Pre-IPO Investing: आईपीओ-पूर्व निवेश का मतलब है, किसी कंपनी के शेयरों में उस समय निवेश करना जब वह अभी तक स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध नहीं हुई है। यानी, जब कंपनी Initial Public Offering (IPO) लाने की तैयारी कर रही होती है। उससे पहले ही कुछ इन्वेस्टर्स को उसके शेयर खरीदने का मौका मिलता है। आइए जानते हैं- प्री-आईपीओ इन्वेस्टिंग, पब्लिक से पहले करोड़ों कमाने का मौका! Pre IPO Investing guide Hindi.
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प्री-आईपीओ निवेश क्या है? जानें कैसे IPO से पहले निजी कंपनियों में निवेश कर सकते हैं। |
सोचिए, आज से 20 साल पहले अगर किसी ने आपसे कहा होता कि 'Amazon' नाम की एक छोटी ऑनलाइन किताबों की दुकान में पैसा लगा दो, या 15 साल पहले 'Facebook' नाम की एक कॉलेज नेटवर्किंग साइट में निवेश कर दो, तो आप शायद हंस देते। लेकिन आज? वे निवेशक अरबपति हैं।
हम सबने Zomato, Nykaa, या हाल ही में TATA Technologies के IPOs की धूम देखी है। लिस्टिंग के दिन ही 50%, 70%, या 100% तक का रिटर्न! यह देखकर हर किसी के मन में एक सवाल आता है काश, मुझे ये शेयर IPO प्राइस से भी सस्ते मिल गए होते!
बस, इसी "काश" का जवाब है प्री-आईपीओ इन्वेस्टमेंट (Pre-IPO Investing)।
यह इन्वेस्टमेंट की वह सीक्रेट दुनिया है, जिसके बारे में कल तक केवल बड़े-बड़े वेंचर कैपिटलिस्ट (VCs) और अमीर एंजेल इन्वेस्टर्स ही जानते थे। लेकिन अब, यह खेल बदल रहा है। क्या आप उस कंपनी में हिस्सेदार बनना चाहते हैं जो अगला 'यूनिकॉर्न' (Unicorn) बन सकती है? अगर आप IPO की भीड़ से पहले ही 'अगली बड़ी चीज़' (The Next Big Thing) पर दांव लगाना चाहते हैं? तो आप सही जगह पर हैं।
प्री-आईपीओ निवेश क्या है? (What is Pre-IPO Investing?)
बहुत ही सरल भाषा में, प्री-आईपीओ इन्वेस्टमेंट का मतलब है किसी निजी कंपनी (Private Company) के शेयरों को उसके पब्लिक होने से पहले (यानी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होने से पहले) खरीदना।
इसे एक उदाहरण से समझते हैं, जैसे OYO (ओयो) नाम की एक होटल कंपनी ऑनलाइन रूम उपलब्ध करने वाली कंपनी है। यह बहुत तेजी से बढ़ रही है लेकिन अभी तक स्टॉक मार्केट (जैसे NSE या BSE) पर लिस्टेड नहीं है। इसका मतलब है कि आप और मैं Zerodha या Groww जैसे अपने ब्रोकिंग ऐप पर जाकर इसके शेयर नहीं खरीद सकते। यह अभी भी एक 'प्राइवेट लिमिटेड' कंपनी है।
अब, 'ओयो' को अपना बिजनेस और बढ़ाने के लिए 500 करोड़ रुपये की जरूरत है। वह फैसला करती है कि वह 1 साल बाद अपना IPO (Initial Public Offering) लाएगी। लेकिन IPO लाने से पहले, वह कुछ बड़े इन्वेस्टर्स (जैसे प्राइवेट इक्विटी फर्म) से 100 करोड़ रुपये जुटाती है।
यह 100 करोड़ रुपये जुटाने की प्रक्रिया जो IPO से पहले हुई। प्री-आईपीओ फंडिंग राउंड कहलाती है और जिन इन्वेस्टर्स ने इसमें पैसा लगाया, उन्होंने प्री-आईपीओ इन्वेस्टमेंट किया है। अक्सर, इस राउंड में शेयर उस प्राइस से डिस्काउंट पर मिलते हैं। जिस प्राइस पर कंपनी IPO लाने की योजना बना रही होती है। यह जल्दी आने वालों के लिए एक 'इनाम' जैसा है।
कंपनी IPO से ठीक पहले पैसा क्यों जुटाती है?
दिमाग में यह सवाल आना लाजिमी है कि जब Company IPO लाने ही वाली होती है। तब उसे चंद महीने पहले अलग से फंड जुटाने की क्या जरूरत है? इसके कई निम्नलिखित स्ट्रैटेजिक कारण होते हैं-
1. विकास और विस्तार (Growth & Expansion), IPO लाने से पहले कंपनी यह दिखाना चाहती है कि वह कितनी तेजी से बढ़ रही है। Pre-IPO से मिले पैसे का इस्तेमाल वह नए शहरों में लॉन्च करने, मार्केटिंग पर खर्च करने, या नई तकनीक में निवेश करने के लिए करती है। इससे IPO के समय कंपनी का वैल्यूएशन (मूल्यांकन) और भी बेहतर दिखता है।
2. कर्ज चुकाना (Cleaning the Books), कोई भी इन्वेस्टर ऐसी कंपनी में पैसा नहीं लगाना चाहता जो कर्ज में डूबी हो। कई कंपनियां IPO से पहले प्री-आईपीओ फंड का इस्तेमाल अपना महंगा कर्ज चुकाने के लिए करती हैं। ताकि उनकी बैलेंस शीट 'साफ-सुथरी' दिखे।
3. मौजूदा इन्वेस्टर्स को बाहर निकलने का रास्ता देना (Exit for Early Investors) सोचिए, एक एंजेल निवेशक ने 10 साल पहले उस कंपनी में 1 करोड़ रुपये लगाए थे। आज वह 100 करोड़ बन गए हैं। वह इन्वेस्टर अब अपना मुनाफा घर ले जाना चाहता है। प्री-आईपीओ राउंड इन शुरुआती निवेशकों को (आंशिक रूप से) बाहर निकलने का मौका देता है।
4. IPO प्रक्रिया की तैयारी (IPO Grooming) IPO लाना एक महंगा सौदा है। इसमें इन्वेस्टमेंट बैंकर, वकील, ऑडिट फर्म और मार्केटिंग पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। प्री-आईपीओ फंड इस प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है।
Pre-IPO Investing के फायदे
यह वह हिस्सा है जिसके लिए आप यहां हैं। आखिर क्यों कोई अपना पैसा एक ऐसी कंपनी में फंसाए। जिसके शेयर वह तुरंत बेच भी नहीं सकता? इसका जवाब है, असाधारण मुनाफे की संभावना। इन्वेस्टिंग में प्रॉफिट ही होगा, इसकी कोई गारंटी तो होती नहीं है लेकिन प्री-आईपीओ इन्वेस्टिंग से आपको निम्नलिखित फायदे हो सकते हैं-
डिस्काउंट पर शेयर मिलना (The 'Discount' Advantage): यह प्री-आईपीओ का सबसे बड़ा आकर्षण है। चूंकि आप कंपनी में जल्दी निवेश कर रहे हैं और 'लिक्विडिटी' (पैसा फंसने) का रिस्क भी उठा रहे हैं इसलिए कंपनी आपको इनाम के तौर पर शेयर डिस्काउंट पर ऑफर करती है।
उदाहरण के तौर पर अभी OYO कंपनी का IPO 500 रूपये प्रति शेयर पर आए लेकिन प्री-आईपीओ निवेशकों को वही शेयर 350 या 400 रूपये प्रति में मिल जाए। यह लिस्टिंग से पहले ही एक पक्का मुनाफा (on-paper profit) है।
असाधारण रिटर्न की संभावना (Potential for Huge Returns): अगर कंपनी सफल हो जाती है, तो यह निवेश आपकी जिंदगी बदल सकता है। Nazara Technologies का ही उदाहरण लें। इसके IPO आने से पहले, इसके शेयर अनलिस्टेड मार्केट में काफी कम कीमत पर उपलब्ध थे। जिन लोगों ने सही समय पर निवेश किया, उन्होंने IPO के बाद कई गुना मुनाफा कमाया।
वो बात अलग है कि अब जब भारतीय सरकार ने गेम्स में ऑनलाइन पैसे लगाने पर रोक लगा दी है। तब से नजारा टेक्नोलॉजी के शेयर प्राइस आसाम से जमीन पर गिर गए हैं। आप भी उन 'यूनिकॉर्न' कंपनियों का हिस्सा बन सकते हैं जो भविष्य में Amazon, Google या Reliance बन सकती हैं।
पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन (Diversification): स्मार्ट निवेशक अपना सारा पैसा एक जगह नहीं रखते। प्री-आईपीओ निवेश आपको पारंपरिक स्टॉक, म्यूचुअल फंड और गोल्ड से हटकर एक नए 'एसेट क्लास' में निवेश करने का मौका देता है। यह आपके पोर्टफोलियो को एक अलग तरह का बूस्ट दे सकता है।
IPO की भीड़ से बचना अच्छे IPOs में 'ओवरसब्सक्रिप्शन' की समस्या आम है। आपने ₹15,000 के लिए अप्लाई किया और आईपीओ में अलॉटमेंट नहीं मिला। प्री-आईपीओ में यह समस्या नहीं होती। अगर आपका सौदा पक्का हो गया तो आपको गारंटीड शेयर मिलते हैं।
Pre-IPO Investing के 5 बड़े जोखिम
अब सिक्के का दूसरा पहलू देखते हैं। अगर यह इतना ही आसान होता तो हर कोई इसमें इन्वेस्ट कर रहा होता। प्री-आईपीओ इन्वेस्टमेंट को High Risk, High Return का खेल माना जाता है क्योंकि यह फर्स्ट क्लास में सफर करने जैसा नहीं है। यह एक रॉकेट पर बैठने जैसा है जो या तो चांद पर जा सकता है या लॉन्चपैड पर ही फट सकता है। निम्नलिखित कारण हैं-- लिक्विडिटी की कमी (The Biggest Risk: Your Money is STUCK!) यह सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण जोखिम है। जब आप प्री-आईपीओ शेयर खरीदते हैं, तो आप उन्हें अगले दिन बेच नहीं सकते।
- इन शेयरों पर अक्सर 6 महीने से लेकर कई सालों तक का 'लॉक-इन पीरियड' (Lock-in Period) होता है। इसका मतलब है, अगर आपने आज 10 लाख रुपये लगाए तो हो सकता है। आप उस पैसे को अगले 3-5 साल तक छू भी न पाएं, चाहे आपको कितनी भी इमरजेंसी क्यों न हो।
- IPO का 'ना' होना (The "No IPO" Risk) यह कोई गारंटी नहीं है कि हर प्री-आईपीओ कंपनी का IPO आएगा ही। हो सकता है कंपनी का बिजनेस मॉडल फेल हो जाए या बाजार की हालत खराब हो जाए जैसे 2008 की आर्थिक मंदी की तरह और कंपनी अपना IPO प्लान रद्द कर दे।
- हो सकता है कंपनी दिवालिया हो जाए। ऐसी स्थिति में आपका पूरा निवेश शून्य (Zero) हो सकता है।
- सूचना और पारदर्शिता की कमी (The Black Box), जबकि स्टॉक मार्केट में लिस्टेड कंपनियों (जैसे HDFC Bank, TCS) को SEBI के नियमों के तहत हर 3 महीने में अपने रिजल्ट, अपनी बैलेंस शीट और हर छोटी-बड़ी खबर पब्लिक को बतानी होती है।
- लेकिन प्राइवेट कंपनियां ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। आपको कंपनी की सही वित्तीय स्थिति, उसके असली मुनाफे या घाटे के बारे में उतनी जानकारी नहीं मिलती। आप अंधेरे में तीर चला रहे होते हैं।
- वैल्यूएशन का खेल (The Hype Risk) सिर्फ इसलिए कि कोई चीज 'प्री-आईपीओ' है, इसका मतलब यह नहीं कि वह 'सस्ती' है।
- Paytm इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। IPO से पहले ही उसका वैल्यूएशन इतना बढ़ा-चढ़ा (over-hyped) दिया गया था कि प्री-आईपीओ इन्वेस्टर्स को भी वह बहुत महंगा मिला। जब Paytm का IPO आया तो वह बुरी तरह पिट गया और प्री-आईपीओ इन्वेस्टर्स को भी भारी नुकसान हुआ।
- आपको खुद यह पता लगाना होगा कि जिस 'वैल्यूएशन' पर आप पैसा लगा रहे हैं, वह सही है या नहीं
- रेगुलेटरी और धोखाधड़ी का जोखिम अनलिस्टेड मार्केट, लिस्टेड मार्केट जितना रेगुलेटेड नहीं होता है। हालांकि SEBI अब इस पर शिकंजा कस रही है फिर भी धोखाधड़ी के मामले सामने आ सकते हैं। हो सकता है कोई बिचौलिया आपको फर्जी शेयर बेच दे इसलिए केवल प्रतिष्ठित प्लेटफॉर्म या बिचौलियों के माध्यम से ही Pre-IPO Investing करना चाहिए।
प्री-आईपीओ में कौन इन्वेस्ट कर सकता है?
- एंजेल निवेशक: अमीर व्यक्ति जो स्टार्टअप्स में शुरुआती चरण में पैसा लगाते हैं।
- वेंचर कैपिटल (VC) फर्म: फंड जो लोगों से पैसा इकट्ठा करके कई स्टार्टअप्स में निवेश करते हैं।
- प्राइवेट इक्विटी (PE) फर्म: जो बड़ी, स्थापित प्राइवेट कंपनियों में निवेश करती हैं।
- हाई नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs): जिनकी नेट वर्थ (आमतौर पर SEBI द्वारा परिभाषित) एक निश्चित सीमा से अधिक हो। इन लोगों के पास न केवल ज्यादा पैसा होता है, बल्कि वे ज्यादा जोखिम उठाने की क्षमता और बाजार की गहरी समझ भी रखते हैं।
- कंपनी के कर्मचारी (The ESOP Route): यह आम लोगों के लिए प्री-आईपीओ का हिस्सा बनने का सबसे आम तरीका रहा है। कई स्टार्टअप्स और कंपनियां अपने कर्मचारियों को सैलरी के अलावा ESOPs (Employee Stock Ownership Plans) देती हैं।
- ESOPs कर्मचारियों को यह अधिकार देते हैं कि वे भविष्य में अपनी कंपनी के शेयर एक पहले से तय, कम कीमत पर खरीद सकते हैं। जब कंपनी का IPO आता है, तब ये कर्मचारी अपने ESOPs को शेयरों में बदलकर लिस्टिंग के दिन बेचकर बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं। Zomato और Policybazaar के IPO ने कई कर्मचारियों को करोड़पति बना दिया।
यह प्लेटफॉर्म 100 छोटे इन्वेस्टर्स से 1-1 लाख रुपये इकट्ठा करता है और उस बड़े इन्वेस्टर की जगह 1 करोड़ रुपये लगा देता है। इस तरह, आप (रिटेल निवेशक) केवल 1 लाख रुपये लगाकर भी उस प्री-आईपीओ डील का हिस्सा बन जाते हैं।
ये भी जानें- फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (FPO) क्या है? जानिए IPO से इसका बड़ा फर्क!
भारत में प्री-आईपीओ शेयर कैसे खरीदें?
अगर आप जोखिम समझने के बाद भी इसमें इन्वेस्टमेंट करने के इच्छुक हैं। तब आप निम्न्मलिखित तरीके भारतीय प्री-आईपीओ मार्केट में इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं-
1. प्री-आईपीओ इन्वेस्टमेंट प्लेटफॉर्म: भारत में कई फिनटेक प्लेटफॉर्म्स (जैसे Planify, UnlistedArena, AltZero, आदि) हैं जो अनलिस्टेड और प्री-आईपीओ शेयरों में डील करते हैं। ये प्लेटफॉर्म मौजूदा इन्वेस्टर्स, कर्मचारियों या प्रमोटरों से शेयर खरीदते हैं और उन्हें रिटेल निवेशकों को बेचते हैं।
प्रक्रिया: आपको इन प्लेटफॉर्म पर KYC पूरी करनी होती है। आप उपलब्ध कंपनियों की लिस्ट देख सकते हैं, उनकी रिसर्च रिपोर्ट पढ़ सकते हैं और न्यूनतम निवेश राशि जो 50,000 से 1 लाख रूपये तक हो सकती है का भुगतान करके शेयर खरीद सकते हैं। ये शेयर आपके डीमैट अकाउंट में (ऑफ-मार्केट ट्रांसफर के जरिए) आ जाते हैं।
2. ऑल्टर्नेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (AIFs): यह तरीका HNIs (High Net-worth Individuals) के लिए है। AIFs म्यूचुअल फंड की तरह ही होते हैं, लेकिन ये सिर्फ स्टार्टअप्स, प्राइवेट कंपनियों और प्री-आईपीओ डील्स में निवेश करते हैं। SEBI के नियमों के अनुसार, AIFs में न्यूनतम निवेश 1 करोड़ रुपयों होता है इसलिए यह रिटेल इन्वेस्टर की पहुंच से बाहर है।
3. सीधे प्रमोटरों या मौजूदा निवेशकों से: अगर आपके पास मजबूत नेटवर्क है तो आप सीधे कंपनी के प्रमोटरों, शुरुआती निवेशकों या उन कर्मचारियों से संपर्क कर सकते हैं जो अपने ESOPs बेचना चाहते हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें बहुत सारे कानूनी कागजात (Share Transfer Agreement) शामिल होते हैं और इसमें धोखाधड़ी का जोखिम भी अधिक होता है।
4. 'ग्रे मार्केट' (Grey Market): इससे बचें, अगर आप पहले से शेयर मार्केट में एक्टिव हैं तो आपने IPO से पहले ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) के बारे में जरूर सुना होगा। यह एक अनौपचारिक, सट्टेबाजी का बाजार है। यह प्री-आईपीओ निवेश नहीं है। ग्रे मार्केट में शेयरों की कोई डिलीवरी नहीं होती, सिर्फ 'सौदा' होता है। यह अवैध और बेहद जोखिम भरा है। इससे दूर रहना ही समझदारी है।
प्री-आईपीओ निवेश 'टिप' या 'शॉर्टकट' पर नहीं, बल्कि गहरी रिसर्च पर आधारित होना चाहिए। किसी भी कंपनी में Pre-IPO Investing करने से पहले निम्नलिखित बिंदुओं पर गौर जरूर करें-
- कंपनी का बिजनेस मॉडल: क्या आप समझते हैं कि कंपनी पैसा कैसे कमाती है? क्या इसका बिजनेस टिकाऊ है? या यह सिर्फ एक 'ट्रेंड' है? इसके प्रतियोगी (competitors) कौन हैं और यह उनसे बेहतर क्यों है?
- मैनेजमेंट टीम: "कंपनी पर नहीं, प्रमोटर पर दांव लगाओ।" कंपनी के फाउंडर और मैनेजमेंट टीम कौन हैं? उनका बैकग्राउंड क्या है? क्या उनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है? क्या वे भरोसेमंद हैं?
- फाइनेंशियल कंडीशन: जितनी हो सके, कंपनी की वित्तीय जानकारी (बैलेंस शीट, P&L स्टेटमेंट) हासिल करें। क्या कंपनी प्रॉफिट में है? क्या कंपनी पर बहुत ज्यादा कर्ज है? अगर कंपनी ने IPO के लिए DRHP (Draft Red Herring Prospectus) फाइल कर दिया है, तो उसे शब्द-दर-शब्द पढ़ें। यह जानकारी का खजाना होता है।
- वैल्यूएशन: सबसे मुश्किल सवाल: क्या शेयर 'सस्ता' है या 'महंगा'? इसकी तुलना पहले से लिस्टेड उसी सेक्टर की अन्य कंपनियों (peers) से करें। सिर्फ इसलिए कि यह 'प्री-आईपीओ' है, उसे आंख मूंदकर न खरीदें। (Paytm का सबक याद रखें)।
- आपका लॉक-इन पीरियड और जोखिम: खुद से सवाल पूछें क्या मैं इस पैसे को अगले 5-7 साल के लिए भूल सकता हूँ? अगर यह पैसा कल जीरो हो गया, तो क्या मेरी रातों की नींद उड़ जाएगी? अपने कुल निवेश पोर्टफोलियो का 5% से 10% से अधिक प्री-आईपीओ जैसे जोखिम भरे एसेट में न लगाएं।
निष्कर्ष: क्या Pre-IPO निवेश आपके लिए है?
प्री-आईपीओ निवेश एक दोधारी तलवार है। यह आपको बेतहाशा अमीर बना सकता है, या आपका सारा पैसा डुबा सकता है। यह 'जल्दी अमीर बनो' स्कीम नहीं है बल्कि यह बागवानी जैसा है। आपको आज एक बीज (अपना पैसा) बोना है, उसे सालों तक धैर्य (इंतजार) से सींचना है और तब जाकर शायद आपको एक दिन मीठे फल (मुनाफा) खाने को मिलें। हो सकता है वह पौधा कभी उगे ही नहीं।
आपको प्री आईपीओ में तब इन्वेस्ट करना चाहिए। यदि आपके पास 'सरप्लस' पैसा है (वह पैसा जिसे खोने से आपकी जिंदगी पर असर नहीं पड़ेगा)। अगर आप 5 से 10 साल तक इंतजार कर सकते हैं। अगर आप बिजनेस और बैलेंस शीट को समझने के लिए मेहनत करने को तैयार हैं।
आप कम जोखिम (Low-risk) वाले इन्वेस्टर हैं जो FD या म्यूचुअल फंड पसंद करते हैं। अगर आपको 1-2 साल में पैसे की जरूरत पड़ सकती है। अगर आप रातों-रात अमीर बनना चाहते हैं तो आपको Pre-IPO Investing नहीं करना चाहिए।
प्री-आईपीओ निवेश रोमांचक है, यह आपको उन कंपनियों का हिस्सा बनने का मौका देता है जो कल की दुनिया को बदलने वाली हैं। लेकिन इस रोमांच की सवारी का टिकट खरीदने से पहले, सुनिश्चित करें कि आपने सीट बेल्ट (जोखिम की समझ) कसकर बांध ली है।
Q1: भारत में प्री-आईपीओ में न्यूनतम निवेश कितना होता है? (Minimum Investment?)
Q2: क्या प्री-आईपीओ निवेश कानूनी (Legal) है?
Q3: खरीदे गए प्री-आईपीओ शेयरों को कब बेच सकते हैं? (Lock-in Period?)
Q4: प्री-आईपीओ शेयरों पर टैक्स कैसे लगता है?
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