Stock Market Volatility: शेयर मार्केट में वोलैटिलिटी को कैसे संभालें?
By: Manju Chaudhary Updated Jun, 2025
Stock Market Volatility: स्टॉक मार्केट कभी स्थिर नहीं रहता, मार्केट इंडेक्स प्रतिदिन प्रॉफिट और लॉस दिखाते हैं। अत्यधिक व्यवस्थित परिस्थतियों में भी सेंसेक्स और निफ्टी प्रतिदिन 1 प्रतिशत से कम लाभ या हानि में बंद होते हैं। लेकिन समय-समय पर मार्केट में और शेयरों के प्राइस में नाटकीय उतार-चढ़ाव होता रहता है। जिसे वोलैटिलिटी (अस्थिरता) के नाम से जाना जाता है।
इंट्राडे में बढ़ी हुए वोलैटिलिटी से स्टॉक मार्केट ट्रेडर्स को भारी नुकसान होने की आशंका काफी बढ़ जाती है। किंतु वोलैटिलिटी में ही इंट्राडे ट्रेडर्स ट्रेडिंग के मौके भी छिपे होते हैं। जानते हैं- शेयर मार्केट वोलैटिलिटी को कैसे संभालें?
यदि आप स्टॉक्स के प्राइस कैसे बिहेव करते हैं। यह जानना चाहते हैं तो आपको प्राइस एक्शन ट्रेडिंग बुक जरूर पढ़नी चाहिए।
स्टॉक मार्केट वोलैटिलिटी क्या है?
Stock Market Volatility: वोलैटिलिटी वह दर है, जिस पर किसी स्टॉक का प्राइस किसी विशेष अवधि में घटता या बढ़ता है। हायर स्टॉक वोलैटिलिटी का मतलब अक्सर हाई रिस्क भी होता है। वोलैटिलिटी ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स को भविष्य में शेयरों के प्राइस में होने वाले उतार-चढ़ाव का अनुमान लगाने में मदद करती है।
मार्केट में Volatility शेयरों के प्राइस में बार-बार होने वाले उतार-चढ़ाव की आवृति के परिणाम स्वरूप होती है। शेयरों के प्राइस में जितना बड़ा और बार-बार उतार-चढ़ाव (up & down) होता है। मार्केट उतना अधिक वोलैटाइल माना जाता है। शेयर मार्केट के एक्सपर्ट लोगों का कहना है कि 'मार्केट में वोलैटिलिटी निवेश का एक सामान्य हिस्सा है।
इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो में इसकी उम्मीद भी की जाती है क्योंकि अगर मार्केट सीधे ऊपर जाते तो मार्केट में निवेश करना काफी आसान होता और सभी निवेशक बहुत आसानी से अमीर बन जाते। वोलैटिलिटी stocks और मार्केट इंडेक्स के रिटर्न का एक सांख्यिकीय फैलाव होता है।
Stock market में वोलैटिलिटी अक्सर किसी भी दिशा में बड़े उतार-चढ़ाव से जुडी होती है। उदारण के लिए जब भी निफ्टी एक निश्चित अवधि में 1 प्रतिशत से ज्यादा चढ़ता या गिरता है तो उसे वोलैटाइल मार्केट कहा जाता है। ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के प्रीमियम वोलैटिलिटी से बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। इस दौरान ऑप्शन प्रीमियम बढ़ जाते हैं।
वोलैटिलिटी के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं-
- वोलैटिलिटी यह दर्शाती है कि किसी शेयर का प्राइस उसके औसत प्राइस के आसपास कितना ज्यादा घूमते रहते हैं। यह रिटर्न के फैलाव का एक सांख्यिकीय उपाय है।
- वोलैटिलिटी को मापने के कई तरीके हैं, जिनमें बीटा गुणांक, ऑप्शन प्राइसिंग मॉडल और रिटर्न के Standard deviation शामिल हैं।
- कम वोलैटाइल शेयरों की तुलना में अधिक वोलैटाइल शेयरों को जोखिम भरा माना जाता है क्योंकि शेयरों के प्राइस का सही-सही अनुमान लगाना मुश्किल होता है।
- इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी के द्वारा आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि ऑप्शन मार्केट कितना वोलैटाइल हो सकता है।
- जबकि हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी के द्वारा पूर्व निर्धारित अवधि में शेयरों के प्राइस में हुए बदलाव के आधार पर भविष्य की Volatility को माप सकते हैं ।
- ऑप्शन प्रीमियम के प्राइस का अनुमान लगाने में वोलैटिलिटी एक महत्वपूर्ण रोल अदा करती है।
Market Volatility को समझें
वोलैटिलिटी शेयरों के प्राइस में परिवर्तन के कारण होने वाली अनिश्चितता और जोखिम को दर्शाती है। हाई वोलैटिलिटी का मतलब है कि शेयर के प्राइस में बड़ी रेंज में उतार-चढ़ाव हो सकता है। इसका मतलब यह है कि शेयर का प्राइस किसी भी दिशा में थोड़े समय में नाटकीय रूप से घट या बढ़ सकता है।
जबकि कम अस्थिरता का मतलब है, शेयर के प्राइस में नाटकीय रूप से उतार-चढ़ाव नहीं होगा और मार्केट अधिक स्थिर होता है। किसी शेयर के प्राइस में परिवर्तन की मात्रा को मापने का एक तरीका शेयर के दैनिक रिटर्न (दैनिक आधार पर प्रतिशत चाल) को मापना है। हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी, हिस्टोरिकल प्राइस पर आधारित होती है।
जिसे आप उस शेयर के चार्ट पर भी देख सकते है। यह किसी शेयर के रिटर्न में परिवर्तनशीलता की डिग्री का प्रतिनिधित्व करती है। हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी को प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। जबकि शेयर के प्राइस में परिवर्तन सामान्य रूप से शेयर के रिटर्न के फैलाव को पकड़ता है।
Volatility शेयर प्राइस के फैलाव को एक समयबद्ध अवधि में मापता है। आप शेयरों की Daily, Weekly, Monthly यहाँ तक की वार्षिक वोलैटिलिटी को भी माप सकते हैं। अतः वोलैटिलिटी को वार्षिक स्टैंडर्ड डेविएशन के रूप में समझना भी सही है क्योंकि यह इस बात की गणना करता है कि किसी शेयर के वर्तमान प्राइस, उसके एवरेज प्राइस अपने एवरेज प्राइस से कितने अलग हैं।
Stock Market Volatility को कैसे मापे?
वोलैटिलिटी की गणना अक्सर शेयर के प्राइस में परिवर्तन और स्टैंडर्ड डेविएशन का उपयोग करके मापी जाती है। चूँकि वोलैटिलिटी एक निश्चित समय में शेयर के प्राइस में होने वाले परिवर्तन को बताती है। आप इसे बहुत ही सरल तरीके से निकाल सकते हैं। जैसे आप जिस शेयर की जितने दिन की वोलैटिलिटी निकलना चाहते हैं।
उस शेयर के उतने दिन के प्राइस को जोड़कर, उसे उतने दिन से डिवाइड कर दें। इस तरह आप जितनी अवधि की वोलैटिलिटी जानना चाहते हैं, निकाल सकते हैं। अक्सर भरतीय शेयर मार्केट की वोलैटिलिटी का अनुमान इंडिया विक्स को देखकर लगाया जाता है। शेयरों के प्राइस में वोलैटिलिटी को mean-reverting माना जाता है।
जिसका मतलब है कि समय के साथ शेयर के प्राइस, उसके एवरेज प्राइस के पास आ जायेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि high Volatility बहुत ज्यादा समय तक नहीं रहती है। यानि कुछ समय बाद वोलैटिलिटी कम होकर सामान्य हो जाती है और शेयरों के प्राइस वापस अपने एवरेज प्राइस के आसपास आ जाते हैं। शेयर के प्राइस में अक्सर उसके लॉन्ग-टर्म एवरेज प्राइस के आसपास उतार-चढ़ाव आते हैं।
स्टॉक मार्केट वोलैटिलिटी निम्नलिखित दो प्रकार की होती है-
1. इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी
इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी जिसे IV भी कहा जाता है, एक मीट्रिक को संदर्भित करता है। यह किसी share के प्राइस में होने वाले बदलाव को दर्शाता है। शेयर मार्केट ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी के आधार पर भविष्य में ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के प्रीमियम के प्राइस का अनुमान लगाते हैं। IV, हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी के समान नहीं होती है।
इसमें स्टॉक्स के प्राइस में पिछले परिवर्तनों के आधार पर उसके भविष्य के प्राइस मूवमेंट का अनुमान लगाया जाता है। ऑप्शंस का उपयोग चाहे पोर्टफोलियो बनाने के लिए करें या आमदनी करने के लिए करें। लेवरेज स्टॉक्स प्राइस मूवमेंट दूसरे फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट पर एक एडवांटेज देते हैं।
उसका फायदा उठाने के लिए भी ऑप्शंस का उपयोग स्टॉक मार्केट इन्वेस्टर्स करते हैं। वैसे तो कई अन्य फेक्टर्स ऑप्शंस के प्राइस या प्रीमियम को प्रभावित करते हैं। लेकिन ऑप्शन प्रीमियम को Implied Volatility सबसे ज्यादा प्रभावित करती है।
सरल शब्दों में कहें तो इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी ऑप्शंस प्रीमियम के प्राइस में संभावित उतार-चढ़ाव का पूर्वानुमान लगाने में मदद करती है। IV का उपयोग अक्सर ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के प्रीमियम निर्धारित करने के लिए भी किया जाता है। यहाँ हाई इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी का मतलब हाई ऑप्शन प्रीमियम और लो Implied Volatility का मतलब कम ऑप्शन प्रीमियम से होता है।
2. हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी
इसे स्टैटिस्टिकल वोलैटिलिटी के रूप में भी जाना जाता है। हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी (HV) पूर्व निर्धारित अवधि में शेयर के प्राइस में हुए परिवर्तन को मापकर भविष्य में शेयर के प्राइस में होने वाले उतार-चढ़ाव का आंकलन करती है। इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी की तुलना में यह कम प्रचलित मीट्रिक है क्योंकि यह भविष्योन्मुखी नहीं है।
जब हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी में वृद्धि होती है तो शेयर की कीमत भी सामान्य से अधिक बढ़ जाती है। इससे ट्रेडर्स अनुमान लगाते हैं कि इस शेयर में कुछ नई न्यूज आयी है या आने वाली है। दूसरी ओर, यदि शेयर मार्केट में Historical Volatility कम हो रही है।
तब इसका मतलब है कि मार्केट में अनिश्चितता समाप्त हो रही है इसलिए शेयरों के प्राइस अपने एवरेज प्राइस के आसपास ट्रेड कर रहे हैं। हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी की गणना इंट्राडे में प्राइस परिवर्तनों पर आधारित हो सकती है।
यह अक्सर एक क्लोजिंग प्राइस से दूसरे क्लोजिंग प्राइस में परिवर्तन के आधार पर प्राइस मूवमेंट को मापती है। ऑप्शन ट्रेडिंग की अपेक्षित अवधि के आधार पर, Historical Volatility को 10 से 180 ट्रेडिंग सेशन तक की अवधि में मापा जा सकता है।
वोलैटिलिटी और ऑप्शन प्रीमियम
ऑप्शन प्रीमियम निर्धारण मॉडल में वोलैटिलिटी एक प्रमुख घटक है। जिससे यह अनुमान लगाया सकता है कि वोलैटिलिटी बढ़ने पर अंडरलाइंग एसेट कितना रिटर्न दे सकती है। ऑप्शन की एक्सपायरी डेट तक अंडरलाइंग एसेट के प्रीमियम में वोलैटिलिटी के कारण कितना उतार-चढ़ाव आ सकता है।
वोलैटिलिटी, जैसा कि ऑप्शन प्रीमियम प्राइस निर्धारण फ़ार्मुलों के भीतर इसे प्रतिशत गुणांक के रूप में व्यक्त किया जाता है। Stock market Volatility इंट्राडे ट्रेडिंग के कारण उत्पन्न होती है। वोलैटिलिटी का उपयोग ब्लैक-स्कोल्स या बिनोमाइल ट्री मॉडल के द्वारा ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट प्राइस तय करने में भी किया जाता है।
अधिक वोलैटाइल अंडरलाइंग एसेट के ऑप्शन प्रीमियम भी हाई ऑप्शन प्रीमियम में बदल जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वोलैटिलिटी बढ़ने के साथ इस बात की अधिक संभावना भी बढ़ जाती है। ऑप्शन एक्सपायरी पर इन-द-मनी में समाप्त होंगे।
ऑप्शन ट्रेडर्स अंडरलाइंग एसेट की भविष्य की वोलैटिलिटी का अनुमान लगाने का प्रयास करते हैं। Stock market में ऑप्शन प्रीमियम की कीमत इसकी Implied Volatility को दर्शाती है। मार्केट में वोलैटिलिटी जितनी अधिक होगी। ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के प्रीमियम का प्राइस का मार्केट प्राइस उतना ही अधिक होगा।
निफ्टी विक्स
इंडिया विक्स एक वोलेटिलिटी इंडेक्स है, जो कि निफ्टी इंडेक्स ऑप्शन पर आधारित है। इसमें निफ़्टी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के बेस्ट bid-ask price के अनुसार वोलेंटिलिटी के आंकड़े की प्रतिशत में गणना की जाती है। जो अगले 30 कैलेंडर दिवस की संभावित वोलैटिलिटी को दर्शाता है।
यहां एक बात साफ कर देना आवश्यक है कि वोलैटिलिटी का मतलब Stock market या स्टॉक्स के प्राइस में उतार-चढ़ाव से होता है। इससे आप यह अंदाज लगा सकते हैं कि आने वाले दिनों में स्टॉक मार्केट कितने प्रतिशत गिर सकता है या कितने प्रतिशत ऊपर चढ़ सकता है। अगर India VIX की वैल्यू 22 चल रही है तो इसका सीधा सा मतलब है कि निफ्टी आने वाले एक साल के अंदर इस लेवल से 22% ऊपर चढ़ सकता है या 22% नीचे गिर सकता है।
यानी कि आने वाले एक साल के अंतर्गत निफ्टी इंडेक्स की वोलेटिलिटी 22% रह सकती है। वैसे एक बात जो ज्यादातर सही रहती है। वह यह है कि अगर Nifty VIX इंडेक्स 12 या 14% के आस-पास होता है तो इसे मार्केट का बॉटम माना जाता है। यहां वोलैटिलिटी बहुत कम हो जाती है।
Market Volatility को कैसे मैनेज करें?
Stock market में बढ़ी हुई वोलैटिलिटी इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स को परेशान भी कर सकती है। इसकी वजह से शेयरों के प्राइस बेतहाशा बढ़ सकते हैं या अचानक गिर भी सकते हैं। इस दौरान लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए अपनी पोजीशन को होल्ड करना ही सही विकल्प हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लॉन्ग-टर्म में शेयर बाज़ार में वृद्धि होती रहती है।
इस बीच, फियर एंड ग्रीड जैसी भावनाएं जो अस्थिरता वाले बाज़ारों में बढ़ सकती हैं। आपकी लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टिंग स्ट्रेटेजी को कमजोर कर सकती हैं। जब कीमतें अपेक्षाकृत सस्ती होती हैं तो कुछ निवेशक गिरावट पर खरीदारी करके वोलैटिलिटी को अपने पोर्टफोलियो में और स्टॉक्स जोड़ने के अवसर के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं।
आप वोलैटिलिटी से निपटने के लिए हेजिंग स्ट्रेटजी का भी उपयोग कर सकते हैं। जैसे किसी शेयर को बेचे बिना उससे होने वाले नुकसान को कम करने के लिए उसकी सुरक्षात्मक पुट ऑप्शन खरीदना। लेकिन ध्यान दें कि volatility अधिक बढ़ने पर पुट ऑप्शन भी अधिक महंगे हो जाते हैं।
उम्मीद है, आपको यह आर्टिकल शेयर मार्केट वोलैटिलिटी को कैसे संभालें? पसंद आया होगा। अगर आपको यह Volatility in Stocks and Stock market in Hindi आर्टिकल पसंद आये तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें।
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