Futures trading in F&O market: फ्यूचर्स में ट्रेडिंग कैसे सीखें?

फ्यूचर्स, फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट को ही कहा जाता है और यही फ्यूचर्स ट्रेडिंग भी है। जोकि F&O मार्केट में होती है। इसमें स्टॉक्स, कमोडिटी और करेंसी आदि अन्य कई एसेट को एक निश्चित प्राइस पर, एक निश्चित समय के लिए खरीदा और बेचा जाता है। 
फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझनें के लिए आपको पहले फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को समझना चाहिए।आइए विस्तार से जानते हैं- शेयर मार्केट में फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे सीखें? Stock market, Futures trading course free in Hindi.  
Futures contract को एक्सपायरी डेट तक होल्ड कर सकते हैं। यदि उसके बाद भी कॉन्ट्रैक्ट को होल्ड करना चाहते हैं तो उसे एक्सपायरी डेट के दिन अगले महीनें के लिए रोलओवर कर सकते हैं। फ्यूचर्स की एक्सपायरी प्रत्येक महीनें के आखिरी बृहस्पतिवार को होती है। आप अगले तीन महीनें तक के futures contract खरीद सकते हैं।                                                                       
Future trading

 
यदि आप फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस मार्केट के एक्सपर्ट बनना चाहते हैं, तो आपको ऑप्शन ट्रेडिंग की पहचान बुक को अवश्य पढ़ना चाहिए। 

Futures trading क्या है? 

किसी भी एसेट (Stocks, commodity or currency etc) को खरीदने और बेचने के लिए, फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट एक लीगल कॉन्ट्रेक्ट है। इसमें अंडरलेइंग एसेट की मात्रा और गुणवत्ता को मानकीकृत किया गया है। जिससे futures trading को कुशलतापूर्वक किया जा सके। स्टॉक एक्सचेंज इस तरह की ट्रेडिंग के लिए मार्केटप्लेस का काम करता है। 
फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट के खरीदार एक्सपायरी डेट तक अंडरलेइंग एसेट को पूर्वनिर्धारित प्राइस पर खरीदने और रिसीव करने के लिए बाध्य होते हैं। इसी तरह futures contract को बेचने वाले (seller or short seller) अंडरलाइंग एसेट को एक्सपायरी डेट तक पूर्वनिर्धारित प्राइस पर बेचने और उसकी डिलीवरी देने के लिए बाध्य होते हैं। 
फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट खरीददार को लॉन्ग पोजीशन को होल्ड करने वाले के नाम से जाना जाता है। इसी तरह फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट बेचने वाले को शार्ट पोजीशन के नाम से जाना जाता है। फ्यूचर्स का उपयोग हेजिंग और सिक्युरिटी के प्राइस को स्पेक्यूलेट करके (अनुमान लगाकर) futures trading कर सकते हैं। 
फ्यूचर्स ट्रेडिंग के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं- 
  • फ्यूचर्स डेरिवेटिव एक फाइनेंशियल कॉन्ट्रेक्ट है जो इसके खरीदार को अंडरलेइंग एसेट को एक्सपायरी डेट तक पूर्वनिर्धारित प्राइस पर खरीदने के लिए बाध्य करता है। 
  • इसी तरह इसके सेलर (शार्ट-सेलर) को एक्सपायरी डेट तक अंडरलाइंग एसेट को  पूर्वनिर्धारित प्राइस पर बेचने के लिए बाध्य करता है। 
  • Futures contract इसके इन्वेस्टर्स को अंडरलाइंग एसेट के प्राइस को स्पेक्युलेट करने की अनुमति देता है। जिससे इन्वेस्टर्स futures trading कर सकता है। 
  • फ्यूचर्स के द्वारा अंडरलाइंग एसेट के प्राइस की मूवमेंट को hedge किया जा सकता है और प्राइस की अपने प्रतिकूल दिशा में मूवमेंट के कारण होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। 
  • यदि आप हेजिंग करना चाहते हैं तो आपने जिस अंडरलाइंग एसेट को होल्ड कर रखा है, आपको दूसरी पोजीशन उसके विपरीत बनानी चाहिए। अगर आपकी अंडरलाइंग एसेट की पोजीशन में नुकसान होता है तो उसकी दूसरी पोजीशन में आपको प्रॉफिट होगा। इस तरह futures contract आपके नुकसान को कम कर सकता है। 
  • फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं और इनके प्राइस रोज ट्रेडिंग सेशन के आखिर में फिक्स होते हैं। ओपन इंटरेस्ट क्या होता है? 
  • फ्यूचर्स- जिसे फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स भी कहा जाता है, ट्रेडर्स को अंडरलाइंग एसेट या कमोडिटी के प्राइस को लॉक करने की अनुमति देता है। Futures contracts की एक्सपायरी डेट होती है, जिस दिन ये कॉन्ट्रेक्ट्स एक्सपायर हो जाते हैं। 
  • यदि कोई futures trader एक्सपायरी डेट के बाद भी अपनी पोजीशन को आगे ले जाना चाहता है तो उसे रोलओवर कर सकता है। अप्रैल 2025 से NIFTY F&O की वीकली एक्सपायरी प्रत्येक सोमवार को हुआ करेगी। जबकि NIFTY INDEX की मंथली, क्वाटर्ली और हाफ इयरली एक्सपायरी महीनें के आखिरी सोमवार को एक्सपायर हुआ करेंगे। 
  • इसके साथ ही बैंकनिफ़्टी, फिननिफ़्टी, मिडकैप निफ़्टी के मंथली, क्वाटर्ली और हाफ इयरली कॉन्ट्रेक्ट भी महीने के आखिरी सोमवार को एक्सपायर हुआ करेंगे।  
  • NSE एक्सचेंज पर बहुत से स्टॉक्स जैसे रिलायंस, एचडीएफसी, टीसीएस, एयरटेल आदि में futures trading होती है। इसी के साथ बैंक निफ्टी, निफ्टी 50, निफ्टी आईटी, इंडेक्स में फ्यूचर्स ट्रेडिंग होती है।
  • कमोडिटी में सोना, चांदी, क्रूड, गेहूँ, चना आदि में फ्यूचर्स ट्रेडिंग होती है। करेंसी और क्रिप्टोकरेंसी में भी फ्यूचर्स ट्रेडिंग होती है। 
  • बॉन्ड और अन्य ट्रेजरी फ्यूचर्स और फाइनेंशियल सिक्युरिटीज में futures trading होती है। 
  • फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स खरीददार को पूरा पैसा नहीं चुकाना पड़ता है, केवल मार्जिन मनी से ही futures trading होती है। 
  • Futures में स्टॉक्स लॉट साइज में खरीदे और बेचे जाते हैं। लॉट में स्टॉक्स की सँख्या फिक्स होती है। जैसे निफ्टी के एक लॉट का साइज 75 यूनिट होता है। इसी तरह बैंक निफ़्टी के एक लॉट में 30 यूनिट होते हैं। 
  • फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के खरीददार एक्सपायरी डेट से पहले कभी भी अपनी पोजीशन को बेचकर अपने दायित्व से मुक्त हो सकते हैं। इसी तरह Futures के शार्ट सेलर एक्सपायरी डेट से पहले जब चाहें, अपनी शार्ट-सेल की पोजीशन को खरीदकर अपने दायित्व से मुक्त हो सकते हैं। 
  • इस लेन-देन में प्रॉफिट को ट्रेडर्स के एकाउंट में जोड़ दिया जाता है। इसी तरह लॉस को ट्रेडर्स के मार्जिन मनी से काट लिया जाता है। ऑप्शन चैन 

Futures trading के फायदे और नुकसान

फ्यूचर्स ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान निम्नलिखित हैं- 
फ्यूचर्स ट्रेडिंग के फायदे 
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग अंडरलाइंग एसेट के प्राइस का अनुमान लगाने के लिए कर सकते हैं। कंपनियाँ अपने कच्चे माल या उनके द्वारा बेचें जानें वाले प्रोडक्ट की कीमत में।
उतार-चढ़ाव के कारण होने वाले नुकसान से बचने के लिए उसे फ्यूचर्स के द्वारा हेज (hedge) कर सकती हैं।  Futures contract खरीदने के लिए इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स को अनुबंध राशि का केवल कुछ अंश की ब्रोकर के पास जमा करना पड़ता है। 
फ्यूचर्स ट्रेडिंग के नुकसान 
Futures trading में इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स अपने मार्जिन मनी से ज्यादा का नुकसान करने का रिस्क उठाते हैं। हेजिंग के लिए फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदने वाले इन्वेस्टर्स अपने अनुकूल प्राइस मूवमेंट से चूक सकते हैं। मार्जिन दोधारी तलवार की तरह काम करता है जिससे प्रॉफिट कम और नुकसान ज्यादा हो सकता है। 

Futures trading कैसे करें? 

फ्यूचर्स मार्केट में आमतौर पर हाई लेवरेज (मार्जिन) का प्रयोग होता है। Leverage का अर्थ है डेब्ट (debt) लेना। ट्रेड लेते समय ट्रेडर को कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू का 100 प्रतिशत पैसा लगाने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय ब्रोकर द्वारा लिए जाने वाले initial मार्जिन राशि की आवश्यकता होती है। जिसमे कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का छोटा सा अंश होता है। 
ब्रोकर द्वारा ट्रेडिंग एकाउंट में मार्जिन राशि futures contract का साइज, ट्रेडर की साख और स्टॉक ब्रोकर के नियम व शर्तों तथा ट्रेडर की साख से तय होती है। जिस एक्सचेंज पर फ्यूचर्स ट्रेड होते हैं, वह तय करता है कि कॉन्ट्रैक्ट की फिजिकल डिलीवरी होगी या कैश में सेटलमेंट होगा। 
Futures में कोई निगम भी कमोडिटी के प्राइस को स्थिर रखने के लिए फिजिकल डिलीवरी कॉन्ट्रैक्ट ले सकता है। हालाँकि बहुत सारे फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स में ऐसे ट्रेडर्स शामिल होते हैं। जो अंडरलाइंग एसेट के प्राइस ट्रेंड का अनुमान लगाकर पोजीशन बनाते हैं। टार्गेट या स्टॉपलॉस हिट होने पर अपनी पोजीशन को बंद कर देते हैं। इसी को futures trading कहते हैं। 

Stock price का अनुमान लगाकर फ्यूचर्स ट्रेडिंग करें 

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट, ट्रेडर्स को अंडरलेइंग एसेट के प्राइस का अनुमान लगाने की अनुमति देता है। यदि किसी ट्रेडर ने futures contract खरीदा और एक्सपायरी डेट से पहले कॉन्ट्रैक्ट के अन्डरलाइंग एसेट का प्राइस बढ़ जाता है। तो ट्रेडर उस फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट को एक्सपायरी डेट से पहले वर्तमान बढ़े हुए प्राइस पर पर बेचकर प्रॉफिट बुक कर सकता है। यदि अंडरलाइंग एसेट के प्राइस बढ़ने के बजाय गिर जाते हैं तो इस स्थिति में कॉन्ट्रैक्ट खरीददार को नुकसान हो जायेगा। पुट-कॉल रेश्यो   
इसी तरह यदि किसी futures trader को लगता है कि अंडरलाइंग एसेट का प्राइस गिर सकता है। तब वह फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट को शार्ट-सेल कर सकता है। एक्सपायरी डेट से पहले उस अंडरलाइंग एसेट की प्राइस गिर जाती है। तो ट्रेडर उस फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का गिरे हुए प्राइस पर समायोजन करके उस पोजीशन को बंद कर सकता है।
कॉन्ट्रैक्ट के समाप्त होने पर शुद्ध अंतर का निपटारा जाता है। यदि ट्रेडर को प्रॉफिट होता है तो उसके एकाउंट में प्रॉफिट का पैसा जोड़ा जाता है। यदि futures traders को पोजीशन में नुकसान होता है तो उसके एकाउंट से उतना पैसा कटा जाता है। इसमें ध्यान देने योग्य बात यह है कि आपके डीमैट एकाउंट में जितना पैसा होता है।
फ्यूचर्स ट्रेडिंग के लिए Stockbroker उससे कई गुना ज्यादा पैसा आपको देता है। जिससे आपके अकाउंट में कम पैसे होने के बावजूद आप बड़ी पोजीशन बना सकते है। 
जिसके फलस्वरूप आपके बैलेंस के अनुपात में प्रॉफिट आपको ज्यादा होगा। इसी तरह नुकसान भी ज्यादा होगा, आपकी पोजीशन के नुकसान में पहुँचने पर मार्जिन कम हो जायेगा। यदि आपने और मार्जिन जमा नहीं कराया तो ब्रोकर आपकी पोजीशन को काट देगा। 
यदि अंडरलाइंग एसेट के प्राइस गिरने की बजाय बढ़ जाती हैं तो स्थिति में कॉन्ट्रैक्ट सेलर को नुकसान हो जायेगा। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के खरीदने-बेचने के बीच के अन्तर का सेटलमेंट ट्रेडर्स के ब्रोकरेज एकाउंट में नकद में निपटाया जायेगा। एमएसीडी

फ्यूचर्स के द्वारा हेजिंग कैसे करें? 

फ्यूचर्स के उपयोग अंडरलाइंग एसेट के प्राइस मूवमेंट को हेजिंग करने के लिए किया जा सकता है। हेजिंग में अंडरलाइंग एसेट के प्राइस का अनुमान नहीं लगाया जाता है। बल्कि अंडरलाइंग एसेट के प्राइस में होने वाले प्रतिकूल मूल्य परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान को रोकना है।  
बहुत सारी कंपनियाँ अपने प्रोडक्ट में यूज होने वाले कच्चे मॉल के प्राइस को कंट्रोल रखने के लिए उससे सम्बन्धित किसी अंडरलाइंग एसेट को फ्यूचर्स में हेज करके रखती हैं। 
उदाहरण स्वरूप यदि किसी गोल्ड ज्वैलरी बनाने वाली कंपनी को लगता है। कि आने वाले समय में गोल्ड मँहगा हो सकता है। तो वह कमोडिटी मार्केट में अभी के प्राइस पर फ्यूचर्स में सोने के लॉट खरीदकर उनको होल्ड कर सकता है। 
यदि आगे चलकर सोने के भाव तेज होते हैं तो भी ज्वैलर भविष्य में अभी के प्राइस पर उनके बदले में सोना ले सकता है। बेयरिश एंगल्फिंग पैटर्न  स्टॉक मार्केट, कमोडिटी मार्केट और F&O को सरकार द्वारा बनायीं गई अधिकार प्राप्त संस्था सेबी के द्वारा कंट्रोल किया जाता है। 
फ्यूचर्स ट्रेडिंग के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs 
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स क्या है? फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग का साधन हैं। जो इसके खरीददार को किसी सिक्युरिटी, कमोडिटी या करेंसी के फ्यूचर प्राइस पर दांव लगाने की अनुमति देता है। मार्केट में कई प्रकार के फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट होते हैं। 
इनमें स्टॉक्स, स्टॉक्स मार्केट इंडेक्स, कमोडिटी में ऑइल, सोना, चांदी, मेटल्स, चना, हल्दी आदि होते हैं। इंडिया में कमोडिटी के फ्यूचर्स की ट्रेडिंग MCX पर होती है जबकि स्टॉक्स और स्टॉक्स मार्केट इंडेक्स की NSE पर ट्रेडिंग होती है। 
क्या फ्यूचर्स ट्रेडिंग लाभदायक होती है? 
इन्वेस्टर्स के लिए फ्यूचर्स ट्रेडिंग का मतलब है। शेयरों की पूरी कीमत के बजाय बहुत कम कीमत पर शेयरों में इन्वेस्ट करना। यदि मार्केट ट्रेड की दिशा में चलता है तो बहुत कम रूपये लगाकर अधिक प्रॉफिट कमाया जा सकता है। 
फ्यूचर्स के पांच प्रकार कौन से हैं? 
फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट्स पांच प्रकार हैं- इक्विटी फ्यूचर्स, इंडेक्स फ्यूचर्स, कमोडिटी फ्यूचर्स, करेंसी फ्यूचर्स, इंटरेस्ट रेट फ्यूचर्स, VIX फ्यूचर्स आदि futures trading के प्रकार हैं। सभी प्रकार के फ्यूचर्स की अवधारणा एक समान होती है।
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