Undervalued Stocks को पहचानकर शेयर मार्केट से अथाह धन कमाएं

शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करना बहुत ही रोमांचक और प्रॉफिटेबल भी हो सकता है। अगर आप यह जान जाएँ कि मार्केट कैसे काम करता है? साथ ही आपमें सस्ते लेकिन मजबूत फंडामेंटल वाले स्टॉक्स को पहचानने की क्षमता हो। ये स्टॉक्स, शेयर मार्केट में अपने वास्तविक प्राइस से कम प्राइस पर ट्रेड कर रहे होते हैं। 
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अगर मार्केट उनकी वास्तविक वैल्यू को पहचान जाये तो ऐसे स्टॉक्स बड़े रिटर्न दे सकते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं- अंडरवैल्यूड शेयरों को पहचानकर शेयर मार्केट से अथाह धन कमाएं How to find undervalued stocks? Hindi 

                                                                                        
How to find undervalued stocks?  Hindi



अगर आप शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करना चाहते हैं तो आपको बेस्ट सेलर बुक रिच डैड एंड पुअर डैड के लेखक द्वारा रॉबर्ट टी. कियोस्की द्वारा लिखित गाइड टू इन्वेस्टिंग बुक जरूर पढ़नी चाहिए। 

Undervalued Stock का क्या अर्थ है?

शेयर मार्केट में इस कॉन्सेप्ट को समझना बेहद जरूरी है क्योंकि मार्केट में बड़ा पैसा तब बनता है। जब उस शेयर का price बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। जिसमें आपने इन्वेस्टमेंट किया है। शेयर का प्राइस दो स्थितियों में ही बहुत ज्यादा बढ़ता है- 
  1. जब कंपनी की कमाई बढ़ती है। 
  2. जब कंपनी का P/E ratio रीरेट हो जाता है। तभी किसी स्टॉक की रीरेटिंग होती है।
जब कोई स्टॉक अंडरवैल्यूड होता है तो उसके पीछे भी कोई कारण होता है। परन्तु किसी दिन इन स्टॉक्स का प्राइस तेजी से बढ़ने लगता है। इसके पीछे भी इनका undervalued होना भी एक कारण होता है। 

Undervalued stock का मतलब यह नहीं होता है कि उसका प्राइस कम है। बल्कि इसका मतलब यह होता है कि कंपनी जितना कमाती है। उसकी तुलना में उसके stock का प्राइस कम (low) होता है। जिसे मार्केट की भाषा में P/E रेश्यो कहते हैं। आपको कंपनियों के फंडामेंटल देखने पर उनका P/E ratio मिल जायेगा।  

अंडरवैल्यूड stocks वे होते हैं, जिनका मार्केट प्राइस उनके वास्तविक प्राइस से काफी कम होता है। सभी कंपनियों की वास्तविक वैल्यू उनके फंडामेंटल फाइनेंसियल इंडीकेटर्स जैसे देनदारियाँ, रिटर्न ऑन इक्विटी,प्रॉफिट,कैशफ्लो आदि पर आधारित होती है। कंपनी की भविष्य में कैसी ग्रोथ की संभावना है? इससे भी शेयर का प्राइस प्रभावित होता है। 90% ट्रेडर्स नुकसान क्यों करते हैं?

बहुत से ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से कंपनियों के stock का वर्तमान प्राइस उनके वास्तविक प्राइस को नहीं दर्शाता है। जैसे कोई कंपनी अच्छी ग्रोथ कार रही है और उसकी सेल्स भी बढ़ रही हैं। लेकिन इस सबके बावजूद भी उसके शेयर का price कम होता है। ऐसे कई कारण होते हैं, जिनकी वजह से किसी भी company का शेयर उसके वास्तविक प्राइस से कम पर ट्रेड कर सकता है। 

Undervalued Stocks कैसे ढूढें? 

सस्ते शेयरों को ढूड़नें के लिए इन्वेस्टर्स को कंपनियों की फाइनेंसियल स्थिती और उसके शेयर के प्रदर्शन का गहन विश्लेषण करना चाहिए। जिन companies का P/E रेश्यो सिंगल डिजिट में होता है। उन्हें आप अंडरवैल्युड मान सकते हैं। सुजलॉन एनर्जी

जो कंपनियां ग्रो कर रही होती है, उनका कंपनियों का P/E रेश्यो डबल डिजिट या उससे ज्यादा हो सकता है। ऐसी कंपनियों के स्टॉक्स को ओवरवैल्यू माना जाता है। निम्नलिखित कुछ तरीके हैं। जिनके द्वारा आप किसी स्टॉक की वैल्युएशन निकालने के लिए उनका विश्लेषण कर सकते हैं-
  1. फंडामेंटल एनालिसिस: इस दृष्टिकोण में कंपनी के फाइनेंसियल विवरणों की जाँच करना शामिल है। फंडामेंटल एनालिसिस के द्वारा आप कंपनी की फाइनेंसियल हेल्थ और प्रदर्शन का गहन विश्लेषण कर सकते हैं। इसके द्वारा आप किसी कंपनी की बैलेंश शीट, इनकम स्टेटमेंट, कैश फ्लो, डेब्ट लेवल आदि की जाँच कर सकते हैं। अडानी ग्रुप
  2. डिस्काउंट कैश फ्लो (DCF) विश्लेषण; डिस्काउंटेड कैश फ्लो (DCF) एक वैल्यूएशन मैथड है। जो किसी इन्वेस्टमेंट के मूल्य का अनुमान उसके अपेक्षित भावी कैश फ्लो का उपयोग करके लगाती है। विश्लेषक भविष्य में उस investment से कितना पैसा आएगा, इसके अनुमान के आधार पर आज किसी इन्वेस्टमेंट का मूल्य निर्धारित करने के लिए DCF का उपयोग करते हैं।
  3. रिलेटिव वैल्युएशन: इस टेक्निक में आप कंपनियों के फाइनेंसियल मैट्रिक्स जैसे प्राइस टू बुक (P/B) रेश्यो, P/E रेश्यो और डिविडेंड यील्ड का उस सेक्टर की अन्य कंपनियों के साथ तुलना कर सकते हैं। इस तुलना के द्वारा आप undervalued or overvalued स्टॉक्स की पहचान कर सकते हैं। इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉररेशन
  4. प्राइस टू बुक रेश्यो (P/B): किसी भी कंपनी का P/B ratio उसके स्टॉक के वर्तमान प्राइस को कंपनी की बुक वैल्यू के हिसाब से प्रति शेयर प्राइस (BVPS) से डिवाइड किया जाता है। इसके द्वारा कंपनी की मार्केट वैल्यू की बुक वैल्यू दे तुलना की जाती है। 
  5. P/E रेश्यो: कंपनियों के पीई रेश्यो की गणना उनके स्टॉक की मार्केट वैल्यू प्रति शेयर को कंपनी की प्रति शेयर कमाई (EPS) से कैलकुलेट करके की जाती है। हाई पीई रेश्यो का मतलब कंपनी की कमाई की तुलना में उसके शेयर का प्राइस ज्यादा है। यानि स्टॉक ओवरवैल्यूड है। अगर कंपनी का पीई रेश्यो कम है तो इसका मतलब कंपनी के शेयर की तुलना में उसकी कमाई ज्यादा है। जिसका मतलब share अंडरवैल्यूड है। 

Undervalued Stocks में Investment क्यों करना चाहिए? 

आपको निम्नलिखित वजहों से अंडरवैल्यूड स्टॉक्स में इन्वेस्टमेंट करना चाहिए- 
  1. हाई रिटर्न मिलने की संभावना: जो स्टॉक्स अंडरवैल्यूड होते हैं, इन्वेस्टर्स के पास उन्हें डिस्काउंट प्राइस पर खरीदने का मौका होता है। ऐसे stocks के बारे में संभावना रहती है कि जिस दिन मार्केट पार्टिसिपेंट्स उनके वास्तविक प्राइस को पहचान लेंगे। तब उन्हें मल्टीबैगर स्टॉक बनते देर नहीं लगेगी। 
  2. कम रिस्क: अंडरवैल्यूड स्टॉक्स का प्राइस कम होता है। जोकि अपनी intrinsic value से कम पर कारोबार कर रहा होता है। अतः इनके प्राइस के और गिरने के चांस कम और ऊपर जाने के चांस ज्यादा होते हैं।
  3. कंपनी की ग्रोथ में भागीदार बन सकते हैं: अंडरवैल्यूड stocks को पहचानकर और उनमें इन्वेस्टमेंट करके आप उस company की संभावित ग्रोथ और उसके स्टॉक प्राइस की मूल्य वृद्धि में भागीदार बन सकते हैं। मार्केट समय के साथ स्टॉक्स के प्राइस में विंसगतियों (कमियों) को सही करता है। इसका मतलब समय के साथ अंडरवैल्यूड स्टॉक्स का प्राइस बढ़ना तय माना जाता है। अडानी इंटरप्राइजेज  

Value Investing करते समय ध्यान रखने योग्य बातें 

उपर्युक्त टेक्निक्स अंडरवैल्यूड स्टॉक्स को पहचानने में मदद करती हैं। लेकिन फिर भी स्टॉक्स वैल्यूएशन को मापने का कोई सटीक विज्ञानं नहीं है। ऐसे कई निम्नलिखित फेक्टर्स हैं, जिनका इन्वेस्टर्स को investing करते समय ध्यान रखना चाहिए- 
  1. मार्केट कंडीशन: Share market भू-राजनैतिक घटनाओं, जैसे चुनाव, युद्ध मार्केट सेंटीमेंट आदि से प्रभावित होते हैं। जो अंडरवैल्यूड स्टॉक्स के परसेप्शन को प्रभावित कर सकते हैं। 
  2. समय: Undervalued stock वाले स्टॉक की पहचान करना तत्काल रिटर्न की गारंटी नहीं देता है। बाजार को कंपनी के वास्तविक मूल्य को पहचानने में समय लग सकता है। सस्ते प्राइस वाले स्टॉक में निवेश करते समय अक्सर धैर्य की आवश्यकता होती है। 
  3. पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन: अंडरवैल्यूड स्टॉक्स में invest करना फायदेमंद हो सकता है। लेकिन समग्र जोखिम को कम करने के लिए पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन जरूर करना चाहिए। 
  4. कंपनी संबंधी रिस्क: अंडरवैल्यूड स्टॉक्स को भी मार्केट प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। जो भविष्य में उसके स्टॉक प्राइस के प्रदर्शन को बिगाड़ सकता है। 
Undervalued Stocks की पहचान करने के लिए उनके फंडामेंटल एनालिसिस और फाइनेंसियल रेश्यो के साथ-साथ कुवानटीटिव एनालिसिस की भी जरूरत होती है। इन टेक्निक्स को अपनाकर और मार्केट कंडीशंस को ध्यान में रखकर ही किसी भी स्टॉक में लॉन्गटर्म के लिए investment करना चाहिए। 

साथ ही कंपनी स्पेसिफिक रिस्क पर विचार करके इन्वेस्टर्स अंडरवैल्यूड stocks में इन्वेस्टिंग के संभावित मौकों की तलाश कर सकते हैं। हालाँकि मार्केट में पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाइड और धैर्य बनाये रखना चाहिए। जिन स्टॉक्स में आपने इन्वेस्ट किया है उनकी और स्टॉक मार्केट की लगातार निगरानी भी रखनी चाहिए। तभी आप शेयर मार्केट से  मल्टीबैगर रिटर्न प्राप्त करने में सफल हो पाएंगे। टाटा पावर

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