Nifty Futures क्या है?
कम लेनदेन लागत (Lower Transaction Costs): शेयरों की तुलना में, फ्यूचर्स में लेनदेन की लागत, जैसे कि ब्रोकरेज और अन्य शुल्क, आम तौर पर कम होते हैं।
हेजिंग का साधन (Hedging Tool): यह शायद सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। अगर आपके पास एक बड़ा पोर्टफोलियो है और आपको लगता है कि बाजार में गिरावट आ सकती है, तो आप अपने पोर्टफोलियो को सुरक्षित रखने के लिए Nifty Futures को बेच (Short) सकते हैं।
कम पूंजी की आवश्यकता (Leverage): Nifty Futures में ट्रेडिंग करने के लिए, आपको पूरे कॉन्ट्रैक्ट का मूल्य नहीं देना होता है। आपको सिर्फ़ एक छोटा सा मार्जिन जमा करना होता है। यह लिवरेज आपको कम पूंजी के साथ बड़े पदों को लेने की अनुमति देता है।
तरलता (High Liquidity): Nifty Futures दुनिया के सबसे अधिक लिक्विड डेरिवेटिव्स में से एक है। इसका मतलब है कि आप इसे आसानी से और बिना किसी बड़े मूल्य अंतर के खरीद और बेच सकते हैं।
ये भी पढ़ें- स्टॉक मार्केट की सबसे खतरनाक चाल: इनसाइडर ट्रेडिंग का पूरा सच!
Nifty Futures की तकनीकी बारीकियां
- लॉट साइज: Nifty Futures एक निश्चित लॉट साइज में ट्रेड होता है। वर्तमान में, Nifty Futures का लॉट साइज 75 है। इसका मतलब है कि अगर Nifty 1 पॉइंट बढ़ता है, तो आपको 75 रुपये का फायदा होगा। अगर यह 1 पॉइंट गिरता है तो आपको 75 रुपये का नुकसान होगा।
- मार्जिन: जैसा कि पहले बताया गया है आपको पूरे कॉन्ट्रैक्ट की कीमत नहीं देनी होती। Stockbrokers एक निश्चित मार्जिन की मांग करते हैं। यह मार्जिन दो प्रकार का होता है।
- इनिशियल मार्जिन (Initial Margin): यह वह न्यूनतम राशि है जो आपको कॉन्ट्रैक्ट खरीदने या बेचने के लिए जमा करनी पड़ती है।
- मेंटेनेंस मार्जिन (Maintenance Margin): यह वह न्यूनतम राशि है जो आपके खाते में हर समय होनी चाहिए। अगर आपका मार्जिन इससे नीचे चला जाता है तो ब्रोकर मार्जिन कॉल जारी कर सकता है।
- एक्सपायरी डेट: Nifty Futures के सभी कॉन्ट्रैक्ट्स की एक एक्सपायरी डेट होती है जो हर महीने के आखिरी गुरुवार को होती है। आप तीन महीनों के कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड कर सकते हैं- वर्तमान महीने का कॉन्ट्रैक्ट, अगले महीने का कॉन्ट्रैक्ट और आने वाले महीने का कॉन्ट्रैक्ट।
- कंटैंगो (Contango): जब Nifty futures का प्राइस, उसके स्पॉट प्राइस से अधिक होता है, तो उसे कंटैंगो कहते हैं। यह आम तौर पर तब होता है, जब बाजार में पॉजिटिव सेंटीमेंट होता है।
- बैकवर्डेशन (Backwardation): जब निफ्टी फ्यूचर्स का प्राइस,उसके स्पॉट प्राइस से कम होता है तो उसे बैकवर्डेशन कहते हैं। यह अक्सर तब होता है, जब Stock market में मंदी का माहौल होता है। अथवा स्टॉक्स की सप्लाई एंड डिमांड में असंतुलन होता है।
- ये भी पढ़ें- बिटकॉइन होल्ड करो या बेचो? स्ट्रैटेजी जो आपकी किस्मत बदल सकती है!
Nifty Futures ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीज
- लॉन्ग पोर्टफोलियो को हेज करना: अगर आपके पास एक बड़ा स्टॉक पोर्टफोलियो है। और आपको लगता है कि मार्केट में गिरावट आ सकती है। तब आप Nifty Futures को बेच (Short) सकते हैं। अगर मार्केट गिरता है, तो आपको स्टॉक में नुकसान होगा। लेकिन फ्यूचर्स में मुनाफ़ा होगा, जिससे आपका कुल नुकसान कम हो जाएगा।
- शॉर्ट पोर्टफोलियो को हेज करना: इसी तरह, अगर आपने कुछ शेयरों को शॉर्ट सेल किया है। अगर आपको लगता है कि मार्केट बढ़ सकता है, तो आप Nifty Futures को खरीद (Long) सकते हैं।
- स्पेक्युलेशन और डायरेक्शनल ट्रेडिंग: अनुभवी ट्रेडर्स Nifty Futures का उपयोग मार्केट ट्रेंड की दिशा पर दांव लगाने के लिए भी करते हैं।
- लॉन्ग पोजीशन: जब आपको लगता है कि शेयर मार्केट बढ़ेगा, तो आप Nifty Futures खरीद सकते हैं।
- शॉर्ट पोजीशन: जब आपको लगता है कि market गिरेगा तो आप Nifty Futures को short sell कर सकते हैं।
टेक्निकल एनालिसिस (Technical Analysis)
- ट्रेंड लाइन और सपोर्ट/रेसिस्टेंस: वे चार्ट पर ट्रेंड लाइनों का उपयोग करके market trend को समझते हैं। इससे आप भी सपोर्ट एंड रेसिस्टेंस लेवल्स की पहचान कर सकते हैं।
- मूविंग एवरेज: आप 50, 100 और 200 डेज के मूविंग एवरेज का उपयोग करके मार्केट मोमेंटम का अनुमान लगा सकते हैं।
- वॉल्यूम एनालिसिस: वॉल्यूम का विश्लेषण करके आप किसी ट्रेंड (Uptrend or Downtrend) की मजबूती का अनुमान लगा सकते हैं। अगर हाई वॉल्यूम के साथ Nifty futures का प्राइस गिर रहा है तो डाउनट्रेन आगे भी जारी रह सकता है। यही नियम प्राइस बढ़ने पर भी लागू होगा।
- कैंडलस्टिक पैटर्न: विभिन्न कैंडलस्टिक पैटर्न, जैसे डोजी, हैमर, या इंगल्फिंग पैटर्न, का अध्ययन करके आप मार्केट सेंटीमेंट को समझ सकते हैं।
- ये भी पढ़ें- कप एंड हैंडल चार्ट पैटर्न से ट्रेड और टार्गेट कैसे तय करें?
Nifty futures trading में रिस्क मैनेजमेंट
- स्टॉप-लॉस ऑर्डर (Stop-Loss Order): यह सबसे जरूरी रिस्क मैनेजमेंट टूल है। एक स्टॉप-लॉस ऑर्डर आपको एक निश्चित प्राइस पर अपने नुकसान को सीमित करने की अनुमति देता है।
- ट्रेडिंग पूंजी का आवंटन (Capital Allocation): एक सफल ट्रेडर अपनी कुल पूंजी का एक छोटा हिस्सा ही किसी एक ट्रेड में लगाता है। यह सुनिश्चित करता है कि अगर एक ट्रेड में नुकसान हो तो उसका पूरा पैसा खतरे में न पड़े।
- ओवर-ट्रेडिंग से बचें: एक अनुभवी ट्रेडर जानता है कि हर दिन ट्रेड करने की जरूरत नहीं होती है। आपको भी ऐसा ही करना चाहिए। कभी-कभी सबसे अच्छी स्ट्रेटेजी मार्केट से दूर रहना ही होती है।
- भावनाओं पर नियंत्रण: भय और लालच (Fear & Greed) ट्रेडिंग के सबसे बड़े दुश्मन हैं। एक सफल ट्रेडर इन भावनाओं पर नियंत्रण जरूर होना चाहिए। तभी आप शेयर मार्केट में सफल हो सकते हैं।
Nifty Futures में ट्रेडिंग कैसे शुरू करें?
यदि आप शेयर मार्केट के एक अनुभवी ट्रेडर हैं। अब Nifty Futures में ट्रेडिंग शुरू करना चाहते हैं तोआपको निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए-- ब्रोकर का चुनाव करें: एक ऐसे स्टॉकब्रोकर को चुनें जो कम ब्रोकरेज चार्ज करता हो। साथ ही एक अच्छा ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म प्रदान करता हो और अच्छी कस्टमर सर्विस भी देता हो।
- एनालिसिस करें: अपनी पसंदीदा ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीज (तकनीकी या मौलिक) का उपयोग करने के लिए Stock market का गहन विश्लेषण करना चाहिए।
- ऑर्डर दें: अपने ब्रोकर के ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर जाएं, लॉट साइज और एक्सपायरी डेट चुनें। उसके बाद अपना ऑर्डर दें। मेरे विचार से आपको लिमिट ऑर्डर प्लेस करना चाहिए। इससे निफ्टी आपको अपने पसंद के प्राइस पर मिलेगा।
- नियमित रूप से समीक्षा करें: अपने ट्रेड की नियमित रूप से समीक्षा करें, ताकि आप अपनी गलतियों से सीख सकें और अपनी Trading strategies को बेहतर बना सकें। आपको अपना एक ट्रेडिंग जर्नल भी जरूर बनाना चाहिए। जिसमें आपको अपने प्रत्येक ट्रेड को दर्ज करना चाहिए। जिससे आपको अपनी गलतियों का पता चल सके और आप उनमे सुधार भी करते रहें।
0 टिप्पणियाँ