बोलिंगर बैंड्स इंडिकेटर बेस्ट स्टॉक ट्रेडिंग स्ट्रेटजी | Bollinger Bands Trading Strategy

बोलिंगर बैंड्स एक सांख्यिकीय चार्ट है, जो शेयर के प्राइस में सिंपल मूविंग एवरेज के ऊपर और नीचे समय के साथ होने वाली वोलेटिलिटी को दर्शाता है। इसे एक बैंड की तरह दर्शाया जाता है, क्योंकि बैंड की दूरी स्टैंडर्ड डेविएशन पर आधारित है। तो वे स्टॉक्स के प्राइस के वोलेटिलिटी स्विंग्स को समायोजित करते हैं। चलिए विस्तार से जानते हैं- बोलिंगर बैंड्स इंडिकेटर ( Bollinger Bands Trading Strategy ) बेस्ट स्टॉक ट्रेडिंग स्ट्रेटजीBollinger Bands Indicator Best Trading Strategy in Hindi. 
                                                                                     
Bollinger Bands

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बोलिंगर बैंड्स एक प्रसिद्ध टेक्निकल एनालिसिस टूल है। जिसका उपयोग ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स द्वारा शेयरों की प्राइस वोलेटिलिटी और उनके संभावित प्राइस मूवमेंट को जानने के लिए किया जाता है। बोलिंगर बैंड्स को जॉन बोलिंगर द्वारा 1080s में विकसित किया गया था।  

Bollinger Bands Indicator कैसे बनता है? 

निम्नलिखित तीन बैंड्स के द्वारा बोलिंगर बैंड्स बनता है- 

Middle Band

मिडिल बैंड, यानि बोलिंगर बैंड्स के बीचोंबीच में जो रेखा होती है उसे ही Middle Band कहा जाता है। बैंड के बीच वाली रेखा शेयर के सिंपल मूविंग एवरेज ( SMA ) प्राइस पर चलती है। सामान्यतः इसमें 20 दिनों के  SMA का प्रयोग किया जाता है। हालाँकि ट्रेडर्स इस सेटिंग को अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी के अनुसार दिनों की संख्या को घटा-बढ़ा सकते हैं। चार्टिंग सॉफ्टवेयर में इसे एडजस्ट करने की सुविधा दी होती है। किसी भी शेयर का SMA बड़ी ही आसानी से निकाला जा सकता है। जितने दिन का SMA निकालना होता है, उतने दिन के शेयर प्राइस को जोड़कर जितने दिन होते हैं। उतनी संख्या से दिनों को डिवाइड कर दे तो उतने दिन का SMA निकल आता है। 

Upper Band 

ऊपरी बैंड, आमतौर पर मिडिल बैंड के ऊपर दो स्टैंडर्ड डेविएशन से बनता है। जो स्टॉक्स प्राइस की वोलेटिलिटी को दर्शाता है। आपको स्टैंडर्ड डेविएशन को ज्यादा समझने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि यह चार्टिंग सॉफ्टवेयर पर ऑटोमेटिकली बोलिंगर बैंड्स टूल में दिया होता है। जब शेयरों के प्राइस बहुत ज्यादा वोलेटाइल होते हैं, तब अपर बैंड और मिडिल बैंड के बीच की दूरी बढ़ जाती है। यानि कि अपर बैंड चौड़ा हो जाता है। 

Lower Bands 

लोअर बैंड भी मिडिल बैंड से दो स्टैंडर्ड डेविएशन नीचे होता है। अपर बैंड के समान, जब शेयरों के प्राइस बहुत ज्यादा वोलेटाइल होते है तो मिडिल बैंड और लोअर बैंड के बीच की दूरी बढ़ जाती है। यानि की लोअर बैंड चौड़ा हो जाता है।  

Bollinger Bands का उपयोग

बोलिंगर बैंड्स का आप निम्नलिखित उपयोग कर सकते हैं-

वोलेटिलिटी की पहचान 

अपर बैंड और लोअर बैंड की चौड़ाई शेयर प्राइस की वोलेटिलिटी को दर्शाती है। जब बैंड्स संकीर्ण ( narrow ) होते हैं तो यह कम वोलेटिलिटी और कंसोलिडेशन का संकेत होता है। इसके बाद प्राइस के किसी एक दिशा में तेजी से आगे बढ़ने यानि कि ब्रेकआउट की संभावना बढ़ जाती है। 

ट्रेंड की पहचान 

ट्रेडर्स अक्सर ब्रेकआउट के बाद शेयरों में लो वोलेटिलिटी ( narrow range ) वाले पीरियड की तलाश करते हैं। क्योंकि नैरो रेंज शेयर में कंसोलिडेशन का संकेत देती है और कंसोलिडेशन के बाद अक्सर शेयरों में ब्रेकआउट होता है। जिसके बाद शेयर का प्राइस एक नये ट्रेंड को फॉलो करता है। 

यानि कि शेयर के प्राइस में कंसोलिडेशन के बाद अप या डाउन किसी भी दिशा में ब्रेकआउट हो सकता है। ट्रेडर्स के पास दोनों की दिशा में ट्रेड करने की अपॉर्च्युनिटी होती है। शेयर प्राइस के अपट्रेंड में चलने पर आप उसमें खरीदारी की पोजीशन बना सकते हैं। इसी तरह शेयर के डाउनट्रेंड में जाने पर आप उसमे शार्ट सेलिंग कर सकते हैं। 

ओवरसोल्ड और ओवरबॉट लेवल्स की पहचान 

Bollinger Bands Indicator के द्वारा आप शेयरों के संभावित ओवरसोल्ड और ओवरबॉट लेवल्स की पहचान कर सकते हैं। जब किसी स्टॉक्स का प्राइस उसके अपर बैंड के पास चला जाता है। तो वह स्टॉक ओवरबॉट होता है, ओवरबॉट शेयर में कभी भी खरीदारी नहीं करनी चाहिए। बल्कि उसमे शार्ट सेलिंग करनी चाहिए। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि यदि प्राइस अपर बैंड को पार करके ऊपर चला जाता है। तो यह शेयर में स्ट्रांग बाइंग का संकेत है ऐसे में आपको स्टॉक को बेचना नहीं चाहिए। यदि आपके पास बाइंग की पोजीशन है तो उसे होल्ड करना चाहिए। निफ्टी 50  

इसके विपरीत यदि शेयर का प्राइस जब लोअर बैंड के पास होता है, तब सामान्यतः शेयर ओवरसोल्ड होता है। ओवरसोल्ड शेयर में आप खरीदारी कर सकते हैं। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि यदि प्राइस लोअर बैंड को तोड़कर और नीचे चला जाता है तो यह शेयर में स्ट्रॉग सेलिंग का संकेत होता है। ऐसी स्थिति में आपको शेयर में खरीदारी करने से बचना चाहिए। 

रिवर्सल के संकेत 

Bollinger Bands में जब शेयर का प्राइस बैंड्स ( अपर या लोअर ) के पास होता है। तब आप उसमे संभावित ट्रेंड रिवर्सल की तलाश कर सकते हैं। इसके लिए आप यह देख सकते हैं कि कहीं कोई ट्रैंड रिवर्सल कैंडलस्टिक पैटर्न तो प्राइस चार्ट पर नहीं बन रहा है। आप बैंड्स के पास शेयर के प्राइस एक्शन को देखकर भी संभावित ट्रेंड रिवर्सल का पता लगा सकते हैं। और भी बहुत सारे टेक्निकल टूल्स हैं जिनके द्वारा आप स्टॉक्स में ट्रेंड रिवर्सल की  संभावना तलाश सकते हैं। ट्रेंड रिवर्सल वाले स्टॉक्स में ट्रेंड की दिशा में पोजीशन बनाकर आप कम समय में अच्छा प्रॉफिट कमा सकते हैं। इसी को शार्ट-टर्म ट्रेडिंग कहा जाता है। 

Bollinger Bands trading strategy 

बोलिंगर बैंड्स ट्रेडिंग स्ट्रैटजी मुख्य रूप से इस अवधारणा के इर्द-गिर्द घूमती है। कि शेयरों के प्राइस ज्यादातर समय बैंड्स के अंदर ही रहते हैं। लेकिन शेयरों के प्राइस बैंड्स के बाहर भी घूम सकते हैं किन्तु ऐसा स्ट्रांग ट्रेंड और हाई वोलेटिलिटी के कारण होता है। निम्नलिखित कुछ तरीके हैं जिनके आधार पर आप बोलिंगर बैंड्स ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी बना सकते हैं- 

1. लो वोलेटिलिटी पीरियड की पहचान करें 

जब बोलिंगर बैंड्स सिकुड़ता है, यानि अपर बैंड और लोअर बैंड के बीच की दूरी कम हो जाती है। इसका मतलब शेयर में वोलेटिलिटी कम हो गयी है और प्राइस एक रेंज में है। यानि शेयर का प्राइस कंसोलिडेट हो रहा है। यह आने वाले समय में संभावित ट्रेंड रिवर्सल का स्ट्रांग संकेत होता है। अतः आपको ट्रेडिंग अपॉर्च्युनिटी के लिए तैयार रहना चाहिए। जिधर भी शेयर का प्राइस घूमे आपको उसी दिशा में ट्रेड लेना चाहिए। इस तरह आप Bollinger Bands Indicator का उपयोग करके अच्छा प्रॉफिट जेनरेट कर सकते हैं। किन्तु आपको स्टॉपलॉस अवश्य लगाना चाहिए और रिस्क रिवॉर्ड रेश्यो के नियमों का भी पालन अवश्य करना चाहिए। 

2. हाई वोलेटाइल पीरियड की पहचान करें 

जब बोलिंगर बैंड्स फैलता है, यानि अपर बैंड और लोअर बैंड के बीच की दूरी बढ़ जाती है। इसका मतलब शेयर के प्राइस में वोलेटिलिटी बढ़ गयी है। यह वर्तमान ट्रेंड के जारी रहने का संकेत हो सकता है और ट्रेंड रिवर्सल भी हो सकता है। आपको Bollinger Bands Indicator के साथ ही दूसरे टेक्निकल टूल्स जैसे MACD, ट्रेंड रिवर्सल कैंडलस्टिक पैटर्न्स, प्राइस एक्शन आदि का उपयोग ट्रेंड कन्फर्मेशन के लिए करना चाहिए। इस तरह आप आगे शेयर का प्राइस किधर घूम सकता है, इसका अनुमान लगा सकते हैं। जिधर भी शेयर का प्राइस घूमे, आप उसके अनुसार ही सावधानी पूर्वक शेयर में ट्रेडिंग की पोजीशन बना सकते हैं। 

3. बोलिंगर बैंड्स ब्रेकआउट ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी  

Bollinger Bands की सबसे सामान्य ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी, बोलिंगर बैंड्स ब्रेकआउट ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी है। इस स्ट्रेटेजी में शेयर के प्राइस का अपर बैंड या लोअर बैंड को ब्रेक करने का इंतजार किया जाता है। यदि शेयर का प्राइस अपट्रेंड में है, तो अपर बैंड को ब्रेक करने का इंतजार किया जाता है। और अपर बैंड के ब्रेक होने पर यह अपट्रेंड ब्रेकआउट होता है और यह अपट्रेंड के आगे भी जारी रहने का संकेत होता है। किसी शेयर में ऐसा होने पर आप उसमे खरीदारी की पोजीशन बना सकते हैं। यदि आप ऑप्शन ट्रेडिंग करते हैं तो आप उस शेयर की कॉल (CE ) खरीद सकते हैं। 

इसी तरह यदि किसी शेयर का प्राइस डाउनट्रेंड में है। तब ट्रेडर्स लोअर बैंड को ब्रेक करने का इंतजार करते हैं। और लोअर बैंड ब्रेक होने पर यह डाउनट्रेंड ब्रेकआउट होता है और यह डाउनट्रेंड के आगे भी जारी रहने का संकेत होता है। किसी भी शेयर में ऐसा होने पर आप उसमे शार्ट सेल की पोजीशन बना सकते हैं। यदि आप ऑप्शन ट्रेडिंग करते हैं तो आप उस शेयर की पुट ( PE ) खरीद सकते हैं। यही है Bollinger Bands Breakout trading strategy. 

4. मीन रिवरसन स्ट्रेटेजी  

Bollinger Bands Mean Reversion Trading Strategy में एक अलग दृष्टिकोण अपनाया जाता है। जब शेयर का प्राइस अपर या लोअर बैंड के बाहर चला जाता है। तब ट्रेडर्स प्राइस के वापस मिडिल बैंड तक वापस आने की उम्मीद करते हैं। ट्रेडर्स ऐसा अनुमान लगते हैं कि शेयर के प्राइस वापस अपने एवरेज प्राइस के आसपास आ जायेंगे। यदि शेयर का प्राइस अपर बैंड के बाहर होता है, तब ट्रेडर्स उसमें शार्ट सेलिंग की पोजीशन बना सकते हैं। जिसमें प्रॉफिट टार्गेट मिडिल बैंड के पास का रखा जाता है।  ट्रेडिंग सेटअप

इसी तरह जब किसी शेयर के प्राइस लोअर बैंड के बाहर होते हैं। तब ट्रेडर्स उस शेयर में बाइंग की पोजीशन बना सकते हैं। इसमें भी प्रॉफिट टार्गेट मिडिल बैंड के पास का रखा जाता है। मार्केट में कोई भी पोजीशन बनाते समय उसमे स्टॉपलॉस अवश्य लगाना चाहिए। साथ ही रिस्क रिवॉर्ड रेश्यो के नियमों का भी पालन जरूर करना चाहिए।

5. ओवरबॉट सिग्नल 

जब शेयर के प्राइस Bollinger Bands के अपर बैंड को टच करते हैं या क्रॉस करते हैं। तब उस शेयर के प्राइस को ओवरबॉट माना जाता है। इस स्थिति में ट्रेडर्स उस शेयर में शार्ट सेलिंग की पोजीशन बना सकते हैं और लॉन्ग पोजीशन को बंद कर सकते हैं। स्विंग ट्रेडिंग

6. ओवरसोल्ड सिग्नल 

जब शेयर के प्राइस Bollinger Bands के निचले बैंड को टच करते हैं या क्रॉस करते हैं। तब उस शेयर को ओवरसोल्ड माना जाता है। इस स्थिति में ट्रेडर्स शेयर में बाइंग की पोजीशन बना सकते हैं और शार्ट सेलिंग की पोजीशन को बंद कर सकते हैं। 

इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि अन्य सभी टेक्निकल इंडिकेटर की तरह ही बोलिंगर बैंड्स की भी सीमाएँ हैं। अतः आप कन्फर्मेशन के लिए आपको अन्य टेक्निकल इंडीकेटर्स का भी उपयोग अवश्य करना चाहिए। केवल बोलिंगर बैंड्स पर आधारित शेयर ट्रेडिंग का निर्णय लेने से पहले आपको इसका अच्छी तरह विश्लेषण करना चाहिए। 

आपको स्टॉपलॉस जरूर लगाना चाहिए साथ ही रिस्क रिवॉर्ड रेश्यो के नियमों का भी पालन अवश्य करना चाहिए। आपको अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी को बैकटेस्ट भी करना चाहिए इससे जोखिम कम होता है। आप ट्रेडिंग भले ही कम कर पाएं लेकिन नुकसान नहीं होना चाहिए। अथवा नुकसान कम से कम कोना चाहिए, मेरी यही कोशिश है। 

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