Elliott Wave Theory: इलियट वेव थ्योरी से ट्रेडिंग में सफलता कैसे पाएं?
Elliott Wave Theory टेक्निकल एनालिसिस करने की एक पद्धति है। जिसे राल्फ नेल्सन इलियट ने 1930 के दशक में विकसित किया था। यह सिद्धांत मानता है कि शेयर और अन्य फाइनेंशियल मार्केटस में कीमतें एक निश्चित पैटर्न में चलती हैं, जिसे वेव्स कहा जाता है। इस सिद्धांत का उपयोग ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स द्वारा शेयर प्राइस का अनुमान लगाने के लिए करते हैं। जानते हैं- इलियट वेव थ्योरी से ट्रेडिंग में सफलता कैसे पाएं? Elliott Wave Theory in Hindi.
अगर आप इंग्लिश में पढ़ना पसंद करते हैं तो आपको शेयर मार्केट के जाने-माने एनालिस्ट राकेश बंसल द्वारा लिखित Profitable Elliott Wave Trading Strategies बुक जरूर पढ़नी चाहिए।
Elliott Wave Theory को समझें
इलियट वेव थ्योरी से आप मार्केट से लगातार इनकम जैनरेट कर सकते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि शेयर बाजार सिर्फ आंकड़ों और खबरों से नहीं चलता? बल्कि इसमें एक खास किस्म की लय, एक पैटर्न और एक साइकोलॉजिकल रिदम होती है? ठीक वैसे ही जैसे समुद्र की लहरें आती-जाती हैं, वैसे ही मार्केट में भी "लहरें" होती हैं।
इन्हीं लहरों की गहराई को समझने के लिए Elliott Wave Theory के सिद्धांत बहुत प्रसिद्ध हैं। इस थ्योरी को जानने और समझने से पहले, एक बार अपनी आंखें बंद करें और कल्पना करें कि बाजार एक विशाल समुद्र है और आप सब ट्रेडर्स और निवेशक उस समुद्र में तैरते रहे हैं।
हर्षद मेहता शेयर मार्केट की तुलना पैसों से भरे गहरे कुँए से करते थे। उनका कहना था कि इन्वेस्टर्स इससे पानी क्षमता के अनुसार बाल्टी या टैंकर भरके नोट निकाल सकते हैं। अब, ज़रा सोचिए, अगर आप इन लहरों को पहले से जान सकें तो आप प्रॉफिटेबल ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी बना सकते हैं।
Ralph Nelson Elliott ने देखा कि शेयर बाजार में कीमतें यूं ही ऊपर-नीचे नहीं होतीं, बल्कि इनमें कुछ दोहराव, कुछ पैटर्न होते हैं। उन्होंने हजारों प्राइस चार्ट्स का अध्ययन किया और पाया कि लोगों की भावनाएं - डर, लालच, आशा इन मूवमेंट्स को दिशा देती हैं। उनका कहना था कि "मार्केट की चाल कोई अराजकता नहीं है, ये तो एक पैटर्न का अनुसरण करती है, बस हमें उसे पढ़ना आना चाहिए।
इलियट वेव थ्योरी की संरचना
राल्फ नेल्सन इलियट का मानना था कि मार्केट मूवमेंट ट्रेडर्स के फियर एंड ग्रीड से प्रभावित होता है। उनके अनुसार सभी शेयरों के प्राइस चार्ट पर कुछ पैटर्न्स बनते हैं जो बार-बार रिपीट होते रहते हैं। इन पैटर्न्स के रिपीट होने का कारण इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स का व्यवहार है जो फियर एंड ग्रीड से प्रभावित होता है।
इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं जैसे आपने 400 रूपये के प्राइस पर टाटा मोटर्स के शेयर खरीदे। जब पहली (1) इम्पल्स वेव के दौरान टाटा मोटर्स का शेयर 450 रूपये पर पहुंचता है तो ट्रेडर्स डर लगने लगेगा कि कहीं इसका प्राइस गिर ना जाये इसलिए वे प्रॉफिट बुक करने लगते हैं। प्रॉफिट बुकिंग के कारण शेयर के प्राइस में दूसरी वेव (2) के दौरान थोड़ी गिरावट आती है। प्राइस 425 के प्राइस के आस-पास आ जाता है, जिसे करेक्टिव वेव कहा जाता है।
जैसे ही टाटा मोटर्स का शेयर प्राइस 425 के आस-पास आता है। ट्रेडर्स उसे खरीदने के लिए टूट पड़ते हैं, जिससे प्राइस हैवी वॉल्यूम के साथ 550 रूपये के ऊपर निकल जाता है। यह तीसरी (3) इम्पल्स Elliott Wave बहुत तेज और सबसे बड़ी होती है। ट्रेडर की रूह कंपा देने वाली सच्ची कहानी
इसके बाद चौथी वेव (4) के रूप में शेयर प्राइस में फिर से करेक्टिव वेव में करेक्शन आता है और प्राइस 550 रूपये से गिरकर 500 के आस-पास आ जाता है। इसके बाद पाँचवी (5) फाइनल इम्पल्स Elliott Wave आती है जो तीसरी वेव से छोटी होती है। इस तरह पाँच वेव्स की Elliott Wave Theory का चक्र पूरा होता है।
इस तरह कुल 5 वेव्स बनती हैं, जिनमें 3 इम्पल्स वेव होती हैं। जिनमें शेयर का प्राइस मुख्य ट्रेंड की तरफ बढ़ता है। 2 करेक्टिव वेवस होती हैं, जिनमें शेयर का प्राइस प्रॉफिट बुकिंग की वजह से थोड़ा गिरता है या मुख्य ट्रेंड की विपरीत दिशा में चलता है। खरीदारी और प्रॉफिट बुकिंग की वजह से शेयर का प्राइस चढ़ता और गिरता रहता है। जिससे Elliott Waves Theory की संरचना बनती है।
Elliott Wave Theory के अनुसार शेयर मार्केट की चाल दो प्रकार की वेव्स में विभाजित होती है-
1. इम्पल्स वेव्स (Impulse Waves): यह मुख्य ट्रेंड को दर्शाती हैं और पांच चरणों में पूरी होती हैं।
- Wave 1, 2, 3, 4 और 5
- इनमें से 1, 3 और 5 "मूवमेंट" वाली होती हैं (जैसे बाजार ऊपर जाए)
- 2 और 4 "करेक्शन" होती हैं, इसमें प्राइस थोड़ा सा नीचे जाता है या प्रॉफिट बुकिंग के कारण थोड़ा ब्रेक लेता है।
Elliott Wave Theory के प्रमुख नियम
- वेव 2 कभी भी वेव 1 की शुरुआत से नीचे नहीं जाती।
- वेव 3 हमेशा सबसे लंबी होती है और कभी भी सबसे छोटी नहीं होती।
- वेव 4 कभी भी वेव 1 के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करती।
Elliott Wave Theory का उपयोग करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करना चाहिए-
- मार्केट ट्रेंड को पहचानें: इम्पल्स और करेक्टिव वेव्स को पहचानना आना चाहिए।
- वेव्स की गिनती करें: वेवस की गिनती करके आप बड़ी आसानी से यह जान पाएंगे कि वेव इम्पल्स है या करेक्टिव।
- फिबोनाची लेवल्स का उपयोग करें: इससे आप शेयर प्राइस के संभावित सपोर्ट एंड रेजिस्टेंस लेवल्स को जान सकते हैं। साथ ही शेयर प्राइस के संभावित रिट्रेसमेंट और एक्सटेंशन का पता लगा सकते हैं।
- ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी बनाएं: ट्रेड लेने से पहले उसके एंट्री और एग्जिट पॉइंट निर्धारित करें।
- 3 वेव सबसे लम्बी और तेज होती है, जबकि 5 वि वेव में ट्रेडिंग वॉल्यूम अक्सर कम होता है।
- Corrective Waves: अक्सर "जिगजैग, फ्लैट या ट्राइएंगल पैटर्न में बनती हैं।
प्रसिद्ध निवेशक राकेश झुनझुनवाला हमेशा कहते थे कि "Trend is Our Friend" अतः कभी भी आपको मार्केट ट्रेंड के खिलाफ पोजीशन नहीं बनानी चाहिए। आप जितना ज्यादा प्रक्टिस और प्राइस चार्ट को ऑब्जर्व करेंगे। उतना ही अच्छी तरह से इलियट वेव थ्योरी को समझ पाएंगे।
Elliott Wave Theory केवल चार्ट पढ़ने का टूल नहीं है, यह एक कला है, मार्केट की नब्ज़ पहचानने की। यह हमें ये नहीं बताता कि मार्केट आज क्या करेगा बल्कि ये सिखाता है कि हम मार्केट के साथ कैसे बहें, उसे समझें और अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी को तर्क और अनुशासन से जोड़ें।
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