ट्रेडिंग सिस्टम सेटअप कैसे करें? What is trading system Setup.

ट्रेडिंग सिस्टम पूर्वनिर्धारित नियमों या मापदंडों का एक सेट है। जिसका उपयोग ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स शेयर, करेंसी और कमोडिटी जैसे फाइनेंसियल इंस्ट्रूमेंट्स buy & sell करने के निर्णय लेने के लिए करते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं- ट्रेडिंग सिस्टम सेटअप कैसे करें? What is trading system Setup in Hindi. 

What is trading system Setup.


अगर आप शेयर मार्केट एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो महेशचंद्र कौशिक द्वारा लिखित आपको शेयर बाजार में सफल कैसे हों बुक जरूर पढ़नी चाहिए। 

Trading System क्या है? 

ट्रेडिंग सिस्टम मैन्युअल हो सकते हैं, जहाँ ट्रेडर खुद मार्केट की निगरानी करते हैं। वे कुछ सेट मानदंडों के आधार पर निर्णय लेते हैं। ट्रेडिंग system ऑटोमेटिक भी हो सकता है। जिसमें सॉफ़्टवेयर एल्गोरिदम के आधार पर ट्रेड एक्जिक्यूट होता है। 

सॉफ्टवेयर द्वारा trade execute करने को अल्गो ट्रेडिंग (Algorithmic trading) भी कहा जाता है। यह आजकल बहुत लोकप्रिय हो रही है। चाहे आप डे ट्रेडर हों, स्विंग ट्रेडर हों या पोजिशन ट्रेडर हों। एक अच्छी तरह से वैल डिफाइन Trading system setup ट्रेडिंग प्रक्रिया से जुडी आपकी भावनाओं को दूर करने में मदद करता है। 

जिससे ट्रेडर्स को ट्रेडिंग के दौरान कंसिस्टेंसी और discipline मेंटेन करने में आसानी होती है। एक अच्छा ट्रेडिंग सिस्टम सेटअप करके आप तेजी से ट्रेडिंग पोजीशन बनाने के सही निर्णय लेनें में सक्षम हो सकेंगे। इसके साथ ही ट्रेडर्स को एक अच्छा ट्रेडिंग प्लान भी बनाना चाहिए। 

Trading System Setup कैसे करें? 

एक सफल ट्रेडिंग सिस्टम में कई महत्वपूर्ण घटक शामिल होते हैं। जिनके आधार पर ट्रेडिंग सिस्टम सेटअप में ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीज सेट की जाती है। जो ट्रेडिंग पोजीशन बनाने के लिए निन्मलिखित सिग्नल देते हैं- 

1. ट्रेड में एंट्री के सिग्नल (Entry Signals)

एंट्री सिग्नल उन मानदंडों को संदर्भित करते हैं, जो शेयरों को Buy & Sell यानि लॉन्ग और शार्ट करने के सिग्नल देते हैं। ट्रेडिंग सिस्टम ट्रेड में एंट्री का सिग्नल टेक्निकल एनालिसिस या फंडामेंटल एनालिसिस के आधार पर दे सकता है। अथवा दोनों के सम्मिलित आधार पर ट्रेड में एंट्री का सिग्नल भी दे सकता है।

उदाहरण के लिए, एक टेक्निकल ट्रेडर अपने ट्रेडों को समय देने के लिए मूविंग एवरेज, रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (RSI), या स्टोकेस्टिक ऑसिलेटर जैसे संकेतकों का उपयोग कर सकता है। दूसरी ओर, एक फंडामेंटल ट्रेडर इनकम रिपोर्ट, आर्थिक डेटा या मार्केट सेंटीमेंट के आधार पर ट्रेडिंग पोजीशन बनाने के निर्णय ले सकता है। 

2. ट्रेड से बाहर होने के सिग्नल (Exit Signals)

किसी ट्रेड में कब प्रवेश करना है, यह जानना जितना ही महत्वपूर्ण है। उतना ही यह जानना भी कि कब बाहर निकलना है। ट्रेडिंग सिस्टम द्वारा ट्रेड से बाहर होने के लिए दिए जाने वाले एग्जिट सिग्नल पहले ही निर्धारित हो जाते हैं। 

ये सिग्नल प्रॉफिट को लॉक करने के लिए होते हैं अथवा नुकसान को कम करने के लिए होते हैं। ये सिग्नल स्टॉप-लॉस ऑर्डर, ट्रेलिंग स्टॉप या रिस्क-रिवॉर्ड रेश्यो के आधार पर Stock trading system में सेट किये जाते हैं। 

3. पोजीशन साइजिंग (Position Sizing) 

पोजीशन साइजिंग के द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि किसी एक ट्रेड में कितनी पूँजी लगानी है। कई ट्रेडिंग सिस्टम में रिस्क मैनेजमेंट रूल्स को भी शामिल किया जाता है। जो यह निर्धारित करते हैं कि किसी ट्रेडर के पोर्टफोलियो का कितना हिस्सा एक ट्रेड पर जोखिम में डाला जाना चाहिए। एक सामान्य नियम यह है कि किसी एक ट्रेड पर अपनी ट्रेडिंग मनी का 1-2% से अधिक रिस्क कभी नहीं लेना चाहिए। 

4. बैकटेटिंग (Backtesting)

लाइव मार्केट में ट्रेडिंग सिस्टम को लागू करने से पहले, उसके ऐतिहासिक डेटा के खिलाफ इसका बैकटेस्ट करना बहुत ज़रूरी है। Trading system की बैकटेस्टिंग ट्रेडर्स को यह निर्धारित करने में मदद करती है कि क्या उनकी strategies अतीत में प्रॉफिटेबल रही होंगी? जिससे सिस्टम की मज़बूती और प्रदर्शन के बारे में मूल्यांकन करने में मदद मिलती है। 

6. रिस्क मैनेजमेंट (Risk Management)

वही ट्रेडिंग सिस्टम सबसे अच्छा होता है, जिसमें ट्रेडिंग रिस्क को सही तरीके से मैनेज किया जाता है। इसमें Stoploss limit निर्धारित करना, लीवरेज को मैनेज करना और ट्रेडर्स को ओवरट्रेडिंग से बचाना शामिल है। उचित रिस्क मैनेजमेंट यह सुनिश्चित करता है कि भले ही market trend ट्रेडर के खिलाफ़ हो, लेकिन ट्रेडर को नुकसान कम ही होना चाहिए। 

Trading System के प्रकार

कई प्रकार के स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग सिस्टम हैं, को प्रत्येक अलग-अलग मार्केट कंडीशन और ट्रेडिंग स्टाइल के लिए उपयुक्त है। कुछ लोकप्रिय ट्रेडिंग सिस्टम निम्नलिखित हैं- 

1. मार्केट ट्रेंड फॉलोइंग सिस्टम (Trend-Following Systems)

ट्रेंड-फ़ॉलोइंग सिस्टम का उद्देश्य मार्केट ट्रेंड से फ़ायदा उठाना होता है। ये सिस्टम इस आधार पर काम करते हैं कि "Trend is Your Friend" वैसे इस कोट का प्रयोग Bigg Bull के नाम से प्रसिद्ध राकेश झुंझुनवाला अक्सर किया करते थे। यह उनका फेवरेट कोट था। इसका मतलब है कि हमेशा ट्रेंड की दिशा में ही ट्रेड लेना चाहिए।

मार्केट ट्रेंड को जानने के लिए आप मूविंग एवरेज, MACD (मूविंग एवरेज कन्वर्जेंस डाइवर्जेंस), या बोलिंगर बैंड जैसे संकेतकों का उपयोग कर सकते हैं। जब Share price हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम के साथ मूविंग एवरेज से ऊपर निकलते है। तब ये सिस्टम Buy के सिग्नल जेनरेट करते हैं। जब प्राइस मूविंग एवरेज को नीचे की तरफ तोड़ते हैं, तब ट्रेडिंग सिस्टम short-sell के सिग्नल जेनरेट करते हैं।  

2. एल्गोरिथमिक ट्रेडिंग सिस्टम

Algorithmic Trading Systems अत्यधिक ऑटोमैटिक होते हैं और हाई स्पीड से ट्रेड एक्जिक्यूट करने के लिए जटिल गणितीय मॉडल का उपयोग करते हैं। इन सिस्टम का उपयोग ज्यादातर FII & DII और हेज फंड के द्वारा किया जाता है। हालाँकि रिटेल ट्रेडर्स भी मेटाट्रेडर, निंजाट्रेडर या ट्रेडस्टेशन जैसे टूल के साथ इनका उपयोग तेजी से कर रहे हैं।

3. मीन रिवर्सन सिस्टम (Mean Reversion Systems)

मीन रिवर्सन सिस्टम इस विचार पर आधारित हैं कि शेयरों के प्राइस अपने ऐतिहासिक औसत प्राइस पर वापस लौटते हैं। इस सिस्टम का उपयोग करने वाले ट्रेडर्स मार्केट में ओवरबॉट या ओवरसोल्ड stocks की तलाश करते हैं। ये अक्सर RSI या स्टोकेस्टिक इंडिकेटर जैसे ऑसिलेटर पर भरोसा करते हैं। ये सिस्टम रेंज-बाउंड मार्केट में सबसे अच्छा काम करते हैं।

4. स्केलिंग सिस्टम (Scalping Systems)

स्केलिंग एक शार्ट-टर्म ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी है, जिसका उद्देश्य शेयरों के स्मॉल प्राइस मूवमेंट से प्रॉफिट कमाना होता है। स्केलिंग सिस्टम में अक्सर हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग शामिल होती है। इसे  stocks के प्राइस में बहुत कम समय सीमा यानि मिनटों में होने वाले उतार-चढ़ाव का लाभ उठाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

5 . ब्रेकआउट सिस्टम (Breakout Systems)

ब्रेकआउट सिस्टम तब सिग्नल उत्पन्न करता है, जब किसी स्टॉक का प्राइस प्रमुख सपोर्ट या रेजिस्टेंस लेवल को तोड़ता है। यह सिस्टम वौलेटाइल मार्केट में विशेष रूप से प्रभावी हो सकता है। ब्रेकआउट तब होता है, जब किसी शेयर का प्राइस एक निर्धारित सरेंज से बाहर निकल जाता है तो यह ब्रेकआउट की दिशा में आगे बढ़ना जारी रखता है। 

Trading System Setup बनाने के लाभ 

ट्रेडिंग सिस्टम, ट्रेडर की निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थिरता लाता है। नियमों के सेट का पालन करके, ट्रेडर्स Fear & Gread जैसे भावनात्मक पूर्वाग्रहों को दूर कर सकते हैं। जिसकी वजह से ट्रेड लेते समय अक्सर खराब निर्णयों हो जाते हैं। ट्रेडिंग  सेटअप के निम्नलिखित लाभ होते हैं-
  • दक्षता: ऑटोमैटिक ट्रेडिंग सिस्टम के उपयोग से, ट्रेडर्स सम्पूर्ण शेयर मार्केट को कुशलतापूर्वक स्कैन कर सकता हैं। इस सिस्टम से मैन्युअल सिस्टम की तुलना में बहुत तेज़ी से ट्रेड एक्जिक्यूट कर सकते हैं। इससे ट्रेडर्स को ट्रेडिंग के ज़्यादा अवसर प्राप्त होते। 
  • बैकटेस्टिंग  क्षमता: ट्रेडिंग सिस्टम पूरी तरह से बैकटेस्टिंग की अनुमति देते हैं। जिसका अर्थ है कि ट्रेडर्स प्रदर्शन का आकलन करने के लिए ऐतिहासिक डेटा पर अपनी Trading strategies का परीक्षण कर सकते हैं। इससे ट्रेडर्स यह पता कर सकते है कि क्या सिस्टम आगे चलकर प्रॉफिटेबल हो सकता है।
  • डिसिप्लिन और रिस्क मैनेजमेंट: ट्रेडिंग सिस्टम अनुशासन लागू करते हैं, क्योंकि ट्रेडर्स सिस्टम के नियमों से बंधे होते हैं। इससे फोकस बनाए रखने और अपने ट्रेडिंग प्लान पर टिके रहने में मदद मिलती है। इसके अलावा, ट्रेडिंग सिस्टम का रिस्क मनैजमेंट पहलू यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेडर्स अपनी पूंजी को संभावित प्रॉफिट के लिए ज़्यादा जोखिम में न डालें। 
अंत में: किसी भी गंभीर ट्रेडर या investor के लिए एक अच्छी तरह से निर्मित ट्रेडिंग सिस्टम बहुत जरूरी है। इसमें ट्रेड में एंट्री करने और एग्जिट करने, रिस्क मैनेज करने और पोजीशन साइज़िंग के लिए स्पष्ट नियम होते हैं।

ट्रेडर्स ट्रेडिंग सेटअप का एक ऐसा ढांचा बनाना चाहिए। जो उनकी सफलता की संभावनाओं को बढ़ाता है। जबकि कोई भी ट्रेडिंग सिस्टम अचूक नहीं है, और सभी सिस्टम नुकसान का अनुभव करते हैं। एक परिभाषित ट्रेडिंग सिस्टम का उपयोग करने के साथ आने वाला अनुशासन फाइनेंसियल मार्केट की जटिलताओं को नेविगेट करने में अमूल्य योगदान देता है। 

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