से सम्बंधित ऐसी ही ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आप इस साइट को जरूर सब्स्क्राइब करें। आप मुझे Facebook पर भी फॉलो जरूर करें। 

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