Same-Day Delivery Share Selling: डिलीवरी वाले शेयर्स को खरीदे गए दिन ही बेचने पर क्या होता है?

Same-Day Delivery Share Selling: शेयर मार्केट में नए निवेशकों के मन में अक्सर यह सवाल आता है। अगर मैंने डिलीवरी वाले शेयर खरीदे और उसी दिन बेच दिए तो क्या होगा? यह स्थिति बहुत आम है और इसे समझना ज़रूरी है क्योंकि इससे आपके ट्रेडिंग पैटर्न, टैक्सेशन और ब्रोकरेज चार्जेज़ पर असर पड़ता है। आइए जानते हैं- डिलीवरी वाले शेयर्स को खरीदे गए दिन ही बेचने पर क्या होता है? Same-Day Delivery Share Selling in Hindi. 

Same-Day Delivery Share Selling

शेयर बाजार, जिसे कभी कुछ 'खास' लोगों का अड्डा माना जाता था, आज हर आम भारतीय की उंगलियों पर है। आप और हम, सब इसमें पैसा बनाने का सपना लेकर उतरते हैं। लेकिन इस रंगीन दुनिया में कदम रखते ही एक सवाल अक्सर दिमाग में घूमता है: "डिलीवरी वाले शेयर्स को खरीदे गए दिन ही बेचने पर क्या होता है?"

यह सवाल जितना सीधा लगता है, इसका जवाब उतना ही गहरा और पेचीदा है। खासकर तब जब बात टैक्स (Tax), ब्रोकरेज (Brokerage), और बाजार के नियमों (Market Rules) की हो! अगर आप एक नए निवेशक (New Investor) हैं या एक अनुभवी ट्रेडर (Experienced Trader), तो यह विस्तृत ब्लॉग पोस्ट आपके लिए एक 'मास्टर गाइड' (Master Guide) साबित होगी। हम सिर्फ नियम ही नहीं जानेंगे, बल्कि इसके पीछे की पूरी कहानी को समझेंगे।

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Delivery trading क्या होती है?  

Delivery Trading का मतलब है कि जब आप शेयर खरीदते हैं तो वे आपके Demat Account में आ जाते हैं।
सामान्यतः शेयर T+2 दिन (Trade Date + 2 Days) में आपके खाते में क्रेडिट होते हैं। अगर आप उन्हें लंबे समय तक रखते हैं तो यह Investment कहलाता है।

जब आप 'डिलीवरी' लेने के इरादे से खरीदे गए किसी शेयर को, उसी दिन अर्थात, बाजार बंद होने से पहले बेच देते हैं। तब तकनीकी और कानूनी तौर पर इसे 'इंट्राडे ट्रेडिंग' (Intraday Trading) माना जाता है न कि डिलीवरी ट्रेडिंग।

आपका स्टॉक ब्रोकर (StockBroker) इस सौदे को 'स्क्वायर ऑफ' (Square Off) कर देता है। आसान भाषा में, आपने जो पोजीशन (Position) ली थी (खरीदने की), उसे बाजार बंद होने से पहले बराबर (Equal) कर दिया जाता है (बेचकर)।

शेयर को होल्ड करने की अवधि मायने रखती है। आपने डिलीवरी (Delivery) के बटन पर क्लिक करके शेयर को खरीदा होगा लेकिन Share market की नजर में समय मायने रखता है। अगर शेयर आपके डीमैट अकाउंट में रात भर के लिए नहीं रुका, तो वह डिलीवरी नहीं है।

यह कदम आपको निवेशक (Investor) की श्रेणी से निकालकर ट्रेडर (Trader) की श्रेणी में डाल देता है। जिसके अपने अलग नियम, टैक्स और शुल्क होते हैं। अगर आपने सुबह शेयर खरीदे और शाम को ही बेच दिए तो तकनीकी रूप से यह Intraday Trading माना जाएगा।

आपके पास शेयर डिलीवरी के लिए Demat Account में नहीं आएंगे, क्योंकि आपने उन्हें पहले ही बेच दिया। ब्रोकरेज कंपनियां इसे Intraday Trade की तरह ही प्रोसेस करती हैं। आपको Intraday Brokerage Charges और STT (Securities Transaction Tax) उसी हिसाब से देना पड़ता है। 

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इंट्राडे ट्रेडिंग (Intraday trading)

अब चूंकि यह डिलीवरी का सौदा, इंट्राडे बन गया है तो आइए इंट्राडे ट्रेडिंग को विस्तार से समझते हैं-

'इंट्राडे' का शाब्दिक अर्थ है "दिन के भीतर" (Within the Day)। जब आप किसी शेयर को बाजार खुलने (9:15 AM) के बाद खरीदते हैं और बाजार बंद होने (3:30 PM) से पहले बेच देते हैं तो यह इंट्राडे ट्रेडिंग कहलाता है।
इस तरह के सौदे में आपके डीमैट अकाउंट में न शेयर आता है और न ही जाता है। यह एक ही दिन में शून्य हो जाता है।

सेटलमेंट: शेयर बाजार का नया नियम 

यह समझना ज़रूरी है कि 'डिलीवरी' अब कितनी जल्दी पूरी होती है। पहले भारतीय शेयर बाजार में T+2 सेटलमेंट का नियम था।
  1. T+2 का मतलब: ट्रेड वाले दिन (T) के अलावा दो और दिन। यानी अगर आपने सोमवार को शेयर खरीदा, तो वह आपके डीमैट अकाउंट में बुधवार को आता था।
  2. T+1 का मतलब: अब भारत में T+1 सेटलमेंट नियम लागू हो गया है। यानी अगर आपने सोमवार को शेयर खरीदा तो वह अगले दिन, मंगलवार को आपके डीमैट अकाउंट में आ जाएगा। 
  3. इससे यह फिर से पक्का हो जाता है कि आपका सौदा डिलीवरी नहीं, बल्कि इंट्राडे है।

Delivery stocks को उसी दिन बेचने पर लगने वाले Tax & Brokerage 

ब्रोकरेज: जब आप डिलीवरी वाले शेयर को उसी दिन बेचते हैं, तो इंट्राडे ब्रोकरेज शुल्क लागू होते हैं। अधिकांश डिस्काउंट ब्रोकर डिलीवरी ट्रेडिंग के लिए शून्य (Zero) ब्रोकरेज लेते हैं। जबकि इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए, ब्रोकर आमतौर पर एक फ्लैट फीस जैसे: 20 रूपये प्रति ऑर्डर या 0.03% जो भी कम हो लेते हैं।

डिलीवरी वाले सौदे को उसी दिन बंद करते समय आपको यह भी याद रखना चाहिए कि यह आपके 1000 रूपये के प्रॉफिट को इंट्राडे ब्रोकरेज के कारण 960-980 रूपये तक कम हो सकता है। ब्रोकरेज की लागत डिलीवरी की तुलना में बढ़ जाती है। 

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चाहे डिलीवरी हो या इंट्राडे, आपको ये शुल्क हमेशा देने होते हैं, लेकिन इंट्राडे में कम समय में दो बार (खरीदने और बेचने पर) निम्नलिखित टेक्स लगते हैं- 

  • STT (Securities Transaction Tex): इंट्राडे में सिर्फ बेचने पर लगता है। यह डिलीवरी की तुलना में कम होता है।
  • एक्सचेंज टर्नओवर टैक्स (Exchange Turnover Tax): यह BSE और NSE को दिया जाता है। 
  • सेबी फीस: शेयर बाजार नियामक को दिया जाने वाला शुल्क। 
  • स्टाम्प ड्यूटी: यह राज्य सरकार को दिया जाता है।

टैक्स का गणित: सबसे बड़ी गलती जो लोग करते हैं, वह है, अगर आप यह सोचते हैं कि यह सिर्फ एक 'डिलीवरी' से 'इंट्राडे' का बदलाव है तो आप टैक्स के सबसे बड़े जाल में फंस सकते हैं। इंट्राडे ट्रेडिंग से होने वाला प्रॉफिट या लॉस आपकी अन्य आय (जैसे सैलरी, किराया, ब्याज) में जोड़ा जाता है। साथ ही आपके सामान्य इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार इस पर टैक्स लगता है।

इसका मतलब अगर आप हाईएस्ट स्लैब (Highest Tax Slab - 30%) में आते हैं तो आपको 15% STCG के बजाय 30% तक टैक्स देना पड़ सकता है। यह एक बहुत बड़ा अंतर है और इंट्राडे से हुए नुकसान (Loss) को आप अपनी अन्य आय (जैसे सैलरी) से सेट-ऑफ नहीं कर सकते। इसे सिर्फ अन्य इनकम जैसे F&O से ही सेट-ऑफ किया जा सकता है, और वह भी 4 साल के भीतर।

यह वो जगह है जहाँ कई नए ट्रेडर चूक जाते हैं। उन्हें लगता है कि शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) लगेगा। लेकिन सच यह है कि यह बिजनेस इनकम बनकर आपकी टैक्स देनदारी को बढ़ा देता है! अगर आपकी इंट्राडे ट्रेडिंग का टर्नओवर (Intraday Trading Turnover) (ट्रेडिंग वैल्यू) ₹10 करोड़ से अधिक है या आप लगातार नुकसान (Loss) दिखा रहे हैं तो आपको टैक्स ऑडिट (Tax Audit) करवाना पड़ सकता है। यह एक और प्रशासनिक बोझ है जो डिलीवरी ट्रेडिंग में नहीं आता।

Same-Day Delivery में रिस्क और पेनल्टी 

यदि आप CNC (डिलीवरी) में खरीदते हैं और बेचना भूल जाते हैं तो आपके खिलाफ निम्नलिखित कार्यवाही हो सकती है?
1. ऑटोमेटिक स्क्वायर-ऑफ: अगर आप स्टॉक मार्केट बंद होने के समय आमतौर पर 3:20 PM या 3:25 PM तक अपनी इंट्राडे पोजीशन को स्क्वायर ऑफ नहीं करते हैं, तो आपका ब्रोकर अपने आप (Automatically) उस पोजीशन को बेच देता है। इसे ऑटोमेटिक स्क्वायर-ऑफ कहते हैं। इस स्क्वायर-ऑफ के लिए ब्रोकर आप पर एक अतिरिक्त पेनल्टी चार्ज देता है जो आपके मुनाफे को और कम कर सकता है।

2. डिलीवरी फेलियर (Delivery Failure) - रेयर केस: हालांकि, आपके मामले में, चूंकि आपने खरीदा है और बेचा है, तो डिलीवरी फेल होने की संभावना नगण्य (Negligible) है। डिलीवरी फेल तब होती है, जब आप बेचते (short sell) हैं और आपके डीमैट अकाउंट में शेयर मौजूद नहीं होते हैं।

ट्रेडिंग के लिए मास्टर टिप्स

1. आप क्या चाहते है इसमें निम्नलिखित स्पष्टता रखें-
  • ट्रेडिंग: अगर आप कम समय के लिए, मुनाफा कमाकर तुरंत निकलना चाहते हैं, तो हमेशा 'Intraday' का ऑप्शन चुनें। इससे आपको मार्जिन भी मिलेगा और आपकी मंशा साफ रहेगी।
  • इन्वेस्टिंग: अगर आप शेयर को एक दिन से अधिक रखना चाहते हैं तो 'Delivery' का ऑप्शन चुनें।

2. ब्रोकरेज कैलकुलेटर का उपयोग करें: कोई भी ट्रेड करने से पहले, अपने ब्रोकर के ब्रोकरेज कैलकुलेटर पर कुल लागत (ब्रोकरेज + टैक्स) देखें। इससे आपको पता चलेगा कि आपको कितना न्यूनतम मुनाफा कमाना है ताकि आप 'ब्रेक-ईवन' (Break-Even) कर सकें।

3. टैक्स की योजना पहले से बनाएं (Tax Planning is Key): ट्रेडिंग के मुनाफे को हमेशा 'सट्टा आय' मानकर ही टैक्स की योजना बनाएं, खासकर अगर आप उच्च आय वर्ग में हैं। किसी टैक्स सलाहकार (Tax Consultant) से सलाह लेना बुद्धिमानी है।

4. एक दिन से ज़्यादा, एक साल से कम होल्डिंग अवधि: यदि आप कम टैक्स देना चाहते हैं तो शेयर को कम से कम 1 दिन के लिए होल्ड करें (यानी, T+1 सेटलमेंट पूरा होने दें)। अगर आप इसे 1 दिन से ज़्यादा लेकिन 1 साल से कम अवधि के लिए होल्ड करते हैं, तो आपको सिर्फ 15% STCG टैक्स देना होगा। यह कानूनी तौर पर सबसे टैक्स-कुशल (Tax-Efficient) तरीका है।

निष्कर्ष: आपने देखा कि डिलीवरी वाले शेयर्स को खरीदे गए दिन ही बेचने पर क्या-क्या होता है। वह कानूनी तौर पर इंट्राडे ट्रेडिंग बन जाता है। इससे ब्रोकरेज और टैक्स बदल जाते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण: टैक्स की देनदारी शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (15%) से बदलकर बिजनेस/सट्टा आय (आपके स्लैब, 30% तक) हो जाती है। अगर आप डिलीवरी वाले शेयर खरीदकर उसी दिन बेचते हैं। तो यह Delivery Trade नहीं बल्कि Intraday Trade माना जाएगा। 

अतः निवेश करने से पहले यह तय करें कि आप लंबी अवधि के लिए निवेशक बनना चाहते हैं या इंट्राडे ट्रेडर। सही रणनीति और जानकारी से ही आप शेयर मार्केट में लगातार मुनाफा कमा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs) 

Q1. क्या इंट्राडे ट्रेडिंग में भी शेयर डीमैट खाते में आते हैं?

A: नहीं। इंट्राडे ट्रेडिंग में शेयर डीमैट खाते में कभी नहीं आते। यह सिर्फ एक्सचेंज (Exchange) के स्तर पर एक ही दिन में नेट ऑफ (Net Off) हो जाते हैं।

Q2. अगर मैंने आज डिलीवरी में खरीदा और कल बेच दिया, तो क्या होगा?

A: यह एक शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट (Short Term Investment) माना जाएगा। आपको 15% STCG (Short Term Capital Gain Tax) देना होगा। यह इंट्राडे नहीं है।

Q3. इंट्राडे ट्रेडिंग में नुकसान होने पर क्या करना चाहिए?

A: इंट्राडे से हुए नुकसान को आप सिर्फ अगले 4 वर्षों तक किसी अन्य सट्टा आय (Speculative Income) (जैसे F&O) के लाभ से ही सेट-ऑफ कर सकते हैं। आप इसे अपनी सैलरी या बैंक ब्याज जैसी आय से सेट-ऑफ नहीं कर सकते।

Q4. क्या सभी ब्रोकर डिलीवरी पर शून्य ब्रोकरेज लेते हैं?

A: भारत में अधिकांश डिस्काउंट ब्रोकर (Discount Brokers) (जैसे Zerodha, Groww, Upstox आदि) डिलीवरी पर शून्य ब्रोकरेज लेते हैं, लेकिन फुल-सर्विस ब्रोकर (Full-Service Brokers) (जैसे ICICI Direct, HDFC Securities आदि) अभी भी कुछ प्रतिशत ब्रोकरेज ले सकते हैं। हमेशा अपने ब्रोकर के शुल्क की जांच करें।

Q5. अगर मैं कैश में शार्ट सेल पोजीशन को 3:25 PM पर buy करना भूल जाऊं तो क्या होगा?

A: आपका ब्रोकर ऑटोमेटिकली आपकी पोजीशन को स्क्वायर ऑफ कर देगा। इस पर ब्रोकर जुर्माना शुल्क (Penalty Charge) लेता है। 

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