Time decay or Theta: ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डिके या थीटा क्या होता है?
अगर आप ऑप्शन ट्रेडिंग करते हैं, आप चाहें ऑप्शन बाइंग करें या ऑप्शन सेलिंग दोनों ही स्थितियों में Time Decay (theta) को समझना बहुत ही जरूरी है। यदि आप इसे अच्छे से समझ गए तो यह आपको ऑप्शन ट्रेडिंग में होने वाले बड़े नुकसान से बचा सकता है।
टाइम डिके ऑप्शन ट्रेडिंग में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे-जैसे ऑप्शन की एक्सपायरी डेट करीब आती जाती है, इसका प्राइस कम होता जाता है। ऑप्शन के प्राइस में होने वाले इस परिवर्तन को ही टाइम डिके (Time Decay) कहा जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं- ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डिके या थीटा (Time decay or Theta) क्या होता है? Time decay or Theta in Option Trading in Hindi.
अगर आप ऑप्शन ट्रेडिंग में एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको महेशचंद्र कौशिक द्वारा लिखित साइकोलॉजी ऑफ ऑप्शन ट्रेडिंग बुक जरूर पढ़नी चाहिए।
ऑप्शंस में आप एक टाइम लिमिट के अंदर ट्रेडिंग करते हैं, आप चाहें कॉल ऑप्शन खरीदे या पुट ऑप्शन खरीदें। आप चाहें कॉल ऑप्शन (CE) के कॉन्ट्रेक्ट को खरीदे या पुट ऑप्शन (PE) के कॉन्ट्रेक्ट को खरीदें, इन सबका एक टाइम लिमिट होता है। किसी न किसी एक डेट पर इनका एक्सपायर होना पहले से निश्चित होता है। इसके बाद ये किसी काम के नहीं रहते हैं।
Time Decay क्या होता है?
टाइम डिके एक्सपायरी डेट नजदीक आने के कारण ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के प्राइस में आने वाली गिरावट को कहा जाता है। जब एक्सपायरी में ज्यादा समय होता है तो Time decay भी कम होता है। जैसे-जैसे एक्सपायरी का समय नजदीक आता जाता है, टाइम डिके भी उतना ही अधिक (ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के प्रीमियम का तेजी से कम होना) तेजी से होता है।
टाइम डिके समय बीतने के कारण ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के प्राइस में होने वाली गिरावट को मापता है। यदि आपका ऑप्शन इन-द-मनी (ITM) नहीं है, तो उसमे गिरावट और ज्यादा होगी। सामान्यत ऐसा कहा जाता है कि जब भी मार्केट ऊपर जाता है तो कॉल ऑप्शन के प्रीमियम बढ़ जाते हैं।
इसी तरह जब मार्केट नीचे गिरता है तो कॉल ऑप्शन (CE) के प्रीमियम में भी गिरावट आ जाती है। इसी तरीके से जब मार्केट ऊपर जाता है तो पुट ऑप्शन (PE) के प्रीमियम गिरते हैं और जब मार्केट गिरता है तो पुट ऑप्शन (PE) के प्रीमियम बढ़ जाते हैं।
Time Decay कैसे काम करता है?
जैसे-जैसे एक्सपायरी डेट पास आती जाती है, टाइम डिके की वजह से ऑप्शन की प्राइस कम होती जाती है। ऑप्शन की टाइम वैल्यू घटती है तो टाइम डिके तेजी से बढ़ता है। जब एक्सपायरी डेट नजदीक आती है तो ऐसे में ऑप्शन ट्रेडर्स के पास प्रॉफिट कमाने के लिए समय कम बचता है।
जब ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट खरीदा जाता है .तभी से Time Decay (Theta) का काउंटडाउन शुरू हो जाता है और एक्सपायरी डेट तक जारी रहता है। टाइम डिके को Theta भी कहा जाता है, यह Options Greeks का एक भाग है। अन्य ऑप्शंस ग्रीक में डेल्टा (Delta) गामा (Gamma) रो (Rho) और वेगा (Vega) शामिल हैं। ये फार्मूला आपको ऑप्शन ट्रेडिंग के साथ जुड़े जोखिमों का आंकलन करने में मदद करते हैं।
ऑप्शन प्रीमियम कैसे तय होता है?
ऑप्शन प्रीमियम, ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट का करंट मार्केट प्राइस होता है। यह समझने के लिए कि Time Decay (Theta) ऑप्शन पर क्या प्रभाव डालता है। इसके लिए आपको ऑप्शन की वैल्यू की समीक्षा करनी चाहिए। ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट अपने इन्वेस्टर्स को शेयर, तय प्राइस (स्ट्राइक प्राइस) पर खरीदने और बेचने का अधिकार देते हैं।
स्ट्राइक प्राइस ऑप्शन का एक फिक्स प्राइस होता है। जिस पर ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट को खरीदा और बेचा जाता है। प्रत्येक ऑप्शन के साथ एक प्रीमियम जुड़ा होता है, जो ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट खरीदने की लागत होती है। कुछ अन्य घटक भी प्रीमियम की वैल्यू में जुड़े होते हैं। ये घटक निम्नलिखित होते हैं-
- इन्ट्रिंसिक वैल्यू (intrinsic Value),
- एक्सट्रिन्सिक वैल्यू (Extrinsic Value)
- ब्याज दरों में बदलाव (Interest rate Change)
- अंडरलेइंग एसेट की वोलेटिलिटी
इन्ट्रिंसिक वैल्यू (आंतरिक मूल्य)
ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट की इन्ट्रिंसिक वैल्यू अंडरलेइंग सिक्युरिटी के शेयर प्राइस और ऑप्शन के स्ट्राइक प्राइस के बीच का अंतर होता है। मान लीजिये बैंक निफ्टी 41540 पर चल रहा है। आप इसकी 41500 की कॉल खरीदते है तो इस कॉल की इन्ट्रिंसिक वैल्यू = 41540-41500 = 40 है।
दूसरे शब्दों में इन्ट्रिंसिक वैल्यू वह न्यूनतम लाभ है, जो शेयर का वर्तमान बाजार मूल्य और उसके स्ट्राइक प्राइस को देखते हुए ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट से निर्मित होता है। एडवांस/डिक्लाइन रेश्यो ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट की इन्ट्रिंसिक वैल्यू बदलती रहती है क्योंकि शेयर के प्राइस में उतार-चढाव होता रहता है। लेकिन पूरे ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट में स्ट्राइक प्राइस एक ही रहता है।
एक्सट्रिन्सिक वैल्यू
इन्ट्रिंसिक वैल्यू की तुलना में एक्सट्रिन्सिक वैल्यू अधिक काल्पनिक है और इसे पता करना भी कठिन है। ऑप्शन का एक्सट्रिन्सिक वैल्यू उसके एक्सपायरी डेट से पहले बचे हुए समय और टाइम डिके की दर (Rate of Time Decay) को ऑप्शंस की एक्सट्रिन्सिक वैल्यू कहा जाता है।
ऑप्शन की टाइम वैल्यू कम समय में बहुत कम होती है। कहने का मतलब यह है कि जिस ऑप्शन की एक्सपायरी नजदीक होती है। उससे प्रॉफिट कमाने के चांस कम होते हैं और रिस्क भी ज्यादा होता है। क्योंकि Time Decay की वजह से ऑप्शन का प्रीमियम तेजी से गिरता है। मनी कंट्रोल
मंथली ऑप्शंस में एक्सपायरी तक टाइम वैल्यू में वृद्धि होती है क्योंकि एक्सपायरी दूर होने के कारण टाइम डिके धीमे-धीमे होता है। इस वजह से ट्रेडर्स के लाभ कमाने की संभावना बढ़ जाती है। यदि समय बीतने के साथ अगर आपका ऑप्शन प्रॉफिट में नहीं है और एक्सपायरी डेट नजदीक आ रही है। तो आपके ऑप्शन का प्राइस तेजी से कम होगा और आपको इस ट्रेड में नुकसान हो सकता है।
टाइम डिके V/S मनीनेस
मनीनेस ऑप्शन की प्रोफिटेबिल्टी का स्तर है, यह ऑप्शन की इन्ट्रिंसिक वैल्यू से मापा जाता है। यदि ऑप्शन इन-द-मनी (ITM) यानि की प्रॉफिटेबल है। तब यह अपने प्राइस को बनाये रखेगा। क्योंकि एक्सपायरी से बाद भी उसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू रहेगी। वारेन बुफेट पोर्टफोलियो
जिस ऑप्शन की इन्ट्रिंसिक वैल्यू होती है, उसका Time Decay धीमी गति से होता है। लेकिन फिर भी ट्रेडर्स को ट्रेड लेने से पहले, टाइम डिके और टाइम वैल्यू पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। ऑप्शन ट्रेडिंग में प्रॉफिट कमाने में ये बहुत ही महत्वपूर्ण फेक्टर हैं।
ऐट-द-मनी (ATM) ऑप्शन के साथ Time Decay (Theta) बहुत तेजी से होता है क्योंकि ऐट-द-मनी ऑप्शन की कोई इन्ट्रिंसिक वैल्यू नहीं होती है। आसान शब्दों में ATM ऑप्शन में केवल टाइम वैल्यू होती है। यदि ऑप्शन आउट-ऑफ़-द-मनी है, यानि प्रॉफिटेबल नहीं है। तो टाइम डिके बहुत तेजी से होता है। समय बीतने के साथ ऑप्शन का मूल्य तेजी से गिरता है। जिससे ऐसे ट्रेड में प्रॉफिट कमाने की संभावना बहुत कम होती है। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट
टाइम वैल्यू का नुकसान तब भी होता है, जब अंडरलेइंग एसेट का प्राइस इस दौरान नहीं बदलता है या उसमें बहुत कम परिवर्तन होता है। ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट को समझने का एक तरीका यह भी कि यदि समय के साथ प्राइस में चेंज नहीं होता है तो ऐसे ऑप्शन को अधिक समय तक होल्ड करने से आपको नुकसान होगा। क्योंकि समय के साथ ऑप्शन का मूल्य अवश्य कम होगा।
प्रत्येक ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स ऐसे ऑप्शंस को खरीदना चाहते हैं। जिससे उन्हें एक्सपायरी डेट से पहले प्रॉफिट हो जाय। एक्सपायरी डेट में कितना समय बचा है, इससे ऑप्शन का प्रीमियम तय होता है। संक्षेप में एक्सपायरी डेट तक जितना अधिक समय बचा है,उतना ही धीरे Time Decay (Theta) होता है। एक्सपायरी डेट जितनी पास होती है, उतना ही तेज टाइम डिके होता है। फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट
Time Decay के फायदे
- ऑप्शन के शुरुआत में टाइम डिके धीरे-धीरे होता है, इसकी वैल्यू ऑप्शन के प्रीमियम में होती है।
- जब टाइम डिके धीरे-धीरे होता है, तब इसे बेच सकते हैं, जबकि इसकी वैल्यू अभी भी रहती है।
- यह ऑप्शन के प्रीमियम पर प्रभाव डालता है। जिससे ट्रेडर्स को यह पता चलता है कि वेल्थ किधर है। और कौन सा ऑप्शन खरीदने लायक है।
Time Decay के नुकसान
- जैसे ही ऑप्शन की एक्सपायरी डेट पास आने लगती है, टाइम डिके तेजी से होने लगता है।
- ऑप्शन में टाइम डिके की दर को मापना कठिन होता है।
- अंडरलेइंग एसेट की प्राइस बढ़ी है या घटी है, इसको जाने बिना ही टाइम डिके होता रहता है।
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