Nifty Futures Trading: निफ्टी फ्यूचर्स ट्रेडिंग से पैसे कमाने का असली तरीका

क्या आप एक अनुभवी ट्रेडर हैं जो अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफिकेशन देना चाहते हैं। अथवा अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीज को और धारदार बनाना चाहते हैं? क्या आप उन छिपे हुए अवसरों की तलाश में हैं जो सिर्फ़ स्टॉक मार्केट के सतह पर नहीं, बल्कि इसकी गहराई में मिलते हैं? अगर हाँ, तो आइए जानते हैं- निफ्टी फ्यूचर्स ट्रेडिंग से पैसे कमाने का असली तरीका। Nifty Futures Trading in Hindi. 
                                                                                         
Nifty Futures Trading

अगर आप फ्यूचर्स एंड ऑप्शन ट्रेडिंग में एक्सपर्ट बनना चाहते हैं तो आपको अंकित गाला & जितेंद्र गाला द्वारा लिखित फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस की पहचान जरूर पढ़नी चाहिए। 

Nifty Futures क्या है? 

निफ्टी फ्यूचर्स एक प्रकार का डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट है जो NSE (National Stock Exchange) के प्रमुख इंडेक्स Nifty 50 पर आधारित है। इसका मतलब है कि आप निफ्टी के भविष्य के प्राइस पर ट्रेड करते हैं, न कि सीधे उसके शेयरों में। 

मान लीजिए आपको लगता है कि अगले महीने निफ्टी ऊपर जाएगा। आप आज ही एक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीद सकते हैं और जब निफ्टी बढ़ेगा, आप उसे बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं। लेकिन अगर आपको लगता है कि इसका प्राइस गिरेगा तो आप इसे शार्ट-सेल भी कर सकते हैं।

ज्यादातर लोग Nifty Futures को एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट के रूप में जानते हैं। जो उन्हें Nifty 50 Index के भविष्य के मूल्य पर दांव लगाने की अनुमति देता है। लेकिन एक अनुभवी ट्रेडर के लिए, यह सिर्फ़ एक टूल नहीं है। बल्कि एक शक्तिशाली वित्तीय साधन (financial instrument) है जो कई उद्देश्यों की पूर्ति करता है।

Nifty Futures एक कानूनी समझौता है, जिसमें दो पक्ष भविष्य में एक निश्चित तिथि पर एक निश्चित कीमत पर Nifty 50 को खरीदने या बेचने का वादा करते हैं। इसका मूल्य सीधे Nifty 50 के स्पॉट प्राइस से जुड़ा होता है।


एक अनुभवी ट्रेडर के लिए, Nifty Futures के कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित फायदे हैं। जो इसे केवल Nifty 50 index में इन्वेस्टमेंट करने से बेहतर बनाते हैं- 
  1. कम लेनदेन लागत (Lower Transaction Costs): शेयरों की तुलना में, फ्यूचर्स में लेनदेन की लागत, जैसे कि ब्रोकरेज और अन्य शुल्क, आम तौर पर कम होते हैं। 

  2. हेजिंग का साधन (Hedging Tool): यह शायद सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। अगर आपके पास एक बड़ा पोर्टफोलियो है और आपको लगता है कि बाजार में गिरावट आ सकती है, तो आप अपने पोर्टफोलियो को सुरक्षित रखने के लिए Nifty Futures को बेच (Short) सकते हैं। 

  3. कम पूंजी की आवश्यकता (Leverage): Nifty Futures में ट्रेडिंग करने के लिए, आपको पूरे कॉन्ट्रैक्ट का मूल्य नहीं देना होता है। आपको सिर्फ़ एक छोटा सा मार्जिन जमा करना होता है। यह लिवरेज आपको कम पूंजी के साथ बड़े पदों को लेने की अनुमति देता है।

  4. तरलता (High Liquidity): Nifty Futures दुनिया के सबसे अधिक लिक्विड डेरिवेटिव्स में से एक है। इसका मतलब है कि आप इसे आसानी से और बिना किसी बड़े मूल्य अंतर के खरीद और बेच सकते हैं। 

  5. ये भी पढ़ें- स्टॉक मार्केट की सबसे खतरनाक चाल: इनसाइडर ट्रेडिंग का पूरा सच!

Nifty Futures की तकनीकी बारीकियां

निफ्टी फ्यूचर्स ट्रेडिंग में में महारत हासिल करने के लिए आपको इसकी तकनीकी बारीकियों को जरूर समझना चाहिए- 
  1. लॉट साइज: Nifty Futures एक निश्चित लॉट साइज में ट्रेड होता है। वर्तमान में, Nifty Futures का लॉट साइज 75 है। इसका मतलब है कि अगर Nifty 1 पॉइंट बढ़ता है, तो आपको 75 रुपये का फायदा होगा। अगर यह 1 पॉइंट गिरता है तो आपको 75 रुपये का नुकसान होगा।
  2. मार्जिन: जैसा कि पहले बताया गया है आपको पूरे कॉन्ट्रैक्ट की कीमत नहीं देनी होती। Stockbrokers एक निश्चित मार्जिन की मांग करते हैं। यह मार्जिन दो प्रकार का होता है।
  3. इनिशियल मार्जिन (Initial Margin): यह वह न्यूनतम राशि है जो आपको कॉन्ट्रैक्ट खरीदने या बेचने के लिए जमा करनी पड़ती है।
  4. मेंटेनेंस मार्जिन (Maintenance Margin): यह वह न्यूनतम राशि है जो आपके खाते में हर समय होनी चाहिए। अगर आपका मार्जिन इससे नीचे चला जाता है तो ब्रोकर मार्जिन कॉल जारी कर सकता है।
  5. एक्सपायरी डेट: Nifty Futures के सभी कॉन्ट्रैक्ट्स की एक एक्सपायरी डेट होती है जो हर महीने के आखिरी गुरुवार को होती है। आप तीन महीनों के कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड कर सकते हैं- वर्तमान महीने का कॉन्ट्रैक्ट, अगले महीने का कॉन्ट्रैक्ट और आने वाले महीने का कॉन्ट्रैक्ट। 
  6. कंटैंगो (Contango): जब Nifty futures का प्राइस, उसके स्पॉट प्राइस से अधिक होता है, तो उसे कंटैंगो कहते हैं। यह आम तौर पर तब होता है, जब बाजार में पॉजिटिव सेंटीमेंट होता है।
  7. बैकवर्डेशन (Backwardation): जब निफ्टी फ्यूचर्स का प्राइस,उसके स्पॉट प्राइस से कम होता है तो उसे बैकवर्डेशन कहते हैं। यह अक्सर तब होता है, जब Stock market में मंदी का माहौल होता है। अथवा स्टॉक्स की सप्लाई एंड डिमांड में असंतुलन होता है।  
  8. ये भी पढ़ें- बिटकॉइन होल्ड करो या बेचो? स्ट्रैटेजी जो आपकी किस्मत बदल सकती है!

Nifty Futures ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीज

Nifty Futures में सफल होने के लिए सिर्फ़ इसके बारे में जानना काफ़ी नहीं है। बल्कि एक अच्छी Trading strategy बनाना भी बहुत जरूरी है।

आप अपने पोर्टफोलियो के हिसाब से हेजिंग स्ट्रेटेजी (Hedging Strategies) बना सकते हैं-
  • लॉन्ग पोर्टफोलियो को हेज करना: अगर आपके पास एक बड़ा स्टॉक पोर्टफोलियो है। और आपको लगता है कि मार्केट में गिरावट आ सकती है। तब आप Nifty Futures को बेच (Short) सकते हैं। अगर मार्केट गिरता है, तो आपको स्टॉक में नुकसान होगा। लेकिन फ्यूचर्स में मुनाफ़ा होगा, जिससे आपका कुल नुकसान कम हो जाएगा।
  • शॉर्ट पोर्टफोलियो को हेज करना: इसी तरह, अगर आपने कुछ शेयरों को शॉर्ट सेल किया है। अगर आपको लगता है कि मार्केट बढ़ सकता है, तो आप Nifty Futures को खरीद (Long) सकते हैं।
  • स्पेक्युलेशन और डायरेक्शनल ट्रेडिंग: अनुभवी ट्रेडर्स Nifty Futures का उपयोग मार्केट ट्रेंड की दिशा पर दांव लगाने के लिए भी करते हैं।
  • लॉन्ग पोजीशन: जब आपको लगता है कि शेयर मार्केट बढ़ेगा, तो आप Nifty Futures खरीद सकते हैं।
  • शॉर्ट पोजीशन: जब आपको लगता है कि market गिरेगा तो आप Nifty Futures को short sell कर सकते हैं। 
आर्बिट्राज स्ट्रेटेजी (Arbitrage Strategies): एक अनुभवी ट्रेडर Nifty Futures का उपयोग आर्बिट्राज के लिए भी कर सकता है। आर्बिट्राज का मतलब है एक ही एसेट को अलग-अलग बाजारों में अलग-अलग प्राइस पर खरीदकर और बेचकर प्रॉफिट कमाना। 

Nifty Futures में, आप स्पॉट-फ्यूचर्स आर्बिट्राज कर सकते हैं। जब फ्यूचर्स और स्पॉट प्राइस के बीच बड़ा अंतर होता है तो आप इस अवसर का लाभ प्रॉफिट कमाने के लिए उठा सकते हैं।

टेक्निकल एनालिसिस (Technical Analysis)

अनुभवी ट्रेडर्स अपनी रणनीतियों को लागू करने के लिए तकनीकी विश्लेषण पर बहुत भरोसा करते हैं।

ट्रेंड लाइन और सपोर्ट/रेसिस्टेंस: वे चार्ट पर ट्रेंड लाइनों का उपयोग करके बाजार के रुझान को समझते हैं और सपोर्ट और रेसिस्टेंस स्तरों की पहचान करते हैं।

मूविंग एवरेज: वे 50, 100 और 200 दिनों के मूविंग एवरेज का उपयोग करके बाजार की गति का अनुमान लगाते हैं।

वॉल्यूम एनालिसिस: वॉल्यूम का विश्लेषण करके वे यह समझते हैं कि क्या किसी रुझान में मजबूती है या नहीं।

कैंडलस्टिक पैटर्न: विभिन्न कैंडलस्टिक पैटर्न, जैसे डोजी, हैमर, या इंगल्फिंग पैटर्न, का अध्ययन करके वे बाजार की भावनाओं को समझते हैं।

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