ऑप्शन सेलिंग ( Options selling ) कैसे करें?

अगर आप स्टॉक मार्केट में एक्टिव हैं तो आपने यह जरूर सुना होगा किऑप्शंस सेलिंग बड़े-बड़े ट्रेडर्स और इंस्टीट्यूशन करते हैं। यदि प्रॉफिट संभावनाओं की बात करें तो options selling में 67% और ऑप्शन बाइंग में 33% ट्रेडर्स ही प्रॉफिट कमाते हैं। सेबी का कहना है कि ऑप्शन ट्रेडिंग में टोटल 11% लोग ही प्रॉफिट कमा पाते हैं।

वैसे तो ऑप्शन सेलिंग के लिए कम से कम एक लाख रूपये से ज्यादा की जरूरत होती है। इस आर्टिकल में मैं आपको एक ऐसी ऑप्शन सेलिंग स्ट्रेटेजी बताऊँगी, जिससे आप 25,000 - 30,000 रूपये में भी ऑप्शन सेलिंग कर पाएंगे। आइये विस्तार से जानते हैं- इंट्राडे में ऑप्शन सेलिंग कैसे करें? Options selling in stock market in Hindi. 

                                                                                   
Options selling


अगर आप भी ऑप्शन ट्रेडिंग में एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको महेशचंद्र कौशिक द्वारा लिखित बुक ऑप्शन ट्रेडिंग से पैसों का पेड़ कैसे लगाएं जरूर पढ़नी चाहिए। 

Options Selling क्या होती है? 

सबसे पहले जानते हैं कि ऑप्शन सेलिंग क्या होतीं है और आप इससे कैसे कमाई कर सकते हैं। Stock market में ऑप्शन में दो तरह के ऑप्शंस होते हैं। Call & Put options, अगर आप ऑप्शन बायर हैं। आपको लगता है कि मार्केट बढ़ेगा तो आप कॉल ऑप्शन खरीदते हैं। अगर आपको लगता है कि मार्केट गिरेगा तो आप पुट ऑप्शन खरीदते हैं। 

अगर आप कॉल ऑप्शन या पुट ऑप्शन खरीदना चाहते हैं। तो कोई ना कोई व्यक्ति उन्हें बेचना भी जरूर चाह रहा होगा। एक प्रसिद्ध कहावत भी है "जहाँ चाह वहाँ राह"तभी तो आप कॉल या पुट ऑप्शन को खरीद पा रहे हैं। यानि कि कोई सेल कर रहा है तभी आप buy कर रहे हैं। जो व्यक्ति ऑप्शन सेल करता है, उसे ऑप्शन सेलर या ऑप्शन राइटर कहा जाता है।

Option seller के नजरिये से कॉल और पुट बेचने का मतलब अलग-अलग होता है। ऑप्शन सेलर कॉल तब सेल करता है ?जब उसे लगता है कि अंडरलाइंग एसेट का प्राइस गिरेगा। इसी तरह ऑप्शन सेलर पुट ऑप्शन तब सेल करता है जब उसे लगता है कि market या स्टॉक का प्राइस बढ़ेगा। 

Option Selling को एक उदारहण के द्वारा इस तरह समझ सकते हैं। मान लीजिये आप एक स्कूटी शोरूम के मालिक हैं। आपके पास एक एक कस्टमर आता है। जो एक पर्टिकुलर स्कूटी को खरीदना चाहता है। जिसकी प्राइस 1,00000 रूपये है। लेकिन वो मॉडल आपके पास नहीं है। 

तब आप उस स्कूटी खरीदार से कहते हैं कि अभी आप मुझे 7,000 रूपये एडवांस दे दो। एक महीने बाद इस मॉडल की स्कूटी मेरे पास आयेगी।  बाकी 93,000 रूपये आप मुझे एक महीने बाद देकर स्कूटी की डिलीवरी ले लेना। उस वक्त स्कूटी की प्राइस चाहे कितनी भी बढ़े या घटे। मैं आपको स्कूटी 1,00000 रूपये में ही दूंगा। ऑप्शन चैन

इस तरह आप केवल 7000 हजार रूपये लेकर शोरूम मालिक से 1,00000 रूपये की स्कूटी का कॉन्ट्रैक्ट कर लेते हैं। एक महीने बाद जब वह स्कूटी मार्केट में आती है तब उसकी प्राइस घटकर 70,000 रूपये हो जाती है। ऐसे में क्या वह खरीदार आपसे 1,00000 रूपये में उस स्कूटी को खरीदेगा? बिल्कुल भी नहीं खरीदेगा क्योंकि इस सौदे से स्कूटी खरीदार को नुकसान होगा। 

ऐसे में वह ग्राहक आपने 7,000 रूपये जो उसने आपको एडवांस दिए थे, उन्हें भूल जायेगा। और दूसरी जगह से 70,000 रूपये में स्कूटी खरीद लेगा। इस पोजीशन में शोरूम के मालिक को जिसने ग्राहक से एक लाख रूपये में कॉन्ट्रैक्ट किया था। उसे घर बैठे 7,000 रूपये का प्रॉफिट हो जायेगा जो उसने स्कूटी खरीदार से 7000 रूपये का एडवांस लिया है। इसी तरह option seller को प्रॉफिट होता है।  ओपन इंटरेस्ट 

लेकिन अगर उस स्कूटी की प्राइस एक लाख से बढ़कर एक लाख बीस हजार रूपये हो जाती है। क्योंकि आपने उस स्कूटी का कॉन्ट्रैक्ट एक लाख रूपये में कर रखा है। तब बायर आपसे स्कूटी खरीदने आ जायेगा। आपको वो एक लाख बीस हजार रूपये की स्कूटी एक लाख रूपये में ही देनी पड़ेगी। तब इस पोजीशन में आपको बीस हजार रूपये का नुकसान हो जायेगा। 

उपर्युक्त उदाहरण से यह बात साफ होती है कि option seller को जो प्रॉफिट होता है। वह ऑप्शन बायर के प्रीमियम से होता है। यानि जितना प्रीमियम उस option buyers ( स्कूटी खरीदार ) ने उस पर्टिकुलर स्कूटी को खरीदने के लिए दिया है। ऑप्शन सेलर को सिर्फ उतना ही प्रॉफिट हो सकता है। इसका मतलब ऑप्शन सेलर को तभी प्रॉफिट होगा। जब ऑप्शन बायर का कॉन्ट्रेक्ट "आउट द मनी" एक्सपायर होगा। 

मान लो ऑप्शन बायर ने 40,000 का "बैंक निफ्टी" का कॉल ऑप्शन खरीदा था। ऑप्शन सेलर ने 40,000 का Bank Nifty का Call option सेल किया था। ऐसे में ऑप्शन बायर को लग रहा था कि बैंक निफ़्टी 40,000 से ऊपर जायेगा। अगर ऐसा ही होता है और बैंक निफ्टी 40,000 के ऊपर चला जाता है। तो option buyer को प्रॉफिट होगा। लेकिन अगर बैंक निफ्टी 40,000 के नीचे जाता है तो ऑप्शन सेलर को प्रॉफिट होगा। इस तरह से ऑप्शन सेलर और बायर को प्रॉफिट होता है। 

Option Seller पैसे कैसे कमाते हैं? 

ऑप्शन प्रीमियम, ऑप्शन सेलर को तीन तरीके से मिल सकता है- 
  1. पहला तरीका: जब ऑप्शन सेलर का मार्केट पर बुलिश नजरिया होता है। यानि ऑप्शन सेलर को लग रहा है कि Stock market बढ़ेगा। ऐसे में वह Put Option sell करेगा और कोई ऐसा ऑप्शन बायर होगा, जिसे लग रहा होगा कि यहाँ से मार्केट गिरेगा। इसलिए वह पुट ऑप्शन खरीदेगा। इस तरह एक ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट बन जायेगा। अब यदि मार्केट बढ़ जाता है तो पुट ऑप्शन बायर को लॉस होने लग जायेगा इसलिए वह अपना कॉन्ट्रैक्ट पूरा नहीं करेगा। ऐसे में ऑप्शन सेलर को प्रॉफिट हो जायेगा। 
  2. दूसरा तरीका: जब option seller का मार्केट पर बारिश नजरिया होता है। यानि ऑप्शन सेलर को लग रहा है यहाँ से market में गिरावट आएगी। तो ऐसे में वह कॉल ऑप्शन को सेल करेगा। वहीं दूसरी तरफ कोई ऐसा बायर होगा, जिसे लगता होगा कि यहां से मार्केट बढ़ेगा। अतः वह कॉल ऑप्शन खरीदेगा, इस तरह ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट बन जायेगा। अगर यहाँ से मार्केट गिर जाता है तो जिसने call option buy कर रखा होगा। उसको नुकसान होने लग जायेगा। अतः वह अपने कॉन्ट्रैक्ट को पूरा नहीं करेगा इसलिए ऑप्शन बायर ने जो प्रीमियम पे किया होगा वह ऑप्शन सेलर को मिल जायेगा। 
  3. तीसरा तरीका: इसके अलावा एक तीसरा तरीका भी है। जहां पर ऑप्शन सेलर को प्रॉफिट होता है। इस तरीके से option seller को प्रॉफिट होने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है। वह है, अगर मार्केट साइडवे ( sideway ) रहता है। यानि जब underlying asset का प्राइस ना ही बढ़ता है और ना ही घटता है। इस पोजीशन में ऑप्शन सेलर को प्रॉफिट होने की वजह थीटा या टाइम डिके है। अगर मार्केट साइडवे रहता है, तो ऑप्शन सेलिंग में थीटा यानि टाइम डिके ऑप्शन सेलर के फेवर में काम करता है। यानि जैसे-जैसे ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी डेट नजदीक आती जाती है। वैसे-वैसे ऑप्शन सेलर को प्रॉफिट का बढ़ता जाता है। 
  4. उदाहरण से समझते हैं: अगर एक ऑप्शन बायर ने "बैंक निफ्टी" का 40,0000 स्ट्राइक प्राइस का कॉल ऑप्शन 5000 रूपये के प्रीमियम पर खरीदा था। दूसरी तरफ एक ऑप्शन सेलर ने बैंक निफ्टी का 40,000 की स्ट्राइक प्राइस का कॉल ऑप्शन सेल किया था। ऑप्शन बायर के कॉन्ट्रैक्ट में टाइम वैल्यू भी जुडी होती है। यानि जितने टाइम के लिए उसने ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट लिया था। अगर बैंक निफ्टी का स्पॉट प्राइस का ट्रेंड साइडवे या बहुत छोटी रेंज में रहता है।  जिस प्राइस पर कॉल ऑप्शन खरीदा गया था। ऐसे में थीटा डिके की वजह से ऑटोमेटिकली बायर के कॉल ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का प्रीमियम कम होता जायेगा। अतः इससे ऑप्शन बायर को लॉस होगा और ऑप्शन सेलर को प्रॉफिट होगा। यही एक कारण है जिसकी वजह से ऑप्शन सेलर को प्रॉफिट होने के चांस ज्यादा होते हैं। 

Option Selling करना कठिन क्यों हैं? 

रिटेल ट्रेडर्स के लिए ऑप्शन सेलिंग करना मुश्किल होता है। ऑप्शन सेलिंग ज्यादातर बड़े ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स ही करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है, ऑप्शन सेलिंग के लिए ज्यादा मार्जिन की जरूरत होना। अगर आप ऑप्शन बाइंग करते हैं तो आप पांच से दस हजार रूपये रूपये में एक लॉट खरीदकर ऑप्शन ट्रेडिंग कर सकते हैं। यानि यहाँ पर कम मार्जिन में काम चल जाता है। 

यदि आप ऑप्शन सेलिंग करते हैं, तब आपको एक lot सेल करने के लिए एक से डेढ़ लाख रूपये की जरूरत पड़ेगी। अब आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा कि जब ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट तो एक ही है फिर बायर को इतने कम रूपये और सेलर को इतने ज्यादा रुपयों की जरूरत क्यों पड़ती है? 

Option selling के लिए इतने ज्यादा मार्जिन की जरूरत क्यों पड़ती है? 

आपने ऑप्शन बाइंग करने के लिए जितना प्रीमियम चुकाया है। ऑप्शन बाइंग में आपको केवल उतना ही लॉस हो सकता है। यानि यहाँ पर आपका लॉस सीमित रहता है जबकि प्रॉफिट असीमित हो सकता है। 

लेकिन ऑप्शन सेलिंग में ऑप्शन बाइंग के विपरीत प्रॉफिट सीमित होता है। जितना ऑप्शन बायर ने प्रीमियम चुकाया है। ऑप्शन सेलर को केवल उतना ही प्रॉफिट हो सकता है। जबकि लॉस असीमित हो सकता है। यानि ऑप्शन बाइंग में लॉस लिमिटेड और profit अनलिमिटेड हो सकता है। जबकि ऑप्शन सेलिंग में loss अनलिमिटेड और प्रॉफिट लिमिटेड ही होता है। 

अतः स्टॉक ब्रोकर अपने पैसे को सुरक्षित रखने के लिए इतने ज्यादा पैसों की अनिवार्यता रखते हैं। क्योंकि यदि किसी ऑप्शन सेलर को नुकसान होता है तो उस नुकसान की भरपाई उसी के अकाउंट से की जाती है। अर्थात ऑप्शन सेलर को नुकसान होने पर उसके अकाउंट से पैसे काटकर ऑप्शन बायर के अकाउंट में जोड़ कर दिए जाते हैं। 

सीधा सा मतलब है, एक का नुकसान तो दूसरे का फायदा। जो ज्यादा होशियार होगा, वही ज्यादा पैसे कमायेगा। इसीलिए ऑप्शन ट्रेडिंग में 89% ट्रेडर्स नुकसान करते हैं और केवल 11% traders ही पैसे कमाने में सफल हो पाते हैं। अब आप समझ गए होंगे कि ऑप्शन सेलिंग में इतने ज्यादा मार्जिन की जरूरत क्यों होती है? 

कम मार्जिन में Option Selling कैसे करें? 

Option byuing की बराबर तो नहीं किन्तु आप कम मार्जिन  ( 25000 - 30000 ) में भी ऑप्शन सेलिंग कर सकते हैं। NSE के फ्रेमवर्क के हिसाब से हैजड ( hedged position ) पोजीशन के लिए मार्जिन की जरूरत को 70% तक कम कर दिया गया है। अगर आप हैजिंग करते हैं, तो आपको ज्यादा मार्जिन नहीं चुकाना पड़ेगा। 

इसी रूल का बेनिफिट उठाकर आप भी कम पैसों में ऑप्शन सेलिंग कर सकते हैं। इसके लिए आपको ऑप्शन सेलिंग करने से पहले "आउट ऑफ़ द मनी" कॉल ऑप्शन खरीदना होगा। जो कम पैसों में आ जाता है। उसके बाद जब आप किसी ऑप्शन को सेल करेंगे। तब आपकी मार्जिन की जरूरत 70 प्रतिशत तक कम हो जायेगी। इस तरह आप कम पैसों में ऑप्शन सेल कर पाएंगे। 

Options Selling के फायदे 

ऑप्शन सेलिंग के निम्नलिखित फायदे होते हैं-

ऑप्शन सेलिंग का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसमें टाइम डिके ऑप्शन सेलर के फेवर में काम करता है। जबकि ऑप्शंस बाइंग में टाइम डिके ऑप्शन बयार के विपरीत काम करता है। यानि जितना ज्यादा टाइम बढ़ता जाता है बायर केऑप्शन  प्रीमियम की वैल्यू कम होती जाती है। इसलिए ऑप्शन सेलर को टाइम की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। 

लेकिन option selling में टाइम बढ़ने के साथ-साथ ऑप्शन बायर का जितना प्रीमियम कम होता है। वह ऑप्शन सेलर को मिलता है। यानि इसमें जितना ज्यादा टाइम बढ़ेगा, ऑप्शन सेलर का प्रॉफिट भी उतना ही बढ़ेगा। कम 

Option Selling में रिस्क और सावधानियां 

बेसक ऑप्शन सेलिंग में प्रॉफिट होने के चांस, ऑप्शन बाइंग से ज्यादा होते हैं। लेकिन ऑप्शन सेलिंग में प्रॉफिट लिमिटेड ही होता है। जबकि रिस्क इसमें अनलिमिटेड होता है। अतः जब भी आप ऑप्शन सेलिंग करें, प्रॉपर स्ट्रेटेजी बनाकर ही करें। साथ ही स्टॉप लॉस भी जरूर लगाएं। 

अगर आप ऑप्शन बायर है और पहली बार ऑप्शन सेलिंग कर रहे हैं। तो आपकी उम्मीदें ऑप्शन बाइंग की तरह हाई प्रॉफिट की होंगी। अगर आप हाई प्रॉफिट की आशा के साथ ऑप्शन सेलिंग करेंगे। तो आपको लॉस होने के चांस बढ़ जायेंगे। अतः आपको ज्यादा प्रॉफिट की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। ऑप्शन सेलिंग में प्रॉफिट कम होता है लेकिन प्रॉफिट होने के चांस ज्यादा होते हैं।  

ऑप्शन सेलिंग में टाइम हमेशा आपके फेवर में काम करता है। इसलिए आपको टाइम की टेंशन नहीं करनी चाहिए। आपने जो trade लिया है, वह सही होना चाहिए। प्रॉपर विश्लेषण के बाद ही ट्रेड लें, उसके बाद अगर मार्केट आपके फेवर में होगा तब तो आपको प्रॉफिट होगा ही। 

अगर मार्केट साइडवेज भी रहेगा, तब तो आपको और भी ज्यादा प्रॉफिट होगा। इसके बाद आप कभी भी ट्रेडिंग करते हैं  तो यह ध्यान रखना चाहिए कि Stock market ट्रेडिंग एक रिस्की बिजनेस है और यहाँ पर लॉस होने के चांस भी होते हैं। इसलिए कभी भी लोन लेकर ट्रेडिंग ना करें। ऑप्शन ट्रेडिंग 

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