Elliott Wave theory: शेयर मार्केट से पैसे कमाने का जादुई तरीका!

Elliott Wave theory: इलियट वेव थ्योरी शेयर मार्केट ट्रेंड पहचानने की एक शक्तिशाली टेक्निक।
शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने वाले हर व्यक्ति का सपना होता है कि वह सही समय पर शेयरों को buy & sell करके अधिकतम प्रॉफिट कमाए। इलियट वेव थ्योरी (Elliott Wave Theory) मार्केट ट्रेंड को समझने और भविष्यवाणी करने में मदद करता है। आइए जानते हैं-इलियट वेव थ्योरी शेयर मार्केट से पैसे कमाने का जादुई तरीका!  Elliott Wave theory kya hai in hindi.  
                                                                                   
Elliott Wave theory kya hai
शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश और ट्रेडिंग सिर्फ किस्मत का खेल नहीं है। यह एक ऐसा मैदान है जहाँ ज्ञान, अनुशासन और सही रणनीति के आधार पर ही सफलता हासिल की जा सकती है।

अगर आप इलियट वेव थ्योरी में एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको विभिन्न बिजनेस टीवी चैनल्स पर स्टॉक मार्केट पर अपनी राय रखने वाले एक्सपर्ट राकेश बंसल द्वारा लिखित प्रॉफिटेबल इलियट वेव ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीज बुक जरूर पढ़नी चाहिए। 

Elliott Wave theory क्या है? 

इस सिद्धांत की खोज राल्फ नेल्सन इलियट ने 1930 के दशक में की थी। उन्होंने पाया कि शेयर मार्केट में प्राइस एक विशेष पैटर्न में ऊपर-नीचे होते हैं। जिसे वे "वेव्स" या तरंगों के रूप में परिभाषित करते हैं। उन्होंने इन पैटर्न्स को एक संरचना दी और 1938 में अपनी पुस्तक The Wave Principle में इसे विस्तार से समझाया

इलियट वेव थ्योरी, टेक्निकल एनालिसिस का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है। यह टेक्निकल एनालिसिस का एक तरीका है, जिसका उपयोग शेयरों का टेक्निकल एनालिसिस करने में किया जाता है। इसके द्वारा ट्रेडर्स के मनोविज्ञान को पहचानकर शेयर ट्रेडिंग की जाती है। Stocks को किस प्राइस लेवल पर खरीदना और बेचना है। 

एलियट वेव थ्योरी को पहचान कर, स्टॉक ट्रेडर और इन्वेस्टर, शेयर खरीदने और बेचने के निर्णय लेते हैं। शेयर मार्केट के ज्यादातर एक्सपर्ट ट्रेडर और निवेशक Elliott Wave Theory का उपयोग करते हैं। आप भी इसे बहुत ही आसानी से सीख सकते है। 

ये भी जानें- 
राल्फ नेल्सन इलियट ने फ्रेक्टल तरंगो को देखा और उनके व्यवहार को समझा और फिर इनका एनालिसिस किया।उनका का मानना है कि ज्यादातर ट्रेडर की साईंकोलोजी एक सामूहिक मनोविज्ञान, ऊपर और नीचे  की तरफ एक समय में करीब-करीब एक जैसा व्यवहार करते हैं।

इसलिए यह व्यवहार एक रिपीटिटिव  पैटर्न में दिखाई देता है। जैसे कि लोग, कभी तीव्र कभी मंद तथा कभी आशावाद और कभी निराशावाद के बीच झूलते रहते हैं। जिसकी वजह से Share market में कभी तीव्र बिकवाली आती है और कभी तीव्र खरीददारी है? इन्हे Elliott Wave (तरंग) अपवर्ड और डाउनवर्ड स्विंग कहते थे।

Elliot wave theory में ऐसा माना जाता है कि यदि आप प्राइस में बार-बार दोहराने (repeating) वाले पैटर्न को सही-सही पहचान लेते हैं। तो आप सही-सही अनुमान लगा सकते हैं कि stocks के प्राइस किधर जायँगे या नहीं जायेंगे। यही कारण है जिसकी वजह से Stock trader इलियट वेव थ्योरी की तरफ इतना आकर्षित होते हैं। 

Elliott Wave theory, ट्रेडर्स को उन सटीक बिंदुओं की पहचान करना बताता है। जहाँ से शेयरो के प्राइस में ट्रेंड रिवर्सल की संभावना बहुत ज्यादा होती है। दूसरे शब्दों में इलियट वेव थ्योरी एक ऐसी प्रणाली है। जो ट्रेडर्स को प्राइस का टॉप और बॉटम लेवल पहचानना सिखाती है। 

Elliott Wave Theory के प्रकार 

वेव्स मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं, इम्पल्स वेव और करेक्टिव वेव्स। इलियट वेव थ्योरी के हिसाब से मार्केट का ट्रेंड 5-3 रेश्यो पर काम करता है। 5-3 रेश्यो का मतलब है कि पांच वेव्स ऐसी होंगी जो मार्केट को ऊपर बढ़ाने में मददगार होगी। तीन वेव्स ऐसी होंगी जो मार्केट में करेक्शन लेकर आएंगी। ये वेव्स जो काम करेंगी, इनके अंदर भी छोटी-छोटी वेव्स होंगी। वो भी यही काम इसी रेश्यो के हिसाब से करेंगी।
                                                               
Fractals
गूगल के साभार 
फ्रैक्टल्स ऐसी संरचनाएं होती हैं, जिन्हे छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जा सकता है। जिनमे से प्रत्येक की एक सम्पूर्ण समान प्रति होती है। गणितज्ञ इन्हे स्व-समानता (self-similarity) कहना पसंद करते हैं। पेड़ों की ब्रांच, पत्तियाँ आदि। 

इलियट वेव थ्योरी की एक महत्वपूर्ण खासियत यही है कि ये फ्रैक्टल्स की तरह है। इसमें वेव्स को आगे छोटी से छोटी वेव्स में विभाजित किया जा सकता है।फ्रेक्टल वेव्स में छोटे-छोटे पैटर्न होते हैं जो हमेशा अपने आप को दोहराते रहते हैं। Elliott Wave Theory में इसे, आसानी से समझने के लिए एक सीरीज में बताया।

Grand Supercycle (बहु-शताब्दी)
Supercycle (लगभग 40-70 वर्ष)
Cycle (एक वर्ष से कई वर्षों तक)
Primary (कुछ महीनों से कुछ वर्षों तक)
Intermediate (सप्ताह से महीने)
Minor (सप्ताह)
Minute (दिन)
Minuette (घंटे)
Sub-Minuette (मिनट)

लॉन्ग टर्म में एक ग्रैंड सुपरसाइकिल, सुपरसाइकिल वेव्स से बनता है। जो साइकिल वेव्स  बनी होती हैं। इसी तरह साइकिल वेव्स, इंटरमीडिएट तरंगों बनी होती हैं। इंटरमीडिएट वेव्स, माइनर (minor) वेव्स से बनती हैं। माइनर वेव्स, मिनट (minute) वेव्स से बनती हैं। मिनट वेव्स, मिनुइटे (minuette) वेव्स से बनती हैं। जो कि सुब-मिनुइटे (sub-minuette) वेव्स से बनी होती है। 

लेकिन चार्ट पर वेव्स स्पस्ट नहीं होती हैं, वेव्स को लेबल करना मुश्किल होता है। लेकिन आप जितना ज्यादा चार्ट पर प्रक्टिस करेंगे। उतना अधिक वेव्स को पहचानने में सक्षम होंगे। आपको उतना अधिक अच्छा परिणाम मिलेगा।

ये भी जानें- 

Impulse Wave

Elliott Wave theory के अनुसार कोई भी अपट्रेंड, पाँच से ज्यादा वेव का नहीं होता है। पहली पाँच वेव्स के पैटर्न को इम्पल्स वेव् (Impulse Wave) कहा जाता है। आखिरी तीन वेव के पैटर्न को करेक्टिव वेव (corrective waves) कहा जाता है।
Elliott Wave
गूगल से साभार 

इस पैटर्न में वेव्स 1, 3, 5 मोटिव वेव होती हैं, यानि ये मार्केट के ट्रेंड के साथ चलती हैं। वेव 2 और 4  करेक्टिव होती हैं। इलियट वेव थ्योरी को करेंसी, कमोडिटी और शेयर मार्केट पर समान रूप से लागू किया जा सकता है। 

पॉँचों वेव्स का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है- 
  1. Wave: माना शेयर मार्केट अपट्रेंड में है, लेकिन यह अपेक्षाकृत कम लोगों के कारण होता है। कई कारणों से ( वास्तविक या काल्पनिक) लोगों को लगता है कि शेयरों के प्राइस कम हैं इसलिए खरीदने का सही समय है। इस वजह से कीमतें बढ़ जाती है।
  2. Wave: इस बिंदु पर जिन  लोगों ने पहली लहर (वेव) में शेयर खरीदे थे। वे शेयरों को ओवरवैल्यू मानने लगते हैं और प्रॉफिट बुक कर लेते हैं। इससे शेयर नीचे आता है, लेकिन वह पहले लो प्राइस को टच नहीं करता है क्योंकि उससे पहले ही लोग उसमें दोबारा सौदे करने लगते हैं।
  3. Wave: तीसरी लहर आमतौर पर लम्बी और सबसे मजबूत होती है। इससे शेयर की तरफ आम पब्लिक (रिटेल ट्रेडर्स) का ध्यान जाता है। अधिकाँश लोग शेयर के बारे में पता लगाते है और उसे खरीदना चाहते हैं। इससे शेयर की कीमत ऊँची और ऊँची होती जाती है। यह वेव आमतौर पर wave 1- के हाई लेवल को पार कर जाती है।
  4. wave: चौथी लहर में,जिन लोगों ने शेयरों को पहले से होल्ड किया हुआ है। वो प्रॉफिट बुक करते है क्योंकि शेयर को फिर से ओवरवैल्यू माना जाता है। इससे वेव कमजोर हो जाती है लेकिन अधिकाँश लोगों का नजरिया अभी भी शेयर पर बुलिश होता है। ऐसे लोग डिप्स पर शेयर खरीदने की प्रतीक्षा में रहते हैं।
  5. Wave: पाँचवीं लहर ही वह बिंदु है, जब लोग शेयर को खरीदने के लिए टूट पड़ते हैं। उनमे से ज्यादातर लोग हिस्टीरिया से प्रेरित होते हैं। ट्रडर्स और इन्वेस्टर्स हास्यास्पद कारणों की वजह से शेयर को खरीदने लगते हैं। जैसे कि, पहले से बहुत ज्यादा बढ़े (ओवरप्राइस) हुए शेयर के लिए भी यह कहना कि यह शेयर कई गुना बढ़ जायेगा।
ऐसा तब होता है, जब शेयर की कीमत सबसे (overpriced) ज्यादा होती है। इसी स्थिती में ही Stock market एक्सपर्ट और बड़े-बड़े फंड्स मैनेजर्स शेयर को शार्ट सेल करना शुरू कर देते हैं। क्योंकि उनको पता होता है कि यह प्रॉफिट बुकिंग का सही समय है। 

Impulse wave का फैलना: Elliott Wave Theory के बारे में एक बात जो आपको जरूर पता होनी चाहिए। वह यह है कि इम्पल्स वेव (1, 2 और 3) में एक वेव हमेशा बहुत ज्यादा बड़ी होती है। यानि कि इन तीनों लहरों में एक लहर ऐसी होगी। जो बाकी दो लहरों की परवाह किये बिना बहुत ज्यादा फैलेगी। Elliott Wave Theory अनुसार आमतौर पर यह पाँचवीं लहर होती है, जो बहुत ज्यादा फैल जाती है।

Corrective Wave

इलियट वेव थ्योरी के अनुसार फाइव इम्पल्स वेव्स में जो ट्रेंड होता है। उसमें करेक्शन के लिए जो वेव्स होती हैं। उन्हें Corrective Wave कहा जाता है। उपर्युक्त इमेज में जो a, b, c वेव्स दिखाई गई हैं वे करेक्टिव वेव्स हैं।

इस आर्टिकल में इस थ्योरी को बुल मार्केट का उदाहरण देकर समझाया जा रहा है।इसका  मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि Elliott Wave Theory बेयर मार्केट पर लागू नही होती। यह थ्योरी बेयर मार्केट में भी उतना अच्छा परिणाम देती है जितना कि बुल मार्केट में। यानि कि इलियट वेव थ्योरी Bull & Bear मार्केट में एक समान रूप से एफ़ेक्टिव रहती है।
 

Corrective Wave Patterns के प्रकार 

R N इलियट ने यूँ तो 21 प्रकार की करेक्टिव वेव्स पैटर्न का वर्णन किया है। लेकिन इस आर्टिकल में केवल तीन बेसिक पैटर्न के बारे में बताया गया है। जो निम्नलिखित हैं-

1. ज़िग-ज़ैग फार्मेशन  

इसमें वर्तमान ट्रेंड की विपरीत दिशा में बहुत तेज मूव्स आते है। 
                                                                      
Zig-Zag
गूगल के साभार 
इसमें वेव b, की लम्बाई, वेव a और c की तुलना में कम होटी है। ज़िग-जेग पैटर्न करेक्शन के दौरान दो या तीन बार रिपीट हो सकते है। बाकी सभी इलियट वेव्स की ही तरह ज़िग-जेग वेव्स को भी 5-वेव्स पैटर्न्स में विभाजित किया जा सकता है।

2. फ्लेट इलियट वेव फॉर्मेशन

सिंपल साइडवे करेक्टिव वेव्स को फ्लेट वेव फार्मेशन (Flat Elliott wave formation)  कहा जाता है। सामान्यतः सभी फ्लैट वेव्स की लम्बाई करीब-करीब  समान होती है। यानि की जो वेव प्राइस को ऊपर ले जा रही है और जिस वेव की वजह से प्राइस नीचे आ रहा है। उन दोनों ही वेव्स की लम्बाई समान होती है। जिसके कारण प्राइस एक समान बने रहते हैं।

3. ट्रायंगल इलियट वेव फार्मेशन

Triangle Elliott wave formation करेक्टिव वेव पैटर्न हैं। ये converging or diverging trend lines.होती हैं। ये ट्रायंगल 5 वेव्स द्वारा बने होते हैं। ये साइडवे ट्रेंड के विपरीत होते हैं। ये ट्रायंगल symmetrical, descending, ascending  में से कोई भी हो सकते है।

ये भी जानें-

Elliott Wave theory के तीन नियम

स्टॉक ट्रेडिंग में इलियट वेव थ्योरी यूज़ करने की कुंजी यह है कि आप सही वेव्स को पहचानना सीखें। यदि आप वेव्स को सही-सही पहचान लेते हैं तो आप ट्रेडिंग में उनका सही उपयोग भी कर पायगे। आप जान पाएंगे कि आपको लॉन्ग पोजीशन लेनी है या शार्ट सेल करना है। जिससे आप अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। 

इससे पहले कि आप Elliott Wave Theory को अपनी शेयर ट्रेडिंग में शामिल करें। आप को निम्नलिखित तीन मुख्य नियमों पर ध्यान देना चाहिए। इन्हे अनिवार्य रूप से मानना चाहिए। यदि आप इलियट वेव्स को सही-सही लेबल नहीं कर पाए। तो यह आपके अकाउंट बैलेंस के लिए घातक होगा। यानि आपको काफी नुकसान हो सकता है। 
  1. वेव नंबर 3 कभी भी सबसे छोटी इम्पल्स वेव नहीं हो सकती है।
  2. वेव 2 कभी भी वेव 1 के लो प्राइस को टच नहीं कर सकती है। 
  3. वेव 4 कभी भी, वेव 1 के हाई हाई को टच नहीं करती, हमेशा उससे ऊपर ही रहती है।

इलियट वेव ट्रेडिंग दिशानिर्देश ये ऐसे दिशानिर्देश हैं जो वेव्स को सही तरीके से पहचानने में मदद करते हैं। लेकिन ऊपर दिए गए तीन नियमों के विपरीत इन्हे तोड़ा जा सकता है।
  1. कभी-कभी वेव 5, वेव 3 के अंत से आगे नहीं बढ़ता है। इसे ट्रंकेशन कहते हैं। 
  2. वेव 3 बहुत लम्बी, तेज और विस्तारित होती है। 
  3. वेव 2 और 4 अक्सर फिबोनाक्की रिट्रेसमेंट लेवल से उछलते हैं।

Elliott Wave Theory के अनुसार शेयर ट्रेडिंग में कैसे करें?

इलियट वेव थ्योरी के अनुसार ट्रेडिंग करने से पहले, आपको वेव्स को गिन लेना चाहिए। इसका मतलब यह है कि आप वेव्स को यह देखने के लिए लेबल करेंगे। कि वे इलियट वेव थ्योरी के अनुसार हैं या नहीं फिर आपको फ्यूचर प्राइस का अनुमान लगाना चाहिए। यदि आप इलियट वेव के अनुसार पोजीशन लेना चाह रहे हैं, तो आपको अपना एंट्री पॉइंट और स्टॉप लॉस पहले ही सेट कर लेना चाहिए।

जब आप वेव्स को गिनना शुरू करते हैं, आप देखते हैं कि प्राइस नीचे आ गए है और उन्होंने बॉटम बना लिया है। अब एक नई चाल शुरू हो गई है। तब आपको अपने इलियट वेव थ्योरी का उपयोग करते हुए। इस चाल को वेव 1 तथा रिट्रेसमेंट को वेव 2 के रूप में लेबल करते हैं।

अब आपको एंट्री पॉइंट खजने के लिए तीन मुख्य नियमों और दिशानिर्देशों का ध्यान रखना चाहिए। आपको 50% फिबोनाकी  रिट्रेसमेंट के हिसाब से तीसरी वेव के शुरूआत में स्टॉक्स खरीदने चाहिए क्योंकि यही स्ट्रांग बाइंग सिग्नल है। 

आपको एक स्मार्ट शेयर ट्रेडर की तरह स्टॉप लॉस  का भी ध्यान  रखना चाहिए। आपको मुख्य नियम 2 के हिसाब से वेव 1 के हाई प्राइस के नीचे स्टॉप लॉस लगाना चाहिए। यदि प्राइस रिट्रेस होकर वेव 1 के हाई प्राइस के नीचे चला जाता है तो इसका मतलब आपने वेव को गलत गिना है।

दूसरा सिनेरियो, यदि आप डाउनट्रेंड में वेव को गिनना शुरू करते हैं और आप देखते है कि a, b और c करेक्टिव वेव्स चल रही हैं। क्या आपको एक फ्लेट फार्मेशन बनता हुआ दिखाई दे रहा है। यदि हाँ तो इसका मतलब है कि वेव c समाप्त होने के बाद, नयी इम्पल्स वेव शुरू हो सकती है।

अब आपको अपनी इलियट वेव स्किल पर विश्वास करते हुए, शार्ट सेल की पोजीशन इस आशा पर बनानी चाहिए कि आप नई इम्पल्स वेव को पकड़कर प्रॉफिट बुक कर लेगें। इसके लिए आपको वेव 4 के शुरुआत के पॉइंट का स्टॉप लॉस रखना चाहिए। इस तरह आप इलियट वेव थ्योरी का यूज़ करके शेयर मार्केट से काफी बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं। 

सारांश: Elliott wave theory में प्रत्येक वेव को फ्रैक्टल्स की तरह छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जा सकता है। एक ट्रेंडिंग मार्केट 5-3 वेव पैटर्न से चलता है। पहली पाँच वेव्स को इम्पल्स वेव कहा जाता है। तीन इम्पल्स वेव्स में से एक हमेशा बड़ी होती है, ज्यादातर तीसरी वेव बड़ी होती है।

दूसरे 3 वेव्स पैटर्न को करेक्टिव वेव पैटर्न कहा जाता है। करेक्शन को ट्रेक करने के लिए वेव्स को संख्याओं के बजाय a, b ,c का नाम दिया जाता है। वेव्स 1, 3 और 5, छोटे 5-वेव इम्पल्स पैटर्न  का हिस्सा होते हैं। जबकि वेव्स 2 और 4 छोटे करेक्टिव पैटर्न से बने होते हैं।

करेक्टिव पैटर्न 21 प्रकार के हैं, लेकिन केवल तीन ही बहुत ही सरल और आसानी से समझने वाले पैटर्न हैं। इसलिए इस आर्टिकल में इस तीन ज़िग-ज़ैग, फ्लेट और ट्रायंगल पैटर्न के बारे में बताया गया है।

उम्मीद है, अब आप इलियट वेव थ्योरी शेयर मार्केट से पैसे कमाने का जादुई तरीका! के बारे में अच्छे से जान गए होंगे। इस आर्टिकल में बताया गया है कि Elliott wave theory क्या है? अगर आपको  इलियट वेव थ्योरी क्या है? अगर आपको यह लेख ज्ञानवर्धक लगा हो तो इस साइट को जरूर सब्स्क्राइब करें। अगर आप  में आर्टिकल से सम्बन्धित कोई सवाल एयर सुझाव हो तो प्लीज कमेंट करके जरूर बताएं। 

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ