Intraday Options Buying: ऑप्शन बाइंग के लिए बेस्ट टाइमिंग, प्रो ट्रेडर्स का छुपा राज़

इंट्राडे में ऑप्शन बाइंग आसान दिखती है लेकिन असलियत में यह सबसे ज्यादा रिस्की ट्रेडिंग है। अगर आप सही टाइमिंग, सही स्ट्रेटेजी और सही डिसिप्लिन के साथ ट्रेड करते हैं तो निश्चित ही प्रॉफिट बना सकते हैं। ऑप्शन बाइंग में टाइमिंग ही सफलता की सबसे बड़ी चाबी है। जानते हैं- ऑप्शन बाइंग के लिए बेस्ट टाइमिंग, प्रो ट्रेडर्स का छुपा राज़। Intraday Options Buying Timing in Hindi.  

                            
intraday options buying timing
ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइमिंग सबसे बड़ा हथियार है। अगर आपने गलत समय पर ऑप्शन बाय कर लिया तो नुकसान पक्का है, लेकिन सही समय पर खरीदी गई ऑप्शन आपके अकाउंट में जबरदस्त प्रॉफिट ला सकती है।

अगर आप अंग्रेजी पढ़ने में कम्फर्टेबल है और ऑप्शंस ट्रेडिंग से सम्बन्धित कोई शानदार बुक पढ़ना चाहते हैं। तो आपको  आपको इंद्रजीत शांताराज द्वारा लिखित Options Trading Made Simple बुक जरूर पढ़नी चाहिए। इस बुक को ऑप्शन ट्रेडिंग में नए लोगों के लिए क्रैश कोर्स के रूप में तैयार किया गया है। 


स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग प्रॉफिट तब होता है, जब सही समय पर सही निर्णय लिया जाए। खासकर ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइमिंग सबसे बड़ा हथियार है। अगर आपने गलत समय पर ऑप्शन बाय कर लिया तो नुकसान पक्का है। अगर सही समय पर options buying की गई तो यह ऑप्शन आपके अकाउंट में जबरदस्त प्रॉफिट ला सकती है। 


लेकिन यह कोई एक दिन में अमीर बनने का फॉर्मूला नहीं है, बल्कि एक गंभीर और व्यावहारिक गाइड है जो आपको यह समझने में मदद करेगा कि इंट्राडे ऑप्शन बाइंग एक कला और विज्ञान दोनों है। इसमें आपको धैर्य, अनुशासन और सही जानकारी की आवश्यकता होती है।

शेयर बाज़ार में कई लोग यह सोचते हैं कि ऑप्शन बाइंग बहुत आसान है और इसमें बहुत जल्दी पैसा बनता है, लेकिन सच्चाई इसके उलट है। बिना सही समझ के, यह एक जुए की तरह हो सकता है जिसमें आप अपनी सारी पूंजी गँवा सकते हैं।

Options buying क्या है और यह कैसे काम करती है? 

सबसे पहले, आपको यह समझना होगा कि ऑप्शन ट्रेडिंग क्या है? ऑप्शन एक तरह का कॉन्ट्रैक्ट है जो आपको भविष्य में किसी निश्चित तारीख (एक्सपायरी डेट) पर एक पूर्व-निर्धारित कीमत (स्ट्राइक प्राइस) पर किसी स्टॉक या इंडेक्स (जैसे निफ्टी या बैंक निफ्टी) को खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन यह आपकी बाध्यता नहीं है।


ऑप्शन बायर वह होता है जो यह कॉन्ट्रैक्ट खरीदता है और इसके लिए एक प्रीमियम का भुगतान करता है। जबकि ऑप्शन सेलर वह होता है जो यह कॉन्ट्रैक्ट बेचता है और प्रीमियम प्राप्त करता है।
इंट्राडे ऑप्शन ट्रेडिंग का मतलब है कि आप उसी दिन ऑप्शन खरीदते और बेचते हैं। यानी मार्केट सेशन के अंत में सभी पोज़िशन्स को स्क्वेयर ऑफ कर दिया जाता है।

Intraday Options Buying कब करनी चाहिए?

इंट्राडे में ऑप्शन बाइंग के 10 निम्नलिखित पॉइंट्स को ध्यान में रखकर आपको ऑप्शन बाइंग करनी चाहिए। यह सिर्फ एक बटन दबाने जैसा नहीं है, बल्कि यह मार्केट ट्रेंड, विभिन्न टेक्निकल इंडीकेटर्स से मिलने वाले संकेतों और अपनी खुद की ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी पर आधारित होना चाहिए। उन प्रमुख स्थितियों और संकेतों पर एक-एक करके चर्चा करते हैं। जिन्हें देखकर आपको ऑप्शन बाइंग का निर्णय करना चाहिए।

1. मार्केट में तेज़ी (Momentum)

इंट्राडे ऑप्शन बाइंग का सबसे बड़ा नियम है "Momentum is your best friend."। जब मार्केट में कोई बड़ा मोमेंटम हो, चाहे वह ऊपर की ओर हो या नीचे की ओर, तभी ऑप्शन बाइंग में पैसा बनता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि-

  • डेल्टा (Delta): ऑप्शन का डेल्टा, जो प्रीमियम के प्राइस में बदलाव को दर्शाता है। मोमेंटम के साथ तेजी से बढ़ता है।
  • इंट्रिंसिक वैल्यू (Intrinsic Value): जब स्टॉक या इंडेक्स आपकी दिशा में तेजी से बढ़ता है, तो ऑप्शन की इंट्रिंसिक वैल्यू भी बढ़ जाती है।

अगर मार्केट शांत है और बहुत धीमी गति से चल रहा है (यानी साइडवेज है) तो ऑप्शन प्रीमियम तेजी से घटता है। जिसे टाइम डीके (Time Decay) या थीटा (Theta) कहते हैं। ऐसी स्थिति में ऑप्शन बाइंग से बचना चाहिए। साइडवे मार्केट में ऑप्शंस सेलर्स को फायदा होता है। 

उदाहरण: मान लीजिए बैंक निफ्टी 45000 पर है और अचानक RBI की कोई घोषणा के कारण वह तेजी से 45500 की तरफ बढ़ने लगता है। यह मोमेंटम आपके लिए ऑप्शन बाइंग का एक अच्छा अवसर हो सकता है।

2. महत्वपूर्ण सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल

सपोर्ट (Support) और रेजिस्टेंस (Resistance) शेयर मार्केट के दो सबसे महत्वपूर्ण टेक्निकल एनालिसिस   के लेवल होते हैं। इनका सीधा सम्बन्ध बाइंग और सेलिंग से होता है। रेजिस्टेंस लेवल पर सेलिंग करनी चाहिए कर सपोर्ट लेवल पर बाइंग करनी चाहिए। प्रत्येक ट्रेडर को सपोर्ट एंड रेजिस्टेंस लेवल को पहचानना जरूर सीखना चाहिए। 

  • सपोर्ट: वह स्तर जहां से स्टॉक या इंडेक्स जैसे Nifty 50, BankNiftyआदि प्राइस के गिरने की संभावना कम होती है और वापस ऊपर जाने की आशंका बढ़ जाती है।
  • रेजिस्टेंस: वह स्तर जहां से स्टॉक जैसे रिलायंस, टीसीएस, HDFC आदि या इंडेक्स  के बढ़ने की संभावना कम होती है और वापस नीचे आने की आशंका बढ़ जाती है।

जब स्टॉक या इंडेक्स किसी मजबूत सपोर्ट स्तर को तोड़कर नीचे आता है।  तो वहाँ से एक बड़ा मोमेंटम मिल सकता है। इसी तरह, जब यह किसी मजबूत रेजिस्टेंस स्तर को तोड़कर ऊपर जाता है, तो भी बड़ा मोमेंटम मिलता है।

टिप्स: अगर कोई स्टॉक या इंडेक्स अपने रेजिस्टेंस को तोड़कर ऊपर जा रहा है, तो आप कॉल ऑप्शन (Call Option) खरीद सकते हैं। इसी तरह, अगर वह सपोर्ट को तोड़कर नीचे जा रहा है, तो पुट ऑप्शन (Put Option) खरीद सकते हैं।

3. ब्रेकआउट और ब्रेकडाउन (Breakout and Breakdown)

ब्रेकआउट का मतलब है कि स्टॉक या इंडेक्स अपने पिछले रेजिस्टेंस को तोड़कर एक नया हाई प्राइस बनाता है। ब्रेकडाउन का मतलब है कि वह अपने पिछले सपोर्ट को तोड़कर एक नया लो प्राइस बनाता है।

ये दोनों ही स्थितियाँ हाई मोमेंटम का संकेत होती हैं। एक सफल ब्रेकआउट या ब्रेकडाउन, इंट्राडे ऑप्शन बायर को कम समय में अच्छा प्रॉफिट दे सकता है।

सावधानी: हमेशा वॉल्यूम (Volume) को देखें। एक ब्रेकआउट या ब्रेकडाउन हमेशा भारी वॉल्यूम के साथ होता है। अगर वॉल्यूम कम है तो यह एक फॉल्स ब्रेकआउट हो सकता है।

4. प्रमुख आर्थिक घटनाओं और समाचारों के समय

जब कोई बड़ी आर्थिक घटना या महत्वपूर्ण समाचार आने वाला हो, तो शेयर मार्केट में हलचल बढ़ जाती है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति की घोषणा। कंपनियों के तिमाही नतीजों का ऐलान। आम बजट -चढ़ाव भाषण। अमेरिका में फेडरल रिज़र्व की बैठक आदि। ऐसे कई कारण हैं, जिसकी वजह से मार्केट भारी वोलेटाइल हो सकता है। 

इन घटनाओं के दौरान, बाज़ार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। अगर आपको लगता है कि समाचार बाज़ार की दिशा को स्पष्ट रूप से प्रभावित करेगा, तो आप उस दिशा में ऑप्शन खरीद सकते हैं। लेकिन यहाँ एक बड़ा जोखिम भी है, अगर बाज़ार आपकी उम्मीद के विपरीत चला जाता है। तो आपका पूरा प्रीमियम एक झटके में शून्य हो सकता है।

5. सुबह 9:15 से 10:00 बजे के बीच (Opening Range Breakout)

बाज़ार के खुलते ही, पहले 15-30 मिनट में एक दिशा बनती है। इसे ओपनिंग रेंज (Opening Range) कहते हैं।कई अनुभवी ट्रेडर इस रेंज के ब्रेकआउट पर ट्रेड करते हैं। इसके लिए आपको निम्नलिखित ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी अपना सकते हैं।

  1. पहले 15 मिनट की कैंडल का हाई और लो प्राइस मार्क करें।
  2. अगर इंडेक्स या आपका चुना हुआ स्टॉक, उस हाई प्राइस को तोड़कर ऊपर जाता है, तो आप कॉल ऑप्शन खरीद सकते हैं।
  3. अगर वह लो प्राइस को तोड़कर नीचे आता है, तो आप पुट ऑप्शन खरीद सकते हैं।

यह ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी अक्सर शेयर मार्किट के शुरूआती मोमेंटम का फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल की जाती है।

6. टेक्निकल इंडिकेटर्स का उपयोग

सिर्फ आँख बंद करके ट्रेडिंग नहीं करनी चाहिए। सपोर्ट एंड रेजिस्टेंस के आलावा आपको अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी को पुख्ता बनाने के लिए आपको कुछ प्रमुख टेक्निकल इंडिकेटर्स का उपयोग करना चाहिए-

  1. मूविंग एवरेज (Moving Averages): जब कोई इंडेक्स या स्टॉक प्राइस 20-दिन या 50-दिन के मूविंग एवरेज को क्रॉस करता है। तब यह ट्रेंड प्राइस मोमेंटम के बारे में महत्वपूर्ण संकेत देता है।
  2. आरएसआई (RSI - Relative Strength Index): RSI 70 से ऊपर हो तो ओवरबॉट (Overbought) और 30 से नीचे हो तो ओवरसोल्ड (Oversold) माना जाता है।
  3. वॉल्यूम (Volume): किसी भी शेयर या इंडेक्स का प्राइस अगर हाई वॉल्यूम के साथ जिस भी दिशा में चलता है। तो वह ब्रेकआउट का स्ट्रांग संकेत होता है। हमेशा हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम के साथ चलने वाले प्राइस ट्रेंड ट्रेडिंग करना चाहिए। 

उदाहरण: अगर कोई स्टॉक अपने 200-दिन के मूविंग एवरेज के ऊपर चल रहा है और RSI 60 के ऊपर है, तो यह उस शेयर के मजबूत मोमेंटम का संकेत देता है। अगर आरएसआई 70 के ऊपर है तो यह ओवरबॉट प्राइस का संकेत देता है। 

7. ओपन इंटरेस्ट (Open Interest) डेटा

ओपन इंटरेस्ट (OI) यह बताता है कि कितने ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स अभी खुले हुए हैं। जिनका अभी निपटान नहीं हुआ है। यह डेटा ऑप्शन ट्रेडर्स की सोच को दर्शाता है। यह मार्केट की एक्टिविटी और लिक्विडिटी का माप होता है। जब कोई इंडेक्स या शेयर किसी महत्वपूर्ण OI स्तर को तोड़ता है तो एक बड़ा मोमेंटम आने की संभावना होती है।

  1. कॉल ऑप्शन का OI: अगर किसी स्ट्राइक प्राइस पर कॉल ऑप्शन का ओपन इंट्रेस्ट बहुत ज्यादा है, तो वह एक मजबूत रेजिस्टेंस बन सकता है।
  2. पुट ऑप्शन का OI: अगर पुट ऑप्शन का OI बहुत ज्यादा है, तो वह एक मजबूत सपोर्ट बन सकता है।

8. विक्स (VIX - Volatility Index) पर नज़र रखें

इंडिया VIX इंडियन शेयर मार्केट की अस्थिरता (Volatility) को मापता है। हाई VIX (18 से ऊपर) इसका मतलब है कि मार्केट में बहुत ज्यादा वोलैटिलिटी है। ऐसे में ऑप्शन प्रीमियम बहुत महंगे होते हैं, क्योंकि ऑप्शन सेलर को अधिक जोखिम होता है। हाई VIX के समय, बाज़ार में बड़े और अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव हो सकते हैं। 

जिससे ऑप्शन बायर को तेजी से फायदा या नुकसान हो सकता है। लो VIX (12 से नीचे) मार्केट के स्टेबल होने का संकेत देती है। इस समय ऑप्शन प्रीमियम सस्ते होते हैं, लेकिन मार्केट में मोमेंटम भी कम होता है। हाई VIX के समय, ऑप्शन बाइंग ज्यादा जोखिम भरी होती है। लेकिन अगर आपकी दिशा सही हो तो यह ज्यादा मुनाफा भी दे सकती है।

9. Options Buying के लिए दिन का सबसे अच्छा समय?

इंट्राडे ऑप्शन बाइंग के लिए, दिन के कुछ समय ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। 

  1. सुबह का सत्र (9:15 - 10:30 am): यह समय अक्सर सबसे अधिक मोमेंटम वाला होता है।
  2. दोपहर के बाद का सत्र (2:00 - 3:30 pm): इस समय में भी अक्सर बाज़ार में बड़े मूवमेंट आते हैं। खासकर यूरोपीय बाज़ारों के खुलने के बाद। 
  3. दोपहर 12 से 2 बजे के बीच: बाज़ार अक्सर शांत रहता है। जिसे लंच टाइम कहते हैं। इस समय ऑप्शन प्रीमियम बहुत तेजी से घटते हैं।

10. अपनी स्ट्रेटेजी पर विश्वास रखें और भावनात्मक निर्णय से बचने

यह सबसे महत्वपूर्ण बात है। अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी बनाएँ जानें कि आप किस आधार पर ट्रेड लेंगे। रिस्क मैनेजमेंट करें, यानी हर ट्रेड में स्टॉप लॉस (Stop Loss) जरूर लगाएं। अपनी पूंजी का 2% से अधिक जोखिम न लें।

फियर एंड ग्रीड से बचें, जब आप फायदे में हों, तो लालच में आकर अपनी पोज़िशन को बहुत देर तक न रखें। अपना लक्ष्य (टारगेट) निर्धारित करें और उस पर पहुँचते ही ट्रेड से बाहर निकलें। भावनात्मक नियंत्रण: घाटे को स्वीकार करें। कभी भी 'बदला लेने वाले ट्रेड' (Revenge Trading) न करें।

Intraday Options Buying कब नहीं करनी चाहिए?

अब जब आपने यह समझ लिया है कि ऑप्शंस बाइंग कब करना चाहिए। आपका यह जानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि ऑप्शंस बाइंग कब नहीं करना चाहिए-
  • जब बाज़ार साइडवेज (Sideways) हो: जैसा कि पहले बताया गया है। साइडवेज बाज़ार में टाइम डीके (Theta) बहुत तेजी से प्रीमियम को खाता है।
  • जब कोई स्पष्ट दिशा न हो: अगर आपको चार्ट देखकर कोई दिशा समझ नहीं आ रही है, तो सबसे अच्छा है कि आप ट्रेड न करें।
  • वीकली एक्सपायरी के दिन: जब निफ़्टी और बैंक निफ़्टी एक्सपायरी के दिन, ऑप्शन का प्रीमियम बहुत तेजी से घटता है। अगर आप गलत दिशा में हैं तो पल भर में आपका प्रीमियम शून्य हो सकता है।
  • जब आपके पास स्पष्ट रणनीति न हो: बिना सोचे समझे किया गया कोई भी ट्रेड जुआ होता है।

निष्कर्ष: इंट्राडे में ऑप्शन बाइंग कब करनी चाहिए? इसका सीधा जवाब है। जब मार्केट में तेज़ी (Momentum) हो। जब कोई ब्रेकआउट या ब्रेकडाउन हो, और जब आपके पास एक स्पष्ट, अनुशासित ट्रेडिंग हो। याद रखें, ऑप्शन बाइंग एक बहुत जोखिम भरा काम है। अतः रिस्क मैनेजमेंट जरूर करें। 

इसे सिर्फ तभी करें जब आप डेरिवेटिव मार्केट को अच्छी तरह से समझते हों और अपनी जोखिम लेने की क्षमता (Risk Appetite) के बारे में जानते हों। हमेशा अपनी पूंजी का प्रबंधन करें (Manage Your Capital), स्टॉप लॉस का उपयोग करें और लालच से बचें। शेयर बाज़ार में सफल होने का एकमात्र तरीका है- सीखना, अभ्यास करना और धैर्य रखना। 

उम्मीद है, आपको यह ऑप्शन बाइंग के लिए बेस्ट टाइमिंग, प्रो ट्रेडर्स का छुपा राज़ आर्टिकल पसंद आया होगा। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आये तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें।

ऑप्शन ट्रेडिंग के बारे में ऐसी ही ज्ञानवर्धक जानकारियां प्राप्त करने के लिए इस साइट को जरूर सब्स्क्राइब करें। क्या आप भी ऑप्शन ट्रेडिंग करते हैं, अपने अनुभव कमेंट करके जरूर बताएं। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ