Short Squeeze vs short covering: एफ एंड ओ में शार्ट स्क्वीज़ और शार्ट कवरिंग क्यों होता है?
शेयर मार्केट में "शॉर्ट कवरिंग" और "शॉर्ट स्क्वीज़" शॉर्ट पोजीशन वाली स्थिति का वर्णन करने के लिए अलग-अलग Terms हैं। शॉर्ट स्क्वीज़ एक ऐसी स्थिति है, जिसमें किसी स्टॉक के प्राइस में ज्यादा शार्ट सेलिंग की पोजीशन बनने की वजह से तेजी से वृद्धि होती है।
जिससे स्टॉक की मांग बढ़ जाती है, जिससे शॉर्ट सेलर्स पर अपनी पोजीशन बंद करने का दबाव बढ़ जाता है। इसके विपरीत, शॉर्ट कवरिंग में किसी ओपन शॉर्ट पोजीशन को बंद करने के लिए सिक्योरिटी को वापस खरीदना शामिल है। आइए विस्तार से जानते हैं- शार्ट स्क्वीज़ और शार्ट कवरिंग में क्या अंतर है? Short Squeeze vs short covering in Hindi.
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शेयर बाजार में कई बार ऐसी स्थितियाँ आती हैं, जो इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होती हैं। दो ऐसे ही महत्वपूर्ण कॉन्सेप्ट हैं- ये दोनों शब्द अक्सर एक साथ सुने जाते हैं, लेकिन इनका मतलब और प्रभाव अलग-अलग होता है।
- Short Squeeze
- Short Covering।
Short Squeeze क्या होता है?
शार्ट स्क्वीज़ तब होता है, जब किसी कारण से शेयर के प्राइस तेजी से बढ़ने लगते हैं। जिससे शॉर्ट सेलर्स को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। शॉर्ट सेलर्स वे होते हैं, जो उम्मीद करते हैं कि किसी स्टॉक के प्राइस गिरेंगे और वे इसे ऊँचे दाम पर बेचकर बाद में कम दाम पर शेयर को खरीदकर प्रॉफिट कमाएंगें। हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग
लेकिन जब स्टॉक के प्राइस उनकी उम्मीदों के विपरीत तेजी से बढ़ते हैं तो उन्हें मजबूरन अपने पोजीशन्स बंद करनी पड़ती हैं। जिससे stocks price और भी अधिक बढ़ जाते हैं।
Short Squeeze क्यों होता है?
शार्ट सेलर, शेयर के प्राइस गिरने की उम्मीद में शार्ट सेलिंग की पोजीशन बनाते हैं। जब बहुत ज्यादा शार्ट किये गए स्टॉक के प्राइस अप्रत्याशित रूप से बढ़ने लगते हैं। तो शॉर्ट सेलर्स को अपने नुकसान को कम रखने के लिए तेज़ी से अपनी पोजीशन को कवर करना पड़ता है।
शॉर्ट सेलर्स ऐसे शेयर उधार लेते हैं, जिसके बारे में उन्हें लगता है कि प्राइस गिरने के बाद वे उसे खरीद लेंगे। अगर वे सही हैं, तो वे शेयर वापस कर देते हैं। शॉर्ट सेल करने के समय की कीमत और शॉर्ट पोजीशन को बंद करने के लिए शेयर वापस खरीदने के समय की कीमत के बीच का अंतर शार्ट सेलर को प्रॉफिट के रूप में मिलता है।
अगर शेयर के प्राइस गिरने के बजाय बढ़ने लगते हैं, तो शार्ट सेलर्स को ज़्यादा कीमत पर शेयर खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। और अपने द्वारा निर्धारित प्राइस और उसके सेलिंग प्राइस के बीच का अंतर चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
चूंकि शॉर्ट सेलर्स बाय ऑर्डर के साथ अपनी पोजीशन से बाहर निकलते हैं। इसलिए शॉर्ट सेलर्स द्वारा पोजीशन को बंद करने के लिए स्टॉक को खरीदना पड़ता है। जिसकी वजह से stock price बढ़ जाते हैं।
शेयरों की कीमत में लगातार तेज़ी से बढ़ोतरी भी इनके खरीदारों को शेयर की ओर आकर्षित करती है। नए खरीदारों और घबराए हुए शॉर्ट सेलर्स का संयोजन शेयरों की कीमत में तेज़ी से बढ़ोतरी करता है। जो आश्चर्यजनक और अभूतपूर्व हो सकता है। इसी की वजह से Short Squeeze होता है। सेंसेक्स का निर्धारण
Short Covering क्या है?
शॉर्ट कवरिंग एक प्रक्रिया है, जिसमें शॉर्ट सेलर्स अपनी शार्ट पोजीशनों को बंद करने के लिए अपने द्वारा बेचे गए Stocks को वापस खरीदते हैं। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब शॉर्ट सेलर्स को लगता है कि स्टॉक की कीमत उनके अनुमानों के विपरीत जा रही हैं।
अतः उन्हें अपने नुकसान को कम रखने के लिए, अपनी ओपन पोजीशनों को बंद करना पड़ता है। Short Covering हमेशा Short Squeeze का कारण नहीं बनती, लेकिन Short Squeeze के दौरान Short Covering जरूर होती है। शेयर प्राइस कंसॉलिडेशन
शॉर्ट कवरिंग के परिणामस्वरूप ट्रेडर्स को तब लाभ होता है। जब शेयरों को शॉर्ट सेल प्राइस से कम पर वापस खरीदा जाता है। इसके विपरीत नुकसान तब होता है। शेयरों को शॉर्ट सेल प्राइस से अधिक पर वापस खरीदा जाता है।
उदाहरण के लिए, एक ट्रेडर XYZ के 100 शेयर 20 रूपये पर शार्ट सेल करता है। इस राय के आधार पर कि इस शेयर के प्राइस नीचे जाएंगे। अगर XYZ का शेयर 15 रूपये तक गिर जाता है, तो ट्रेडर शॉर्ट पोजीशन को कवर करने के लिए XYZ को 15 रूपये के प्राइस पर वापस खरीदता है। जिससे बिक्री से 500 रूपये का लाभ होता है।
Short Covering कैसे काम करती है?
किसी ओपन शॉर्ट पोजीशन को बंद करने के लिए शॉर्ट कवरिंग ज़रूरी है। शॉर्ट पोजीशन तब फ़ायदेमंद होगी, जब उसे शुरुआती ट्रांज़ैक्शन से कम कीमत पर कवर किया जाए। अगर उसे शुरुआती ट्रांज़ैक्शन से ज़्यादा कीमत पर कवर किया जाए तो ट्रेडर को नुकसान होगा। ऑप्शन ट्रेडिंग के नए नियम
जब किसी शेयर में बहुत ज़्यादा शॉर्ट कवरिंग होती है, तो इसका नतीजा शॉर्ट स्क्वीज़ हो सकता है। जिसमें शॉर्ट सेलर्स को लगातार ज़्यादा कीमतों पर पोजीशन को लिक्विडेट करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। क्योंकि एक्सपायरी भी नजदीक हो सकती है, आदि। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनका नुकसान बहुत ज्यादा बढ़ सकता है।
शार्ट स्क्वीज़ और शार्ट कवरिंग में अंतर
Short Squeeze से शेयर के प्राइस बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं। जिसके कारण शॉर्ट सेलर्स के बीच buying एक्टिविटी में तेज़ी आती है। शेयर के प्राइस में बढ़ोतरी के कारण शॉर्ट सेलर्स अपनी शॉर्ट पोजीशन को बंद करने और अपने नुकसान को बुक करने के लिए इसे वापस खरीदते हैं। स्टोकेस्टिक ऑसिलेटर
मार्केट में शार्ट स्क्वीज़ के कारण शेयरों की कीमत में और वृद्धि होती है। जो अधिक शॉर्ट सेलर्स को अपनी शॉर्ट पोजीशन को कवर करने के लिए मजबूर करती है।
शॉर्ट स्क्वीज़ के विपरीत, Short Covering में ओपन शॉर्ट पोजीशन को कवर करने के लिए स्टॉक को खरीदना होता है। शॉर्ट पोजीशन को बंद करने के लिए, ट्रेडर और निवेशक सिक्योरिटी में उतने ही शेयर खरीदते हैं। जितने उन्होंने शॉर्ट सेल किये थे।
उदाहरण के लिए, एक ट्रेडर 30 रूपये प्रति शेयर पर ABC के 500 शेयर शॉर्ट सेल करता है। उसके बाद ABC के शेयर का प्राइस घटकर 10 रूपये प्रति शेयर पर आ जाता है। ट्रेडर ने 10 रूपये पर ABC के 500 शेयर वापस खरीदकर अपनी शॉर्ट पोजीशन को कवर किया। ट्रेडर को इस पोजीशन में 10,000 रूपये ((30-10)*500) का प्रॉफिट हुआ। ओवरबॉट & ओवरसोल्ड
क्या शार्ट कवरिंग से शेयरों के प्राइस बढ़ते हैं?
शार्ट कवरिंग मार्केट में तेजी का संकेत होती है। क्योंकि इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स शेयरों को वापस खरीदते हैं। जिससे शेयरों की मांग और ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ता है। जिसके परिणामस्वरूप शेयर की कीमत बढ़ती है।
शॉर्ट कवरिंग के बाद क्या होता है?
शॉर्ट कवरिंग में, ट्रेडर्स यह शर्त लगाकर लाभ (या हानि) कमाते हैं कि स्टॉक की कीमतें गिरेंगी। यह परिदृश्य तब उत्पन्न होता है जब ट्रेडर्स ओपन शॉर्ट पोजीशन को बंद करने के लिए स्टॉक खरीदते हैं। यानि वे उन्हीं शेयरों को ऋणदाता को वापस करने के लिए पुनः खरीदते हैं। जिन्हें उन्होंने शार्ट सेल (बेचा) किया था। "द अल्टीमेट डे ट्रेडर"
शॉर्ट स्क्वीज़ को कैसे पहचानें?
शॉर्ट स्क्वीज़ और ब्रेकआउट दोनों में स्टॉक के प्राइस में मजबूत तेजी शामिल होती है। हालाँकि, शॉर्ट स्क्वीज़ में, स्टॉक के प्राइस में बढ़ोतरी शॉर्ट सेलर्स द्वारा अपनी पोजीशन से बाहर निकलने के लिए शेयर खरीदने की वजह से होती है। जबकि ब्रेकआउट इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स द्वारा बड़ी मात्रा में शेयर को खरीदने की वजह से होता है।
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