स्ट्रैंगल ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी (Strangle Option Trading Strategy) क्या है?

स्ट्रैंगल एक लोकप्रिय ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी है। जिसमें एक अंडरलेइंग एसेट की अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस की कॉल और पुट दोनों को खरीदकर होल्ड किया जाता है। स्ट्रैंगल उन ऑप्शन ट्रेडर्स के लिए सही ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी है, जो सोचते हैं कि मार्केट में एक दिशा में बहुत बड़ा मूव यानि उतार-चढ़ाव होने वाला है। 

लेकिन वे मार्केट की दिशा का अनुमान नहीं लगा पाते है। इसलिए स्ट्रैंगल स्ट्रेटेजी (दोनों साइड पोजीशन लेना) अपनायी जाती है। मार्केट किसी भी दिशा में आगे बढ़े ऑप्शन ट्रेडर्स को प्रॉफिट ही होना चाहिए। आइए जानते हैं- स्ट्रैंगल ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी (Strangle Option Trading Strategy)  क्या है? What is Strangle Option Trading Strategy in Hindi. 

इस स्ट्रेटेजी में मुख्य बात यह है कि एक ऑप्शन में नुकसान होता है और दूसरे ऑप्शन में प्रॉफिट होता है। नुकसान वाले ऑप्शन की भरपाई प्रॉफिट वाले ऑप्शन से हो जाती है। लेकिन यदि अंडरलेइंग एसेट का प्राइस एक दिशा में पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ता है। तो आपको दोनों ऑप्शंस की संयुक्त लागत का नुकसान हो सकता है। एक स्ट्रैंगल केवल तभी लाभदायक होता है। जब अंडरलेइंग एसेट की कीमत में तेजी से बड़ा उतार-चढ़ाव होता है।

                                                                                          
स्ट्रैंगल ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी


यदि आप ऑप्शन ट्रेडिंग के एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको ऑप्शन ट्रेडिंग के साथ-साथ टेक्निकल एनालिसिस करना भी आना चाहिए। शेयर मार्केट से पैसा कामनें की तकनीकें नाम की यह बुक आपको ऑप्शंस ट्रेडिंग के साथ-साथ टेक्निकल एनालिसिस में भी एक्सपर्ट बनाती है। अतः आपको यह बुक जरूर पढ़नी चाहिए।

Strangle Option Trading Strategy क्या है? 

स्ट्रैंगल एक ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी है, जिसमें ट्रेडर्स एक ही अंडरलेइंग एसेट की पुट और कॉल में पोजीशन बनाते हैं। लेकिन उनका स्ट्राइक प्राइस अलग-अलग होता है, परन्तु एक्सपायरी सेट दोनों की एक (same) ही होती है। यदि आपको लगता है कि किसी अंडरलेइंग एसेट जैसे निफ्टी, बैंकनिफ्टी और बैंकेक्स आदि के प्राइस में निकट भविष्य में बड़ा उतार-चढ़ाव हो सकता है। लेकिन ये उतार-चढ़ाव किस दिशा में होगा। आपको इसका अनुमान नहीं है। में तो आप Strangle strategy का उपयोग कर सकते हैं। 

स्ट्रैंगल एक अच्छी ट्रेडिंग स्ट्रटेजी है लेकिन तब, जब अंडरलेइंग एसेट के प्राइस में बहुत तेजी से एक ही दिशा में उतार या चढ़ाव होता है। स्ट्रैंगल, स्ट्रैडल के समान ही है लेकिन इसमें अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस का प्रयोग होता है। जबकि स्ट्रैडल में एक ही स्ट्राइक प्राइस के पुट और कॉल दोनों खरीदे जाते हैं। 

Strangle Option Trading Strategy के प्रकार

स्ट्रैंगल ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी दो निम्नलिखित प्रकार की होती है- 
  1. Long Strangle option strategy (लॉन्ग स्ट्रैंगल ऑप्शन स्ट्रेटेजी)
  2. Short strangle strategy (शार्ट स्ट्रैंगल ऑप्शन स्ट्रेटेजी)
1. Long Strangle Option Strategy 

इसमें ट्रेडर्स एक साथ आउट-ऑफ-द-मनी कॉल और एक आउट-ऑफ-द-मनी पुट ऑप्शंस खरीदते हैं। जिसमें कॉल ऑप्शन का स्ट्राइक प्राइस अंडरलेइंग एसेट के मौजूदा (current strike price) स्ट्राइक प्राइस से अधिक होता है। जबकि पुट ऑप्शन का स्ट्राइक प्राइस अंडरलेइंग एसेट के मौजूदा स्ट्राइक प्राइस से कम होता है। 

इस ट्रेडिंग स्ट्रटेजी में बहुत बड़ा प्रॉफिट कमाने की क्षमता है क्योंकि यदि अंडरलेइंग एसेट का प्राइस बढ़ता है तो कॉल ऑप्शन का के प्रीमियम का प्राइस भी बढ़ता है। अगर यदि अंडरलेइंग एसेट का प्राइस गिरता है तो पुट ऑप्शन के प्रीमियम का प्राइस भी बढ़ता है। इसमें जोखिम केवल आपके द्वारा चुकाए गए प्रीमियम तक ही सीमित होता है। 

एक बार आपके द्वारा खरीदे गए पुट और कॉल में से किसी एक के मौजूदा प्रीमियम के, दोनों कॉल-पुट के लिए चुकाए प्रीमियम से ऊपर निकलने पर आप प्रॉफिट में आ जाते हैं। और यह ऑप्शंस मार्केट में असंभव नहीं है। क्योंकि अक्सर मार्केट में बड़े उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। आपको बस उन अवसरों को पकड़ना है यानि पहचानना है और अपनी दोनों साइड की पोजीशन बनानी है। 

2. Short Strangle Option Strategy 

शॉर्ट स्ट्रैंगल करने वाले ट्रेडर्स एक साथ आउट-ऑफ-द-मनी पुट और आउट-ऑफ-द-मनी कॉल बेचते हैं। यह  सीमित प्रॉफिट वाली तथस्ट स्ट्रेटेजी है। Short Strangle स्ट्रेटेजी में ट्रेडर्स को प्रॉफिट तब होता है। जब अंडरलेइंग एसेट के प्राइस ब्रेक इवन पॉइंट के आसपास छोटी रेंज में काफी समय तक ट्रेड करते हैं। यानि कि जब मार्केट काफी समय तक एक रेंज में रहता है। 

ऐसा टाइम डिके यानि थीटा के कारण होता है। इस स्ट्रेटेजी में ऑप्शंस राइटिंग से जो प्रीमियम मिला, उसमें से लागत घटाने पर जो अमाउंट बचता है। वह प्रॉफिट होता है। यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि कॉल और पुट बेचने के लिए बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत पड़ती है। और इसमें प्रॉफिट भी  कम यानि 1-2 प्रतिशत के करीब ही होता है। 

Strangle और Straddle में कौन सा ज्यादा बेहतर है? 

स्ट्रैंगल और स्ट्रैडल दोनों एक जैसी Option Trading Strategy हैं। मार्केट किधर भी जाय अपसाइड या डाउनसाइड इन दोनों स्ट्रेटेजीज ट्रेडर्स को प्रॉफिट ही होता है। लेकिन मूव बड़ा होना चाहिए, हालाँकि लॉन्ग स्ट्रैडल में एट-द-मनी (ATM) स्ट्राइक प्राइस के कॉल और पुट खरीदने पड़ते हैं। ATM में अंडरलेइंग एसेट का स्ट्राइक प्राइस उसके मार्केट प्राइस के समान होता है न कि आउट-ऑफ-द-मनी स्ट्राइक प्राइस के बराबर होता है। 

शॉर्ट स्ट्रैडल शॉर्ट स्ट्रैंगल के समान है, जिसमें प्रॉफिट कमाने की क्षमता सीमित होती है। जो एट-द- मनी कॉल और पुट राइटिंग से एकत्र किए गए प्रीमियम के बराबर होती है। स्ट्रैडल स्ट्रेटेजी में ट्रेडर्स को प्रॉफिट तब होता है। जब अंडरलेइंग एसेट का प्राइस प्रीमियम की कुल लागत से बढ़ जाता है। ऐसा तब होता है, जब अंडरलेइंग एसेट का प्राइस, स्ट्राइक प्राइस से कुछ पॉइंट ऊपर जाता है या कुछ पॉइंट नीचे गिर जाता है। 

अतः स्ट्रैडल से प्रॉफिट कमाने के लिए अंडरलेइंग एसेट के प्राइस में ज्यादा बड़े उछाल या गिरावट की आवश्यकता नहीं होती है। स्ट्रैंगल खरीदना आमतौर पर स्ट्रैडल की तुलना में सस्ता होता है लेकिन स्ट्रैंगल पोजीशन को प्रॉफिट में आने के लिए अंडरलेइंग एसेट में बड़े मूव की जरूरत होती है। इसलिए इसमें जोखिम भी अधिक होता है।

Strangle Option Trading Strategy के फायदे और नुकसान निम्नलिखित हैं- 
  1. स्ट्रैंगल ऑप्शन स्ट्रेटेजी के फायदे: अंडरलेइंग एसेट के प्राइस से होने वाला प्रॉफिट किसी भी दिशा में बढ़ सकता है। साथ ही यह स्ट्रेटेजी अन्य ऑप्शंस ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीज की तुलना में सस्ती है। इस स्ट्रेटेजी के सफल होने पर असीमित प्रॉफिट हो सकता है। 
  2. स्ट्रैंगल ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी के नुकसान: इस स्ट्रेटेजी में प्रॉफिट तब होता है जब अंडरलेइंग एसेट के प्राइस के किसी एक दिशा में बड़ा उछाल आय बड़ी गिरावट होती है। अन्य ऑप्शंस ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी की तुलना में अधिक जोखिम होता है। 
Strangle Option Trading Strategy के बारे में अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न 

स्ट्रैंगल के ब्रेकईवन की गणना कैसे करते हैं?

लॉन्ग स्ट्रैंगल में प्रॉफिट तब हो सकता है, जब अंडरलेइंग एसेट का प्राइस ऊपर जाये पर या प्राइस में गिरावट होने पर प्रॉफिट हो सकता है। इसलिए इसके दो ब्रेकईवन पॉइंट्स होते हैं- 
  1. यदि अंडरलेइंग एसेट का प्राइस बढ़ता है, तो जब प्राइस, कॉल और पुट खरीदने की लागत को घटाकर प्रॉफिट देने लगता है। वह पहला ब्रेकईवन पॉइंट होता है। 
  2. जब अंडरलेइंग एसेट का प्राइस गिरता है। और जब प्राइस कॉल और पुट खरीदने की लागत को निकालकर प्रॉफिट देने लगता है। तब दूसरा ब्रेकईवनपॉइंट होता है। 
स्ट्रैंगल के प्रॉफिट की गणना कैसे करते हैं? 

स्ट्रैंगल ओवरऑल रूप से प्रॉफिट कमाने में तब होता है। जब कॉल या पुट में से किसी एक ऑप्शन का प्राइस दोनों ऑप्शंस को खरीदने की लागत से ज्यादा हो जाता है। उदाहरणस्वरूप यदि आपके द्वारा खरीदे गए कॉल और पुट ऑप्शंस की लागत 5,000 रूपये है। और आपके द्वारा खरीदे गए कॉल या पुट में से किसी एक का प्राइस एक्सपायरी डेट से पहले 5500 रूपये हो जाता है। तो इस स्थिति में में आपको 500 रूपये का प्रॉफिट हो जायेगा।

लॉन्ग स्ट्रैंगल ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी में नुकसान कैसे होता है? 

यदि एक्सपायरी डेट तक आपके द्वारा पोजीशन बनाई गयी अंडरलेइंग एसेट के प्राइस में किसी एक दिशा में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होता है। तो आपको नुकसान होना तय है क्योंकि एक्सपायरी डेट को आपके द्वारा पुट और कॉल ऑप्शंस ख़रीदने के लिए चुकाया गया प्रीमियम शून्य हो जायेगा। इस तरह आपने जो प्रीमियम चुकाया है उसका आपको नुकसान होगा क्योंकि वह आपको वापस नहीं मिलेगा। 

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