अपनी मेहनत की कमाई को इन्वेस्ट करने से पहले आपको इस अन्तर को जानना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैं- म्यूचुअल फंड्स vs स्टॉक्स: कौन है आपके पैसे का असली हीरो? Mutual Funds vs Stocks kaun behtar hai?
अगर आप भी म्यूच्यूअल फंड्स में इन्वेस्टमेंट करके पैसा कमाना चाहते हैं तो आपको योगेश अग्रवाल द्वारा लिखित म्यूच्यूअल फंड में इन्वेस्टमेंट करके पैसा कैसे कमाएं बुक जरूर पढ़नी चाहिए।
आज के दौर में, सिर्फ पैसा कमाना ही काफी नहीं है बल्कि उसे सही जगह पर invest करके बढ़ाना भी उतना ही ज़रूरी है। बढ़ती महंगाई के कारण, अगर किसी का पैसा बैंक खाते में निष्क्रिय पड़ा रहता है। तो समय के साथ उसकी खरीदने की शक्ति कम होती जाती है।
निवेश इस चुनौती का सामना करने और व्यक्तियों को अपने फाइनेंशियल गोल को प्राप्त करने में मदद करने का एक प्रभावी तरीका प्रदान करता है। यह धन संचय और भविष्य की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
Mutual Funds क्या है?
म्यूच्यूअल फंड एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट टूल है जो बहुत सारे लोगों से पैसा एकत्र करके एक पूल्ड इन्वेस्टमेंट फंड बनाते हैं। जिसे पुलिंग ऑफ फंड्स" भी कहा जाता है। लोगों से एकत्र किये गए पैसे को म्यूच्यूअल फंड्स विभिन्न एसेट क्लास जैसे स्टॉक, बांड्स और दूसरे अन्य एसेट्स में इन्वेस्ट करते हैं। अगल-अलग एसेट क्लास में इन्वेस्ट करने से मार्केट रिस्क कम होता है।
अक्सर आपने सुना भी होगा कि मार्केट जोखिमों के अधीन है। इसी जोखिम को कम करने के लिए म्यूच्यूअल फंड्स Portfolio diversification करते हैं। साथ ही "पूलिंग ऑफ फंड्स" का सिद्धांत इन्वेस्टर्स को उन एसेट्स तक पहुंच प्रदान करता है। जिनमें वे व्यक्तिगत रूप से सीधे निवेश करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।
जब कोई इन्वेस्टर म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करता है तो उसे फंड की यूनिट्स मिलती हैं। इन यूनिट्स का मूल्य नेट एसेट वैल्यू (NAV) द्वारा निर्धारित होता है। NAV की गणना फंड की कुल संपत्ति (एसेट) से उसकी देनदारियों (Loan) को घटाकर प्रति यूनिट मूल्य के रूप में की जाती है। यह फंड के प्रदर्शन का एक महत्वपूर्ण इंडिकेटर होता है।
म्यूचुअल फंड का प्रबंधन पेशेवर फंड मैनेजरों द्वारा किया जाता है। ये विशेषज्ञ फाइनेंशियल मार्केट की गहन रिसर्च और एनालिसिस करते हैं। उसके बाद ही निवेश के निर्णय लेते हैं। फंड के उद्देश्यों के अनुरूप एक डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाते हैं। उनकी विशेषज्ञता निवेशकों का समय और मेहनत दोनों बचाती है क्योंकि उन्हें व्यक्तिगत रूप से मार्केट की निगरानी करने या निवेश निर्णय लेने की जरूरत नहीं होती है।
म्यूचुअल फंड के निम्नलिखित लाभ हैं जो उन्हें विभिन्न प्रकार के इन्वेस्टर्स के लिए एक आकर्षक इन्वेस्टमेंट ऑप्शन बनाते हैं-
1. Diversification जोखिम को कम करने का मंत्र: म्यूचुअल फंड का सबसे बड़ा लाभ यह है। यह आपको पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन प्रदान करता है। वे बहुत सारे इन्वेस्टर्स से पैसे इकट्ठा करते हैं और इसे स्टॉक, बॉन्ड या अन्य एसेट्स के विविध पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं। इसका मतलब है कि यदि फंड में कोई एक सिक्युरिटी खराब प्रदर्शन करती है तो इसके नुकसान की भरपाई अन्य सिक्युरिटी के अच्छे प्रदर्शन से हो जाती है।
जिससे संभावित नुकसान कम हो जाता है। यह स्ट्रेटेजी "अपने सभी अंडे एक टोकरी में न रखने" के सिद्धांत पर आधारित है। जिससे व्यक्तिगत इन्वेस्टर का जोखिम कम होता है। यह उन इन्वेस्टर्स के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है। जिनके पास कम पूंजी है क्योंकि वे व्यक्तिगत रूप से इतना व्यापक डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो नहीं बना सकते हैं।
2. प्रोफेशनल मैनेजमेंट: Mutual Funds में इन्वेस्टमेंट करने का सबसे बड़ा फायदा भी है। आम लोगों का पैसा भी इनके माध्यम से प्रोफेशनल फाइनेंशियल एक्सपर्ट द्वारा इन्वेस्ट किया जाता है। जिससे उनके इन्वेस्टमेंट पर अच्छे रिटर्न मिलने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। फंड्स मैनेजर्स को मार्केट का कई वर्षों का अनुभव होता है।
साथ ही वे फाइनेंस मार्केट की गहन रिसर्च और विश्लेषण करने के बाद ही पैसे को उसमें इन्वेस्ट करते हैं। यह उन लोगों के लिए अच्छा है, जिनके पास फाइनेंशियल मार्केट का अध्ययन करने के लिए समय नहीं है। ऐसे लोग अपने निवेश की लगातार निगरानी भी नहीं कर पाते हैं। यह सुविधा इन्वेस्टर्स को मार्केट की कठिनाइयों से निपटने के तनाव भी से बचाती है।
3. किफायती और सुलभ निवेश: म्यूचुअल फंड सभी के लिए मार्केट में इन्वेस्टमेंट करने का एक आसान और सुलभ तरीका प्रदान करते हैं। इसमें इन्वेस्टर्स 100 रूपये या 500 रूपये जैसी छोटी राशि से भी इन्वेस्टमेंट शुरू कर सकते हैं । हाल ही में Jio-BlackRock म्यूच्यूअल फंड ने रिटेल इन्वेस्टर्स को म्यूच्यूअल फंड्स में इन्वेस्टमेंट करना और भी आसान और सरल कर दिया है।
यह विशेष रूप से सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के माध्यम से संभव है। जो नियमित रूप से छोटी राशि निवेश करने की सुविधा देता है। यह सुविधा निवेश को लोकतांत्रिक बनाती है, जिससे व्यापक विशेषज्ञता के बिना भी आप फाइनेंशियल मार्केट में शामिल हो सकते हैं ।
4. लिक्विडिटी और फ्लेक्सिबिलटी: ज्यादातर Mutual funds बहुत ज्यादा लिक्विड होते हैं। इसका मतलब आप जब चाहें तब अपनी यूनिट्स को वापस फंड को करंट NAV (प्राइस) पर उन्हें बेच सकते हैं। यानि आप जब चाहें तब अपने पैसे को निकलकर काम में ले सकते हैं या अन्य जगह इन्वेस्ट कर सकते हैं।
सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के द्वारा आप नियमित रूप से मार्केट में investment कर सकते हैं। साथ ही इससे आपको रूपी-कॉस्ट एवरेजिंग का फायदा भी मिलता है। यानि जब मार्केट गिरता है, तब आपको ज्यादा यूनिट्स मिलती हैं और जब मार्केट चढ़ता है, तब आपका प्रॉफिट बढ़ता है।
5. टैक्स लाभ (ELSS): कुछ म्यूचुअल फंड, जैसे इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS), आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत 1.5 लाख रूपये तक की कर कटौती के लिए पात्र हैं। यह उन्हें टैक्स-बचत के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाता है। जिससे इन्वेस्टर्स अपनी टैक्स योग्य इनकम को कम कर सकते हैं और साथ ही Wealth create भी कर सकते हैं।
निसंदेह Mutual Funds में इन्वेस्टमेंट करने के अनेक फायदे हैं लेकिन इसके कुछ निम्नलिखित नुकसान भी हैं-
1. अपने इन्वेस्टमेंट पर नियंत्रण की कमी: म्यूचुअल फंड में इन्वेस्टर्स अपने पैसे को मैनेज करने के लिए फंड मैनेजर्स को सौंप देते हैं। इससे उनका पैसा कहां निवेश किया गया है? यह फंड मैनेजर फंड के उद्देश्यों के अनुसार निवेश निर्णय लेते हैं।
इसमें इन्वेस्टर्स को व्यक्तिगत स्टॉक या एसेट्स का चयन करने का अधिकार नहीं होता है। जो लोग अपने इन्वेस्टमेंट पर सीधा नियंत्रण चाहते हैं या सक्रिय रूप से निर्णय लेना पसंद करते हैं। उनके लिए यह एक कमी हो सकती है।
2. फीस और लागत (एक्सपेंस रेश्यो, एंट्री/एग्जिट लोड): म्यूचुअल फंड खरीदने और बेचने के लिए आपको कुछ एग्जिट फीस और टैक्स भी चुकाने होते हैं। जो समय के साथ आपके संभावित रिटर्न को कम कर सकते हैं। इनमें मैनेजमेंट फीस (फंड मैनेजर को भुगतान), एडमिनिस्ट्रेटिव फीस, डिस्ट्रीब्यूशन फीस (12b-1 शुल्क), और एग्जिट लोड शामिल हो सकते हैं।
हालांकि, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने एंट्री लोड को हटा दिया है। जिसका अर्थ है कि निवेशक अब म्यूचुअल फंड यूनिट खरीदते समय कोई प्रवेश शुल्क नहीं देते हैं।
एग्जिट लोड तब लिया जा सकता है, जब निवेशक एक निर्धारित अवधि (जैसे खरीदने की तारीख से एक वर्ष) के भीतर अपनी यूनिट बेचता है। अतः आपको इन फीसों को समझना जरूरी है क्योंकि वे आपके शुद्ध रिटर्न पर प्रभाव डाल सकते हैं। यानि रिटर्न को कम सकते हैं।
3. बाजार पर निर्भरता और उतार-चढ़ाव: म्यूचुअल फंड भी बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होते हैं । उनका रिटर्न अंडरलाइंग एसेट्स (जैसे स्टॉक या बॉन्ड) के प्रदर्शन और वर्तमान मार्केट की कंडीशन पर निर्भर करता है। यानि जब मार्केट गिरता है तब म्यूच्यूअल फंड्स के रिटर्न भी कम हो जाते हैं। इक्विटी-केंद्रित फंड विशेष रूप से market volatility के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं।
स्टॉक के प्राइस आर्थिक घटनाओं, मार्केट सेंटीमेंट या भू-राजनीतिक कारकों जैसे युद्ध, आतंकी हमला आदि के कारण बेतहाशा बढ़ या घट सकते हैं। अतः यह जानना जरूरी है कि म्यूचुअल फंड किसी भी सरकारी या नियामक निकाय द्वारा बीमित या गारंटीकृत नहीं होते हैं। जिससे इसमें भी शेयर मार्केट की तरह ही पूंजी के नुकसान की आशंका हमेशा बनी रहती है ।
Stocks को समझें:
स्टॉक्स खरीदने से कंपनियों में आपकी सीधी हिस्सेदारी हो जाती है क्योंकि स्टॉक कंपनी में स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब कोई इन्वेस्टर किसी कंपनी का स्टॉक खरीदता है तो वह उस कंपनी का एक छोटा सा टुकड़ा खरीद रहा होता है। यह इन्वेस्टर को कंपनी में आंशिक स्वामित्व प्रदान करता है। जिससे वह कंपनी के भविष्य के प्रदर्शन में भागीदार बन जाता है।
Stock market में ऐसे प्लेटफॉर्म यानि स्टॉकब्रोकर्स हैं। जहां सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं। स्टॉक एक्सचेंज कंपनियों और इन्वेस्टर्स को एक साथ लाते हैं। जिससे कैपिटल फ्लो बढ़ता है और इकोनॉमी ग्रो करती है।
शेयरों के प्राइस कई फेक्टर्स पर निर्भर करते हैं। डिमांड और सप्लाई, कंपनी की फाइनेंशियल कंडीशन, देश की माइक्रोइकोनॉमिक कंडीशन भी stocks के प्राइस को प्रभावित करती है। शेयरहोल्डर्स के रूप में investors को कंपनी स्वामित्व की हिस्सेदारी मिलती है।
कुछ मामलों में उन्हें कंपनी के बड़े निर्णयों में वोट करने का अधिकार भी मिलता है। कंपनी में यह प्रत्यक्ष भागीदारी इन्वेस्टर्स को कंपनी के विकास और सफलता में सीधे योगदान करने का अवसर देती है।
Stock investing के निम्नलिखित फायदे हैं, खासकर उनके लिए जो शेयर मार्केट को लेकर अधिक एक्टिव रहते हैं-
1.High Retrun की संभावना: स्टॉक्स मार्केट इन्वेस्टिंग में शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म में ऊँचे रिटर्न देने की क्षमता होती है। विशेष रूप से बढ़ती कंपनियों या उभरते सेक्टर्स में निवेश करने पर, स्टॉक ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस की तुलना में ज्यादा प्रॉफिट दे सकते हैं। यह उन इन्वेस्टर्स के लिए अच्छा है जो अपने धन को तेजी से बढ़ाना चाहते हैं।
2.अपने Investment पर सीधा नियंत्रण: Shareholders को अपने इन्वेस्टमेंट पर म्यूच्यूअल फंड के अपेक्षाकृत अधिक नियंत्रण होता है। इन्वेस्टर्स स्वयं तय करते हैं कि कौन सी कंपनी के शेयर खरीदने हैं, कब खरीदने हैं, और कब बेचने हैं। यह उन investors के लिए अच्छा है जो अपने इन्वेस्टमेंट डिसीजन्स में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं। अपनी रिसर्च कैपेबिल्टीज पर भरोसा करते हैं और मार्केट की चाल को समझने में रुचि रखते हैं ।
3.हाई लिक्विडिटी: शेयर मार्केट में बहुत तरह के मार्केट पार्टिसिपेंट्स काम करते हैं। जिसकी वजह से इसमें लिक्विडिटी बहुत ज्यादा होती है। इसका अर्थ है कि शेयर मार्केट इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स, स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट कंपनियों के शेयर तेज़ी से buy & sell कर सकते हैं। इससे इन्वेस्टर्स को जरूरत पड़ने पर अपने निवेश को आसानी से नकदी में बदलने की सुविधा मिलती है।
Stock Investing के कुछ निम्नलिखित संभावित नुकसान भी हैं। शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने से पहले इन्हें जानना आपके जरूरी है।
1. हाई रिस्क और वोलैटिलिटी: Stocks में म्यूच्यूअल फंड्स की तुलना में बहुत अधिक रिस्क होता है क्योंकि ज्यादातर स्टॉक्स के प्राइस बहुत अधिक वोलैटाइल होते हैं। यदि कंपनी खराब प्रदर्शन करती है तो आपको भारी नुकसान हो सकता है। Stock market में उतार-चढ़ाव का असर शेयर प्राइस पर पड़ता है। किसी भी नेगेटिव न्यूज की वजह से शेयर प्राइस में शार्ट-टर्म में गिरावट आ सकती है। शेयर मार्केट में हाई रिस्क-हाई रिटर्न का सीधा सम्बन्ध है।
2. डीप रिसर्च और सक्रिय निगरानी की आवश्यकता: स्टॉक में सफल होने के लिए कंपनियों, उनके बिजनेस पर गहन रिसर्च और विश्लेषण करना जरूरी होता ह। इन्वेस्टर्स को कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन, मैनेजमेंट की प्रभावशीलता, और मार्केट ट्रेंड की लगातार निगरानी करनी होती है। शेयर मार्केट ऐसे investors के लिए समय लेने वाला और चुनौतीपूर्ण हो सकता है। जिनके पास फाइनेंशियल मार्केट का व्यापक ज्ञान या अनुभव नहीं है क्योंकि शेयर मार्केट में धैर्यवान लोग ही वेल्थ क्रिएट कर पाते हैं।
3. Diversification की चुनौती: रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाइड करना बहुत मुश्किल भरा हो सकता है। रिटेल इन्वेस्टर्स का मार्केट में इन्वेस्टिंग के लिए बजट बहुत कम होता है। अतः उसे अलग-अलग stocks में invest करना सम्भव नहीं हो पाता है। यदि कोई इन्वेस्टर केवल कुछ शेयरों में इन्वेस्ट करता है तो किसी एक कंपनी के खराब प्रदर्शन का उसके पूरे पोर्टफोलियो पर बहुत अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
स्टॉक्स में इन्वेस्टमेंट करने से हाई रिटर्न मिलने की संभावना रहती है। साथ ही इन्वेस्टर्स का सीधा नियंत्रण जैसे आकर्षक पहलू भी हैं। लेकिन यह हाई रिस्क के साथ इन्वेस्टर को खुद अपने पोर्टफोलियो को मैनेज करना होता है। यह इन्वेस्टर्स के लिए एक सीधा रिस्क-रिवॉर्ड-रेश्यो संबंध प्रस्तुत करता है। जहां अधिक संभावित रिवॉर्ड अधिक रिस्क के साथ जुड़े होते हैं।
Mutual Funds vs Stocks
म्यूचुअल फंड और स्टॉक्स के बीच प्रमुख अंतरों को समझना इन्वेस्टर्स के लिए बहुत जरूरी है। ताकि वे अपनी जरूरतों और लक्ष्यों के अनुसार एक सही निर्णय ले सकें।
1. मार्केट रिस्क: Mutual fund शेयरों की अपेक्षा कम रिस्की होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इनमें diversification होता है। जबकि रिटेल इन्वेस्टर्स एक ही कंपनियों के शेयरों में अपना पूरा पैसा invest कर देते हैं। अगर उस एक कम्पनी के शेयर अच्छा प्रदर्शन नहीं करते तो इन्वेस्टर को नुकसान हो जाता है।
जबकि म्यूच्यूअल फंड में ऐसा नहीं है क्योकि उसमें अलग-अलग एसेट्स में पैसा इन्वेस्ट किया जाता है। अगर एक एसेट क्लास में नुकसान होता भी है तो दूसरा उसकी भरपाई कर देता है।
2. रिटर्न: कहां ज्यादा कमाई की संभावना है? Stocks में अपेक्षाकृत अधिक रिटर्न प्रदान करने की क्षमता होती है। खासकर यदि इन्वेस्टर सही कंपनियों का चयन करते हैं और मार्केट मूमेंटम को समझते हैं। हालांकि, यह हाई रिस्क के साथ आता है। म्यूचुअल फंड, स्कीम के आधार पर, मध्यम से उच्च रिटर्न प्रदान करते हैं।
जबकि इक्विटी म्यूचुअल फंड ने ऐतिहासिक रूप से पिछले दस वर्षों में 10% से 15% तक का औसत रिटर्न अर्जित किया है। म्यूचुअल फंड में रिटर्न फंड के प्रदर्शन और Share market की कंडीशन पर निर्भर करते हैं लेकिन वे आमतौर पर स्टॉक की तुलना में अधिक स्थिर औसत रिटर्न प्रदान करते हैं। लेकिन आप स्मार्ट इन्वेस्टिंग से शेयर मार्केट से अथाह धन कमा सकते हैं।
3. लिक्विडिटी: कब और कैसे पैसा निकालें? दोनों ही इन्वेस्टमेंट ऑप्शन हाई लिक्विड होते हैं। आप जब चाहें इन्हें खरीद और बेच सकते हैं। म्यूचुअल फंड यूनिट को अपनी नेट एसेट वैल्यू (NAV) के आधार पर खरीदा और बेचा जाता है। जिससे इन्वेस्टर्स को liquidity मिलती है।
इन्वेस्टर्स मार्केट की स्थितियों के अधीन कभी भी अपनी यूनिट को रिडीम कर सकते हैं। आमतौर पर, रिडेम्पशन प्रक्रिया 3 कार्यदिवसों के भीतर पूरी हो जाती है। स्टॉक तो और भी अधिक लिक्विड एसेट्स होते हैं। जिससे Investors & Traders स्टॉक एक्सचेंज पर अपेक्षाकृत तेज़ी से शेयर खरीद और बेच सकते हैं ।
4. Investment horizon: Long or short term? ज्यादातर म्यूच्यूअल फंड्स लॉन्ग-टर्म में अच्छे रिटर्न देते हैं। सामान्यतः इनमें 5 - 10 साल तक के लिए इन्वेस्टमेंट करने की सलाह दी जाती है। जिससे ये मार्केट के उतार-चढ़ाव को बैलेंस कर सकें और कम्पाउंडिंग का लाभ उठा सकें।
जबकि शेयरों में शार्ट और लॉन्ग-टर्म दोनों के लिए इन्वेस्ट किया जा सकता है। हालाँकि शेयरों को long-term तक होल्ड करने से उनमें जोखिम कम हो जाता है और वे म्यूच्यूअल फंड से बेहतर रिटर्न देते हैं।
5. प्रोफेशनल मैनेजमेंट VS व्यक्तिगत कंट्रोल: Mutual funds को फंड मैनेजरों के द्वारा प्रोफेशनली मैनेज किया जाता है। इससे इन्वेस्टर्स का अपने इन्वेस्टमेंट पर डायरेक्ट कंट्रोल नहीं रहता है क्योंकि फंड मैनेजर ही इन्वेस्टमेंट सम्बन्धी निर्णय करते हैं।
जबकि इसके विपरीत, स्टॉक्स में इन्वेस्टर्स को अपने इन्वेस्टमेंट पर सीधा नियंत्रण होता है । वे खुद कंपनियों का चयन करके उनके शेयरों की खरीद-बिक्री करते हैं। जिससे उन्हें अपने पोर्टफोलियो के मैनेज करने की पूरी स्वतंत्रता मिलती है।
6. Diversification सुरक्षा कवच: म्यूच्यूअल फंड्स स्वाभाविक रूप से डाइवर्सिफाइड होते हैं क्योंकि उन्हें बहुत से लोगों से पैसे एकत्र (pool money) करके बनाया जाता है। इन्हें विभिन्न कंपनियों और फंड्स में इन्वेस्ट किया जाता है। अतः यह मार्केट में अंतर्निहित जोखिम को कम कर देता है।
व्यक्तिगत पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन में एफर्ट लगता है और ज्यादा पैसे की भी जरूर पड़ती है। डायवर्सिफिकेशन के लिए रिटेल इन्वेस्टर्स को भी अलग-अलग सेक्टर्स की मार्केट केपेटलाइजेशन वाली कंपनियों के स्टॉक्स में investment करना पड़ेगा। तभी वे अपने पोर्टफोलियो से मार्केट रिस्क कम सकते हैं।
7. कास्ट और ब्रोकरेज फीस का अंतर: Mutual funds पर कई तरह के चार्ज लगते हैं। जिनमें एक्सपेंस रेश्यो (मैनेजमेंट और ऑपरेटिंग कॉस्ट का प्रतिशत), एंट्री और एग्जिट लोड लेकिन अब एग्जिट लोड को अब SEBI द्वारा हटा दिया गया है। इसमें के अन्य एडमिनिस्ट्रेटिव चार्ज भी शामिल होते हैं।
निष्कर्ष: Indian investors के लिए वेल्थ क्रिएट करने और अपने फाइनेंशियल गोल हाँसिल करने के लिए म्यूच्यूअल फंडस और शेयर दोनों ही बेहतर टूल्स हैं। इन्वेस्टिंग की दुनिया में नए लोगों और जिनके पास इन्वेस्टिंग सीखने के लिए समय नहीं है। ऐसे लोगों के लिए Mutual funds सही हैं। ये उनके लिए भी सही हैं जो लोग कम रिस्क लेना चाहते हैं।
दूसरी तरफ जो लोग अधिक रिटर्न कमाना चाहते हैं और अधिक जोखिम भी उठाने के लिए तैयार रहते हैं। उनके लिए stocks investing सही है क्योंकि फेमस वेब सीरीज स्कैम 1992 का एक प्रसिद्ध डायलॉग है। "इश्क है तो रिस्क है" यानि हाई रिस्क हाई रिटर्न चाहने वाले लोग।
जो लोग मार्केट से राकेश झुनझुनवाला की तरह अथाह धन कमाना चाहते हैं। उनके लिए Stock market में इन्वेस्ट करना ही सही है। शेयरों में डायरेक्ट इन्वेस्ट करने के लिए गहन रिसर्च और अपने पोर्टफोलियो की लगातार निगरानी की जरूरत पड़ती है।
Mutual Funds vs Stocks दोनों ही ऑप्शन आपके फाइनेंशियल गोल को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं। मगर "कौन सा बेहतर है" का जवाब आपकी व्यक्तिगत रिस्क टॉलरेंस कैपेसिटी, इन्वेस्टमेंट होराइजन, और फाइनेंशियल गोल के आधार पर एक व्यक्तिगत निर्णय होगा।
यह समझना जरूरी है कि निवेश एक व्यक्तिगत यात्रा है, और एक निवेशक के लिए जो सबसे अच्छा काम करता है वह दूसरे के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता है। यदि आप भी कन्फ्यूज हैं तो आप अपने पैसे को दोनों में 50 - 50% के रेश्यो में इन्वेस्ट कर सकते हैं।
अगर आप इससे भी संतुष्ट नहीं हैं तो आपको किसी किसी फाइनेंसियल एक्सपर्ट से एडवाइस लेनी चाहिए क्योंकि वह आप के रिस्क प्रोफ़ाइल को समझकर आपके लिए एक अच्छी इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी सुझा सकते हैं। आखिर यह आप की गाढ़ी कमाई का सवाल है।
याद रखें, इन्वेस्टिंग एक मैराथन है, स्प्रिंट नहीं । धैर्य रखें, डिसिप्लिन में रहें, और अपनी इन्वेस्टमेंट जर्नी का आनंद लें। Short-term market के उतार-चढ़ाव के बावजूद लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टिंग का दृष्टिकोण बनाए रखना जरूरी है। सही निर्णय लें और अपने वित्तीय भविष्य को सुरक्षित करें।
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