Option trading क्या है?
क्या आपने कभी अपने दोस्तों से या सोशल मीडिया पर सुना है कि किसी ने सिर्फ 10,000 रूपये लगाकर एक ही दिन में 50,000 रूपये कमा लिए? किसी ने अपने लाखों के पोर्टफोलियो को मार्केट की गिरावट से बचा लिया? संभव है कि वे "ऑप्शंस ट्रेडिंग" की बात कर रहे हों।
Options trading शब्द सुनने में जितना भारी और जटिल लगता है। असल में इसका मूल सिद्धांत उतना ही सरल है। ऑप्शंस ट्रेडिंग में अपार संभावनाएं तो हैं लेकिन इसमें जोखिम भी बहुत अधिक है। यह एक दोधारी तलवार की तरह है इसलिए बिना पूरी जानकारी के इसमें कूदना आपकी फाइनेंशियल हेल्थ के लिए हानिकारक हो सकता है।
ऑप्शन ट्रेडिंग शेयर मार्केट का एक ऐसा हिस्सा है। जिसमें आपको किसी शेयर या इंडेक्स को खरीदने या बेचने का “अधिकार” मिलता है, लेकिन कोई बाध्यता नहीं होती। यानी आप एक Contract (अनुबंध) खरीदते हैं जो आपको एक्सपायरी डेट (expire date) तक उस शेयर को एक तय दाम पर खरीदने या बेचने का अधिकार देता है।
उदाहरणस्वरूप मान लीजिये, आप जयपुर में एक प्रॉपर्टी डीलर हैं। आपको उस जमीन का टुकड़ा बहुत पसंद आता है। जिसकी आज की कीमत 10 लाख रूपये है। आपको पूरा यकीन है कि अगले 2 महीनों में सरकार की एक नई योजना के कारण इस जमीन की कीमत बढ़कर 15 लाख रूपये हो जाएगी।
लेकिन आपके पास अभी 10 लाख रूपये नहीं हैं। आप जमीन के मालिक के पास जाते हैं और एक सौदा करते हैं।आप मालिक को 50,000 रूपये की एक टोकन मनी (बयाना) देते हैं और एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करते हैं। इस कॉन्ट्रैक्ट में निम्नलिखित पॉइंट्स लिखे होते हैं-
- आप इस जमीन को अगले 2 महीने के अंदर 10 लाख रुपयों में खरीदने का अधिकार रखते हैं।
- यह आपकी बाध्यता नहीं है मतलब, अगर 2 महीने बाद आपका मन बदल जाए, तो आपको जमीन खरीदने के लिए कोई मजबूर नहीं कर सकता।
- अगर आप जमीन नहीं खरीदते हैं, तो आपके दिए हुए 50,000 रूपये मालिक के हो जाएंगे जो आपको कभी भी वापस नहीं मिलेंगे।
स्थिति 1: आपकी भविष्यवाणी सही निकली दो महीने बाद, जमीन की कीमत सच में 15 लाख रूपये हो जाती है। अब आप अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं। आप मालिक को कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार 10 लाख रूपये देते हैं और जमीन खरीद लेते हैं। तुरंत बाद आप उस जमीन को मार्केट में 15 लाख रुपयों में बेच देते हैं।
आपका प्रॉफिट = ₹15,00,000 (बिक्री मूल्य) - ₹10,00,000 (खरीद मूल्य) - ₹50,000 (टोकन मनी) = ₹4,50,000 का शुद्ध लाभ। इस तरह आपने सिर्फ 50,000 रूपये के शुरुआती इन्वेस्टमेंट पर 4.5 लाख रूपये कमा लिए!
स्थिति 2: आपकी भविष्यवाणी गलत निकली मान लीजिए, सरकारी योजना रद्द हो गई और जमीन की कीमत घटकर 8 लाख रूपये रह जाती है। अब, क्या आप 10 लाख रूपये में वो जमीन खरीदना चाहेंगे। जिसकी कीमत सिर्फ 8 लाख रूपये है? बिल्कुल नहीं!
इस स्थिति में, आप अपने अधिकार का प्रयोग नहीं करेंगे और कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त (xpire) हो जाने देंगे। आपका अधिकतम नुकसान सिर्फ 50,000 रुपयों का होगा जो आपने टोकन मनी के रूप में दिए थे। इस तरह आपने खुद को 2 लाख रूपये के बड़े नुकसान से बचा लिया।
ऑप्शंस ट्रेडिंग में इस्तेमाल होने वाले जरूरी शब्द (Basic Terms in Options Trading)
शुरुआत करने से पहले कुछ ऑप्शन ट्रेडिंग की बेसिक टर्म्स समझना बेहद जरूरी है-
- जमीन = अंडरलाइंग एसेट (जैसे Reliance का शेयर, Nifty 50 इंडेक्स और Bank Nifty आदि)
- टोकन मनी = प्रीमियम (ऑप्शन खरीदने की लागत)
- ₹10 लाख की तय कीमत = स्ट्राइक प्राइस (जिस कीमत पर खरीदने या बेचने का अधिकार)
- 2 महीने का समय = एक्सपायरी डेट (कॉन्ट्रैक्ट की वैधता)
- खरीदने का अधिकार = कॉल ऑप्शन (Call Option)
अब जब आप ऑप्शन ट्रेडिंग की मूल अवधारणा समझ गए हैं। आइए इसके कुछ टेक्निकल टर्म्स को भी सरल भाषा में जानते हैं जो आपको हर जगह सुनाई देंगे। Options trading की महत्वपूर्ण टर्म्स निम्नलिखित हैं-
- अंडरलाइंग एसेट (Underlying Asset): यह वह मुख्य चीज़ है, जिस पर ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट आधारित होता है। यह कोई स्टॉक (जैसे TCS, HDFC Bank), कोई इंडेक्स (जैसे Nifty 50, Bank Nifty), या कमोडिटी (जैसे सोना, चांदी) हो सकता है।
- प्रीमियम (Premium): यह वह कीमत है जो आप ऑप्शन बाइंग के लिए चुकाते हैं। यह नॉन-रिफंडेबल होता है। ठीक वैसे ही जैसे हमारी कहानी में 50,000 रूपये की टोकन मनी थी।
- स्ट्राइक प्राइस (Strike Price): यह वह पहले से तय कीमत है, जिस पर आप एक्सपायरी डेट तक अंडरलाइंग एसेट को खरीदने या बेचने का अधिकार प्राप्त करते हैं।
- एक्सपायरी डेट (Expiry Date): यह वह तारीख होती है, जब आपका ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट समाप्त हो जाता है। भारत में, स्टॉक ऑप्शंस की मंथली एक्सपायरी महीने के आखिरी गुरुवार को होती है। जबकि इंडेक्स ऑप्शंस (Nifty, Bank Nifty) में वीकली और मंथली दोनों एक्सपायरी होती हैं।
- लॉट साइज (Lot Size): आप ऑप्शंस में एक-एक शेयर नहीं खरीद सकते। ये हमेशा एक निश्चित समूह में आते हैं, जिसे 'लॉट' कहते हैं। उदाहरण के लिए, Nifty 50 का लॉट साइज 75 यूनिट्स का है। इसका मतलब आपको कम से कम 50 यूनिट्स के लिए प्रीमियम देना होगा।
ऑप्शन के प्रकार (Types of Options)
ऑप्शन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
- Call options
- Put options
1. कॉल ऑप्शन (Call Option - CE)
- कॉल ऑप्शन इसके खरीदार को अंडरलाइंग स्टॉक को एक्सपायरी डेट से पहले स्ट्राइक प्राइस पर खरीदने का अधिकार देता है लेकिन दायित्व नहीं। यदि अंडरलाइंग एसेट का मार्केट प्राइस उसके स्ट्राइक प्राइस से भुगतान किए गए प्रीमियम से अधिक हो जाता है, तो ऑप्शन प्रॉफिटेबल हो जाता है।
- जब ट्रेडर्स को लगता है कि किसी स्टॉक या इंडेक्स का प्राइस बढ़ेगा (तेजी का नजरिया)। तब आपको कॉल ऑप्शन खरीदना चाहिए।
- ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट आपको क्या अधिकार देता है? यह आपको एक्सपायरी डेट तक एक निश्चित स्ट्राइक प्राइस पर अंडरलाइंग स्टॉक को खरीदने का अधिकार देता है, बाध्यता नहीं। इसके लिए आपको वापस नहीं होने वाले प्रीमियम का भुगतान करना पड़ेगा।
- उदाहरण: अगर आपको लगता है कि Nifty 25,000 से बढ़कर 25,500 तक जाएगा, तो आपको Nifty 50 का कॉल ऑप्शन खरीदना चाहिए।
2. पुट ऑप्शन (Put Option - PE)
- पुट ऑप्शन इसके खरीदार को अंडरलाइंग स्टॉक को एक्सपायरी डेट से पहले स्ट्राइक प्राइस पर बेचने का अधिकार देता है लेकिन दायित्व नहीं। यदि अंडरलाइंग एसेट का मार्केट प्राइस उसके स्ट्राइक प्राइस से भुगतान किए गए प्रीमियम से कम हो जाता है तो ऑप्शन प्रॉफिटेबल हो जाता है।
- ट्रेडर्स पुट ऑप्शन तब खरीदते हैं? जब आपको लगता है कि किसी स्टॉक या इंडेक्स की कीमत गिरेगी। यानी मंदी का नजरिया होने पर आपको पुट ऑप्शन खरीदना चाहिए।
- यह आपको अधिकार देता है कि आपको एक्सपायरी डेट तक एक निश्चित स्ट्राइक प्राइस पर अंडरलाइंग स्टॉक को बेचने का अधिकार है, बाध्यता नहीं।
- उदाहरण: अगर आपको लगता है कि Bank Nifty का प्राइस 56,000 से गिरकर 55,400 पर आ सकता है। ऐसी स्थिती में आपकोको Bank Nifty का "पुट ऑप्शन" खरीदना चाहिए।
ऑप्शन का प्रीमियम Options Greeks पर निर्भर करता है?
- बिना ज्ञान के कूद पड़ना: ऑप्शन ट्रेडिंग जुआ नहीं है। पहले सीखें, पेपर ट्रेडिंग करें और फिर असली ट्रेडिंग में पैसा लगाएं।
- हीरो या जीरो ट्रेड: कभी भी अपना सारा पैसा एक ही ट्रेड में न लगाएं। यह सोचकर कि यह आपको रातों-रात अमीर बना देगा। यह आपको रातों-रात कंगाल भी बना सकता है।
- ऑप्शन सेलिंग (Option Selling): शुरुआती लोगों को हमेशा ऑप्शन बाइंग (Option Buying) से शुरू करना चाहिए, जिसमें नुकसान सीमित होता है। ऑप्शन सेलिंग में नुकसान असीमित हो सकता है और यह अनुभवी ट्रेडर्स के लिए है।
- सही स्ट्राइक प्राइस न चुनना: बहुत दूर का (Deep Out-of-the-Money) ऑप्शन सस्ता तो मिलता है, लेकिन उसके प्रॉफिट में आने की संभावना बहुत कम होती है क्योंकि टाइम डीके उसे जल्दी खत्म कर देता है।
- Risk Management न करना: हमेशा तय करें कि आप एक ट्रेड में कितना अधिकतम नुकसान झेल सकते हैं। उसके हिसाब से प्रत्येक ट्रेड में हमेशा स्टॉप-लॉस (Stop-loss) निर्धारित करें। अगर आपका ट्रेड प्रॉफिट में है तो उसमें ट्रेलिंग स्टॉपलॉस लगाएं।
भारत में ऑप्शंस ट्रेडिंग कैसे शुरू करें?
- डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खोलें: किसी अच्छे डिस्काउंट ब्रोकर (जैसे Zerodha, Upstox, Angel One) के पास अपना अकाउंट खुलवाएं।
- F&O सेगमेंट एक्टिवेट करें: अकाउंट खोलते समय या बाद में आपको फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (F&O) सेगमेंट को चालू करवाना होगा। इसके लिए ब्रोकर आपसे आपकी इनकम का प्रूफ (जैसे ITR, बैंक स्टेटमेंट) मांग सकता है।
- फंड्स डालें: अपने ट्रेडिंग अकाउंट में उतना ही पैसा डालें। जितना आप पैसा खोने का जोखिम उठा सकते हैं। शुरुआत में ₹10,000 - 15,000 रुपयों से ऑप्शन ट्रेडिंग शुरू करें।
- सीखना शुरू करें: असली पैसा लगाने से पहले, प्रक्टिस के लिए वर्चुअल ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स पर पेपर ट्रेडिंग जरूर करें। इससे आपको बिना किसी जोखिम के अभ्यास करने का मौका मिलेगा।
- पहला ट्रेड लें: जब आप सहज महसूस करें, तो Nifty 50 या Bank Nifty जैसे लिक्विड इंडेक्स में एक लॉट से अपना पहला ट्रेड लें। स्टॉक्स के बजाय इंडेक्स ऑप्शंस से शुरुआत करना बेहतर होता है क्योंकि उनमें हेरफेर की संभावना कम होती है।
- हेजिंग (Hedging): अपने मौजूदा इन्वेस्टमेंट को मार्केट की गिरावट से बचाने के लिए (बीमा की तरह) हैज करने के लिए हेजिंग स्ट्रेटेजी का यूज किया जाता है।
- स्पेक्युलेशन (Speculation): मार्केट ट्रेंड का सही अनुमान लगाकर कम पूंजी में अधिक प्रॉफिट कमाने के लिए (जैसा हमने उदाहरणों में देखा) ऑप्शंस कॉन्ट्रेक्ट का उपयोग करना चाहिए।
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