Options Greeks: ऑप्शन ग्रीक्स, डेल्टा,थीटा, गामा, वेगा, रो क्या हैं?
ऑप्शन ग्रीक्स (Options Greeks) ग्रीक शब्द हैं इसलिए इनके नाम आपको थोड़े अलग से लगेंगे। ऑप्शन ग्रीक्स अंडरलाइंग एसेट के ऑप्शंस के प्रीमियम की सेंसिविटी को मापने का वित्तीय तरीका हैं। ऑप्शन का प्रीमियम कई फेक्टर्स से प्रभावित होता है। जो ऑप्शन ट्रेडर्स के द्वारा ली गई पोजीशन को कई प्रकार से फायदा या नुकसान पंहुचा सकते हैं।
सफल ट्रेडर्स उन कारकों को जानते-समझते हैं जो ऑप्शन के प्रीमियम को प्रभावित करते हैं। वो यही तथाकथित ऑप्शन ग्रीक्स हैं। जिन्हें ग्रीक शब्दों के नाम पर जोखिम मापने का एक सेट बोल सकते हैं। आइये विस्तार से जानते हैं- ऑप्शन ग्रीक्स डेल्टा,थीटा, गामा, वेगा और रो क्या हैं? Option Greeks Delta, Theta, Gamma, Vega and Rho kya hain in Hindi?
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Option Greeks क्या हैं?
ऑप्शन ग्रीक्स यह बताते हैं कि टाइम डिके या थीटा को लेकर ऑप्शंस कितने संवेदनशील होते हैं। जिसके कारण अंडरलाइंग एसेट के प्राइस में वोलेटिलिटी और उतार-चढ़ाव होता रहता है। ऑप्शन ग्रीक वे पैरामीटर्स हैं, जिनका उपयोग अंडरलाइंग स्टॉक के प्राइस में बदलाव को मापने के लिए किया जाता है।
साथ ही मार्केट वोलेटिलिटी और एक्सपायरी के समय की संवेदनशीलता को मापने के लिए भी किया जाता है। जिन पैरामीटर्स पर ऑप्शंस का प्राइस तय होता है, Option Greeks उन पैरामीटर्स के जोखिम को मापने का सैद्धांतिक तरीका देते हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग
ऑप्शंस के रिस्क को मापने के लिए पाँच प्राथमिक ग्रीक्स हैं, जिनके नाम निम्नलिखत हैं-
- Delta डेल्टा, अंडरलेइंग एसेट के डायरेक्शनल मूवमेंट के आधार पर ऑप्शन प्रीमियम के परिवर्तन की दर को मापता है।
- Gamma गामा, डेल्टा के परिवर्तन की दर को मापता है।
- Vega वेगा, वोलेटिलिटी में बदलाव के आधार पर प्रीमियम में बदलाव की दर को मापता है।
- Theta थीटा, ऑप्शन के एक्सपायर होने में कितना समय है, इसके आधार पर प्रीमियम पर पड़ने वाले प्रभाव को मापता है। बढ़िया ऑप्शन स्ट्रेटजी
- Rho रो, इंट्रेस्ट रेट से सम्बंधित होता है इसका ऑप्शन पर ना के बराबर प्रभाव होता है इसलिए इसको समझने की कोई खास जरूरत नहीं है। नीचे इन ऑप्शन ग्रीक्स के बारे में विस्तार से बताया गया है।
इसी तरह गामा समय के साथ-साथ डेल्टा के परिवर्तन की दर और अंडरलाइंग स्टॉक के प्राइस में परिवर्तन की दर को भी मापता है। गामा अंडरलाइंग स्टॉक के प्राइस का पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है। वेगा मार्केट वोलैटिलिट के कारण पैदा होने वाले रिस्क या भविष्य में अंडरलाइंग एसेट के प्राइस में होने वाली संभावित वोलेटिलिटी को मापता है।
ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को समझें
बड़े ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स का इस्तेमाल पोर्टफोलियो की हेजिंग के लिए करते हैं। जब इन्वेस्टर्स के पोर्टफोलियो का प्राइस विपरीत दिशा में जाने लगता है। तब पोर्टफोलियो में होने वाले नुकसान की ऑप्शन की पोजीशन के द्वारा भरपाई की जाती है। इसलिए ऑप्शन को इंश्योरेंस के समान माना जाता है।
संक्षेप में, एक कॉल ऑप्शन इसके होल्डर को अंडरलाइंग एसेट खरीदने का अधिकार देता है लेकिन दायित्व नहीं देता है। इसी तरह एक पुट इसके होल्डर को अंडरलाइंग एसेट बेचने का अधिकार देता है लेकिन दायित्व नहीं देता है। ऑप्शन होल्डर ऑप्शन का प्रयोग कर सकता है, जिसका मतलब है कि अंडरलाइंग एसेट को स्टॉक्स में परिवर्तित किया जा सकता है।
प्रत्येक ऑप्शन की एक एक्सपायरी डेट होती है, इसे समाप्ति तिथि भी कहा जाता है। ऑप्शन की लागत या उसके प्राइस को प्रीमियम कहा जाता है। यह ऑप्शन प्रीमियम मॉडल पर आधारित होता है। जो अंडरलाइंग एसेट के स्टॉक के प्राइस में वोलेटिलिटी के कारण, उसके ऑप्शन प्रीमियम में भी वोलेटिलिटी होती है।
ऑप्शन प्राइस में होने वाली वोलेटिलिटी को Option Greeks के द्वारा मापा जाता है। ऑप्शन का प्रीमियम या मार्केट प्राइस में इसकी एक्सपायरी डेट तक कितना उतार-चढ़ाव या वोलेटाइल रहता है। प्राइस में उतार-चढ़ाव कई कारणों से होता है। इसमें कंपनी की फाइनेंसियल स्थिति, भू-राजनैतिक जोखिम ओवरऑल मार्केट की चाल का भी असर, ऑप्शन प्राइस की वोलेटिलिटी पर पड़ता है।
अंडरलेइंग एसेट की वोलेटिलिटी मार्केट पर ट्रेडर्स के दर्ष्टिकोण को दर्शाती है। कि स्टॉक का प्राइस चेंज हो सकता है। इंडिया विक्स भारतीय शेयर मार्केट की वोलेटिलिटी को दर्शाती है। ऑप्शन के ट्रेंड की दिशा का अनुमान लगाने के लिए वोलेटिलिटी का प्रयोग किया जाता है। यदि वोलेटिलिटी बढ़ती है तो ऑप्शन का प्रीमियम भी बढ़ता है।
ऑप्शन ग्रीक्स (Option Greeks)
पाँच प्राथमिक ऑप्शन ग्रीक्स होते हैं जो ऑप्शन ट्रेडर्स को ऑप्शन प्रीमियम में होने वाले परिवर्तन समझने में मदद करते हैं। इनके द्वारा ऑप्शन ट्रेडर्स ऑप्शन में पोजीशन बनाने से पहले उससे जुड़े जोखिमों को समझ सकते हैं। ये ऑप्शन ग्रीक्स हैं- Delta, Theta, Gamma, Vega, Rho.
डेल्टा (Delta)
डेल्टा (Δ) अंडरलाइंग एसेट के प्राइस में परिवर्तन के परिणामस्वरूप ऑप्शंस की प्राइस में जो परिवर्तन होता है। उसे डेल्टा मापता है। कॉल ऑप्शन (CE) का डेल्टा पॉजिटिव होता है, जब अंडरलाइंग स्टॉक्स का प्राइस बढ़ता है तब कॉल ऑप्शन (CE) का प्राइस भी बढ़ता है। इसी तरह पुट ऑप्शन (PE) का डेल्टा नेगेटिव होता है, जब अंडरलाइंग स्टॉक्स का प्राइस गिरता है, तब पुट ऑप्शन (PE) का प्राइस भी गिरता है।
डेल्टा की रेंज O से 1 तक (0 To 1) तक होती है। कुछ लोग इसे 1 से 100 तक मानते हैं लेकिन दोनों का मतलब एक ही है। एट-द-मनी ऑप्शन का डेल्टा 0.5 होता है। इन-द-मनी ऑप्शन का डेल्टा एट-द-मनी ऑप्शंस से ज्यादा होता है। आउट-ऑफ-द-मनी ऑप्शन का डेल्टा इन दोनों से कम होता है।
इसे आप एक उदाहरण के द्वारा इस तरह समझ सकते हैं- माना NIFTY 50 इंडेक्स के एट-द-प्राइस ऑप्शन का स्ट्राइक प्राइस 18,000 है, इसका डेल्टा 0.5 होगा। निफ्टी के एक लॉट साइज में 50 यूनिट होती हैं, यदि आप 18,000 की स्ट्राइक प्राइस का कॉल ऑप्शन (CE) 100 रूपये के प्राइस पर खरीद लेते हैं तो इस तरह इसके एक लॉट की कीमत 100 गुणा 50 = 5,000 रूपये होगी।
अगर निफ्टी के स्ट्राइक प्राइस में 100 रूपये की बढ़त होगी तो एट-द-मनी कॉल ऑप्शन (CE) के प्राइस में 50 रूपये की बढ़त होगी। इस तरह आपके कॉल ऑप्शन (CE) का प्राइस बढ़कर 150 रूपये हो जायेंगा और अब आपके कॉल ऑप्शन (CE) के एक लॉट की कीमत बढ़कर 150 गुणा 50 = 7,500 रूपये हो जायेगी। इस ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में आपको 7500 - 5000 = 2,500 रूपये का यानि 50% का प्रॉफिट होगा। ओपन इंटरेस्ट इस ऑप्शन में इतनी गिरावट होने पर नुकसान भी इतना ही होगा।
इसी तरह 17,9,00 स्ट्राइक प्राइस का कॉल ऑप्शन (CE) इन-द-मनी होगा। इसका Delta 0.5 से ज्यादा होगा। जितना ज्यादा डीप इन-द-मनी का कॉल ऑप्शन (CE) होगा, उसका Delta उतना ही ज्यादा होगा। यदि आप 16,000 के स्ट्राइक प्राइस का डीप इन-द-मनी का कॉल ऑप्शन 100 रूपये के प्राइस में खरीदते हैं तो इसका डेल्टा 1 (एक) होगा। इसके एक लॉट की कीमत 100 गुणा 50 = 5,000 होगी।
यदि निफ्टी के स्ट्राइक प्राइस में 100 पॉइंट की वृद्धि होगी तो डीप इन-द-मनी ऑप्शन में भी 100 पॉइंट की वृद्धि होगी। यानि आपके कॉल ऑप्शन का प्राइस 200 रूपये हो जायेगा 200 गुणा 50 = 10,000 रूपये अतः आपका 5,000 रूपये का ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट 10,000 रूपये का हो जायेगा और इस तरह आपका मुनाफा डबल हो जायेगा। ऑप्शन जितना डीप आउट-ऑफ-द-मनी होगा उसका डेल्टा उतना ही कम होगा।
अगर निफ्टी 18,000 पर है और आप इसकी 20,000 का कॉल ऑप्शन लेते हैं तो उसका Delta O.1 होगा। निफ्टी के एक लॉट में 50 यूनिट होती हैं, यदि आप 20,000 की स्ट्राइक प्राइस का कॉल ऑप्शन (CE) 100 रूपये के प्राइस पर खरीद लेते हैं तो इस तरह इसके एक लॉट की कीमत 100 गुणा 50 = 5,000 रूपये होगी।
अगर निफ्टी के स्ट्राइक प्राइस में 100 रूपये की बढ़त होगी तो आउट-ऑफ-द-मनी कॉल ऑप्शन (CE) के प्राइस में 10 रूपये की बढ़त होगी। इस तरह आपके कॉल ऑप्शन (CE) का प्राइस बढ़कर 110 रूपये हो जायेंगा।
अब आपके कॉल ऑप्शन (CE) के एक लॉट की कीमत बढ़कर 110 गुणा 50 = 5,500 रूपये हो जायेगी। इस ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में आपको 5500 - 5000 = 500 रूपये का यानि 10% का प्रॉफिट होगा। ओपन इंटरेस्ट इस ऑप्शन में इतनी गिरावट होने पर नुकसान भी इतना ही होगा।
थीटा (Theta)
थीटा (Θ) समय के अनुपात में ऑप्शन के प्राइस में होने वाले परिवर्तन की दर को बताता है। इसे ऑप्शन के टाइम डिके के रूप में भी जाना जाता है। थीटा दर्शाता है कि जैसे-जैसे एक्सपायरी डेट का समय घटेगा वैसे ही ऑप्शन का प्राइस भी कम होगा। उदाहरण स्वरूप मान लेते हैं कि ट्रेडर के पास 0.5 थीटा का लॉग ऑप्शन है। तो थीटा ऑप्शन का प्राइस प्रतिदिन 0.5% की दर से कम होगा।
टाइम डिके या थीटा तब बढ़ता है जब ऑप्शंस एट-द-मनी होते हैं और इन-द-मनी होते हैं और तब Theta घटता है जब ऑप्शंस आउट-ऑफ-द-मनी होते हैं। एक्सपायरी डेट के पास हमेशा थीटा बहुत तेजी दे डिके होता है यानि घटता है। जिसके कारण ऑप्शन के प्राइस भी बहुत तेजी से कम होते हैं। लॉन्ग कॉल और लॉन्ग पुट में थीटा नेगेटिव होता है। किन्तु शार्ट-कॉल और शार्ट-पुट में थीटा पॉजिटिव होता है।
गामा (Gamma)
गामा (Γ) ऑप्शन और अंडरलेइंग एसेट के प्राइस के बीच परिवर्तन की दर का प्रतिनिधित्व करता है। इसे डेरिवेटिव की दूसरी प्राइस संवेदनशीलता भी कहा जाता है। चूँकि डेल्टा प्राइस अंडरलाइंग एसेट के प्राइस के साथ-साथ लगातार बदलता रहता है। गामा का उपयोग डेल्टा में परिवर्तन की दर को मापता है। जिससे ट्रेडर्स ऑप्शंस के प्राइस का अनुमान लगा सकते हैं। हॉलीडेज लिस्ट 2023
एट-द-मनी ऑप्शंस का गामा हाईएस्ट होता है और इन-द-मनी और आउट-ऑफ-द-मनी कॉल का गामा कम होता है। जबकि डेल्टा अंडरलेइंग एसेट के प्राइस के आधार पर बदलता है। गामा स्टेबल रहता है लेकिन यह डेल्टा के परिवर्तन की दर का प्रतिनिधित्व करता है। डेल्टा की स्थिरता का निर्धारण करने की वजह से गामा महत्वपूर्ण होता है।
उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि दो ऑप्शंस के Delta का मान एक समान है, लेकिन एक ऑप्शन का Gamma Option Greek हाई है और दूसरे का गामा कम है। हाई गामा वाले ऑप्शन में हाई रिस्क होगा लेकिन कम गामा वाले ऑप्शन में कम रिस्क होगा।
अधिक गामा वाले अंडरलाइंग एसेट के प्राइस में पोजीशन के विपरीत दिशा में मूव आने पर नुकसान बहुत ज्यादा हो सकता है। हाई गामा का मतलब ऑप्शन का प्राइस बहुत वोलेटाइल होगा। जिसकी वजह से ट्रेडर्स के पूर्वानुमान गलत साबित होने की आशंका बढ़ जाती है। जिसके कारण उन्हें ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है। आईपीओ अलॉटमेंट स्टेटस चैक करने वाली वेबसाइट
डीप आउट-ऑफ-द-मनी और डीप इन-द-मनी ऑप्शन का गामा सबसे कम होता है। इसी तरह एट-द-मनी ऑप्शन का गामा सबसे ज्यादा होता है। कॉल और पुट ऑप्शन खरीदने वालों के लिए गामा पॉजिटिव होता है लेकिन कॉल और पुट ऑप्शन को शार्ट-सेल करने वाले ऑप्शन सेलर के लिए गामा नेगेटिव होता है।
वेगा (Vega)
वेगा वह ऑप्शन ग्रीक जो निहित वोलेटिलिटी के कारण ऑप्शन के प्राइस की संवेदनशीलता को मापता है। वोलेटिलिटी के कारण ऑप्शन के प्राइस में जो परिवर्तन होता है उसे वेगा मापता है। ट्रेडर्स वोलेटिलिटी में वेगा को प्रतिशत में मापते हैं।
अंडरलाइंग एसेट के प्राइस में परिवर्तन हुए बिना भी वह घट या बढ़ सकता है। वेगा अंडरलाइंग एसेट के प्राइस में तेज परिवर्तन के परिणाम स्वरूप वेगा भी बढ़ सकता है। जब ऑप्शन की एक्सपायरी डेट नजदीक आती है तब उसका वेगा घट जाता है।
रो (Rho)
यहाँ यह बताना बेहद जरूरी है कि रो का ऑप्शन ट्रेडर्स की पोजीशन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यह केवल उन इन्वेस्टर्स के लिए है जिनका लॉन्ग टर्म (छः महीने, एक वर्ष आदि) ऑप्शन का पोर्टफोलियो है।
रो ऑप्शन ग्रीक की वह दर है, जिस पर डेरिवेटिव के प्राइस ब्याज दर में परिवर्तन के सापेक्ष में बदल जाते हैं। रो ग्रीक ब्याज दर के कारण ऑप्शन या ऑप्शन पोर्टफोलियो की सेंसिविटी को मापता है। Rho greek वर्तमान इंट्रेस्ट रेट चेंज होने के कारण मौजूदा लॉन्ग टर्म अनेक ऑप्शन पोजीशन पर इसके कारण बढ़ने वाले जोखिम को बताता है। डु नॉट एक्सरसाइज
इसे उदाहरण के द्वारा इस तरह समझ सकते हैं। जैसे कि यदि ऑप्शन या ऑप्शंस पोर्टफोलियो में 1.0 का रो है तो ब्याज दरों में प्रत्येक 1 प्रतिशत की वृद्धि होने पर ऑप्शन या ऑप्शन पोर्टफोलियो का प्राइस 1 प्रतिशत बढ़ जाता है। लॉन्ग-टर्म की ऑप्शन पोजीशन ही ब्याज दर में परिवर्तन से प्रभावित होती हैं। शार्ट-टर्म की ऑप्शन पोजीशन पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है।
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