डोव थ्योरी में टेक्निकल एनालिसिस का महत्व क्या है? Dow theory in technical Analysis

डोव थ्योरी किसी भी मार्केट के प्राइमरी ट्रेंड को पहचानने का प्रयास करती है। इसमें तीन मुख्य प्राइमरी ट्रेंड शामिल हैं। प्रत्येक ट्रेंड में मुख्य ट्रेंड के अलावा सैकेंडरी और माइनर ट्रेंड भी शामिल होते हैं। डोव थ्योरी के अनुसार मार्केट पहले से ही सभी संभावित फेक्टर्स और न्यूज को जानता है और उसे प्राइस में दर्शाता भी है। आइए विस्तार से जानते हैं- डोव थ्योरी में टेक्निकल एनालिसिस ( Dow theory in technical Analysis ) का महत्व क्या है? Dow theory in technical Analysis in Hindi. 

                                                                               
Dow Theory in Hindi



यदि आप डोव थ्योरी में एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको राकेश बंसल द्वारा लिखित बुक प्रॉफिटेबल ट्रेडिंग विथ डोव थ्योरी जरूर पढ़नी चाहिए।

Dow theory in technical Analysis क्या है?

डोव थ्योरी टेक्निकल एनालिसिस के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। जिसे चार्ल्स एच. डॉव द्वारा विकसित किया गया था। जो डॉव जोन्स एंड कंपनी के सह-संस्थापक और द वॉल स्ट्रीट जर्नल के पहले संपादक थे। डॉव थ्योरी कई सिद्धांतों और अवधारणाओं का आधार बनती है। इन्होनें 1986 में डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज विकसित किया था। आजकल Dow Theory का Technical Analysis में बड़े स्तर पर उपयोग किया जाता है। Dow theory को एक सीरीज के रूप में वॉल स्ट्रीट जर्नल अख़बार में प्रकाशित किया गया था। 

डॉव का मानना था कि सम्पूर्ण शेयर मार्केट का विश्लेषण किया जा सकता है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था और बिजनेस परिस्थतियों के आधार पर उस देश का स्टॉक मार्केट प्रदर्शन करता है। अतः इन सभी के एनालिसिस के आधार पर मार्केट का technical analysis भी किया जा सकता है। और स्टॉक्स और मार्केट ट्रेंड और उनके प्राइस का अनुमान भी लगाया जा सकता है। 

डॉव थ्योरी एक फाइनेंशियल सिद्धांत है, यदि मार्केट अपट्रेंड में है। अगर स्टॉक्स के प्राइस अपने एवरेज प्राइस से ऊपर बढ़ते हैं। यानि पिछले महत्वपूर्ण ऊपरी लेवल को तोड़कर अपवर्ड ट्रेंड में मूव करते हैं। तो इसका मतलब अब स्टॉक्स के प्राइस और भी ऊपर की तरफ मूवी करेंगे। इलियट वेव थ्योरी

Dow Theory technical analysis फ्रेमवर्क है। जो सिक्युरिटी के प्राइस की भविष्यवाणी करता है। यदि किसी शेयर का एवरेज प्राइस उसके किसी पिछले महत्वपूर्ण प्राइस से ऊपर बढ़ता है। तो डॉव् थ्योरी के अनुसार अब प्राइस अपट्रेंड में आगे बढ़ने चाहिए। 

डॉव् थ्योरी इस सिद्धांत पर आधारित है कि मार्केट में सब कुछ डिस्काउंट होता है। यानि की स्टॉक्स में वर्तमान प्राइस उससे सम्बन्धित सभी न्यूज को पहले ही डिस्काउंट करके चलता है। मार्केट के सभी सूचकांकों को प्राइस एक्शन और ट्रेडिंग वॉल्यूम के आधार पर एक ट्रेंड की पुष्टि करनी चाहिए। जब तक की ट्रेंड रिवर्सल न हो जाये। 

Dow Theory in Technical Analysis कैसे काम करता है?

टेक्निकल एनालिसिस में डोव थ्योरी का बहुत महत्व है। डोव थ्योरी के मुख्य छः सिद्धांत हैं, जोकि निम्नलिखित हैं-  

1. बाज़ार हर चीज़ पर छूट देता है ( Market Discounts Every Things )


डॉव थ्योरी कुशल बाजार परिकल्पना (ईएमएच) पर काम करती है। जिसमें कहा गया है कि शेयरों के प्राइस में सभी उपलब्ध जानकारी शामिल होती है। मार्केट डिस्काउंट एवरीथिंग का अर्थ है- किसी सिक्युरिटी ( Stocks, Bounds and Commodity ) के वर्तमान प्राइस में  उसकी अर्निग्स पोटेंशियल, अन्य प्रतिदंद्वी कंपनियों पर पर्तिस्पर्धात्मक बढ़त, कंपनी मैनेजमेंट, इकनोमिक, पॉलिटिकल, फाइनेंशियल सहित अन्य सभी फेक्टर्स प्राइस में शामिल होते हैं। भले ही इनके बारे में मार्केट पार्टिसिपेंट को मालूम हो या नहीं लेकिन इनका प्रभाव स्टॉक के प्राइस में पहले से ही शामिल होता है।  

यह सिद्धांत बताता है कि अतीत, वर्तमान और भविष्य की घटनाओं सहित सभी ज्ञात जानकारी पहले से ही स्टॉक के प्राइस में शामिल होती है। इसलिए टेक्निकल एनालिसिस के द्वारा स्टॉक्स के भविष्य के प्राइस मूवमेंट के बारे में पूर्वानुमान लगाने के लिए प्राइस और वॉल्यूम के डेटा का टेक्निकल एनालिसिस किया जाना चाहिए।  

2 . मार्केट ट्रेंडस के तीन प्राथमिक प्रकार होते हैं ( Market Trends ) 


Dow Theory के सिद्धांत का मानना है कि शेयरों के प्राइस में उतार-चढ़ाव रेंडमली नहीं होते हैं। बल्कि ट्रेंड्स  का अनुसरण करते हैं। जिसे मार्केट ट्रेंड्स कहा जाता है। मार्केट ट्रेंड्स को मोटे तौर पर तीन चरणों में बांटा जा सकता है- 
  1. प्राइमरी ट्रेंड- प्राइमरी ट्रेंड लॉन्ग-टर्म ट्रेंड होता है, जिसे बुल मार्केट या बेयर मार्केट कहा जाता है।  
  2. सैकेंडरी ट्रेंड- सैकेंडरी ट्रेंड छोटे ट्रेंड होते हैं, जो प्राइमरी ट्रेंड के अंदर ही शेयरों के प्राइस में छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। जो कुछ दिन से लेकर कुछ महीनों तक चल सकते हैं। 
  3. माइनर ट्रेंड- शेयरों के प्राइस में जो दिन-प्रतिदिन उतार-चढ़ाव होते हैं उन्हें माइनर ट्रेंड कहा जाता है।   

शेयर मार्केट प्राइमरी ट्रेंड्स का लम्बे समय तक जारी रह सकता है। जो एक वर्ष से लेकर कई वर्षों तक चल सकता हैं। जैसे कि बुल मार्केट या बेयर मार्केट जिसे ब्रोडर मार्केट ट्रेंड भी कहते हैं। सैकेंडरी ट्रेंड्स शेयरों के प्राइस में कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह या तक कुछ महीनों तक वर्तमान ट्रेंड के विपरीत मूवमेंट होता है। 

जैसे कि तेजी के मार्केट के में कुछ समय के लिए गिरावट ( मंदी ) आना। या लम्बी मंदी के दौरान (गिरावट के बाद ) मार्केट में कुछ समय के लिए  तेजी का आना। ये सैकेंडरी ट्रेंड्स  कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक रह सकते हैं। इन छोटे उतार-चढ़ावों को बाजार का शोर माना जाता है।

3. प्राइमरी ट्रेंड्स के तीन चरण ( Primary trends Have 3 Phases ) 


डॉव थ्योरी के अनुसार प्राइमरी बुल और बेयर ट्रेंड्स ( मार्केट ) तीन चरणों ( Phases ) से होकर गुजरते हैं। जो निम्नलिखित हैं-
 
Bull Market के चरण 

  1. संचयी चरण ( accumulation phases )- इस चरण में सिक्युरिटीज के प्राइस हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम के साथ बढ़ते हैं। 
  2. पब्लिक पार्टिसिपेशन (Big Move )- इस चरण में रिटेल और एवरेज इंवेस्टर्स शेयरों के प्राइस में अपट्रेंड को नोटिस करने लगते हैं। और इसमें शामिल होकर शेयरों की खरीदारी करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप शेयरों के प्राइस में बड़ी तेजी जारी रहती है। यह सबसे लम्बा चरण होता है। डबल टॉप पैटर्न  
  3. अतिरिक्त चरण ( Excess Phases ) इस चरण में स्टॉक मार्केट ऐसे पॉइंट पर पहुंच जाता है। जहाँ से अनुभवी इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स अपनी पोजिशंस से बाहर होने लगते हैं। यानि अपने स्टॉक्स बेचकर,  प्रॉफिट बुक करने लगते हैं। जबकि बड़ी संख्या में इन्वेस्ट करने वाले रिटेल और एवरेज इन्वेस्टर्स शेयरों को खरीदना जारी रखते हैं। और उन्हें नीचे नहीं गिरने देते हैं। 
Bear Market के चरण 

  1. डिस्ट्रीब्यूशन चरण ( Distribution phase )- इस चरण में शेयर मार्केट में बड़ी गिरावट की खबरें अलग-अलग चैनलों के माध्यम से इन्वेस्टर्स कम्युनिटी में फैलने लगती हैं। 
  2. पब्लिक पार्टिसिपेशन फेज- इस चरण में शेयरों के प्राइस में बढ़त बहुत कम और लो ट्रेडिंग वॉल्यूम के साथ होती है। जबकि गिरावट बहुत बड़ी और हाई वॉल्यूम के साथ होती है। जिससे रिटेल इन्वेस्टर्स लगातार घाटे में रहने लगते हैं। जिससे घबराकर वे अपने शेयरों को नुकसान में ही बेचने लगते हैं। क्योंकि इस दौरान किसी भी प्राइस पर शेयर खरीदने पर भी इन्वेस्टर्स को नुकसान ही होता है। यह आमतौर पर सबसे लम्बा चरण होता है। 
  3. घबराहट का चरण ( Panic/Despair Phase ) इस चरण में इन्वेस्टर्स मार्केट में बढ़त की सभी उम्मीदें खो देते हैं और पेनिक में बड़े स्तर पर शेयरों में भारी बिकवाली करते रहते हैं। इसके बाद शेयर मार्केट बिल्कुल धराशायी हो जाता है। इस समय उसमे और अधिक गिरावट की गुंजाइश नहीं बचती है। 

4. सूचकांकों को एक दूसरे की पुष्टि करनी चाहिए ( Indices Must Confirm Each Other ) 

मार्केट ट्रेंड को स्थापित करने के लिए, Dow Theory के अनुसार स्टॉक मार्केट इंडेक्स ( सूचकांक ) और मार्केट एवरेज को एक दूसरे की पुष्टि करनी होगी। इसका मतलब यह है कि एक सूचकांक पर होने वाले संकेतों को दूसरे सूचकांक के संकेतों से मेल खाना चाहिए या अनुरूप होना चाहिए। 

यदि एक सूचकांक, जैसे कि निफ्टी 50 में एक नया प्राइमरी अपट्रेंड दिख रहा है। लेकिन सेंसेक्स में प्राइमरी डाउनट्रेंड में रहता है। तो ट्रेडर्स को यह नहीं मानना चाहिए कि मार्केट में नया ट्रेंड शुरू हो गया है। डॉव ने उन दो सूचकांकों का उपयोग किया जिनका उन्होंने और उनके साझेदारों ने आविष्कार किया था। 

5. ट्रेडिंग वॉल्यूम को ट्रेंड की पुष्टि करनी चाहिए ( Volume Must Confirm Trend ) 

ट्रेडिंग वॉल्यूम सामान्यतः तब बढ़ता है। जब शेयरों के प्राइस प्राइमरी ट्रेंड की दिशा में बढ़ते हैं। और ट्रेडिंग वॉल्यूम तब कम रहता है, जब शेयरों के प्राइस प्राइमरी ट्रेंड के विपरीत दिशा में चलते हैं। कम ट्रेडिंग वॉल्यूम कमजोर ट्रेंड का संकेत देता है। उदाहरणस्वरूप बुल मार्केट में बाइंग हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम के साथ होनी चाहिए क्योंकि इस दौरान शेयरों के प्राइस बढ़ते हैं।

सैकेंडरी ट्रेंड ( शार्ट टर्म उतार-चढ़ाव ) के दौरान ट्रेडिंग वॉल्यूम कम रहना चाहिए इसमें शेयरों के प्राइस कुछ समय के लिए गिरते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ट्रेडर्स अभी भी प्राइमरी ट्रेंड में विश्वास कर रहे हैं। यदि पुलबैक के दौरान ट्रेडिंग वॉल्यूम ज्यादा रहता है। तो इसका मतलब ज्यादातर मार्केट पार्टिसिपेंट मार्केट पर बेयरिश हो रहे हैं। 

6. मार्केट ट्रेंड्स तब तक बनें रहते हैं, जबतक स्पष्ट रिवर्सल नहीं हो जाता है 

प्राइमरी ट्रेंड्स रिवर्सल को लेकर शार्ट-टर्म ट्रेंड्स की वजह से कंफ्यूज हो सकते हैं। क्योंकि यह निर्धारित करना बेहद मुश्किल है। कि बुल मार्केट के दौरान होने वाली गिरावट शार्ट-टर्म के लिए है या यह ट्रेंड रिवर्सल है। इसी तरह बेयरिश मार्केट के दौरान होने वाली तेजी शार्ट-टर्म के लिए है या यह मार्केट ट्रेंड रिवर्सल है। Dow Theory, technical analysis के द्वारा कन्फर्मेशन की सलाह देता है। 

इसके लिए "निफ्टी 50" के ट्रेंड की तुलना "सेंसेक्स" के ट्रेंड के साथ करके पता लगाना चाहिए कि यह ट्रेंड रिवर्सल रियल है या फेक ट्रेंड रिवर्सल है। क्योंकि यदि "निफ्टी 50" के साथ-साथ "सेंसेक्स" में भी ट्रेंड रिवर्सल आ रहा है तो या रियल ट्रेंड रिवर्सल है। अगर ऐसा नहीं है, यानि "निफ्टी 50" के साथ सेंसेक्स में ट्रेंड रिवर्सल नहीं आ रहा है तो यह ट्रेंड रिवर्सल फेक हैं। 

Dow Theory को समझने के लिए कुछ अतिरिक्त पॉइंट्स 

डॉव थ्योरी को डिटेल में समझनें के लिए कुछ अतिरिक्त पॉइंट्स भी हैं जो निम्नलिखित हैं-

क्लोजिंग प्राइस और लाइन रेंज 

चार्ल्स डॉव पूरी तरह से स्टॉक्स के क्लोजिंग प्राइस पर ही निर्भर थे। वह इंडेक्स के इंट्राडे मूवमेंट के बारे में बिलकुल भी चिंतित नहीं रहते थे। डॉव थ्योरी की एक अन्य विशेषता लाइन रेंज का आईडिया भी है। जिसे technical analysis के क्षेत्र में ट्रेडिंग रेंज के रूप में भी जाना जाता है। इस अवधि को साइडवे मार्केट या कंसोलिडेशन के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान यदि शेयरों के प्राइस लाइन से ऊपर की तरफ बढ़ते हैं तो मार्केट के ऊपर की तरफ बढ़ने की संभावना काफी बढ़ जाती है। 
 
मार्केट ट्रेंड्स को कैसे पहचाने ( How to Identify Stock Market Trends ) 

डॉव थ्योरी को लागू करने का एक चुनौतीपूर्ण पहलू है, ट्रेंड रिवर्सल की सटीक पहचान करना है। यहाँ पर यह बात याद रखनी चाहिए कि Dow Theory को फॉलो करने वाले ट्रेडर्स इसे शेयर मार्केट की ओवरऑल डायरेक्शन पर लागू करना पसंद करते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि उन्हें वे पॉइंट्स भी पता होने चाहिए। जब मार्केट अपनी दिशा ( Trends Reversal ) बदलता है। 

डॉव् थ्योरी की ट्रेंड रिवर्सल को पहचानने वाली मुख्य टेक्निक है। पीक एंड ट्रॉफ एनालिसिस। यानि शिखर और गर्त का विश्लेषण करके ट्रेंड रिवर्सल का पता लगाया जा सकता है। इस टेक्निक में पीक ( Peak ) तब बनता है तब शेयरों के प्राइस सबसे ज्यादा होते हैं। पीक, बुल मार्केट में बनता है यह प्राइस का हाईएस्ट पॉइंट होता है। जब इन्वेस्टर्स को लगता है कि प्राइस अब और ऊपर नहीं जा पाएंगे। पीक मार्केट में लम्बी तेजी के बाद बनता है। यह बेयरिश रिवर्सल होता है। तब स्मार्ट इन्वेस्टर्स प्रॉफिट बुक करते हैं या मार्केट में भारी बिकवाली ( शार्ट सेलिंग ) करते हैं। 

स्मार्ट इन्वेस्टर्स सबसे पहले ट्रेंड्स रिवर्सल को पहचान लेते हैं। पीक का विपरीत गर्त या वैली ( Trough ) होता है। गर्त या वैली तब बनता है, जब मार्केट या स्टॉक्स अपना लोएस्ट प्राइस बनाते हैं। इसके बनने के बाद प्राइस के और गिरने की आशंका खत्म हो जाती है। गर्त या वैली मार्केट में तेजी आने का संकेत देता है। गर्त या वैली मार्केट या स्टॉक्स में लम्बी मंदी के बाद बनती है। इसका मतलब है कि अब मार्केट में गिरावट का दौर समाप्त हो चुका है और अब तेजी की शरुआत होने वाली है। Dow Theory का मानना है कि शेयर मार्केट कभी भी  सीधी लाइन में नहीं चलता है। यह हमेशा पीक और वैली बनाता हुआ चलता है। 

                                                                             
Peak and trough

डॉव थ्योरी के अनुसार जब मार्केट अपट्रेंड में होता है तब इसके ऊपर की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति क्रमिक रूप से ऊंची चोटियों और गर्तों की एक श्रृंखला बनती है। जब मार्केट डाउनट्रेंड में होता है, तब इसके नीचे की ओर प्रवृत्ति क्रमिक रूप से निचली चोटियों और गर्तों की एक श्रृंखला बनती है। 

Dow Theory के छठे सिद्धांत का तर्क है कि एक ट्रेंड तब तक प्रभावी रहता है। जब तक ट्रेंड रिवर्सल का कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिखाई देता है। इसी तरह मार्केट प्राइमरी ट्रेंड में तब तक चलता रहेगा जब तक मार्केट के फंडामेंटल्स में कोई बदलाव ना हो। 

यानि कि मार्केट में गिरावट खराब खबरों की वजह से होती है जैसे युद्ध, आर्थिक मंदी या लोकप्रिय सरकारों का गिरना आदि। इसी तरह मार्केटमे तेजी अच्छी वजहों से होती है। जैसे अच्छी आर्थिक तरक्की, कम ब्याज दरें, रोजगार के अच्छे आंकड़े, देशों के मध्य शांति और सद्भाव के समय मार्केट में तेजी रहती है। 

ट्रेंड्स रिवर्सल को पहचाने ( Trends Reversal ) 

प्राइमरी ट्रेंड में रिवर्सल का पहला संकेत तब मिलता है। जब मार्केट लगातार पीक या गर्त नहीं बना पाता है। अपट्रेंड के दौरान रिवर्सल तब आता है। जब शेयर का प्राइस लम्बी अवधि में हायर हाई और हायर लो बनाने में असमर्थ रहता है। इसके बजाय शेयर का प्राइस लोअर लो और लोअर हाई बनाने लगता है। तब ट्रेंड रिवर्सल कन्फर्म हो जाता है। इसका मतलब अपट्रेंड अब समाप्त हो चूका है और डाउनट्रेंड की शुरुआत हो चुकी है। 

इसी तरह डाउनट्रेंड के दौरान रिवर्सल तब आता है जब शेयर का प्राइस लम्बी अवधि में लोअर लो और लोअर हाई नहीं बना पाता है। इसके बजाय शेयर का प्राइस हायर हाई और हायर लो बनाने लगता है। तब ट्रेंड रिवर्सल कन्फर्म हो जाता है। इसका मतलब अब डाउनट्रेंड समाप्त हो चूका है और अपट्रेंड की शुरुआत हो चुकी  है। 

Dow Theory technical analysis का काम, शेयर मार्केट के प्राइमरी ट्रेंड को सबूत के साथ कन्फर्म करना है। यानि डॉव् थ्योरी किसी भी मार्केट प्राइमरी ट्रेंड को पहचानने का प्रयास करती है। इसमें तीन ट्रेंड्स शामिल हैं- प्राइमरी, सैकेंडरी और माइनर ट्रेंडस डॉव् थ्योरी का मानना है कि मार्केट सभी मौजूदा फेक्टर्स को अपने प्राइस में पहले से ही शामिल करके रखता है। और शेयरों के प्राइस सभी फेक्टर्स को शामिल करके बनता है। इसलिए ही भविष्य के प्राइस का अनुमान टेक्निकल एनालिसिस करके किया जा सकता है। 

इसका तात्पर्य यह है कि आगे जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है। कि शेयरों की कीमत इतनी क्यों है? प्राइस मूवमेंट और ट्रेडिंग वॉल्यूम का विश्लेषण ट्रेंड रिवासल के कन्फर्मेशन के लिए  करना चाहिए। इन्हीं के आधार पर ट्रेंड रिवासल की पुष्टि करनी चाहिए। 

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