Share Price Consolidation: शेयर प्राइस कंसॉलिडेशन क्या है?

स्टॉक मार्केट में, प्राइस कंसोलिडेशन (Price Consolidation) एक ऐसा चरण होता है। जब किसी स्टॉक का प्राइस एक सीमित रेंज में स्थिर रहता है और ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं दिखाता है। इसे अक्सर "साइडवे मूवमेंट" या "रेंज-बाउंड ट्रेडिंग" के नाम से भी जाना जाता है। 

शेयर मार्केट में यह स्थिति तब उत्पन्न होती है। जब मार्केट प्रतिसिपेंट्स के बीच असमंजस होता है। जिससे शेयरों की बाइंग और सेलिंग के बीच संतुलन बन जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं- शेयर प्राइस  कंसॉलिडेशन क्या है? Share price consolidation in Hindi.  
                                                                                      
Share Price Consolidation

अगर आप शेयर मार्केट टेक्निकल एनालिसिस में एक्सपर्ट बनना चाहते  आपको मुकुल अग्रवाल द्वारा लिखित द सिम्पलेस्ट बुक ऑफ टेक्निकल एनालिसिस जरूर पढ़नी चाहिए। 

इस आर्टिकल में, हम विस्तार से समझेंगे कि प्राइस कंसोलिडेशन क्यों और कैसे होता है? इसके संकेत क्या होते हैं? और इसका निवेशकों और ट्रेडर्स के लिए क्या महत्व है। 

Share Price Consolidation क्या है?

प्राइस कंसोलिडेशन के दौरान शेयर प्राइस एक दायरे में घूमता रहता है। जिससे वह न तो बहुत अधिक बढ़ पाता है और न ही गिर पाता है। इसे चार्ट पर एक रेक्टेंगल पैटर्न या साइडवे ट्रेंड के रूप में देखा जा सकता है। कंसॉलिडेशन एक टेक्निकल टर्म है। जिसका प्रयोग एक निश्चित टाइमफ्रेम में सपोर्ट एंड रेजिस्टेंस के बीच घूम रहे किसी शेयर के प्राइस को परिभाषित करने के लिए किया जाता है। 

कन्सॉलिडेशन के दौरान शेयर प्राइस एक निश्चित लेवल के बीच एक प्राइस पैटर्न में घूमता रहता है। शेयर मार्केट में होने वाले प्राइस कंसॉलिडेशन को आमतौर पर मार्केट पार्टिसिपेंट्स की अनिर्णय की मनोस्थिति से जोड़कर देखा जाता है। जब यह स्थिती समाप्त होती है, तब stocks price ट्रेडिंग पैटर्न के ऊपर या नीचे की तरफ तेजी से मूव करते हैं। 

किसी भी शेयर प्राइस में बना consolidation pattern कई कारणों से टूट भी जाता है। जैसे कि कंपनी के बारे में कोई नई न्यूज आने से उसके शेयर में पॉजिटिव और नेगेटिव ब्रेकआउट हो सकता है। अगर न्यूज पॉजिटिव है उसके शेयर प्राइस बढ़ेंगे। यदि न्यूज नेगेटिव है तो शेयर के प्राइस गिरेंगे। 

आप निम्नलिखित चिन्हों से किसी भी Share Price में हो रहे Consolidation को पहचान सकते हैं- 
  1. कम ट्रेडिंग वॉल्यूम: कंसोलिडेशन के दौरान ट्रेडिंग वॉल्यूम कम हो जाता है। 
  2. लो वॉलेटिलिटी: इस दौरान शेयर प्राइस बहुत छोटी रेंज में ट्रेड करता है।  
  3. सपोर्ट एंड रेजिस्टेंस लेवल्स: कसोलिडेशन के दौरान शेयर प्राइस support & resistance levels के बीच फंसा रहता है। 
  4. न्यूट्रल सेंटीमेंट: इस दौरान शेयर का ट्रेंड (Uptrend & Downtrend) साफ नहीं रहता है। बीएसई सेंसेक्स
शेयर का प्राइस कंसॉलिडेट निम्नलिखित कारणों की वजह से होता है- 
  • अनिर्णय की स्थिती: जब मार्केट में इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स के अगले कदम के बारे में कोई निश्चितता नहीं होती है। तब stocks consolidation फेज में रहते हैं। 
  • प्रॉफिट बुकिंग: स्टॉक में तेज अपट्रेंड या डाउनट्रेंड के बाद ट्रेडर्स प्रॉफिट बुकिंग करते हैं। जिससे शेयर कुछ समय के लिए कंसोलिडेशन फेज में रहते हैं। 
  • बड़े फंडामेंटल ट्रिगर के इंतजार में: जब कंपनी के तिमाही नतीजे आने वाले होते हैं या कोई आर्थिक रिपोर्ट आने वाली होती है। उसके इंतजार में भी प्राइस कंसोलिडेशन होता है। 
  • इंस्टीट्यशनल एक्टिविटी: बड़े संस्थागत निवेशक FII & DII मार्केट में धीरे-धीरे अपनी पोजीशन बनाते हैं। जिससे भी मार्केट कंसॉलिडेट होते हैं। 

Share Price Consolidation को कैसे पहचाने? 

प्राइस कंसोलिडेशन के दौरान निम्नलिखित प्रकार से आप प्राइस कंसोलिडेशन की पहचान कर सकते हैं-
  1.   रेक्टेंगल चार्ट पैटर्न्स: इसमें शेयर का प्राइस सपोर्ट एंड रेजिस्टेंस के बीच फंसकर कंसोलिडेट होता रहता है। तब रेक्टेंगल चार्ट पैटर्न बनता है। 
  2. फ्लैग पैटर्न: फ्लैग यानि झंडे के आकर का पैटर्न। यह पैटर्न तब बनता है, जब शेयर के प्राइस में वन साइड ट्रेंड देखा जाता है। उसके बाद जब शेयर के प्राइस कंसॉलिडेट होते हैं। तब फ्लैग पैटर्न बनता है। 
  3. पेनन्ट पैटर्न: स्टॉक प्राइस में ब्रेकआउट के बाद जब प्राइस कंसॉलिडेट होते हैं तब Pennant pattern बनता है। 
  4. बोलिंगर बैंड्स: जब शेयर प्राइस कंसोलिडेट होते हैं। तब दोनों बैंड एक दूसरे के करीब आ जाते हैं। 
  5. मूविंग एवरेज: Price consolidation के दौरान शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म मूविंग एवरेज में बहुत कम अंतर होता है। 
  6. रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (RSI): प्राइस कंसोलिडेशन के दौरान RSI (40 - 60) के बीच रहता है। 
  7. ट्रेडिंग वॉल्यूम: कंसोलिडेशन के दौरान ट्रेडिंग वॉल्यूम आमतौर पर कम रहता है। लेकिन कंसोलिडेशन ब्रेकआउट के समय अचानक बढ़ सकता है।

Share Price Consolidation के दौरान ट्रेडिंग कैसे करें? 

कंसॉलिडेशन के दौरान ब्रेकआउट या ब्रेकआउट होने का इंतजार करना चाहिए। ब्रेकआउट या ब्रेकआउट होने की पुष्टि होने पर ही ट्रेड लेना चाहिए। बिना कन्फर्मेशन के ट्रेड नहीं लेना चाहिए। पोजीशन बनाते समय स्टॉपलॉस का प्रयोग जरूर करना चाहिए। 

सपोर्ट एंड रेजिस्टेंस लेवल्स का ध्यान रखना चाहिए। सपोर्ट लेवल पर ब्रेकडाउन होने का इंतजार करें। रेजिस्टेंस लेवल पर ब्रेकआउट होने का इंतजार करें। सपोर्ट लेवल पर शेयर प्राइस के स्टेबल होने पर आपको शेयर खरीदने चाहिए। इसके विपरीत रेजिस्टेंस लेवल पर आपको शेयर बेचना चाहिए। शार्ट सेल भी कर सकते हैं। 

प्राइस कंसोलिडेशन में ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग का निम्नलिखित महत्व है- 
  • Breakout & Breakdown के संकेत: प्राइस कंसोलिडेशन के बाद आमतौर पर स्टॉक एक नई दिशा (uptrend या downtrend) में बढ़ता है। 
  • Breakout तब होता है, जब शेयर प्राइस रेजिस्टेंस लेवल को तोड़ता है। जिससे शेयर के प्राइस बढ़ते हैं।
  • Breakdown तब होता है, जब शेयर के प्राइस सपोर्ट लेवल को तोड़ता है। जिससे शेयर के प्राइस गिरते हैं।
  • Risk Management के अवसर, कंसोलिडेशन के दौरान इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स पोजीशन में एंट्री और एग्जिट पॉइंट को स्पष्ट रूप से निर्धारित कर सकते हैं। 
  • ट्रेंड रिवर्सल या ट्रेंड कन्टीन्यूएशनकंसोलिडेशन यह संकेत देता है कि वर्तमान ट्रेंड जारी रहेगा या बदल सकता है।
प्राइस कंसोलिडेशन को समझना हर ट्रेडर और इन्वेस्टर के लिए जरूरी है क्योंकि यह स्टॉक की भविष्य की दिशा (trend) का संकेत दे सकता है। इसे सही तरीके से पहचानकर और ब्रेकआउट या ब्रेकडाउन पर पोजीशन बनाकर आप अपने निवेश में बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। 

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